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भारत में असमानता का मापन

Lokesh Pal July 11, 2025 01:40 22 0

संदर्भ 

विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, भारत 25.5 के गिनी इंडेक्स के साथ विश्व में चौथा सबसे अधिक समानता वाला समाज है, जो इसकी बड़ी अर्थव्यवस्था के बावजूद आर्थिक विकास में व्यापक हिस्सेदारी को दर्शाता है।

संबंधित तथ्य

  • समानता के मामले में भारत, स्लोवाकिया (24.1), स्लोवेनिया (24.3) और बेलारूस (24.4) से पीछे है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु

  • वैश्विक रैंकिंग: भारत सभी G7 और G20 देशों, जिनमें चीन (35.7), अमेरिका (41.8) और यू.के. (34.4) शामिल हैं, से अधिक समतावादी है।
    • ‘सर्वाधिक समतावादी देश’ शब्द उस राष्ट्र का वर्णन करता है, जहाँ आय और उपभोग उसकी जनसंख्या के बीच अधिक समान रूप से वितरित होते हैं।
  • भारत की स्थिति: मूल्यांकन किए गए 167 देशों में से, भारत ‘मध्यम रूप से कम’ असमानता श्रेणी में आता है, और ‘निम्न असमानता’ समूह के बहुत निकट है।
  • असमानता श्रेणी: वैश्विक स्तर पर, केवल 30 देश ‘मध्यम रूप से कम’ असमानता श्रेणी में आते हैं, जिनमें मजबूत कल्याणकारी प्रणालियों वाले कई यूरोपीय देश शामिल हैं।
  • महत्त्व: भारत जैसे बड़े आकार एवं विविधता वाले देश के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है, जो असमानता और गरीबी को कम करने पर केंद्रित नीतियों को दर्शाती है।
  • गरीबी में कमी: भारत ने 171 मिलियन लोगों को चरम गरीबी से बाहर निकाला है।
  • चरम गरीबी में कमी: 2.15 डॉलर/दिन से कम पर जीवनयापन करने वाली आबादी का हिस्सा वर्ष 2011-12 में 16.2% से घटकर वर्ष 2022-23 में केवल 2.3% रह गया।

गिनी इंडेक्स के बारे में

  • अर्थ: गिनी इंडेक्स यह मापता है कि आय या उपभोग का वितरण पूर्ण समानता से कितना विचलित होता है।
  • उत्पत्ति: गिनी इंडेक्स या गिनी गुणांक, वर्ष 1912 में इतालवी सांख्यिकीविद् कोराडो गिनी द्वारा विकसित किया गया था।
  • उद्देश्य: यह मापता है कि किसी देश में व्यक्तियों या परिवारों के बीच आय, धन या उपभोग का वितरण कैसे होता है। यह असमानता की मात्रा को दर्शाता है, न कि आय या धन के पूर्ण स्तरों को।

  • मानक: यह 0 से 100 तक होता है।
    • 0 = पूर्ण समानता (सभी की आय समान है)।
    • 100 = पूर्ण असमानता (एक व्यक्ति के पास सब कुछ है, अन्य के पास कुछ भी नहीं है)।
  • संकेतक: गिनी इंडेक्स जितना ऊँचा होगा, देश उतना ही अधिक असमान होगा।
  • गिनी इंडेक्स को प्रायः लाॅरेंज वक्र का उपयोग करके दर्शाया जाता है:-
    • विकर्ण रेखा पूर्ण समानता दर्शाती है।
    • लाॅरेंज वक्र वास्तविक आय वितरण दर्शाता है।
    • गिनी इंडेक्स विकर्ण के नीचे के कुल क्षेत्रफल के प्रतिशत के रूप में दोनों वक्रों के बीच के अंतर को मापता है।
  • व्याख्या: लोरेंज वक्र और समानता रेखा के बीच बड़ा अंतर अधिक असमानता का अर्थ है।

भारत में आर्थिक असमानता

  • धन संबंधी समानताएँ
    • भारत की कुल संपत्ति का 40% से अधिक हिस्सा सबसे अमीर 1% लोगों के पास है।
    • ऑक्सफैमकी रिपोर्ट जिसका शीर्षक ‘सबसे अमीर लोगों का अस्तित्व: द इंडिया स्टोरी, 2023 के अनुसार,  सबसे निचले 50% लोगों के पास केवल 3% संपत्ति है।
  • आय असमानता
    • विश्व असमानता डेटाबेस के अनुसार, शीर्ष 1% लोग राष्ट्रीय आय का 22.6% (वर्ष 2022-23) कमाते हैं। 
    • शीर्ष 10% लोगों के पास 57% से अधिक आय है, जबकि निचले 50% लोगों के पास केवल 13% है।
  • ग्रामीण-शहरी विभाजन: औसत मासिक प्रति व्यक्ति व्यय (MPCE) (वर्ष 2023- वर्ष 2024)।
    • ग्रामीण: ₹4,122
    • शहरी: ₹6,996
      • (घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण)।
  • लैंगिक वेतन अंतराल
    • विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के अनुसार, पुरुष कुल श्रम आय का 82% कमाते हैं, जबकि महिलाएँ केवल 18% कमाती हैं।
  • औपनिवेशिक धन का निष्कासन
    • वर्ष 1765 से वर्ष 1900 के बीच, ब्रिटेन ने भारत से अनुमानित 64.82 ट्रिलियन डॉलर की संपत्ति का निकासी की, जिससे उपनिवेशवादी शोषण की गहराई और भारत की आर्थिक क्षति का गंभीर आकलन किया जा सकता है।
    • 33.8 ट्रिलियन डॉलर का लाभ ब्रिटेन के शीर्ष 10% लोगों को हुआ।
      • (ऑक्सफैम 2024)

असमानता के संरचनात्मक कारण

  • असमान आर्थिक विकास: सेवाओं और प्रौद्योगिकी में उच्च वृद्धि; कृषि/ग्रामीण क्षेत्रों में कम।
  • महामारी-जनित विभाजन: अरबपतियों की संख्या 102 (वर्ष 2020) से बढ़कर 166 (वर्ष 2022) हुई; भुखमरी दोगुनी हो गई।
  • कर प्रणाली पूर्वाग्रह
    • कॉरपोरेट टैक्स 30% से घटाकर 22% कर दिया गया।
    • निचले 50% लोग 64% GST का भुगतान करते हैं; शीर्ष 10% लोग 4% का भुगतान करते हैं।
  • स्वास्थ्य और शिक्षा तक सीमित पहुँच: कमजोर सार्वजनिक बुनियादी ढाँचा पीढ़ी-दर-पीढ़ी गरीबी को बढ़ावा देता है।
  • अनौपचारिक क्षेत्र की उपेक्षा: अधिकांश कार्यबल कम वेतन वाली, असुरक्षित नौकरियों में फँसा हुआ है।
  • औपनिवेशिक संस्थागत विरासत: कई नियामक और वित्तीय प्रणालियाँ अभी भी औपनिवेशिक पदानुक्रमों का अनुकरण करती हैं।
  • स्वास्थ्य और शिक्षा तक असमान पहुँच: आयुष्मान भारत योजना अस्पताल में भर्ती होने की सुविधा प्रदान करती है, लेकिन प्राथमिक और निवारक देखभाल संबंधी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
    • गरीब परिवारों के लिए ‘पॉकेट व्यय’ अभी भी बहुत अधिक है।
    • शिक्षा की गुणवत्ता और नौकरी तक पहुँच अभी भी जाति, लैंगिक तथा ग्रामीण-शहरी विभाजन के आधार पर बहुत असमान है।
  • बचत का विषम प्रभाव: उच्च आय वर्ग कम उपभोग करते हैं और अधिक बचत करते हैं, जो उपभोग सर्वेक्षणों में असमानता को छुपा देता है।

अधिक आय समानता की दिशा में भारत की प्रगति के कारण

  • प्रधानमंत्री जन धन योजना: वित्तीय समावेशन भारत की सामाजिक समता की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम रहा है। 25 जून, 2025 तक 55.69 करोड़ से अधिक लोगों के पास जन धन खाते थे, जिससे उन्हें सरकारी लाभों एवं औपचारिक बैंकिंग सेवाओं तक सीधी पहुँच प्राप्त होगी।
  • आधार और डिजिटल पहचान: आधार ने देश भर के निवासियों के लिए एक विशिष्ट डिजिटल पहचान बनाने में मदद की है।
  • प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT): DBT प्रणाली ने कल्याणकारी भुगतानों को सुव्यवस्थित किया है, जिससे लीकेज एवं देरी कम हुई है। मार्च 2023 तक संचयी बचत ₹3.48 लाख करोड़ तक पहुँच गई है, जो इसकी दक्षता एवं व्यापकता को दर्शाती है।
  • आयुष्मान भारत: गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच सामाजिक समता में सुधार की कुंजी है। आयुष्मान भारत योजना प्रति परिवार प्रति वर्ष ₹5 लाख तक का स्वास्थ्य कवरेज प्रदान करती है।
  • प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना: पारंपरिक कारीगर और शिल्पकार भारत के आर्थिक और सांस्कृतिक ढाँचे के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
  • समावेशी विकास: रोजगार और ग्रामीण उत्थान के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, कौशल भारत मिशन आदि।
    • विश्व बैंक के ‘स्प्रिंग 2025: गरीबी और समता संक्षिप्त विवरण’ के अनुसार, भारत ने 17.1 करोड़ लोगों को चरम गरीबी से बाहर निकाला है।
    • हाल ही में विश्व बैंक ने अपनी गरीबी रेखा को पहले के 2.15 डॉलर प्रतिदिन से संशोधित कर 3 डॉलर प्रतिदिन (3 डॉलर से कम दैनिक उपभोग) कर दिया है। संशोधित गरीबी रेखा के साथ, भारत में चरम गरीबी दर वर्ष 2011-12 के 27.1 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2022-23 में 5.3 प्रतिशत हो जाएगी।
  • सामाजिक सुरक्षा: अटल पेंशन योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (दुर्घटना बीमा), प्रधानमंत्री जीवन ज्योति योजना आदि, जोखिम कवरेज प्रदान करती हैं।
  • महिला सशक्तीकरण: बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, स्वाधार गृह, मातृ वंदना योजना का लक्ष्य लैंगिक न्याय है।
  • सतत् विकास: सतत् कृषि पर राष्ट्रीय मिशन, जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना आदि समान विकास को बढ़ावा देते हैं।

आय-आधारित बनाम उपभोग-आधारित गिनी इंडेक्स

मापदंड

आय आधारित गिनी इंडेक्स

उपभोग आधारित गिनी इंडेक्स

यह क्या मापता है आय वितरण में असमानता (मजदूरी, लाभ, आदि)। उपभोग पैटर्न में असमानता (खर्च/उपयोग)।
दर्शाता है आय असमानताएँ। जीवन स्तर में असमानताएँ।
डेटा स्थिरता आय में उतार-चढ़ाव के कारण अधिक अस्थिर। अधिक स्थिर, खपत में कम भिन्नता।
प्रयुक्त अधिकतर विकसित देशों में। भारत जैसे विकासशील देशों में इसे प्राथमिकता दी जाती है।
सापेक्ष मूल्य आमतौर पर अधिक (अधिक असमानता दर्शाता है)। सामान्यतः कम (सब्सिडी के माध्यम से पुनर्वितरण के कारण)।
मुख्य सीमा वास्तविक खुशहाली को प्रतिबिंबित नहीं कर सकता है। साझा घरेलू उपयोग के कारण असमानता को कम करके आँका जा सकता है।

भारत के बढ़ती आय समानता के दावे को कमजोर करने वाली चुनौतियाँ

  • डेटा गुणवत्ता और मापन संबंधी मुद्दे: सरकार द्वारा उपयोग किया जाने वाला उपभोग-आधारित गिनी इंडेक्स, आय-आधारित उपायों की तुलना में असमानता को कम करके आँकलन करता है।
    • अधिकांश वैश्विक तुलनाएँ आय के आँकड़ों पर आधारित होती हैं, जिससे भारत का उपभोग-आधारित आँकड़ा तुलनीय नहीं रह जाता है।
  • आय असमानता में वृद्धि: विश्व असमानता डेटाबेस के अनुसार,
    • भारत का आय-आधारित गिनी इंडेक्स 52 (वर्ष 2004) से बढ़कर 62 (वर्ष 2023) हो गया।
    • वर्ष 2023-24 में शीर्ष 10% व्यक्ति निचले 10% लोगों की तुलना में 13 गुना अधिक कमाते हैं।
      • यह बढ़ती असमानता को दर्शाता है, विशेष रूप से आय के चरम पर।

  • सर्वेक्षण की सीमाएँ और अमीरों का छूट जाना: सबसे अमीर परिवार प्रायः राष्ट्रीय सर्वेक्षणों से बाहर रह जाते हैं, क्योंकि:-
    • गैर-प्रतिक्रिया पूर्वाग्रह: धनी व्यक्तियों में अस्वीकृति दर अधिक होती है।
    • नमूना अंतराल: सर्वेक्षणों में अत्यधिक धनी व्यक्तियों के शामिल होने की कम संभावना।
      • इसलिए, असमानता का मुख्य कारक शीर्ष 1% को शामिल न करना है।
  • चरम सीमाओं को समझने में गिनी इंडेक्स की अप्रभाविता: गिनी इंडेक्स आय पिरामिड के शीर्ष और निचले स्तर पर असमानता के प्रति कम संवेदनशील है।
    • विशेषज्ञ ‘पाल्मा’ अनुपात जैसे विकल्पों का समर्थन करते हैं, जो दर्शाते हैं:-
      • भारत में असमानता अब औपनिवेशिक काल के स्तर से भी अधिक हो गई है, जहाँ शीर्ष 1% की आय निचले 50% की तुलना में असमान रूप से अधिक है।
      • पाल्मा अनुपात (Palma Ratio): शीर्ष 10% की आय हिस्सेदारी की तुलना निचले 40% से करके आय असमानता को मापता है। उच्च मान अधिक असमानता दर्शाते हैं।
  • त्रुटिपूर्ण आँकड़ों के कारण अपर्याप्त नीतिगत प्रतिक्रियाएँ: गलत या आंशिक आँकड़ों पर निर्भर रहने से नीति-निर्माण में त्रुटि का खतरा होता है।
    • नीतियाँ मध्यम-स्तरीय उत्थान पर केंद्रित हो सकती हैं, जबकि अत्यधिक असमानताओं की उपेक्षा की जा सकती है।
    • इससे असमानता बढ़ सकती है, सामाजिक अशांति बढ़ सकती है और समावेशी विकास को खतरा हो सकता है।

आगे की राह 

  • असमानता के आँकड़ों की गुणवत्ता में सुधार करना: वास्तविक असमानताओं को दर्शाने के लिए उपभोग-आधारित सर्वेक्षणों से आय-आधारित सर्वेक्षणों पर ध्यान केंद्रित करना।
    • विश्व बैंक जैसी वैश्विक संस्थाओं द्वारा प्रदर्शित किए गए आँकड़ों को स्वीकार करना और उन्हें शामिल करना।
    • असमानता की एक व्यापक तस्वीर के लिए डेटा के कई स्रोतों (सर्वेक्षण, कर रिकॉर्ड, कॉरपोरेट फाइलिंग) का उपयोग करना।
  • सर्वेक्षणों के साथ आयकर डेटा को एकीकृत करना: शीर्ष 1% की आय को बेहतर ढंग से दर्शाने के लिए घरेलू सर्वेक्षण डेटा को आयकर रिकॉर्ड के साथ मिलाना।
    • अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं (यू. के., यू.एस.ए) का पालन करना, जहाँ कर डेटा सर्वेक्षण के कम आकलन को सही करने में मदद करता है।
    • कर अधिकारियों और सांख्यिकीय एजेंसियों के बीच डेटा-साझाकरण ढाँचों को संस्थागत बनाना।
  • बेहतर असमानता मापदंड अपनाना: गिनी इंडेक्स को ‘पाल्मा अनुपात’ जैसे अधिक वितरण-संवेदनशील संकेतकों के साथ पूरक करना।
    • आय से परे असमानताओं (शिक्षा, स्वास्थ्य, लिंग, आदि) को दर्शाने के लिए बहुआयामी असमानता सूचकांकों का उपयोग करना।
  • पारदर्शी और तुलनात्मक बेंचमार्किंग सुनिश्चित करना: समान की तुलना करके भ्रामक वैश्विक रैंकिंग से बचना, आय-आधारित गिनी इंडेक्स की तुलना आय-आधारित स्थिति से ही करना, उपभोग-आधारित से नहीं।
    • सार्वजनिक विज्ञप्तियों में डेटा प्रकाशित करते समय कार्यप्रणाली और सीमाओं का स्पष्ट रूप से खुलासा करना।
  • नीतिगत प्रतिक्रियाओं को मजबूत बनाना: विशेष रूप से उच्च-निम्न अंतराल को संबोधित करते हुए असमानता निदान के आधार पर लक्षित कल्याणकारी नीतियाँ तैयार करना।
    • आय के अंतर को पाटने के लिए पुनर्वितरण तंत्र (जैसे- प्रगतिशील कराधान, सार्वभौमिक बुनियादी सेवाएँ) को बढ़ाना।
    • दीर्घकालिक रूप से संरचनात्मक असमानता को कम करने के लिए रोजगार सृजन, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच पर ध्यान केंद्रित करना।
  • संस्थागत सुधार एवं क्षमता निर्माण: स्वायत्तता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) और नीति आयोग जैसे सांख्यिकीय संस्थानों को मजबूत बनाना।
    • अधिकारियों को उन्नत असमानता विश्लेषण, कर-अंतर विश्लेषण और अंतर-देशीय तुलना ढाँचों में प्रशिक्षित करना।

निष्कर्ष

उपभोग पर आधारित गिनी इंडेक्स में गिरावट का अर्थ स्वतः ही बढ़ती समानता नहीं है। ‘सबसे समान समाजों में से एक’ होने का दावा करने के लिए, भारत को अधिक समृद्ध मापदंड, बेहतर डेटा पद्धतियाँ और मजबूत पुनर्वितरण नीतियाँ अपनानी होंगी, जो शीर्ष स्तर पर बढ़ते धन संकेंद्रण को संबोधित करें।

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