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संघर्ष समाधान के लिए एक उपकरण के रूप में मध्यस्थता

Lokesh Pal May 07, 2025 03:25 9 0

संदर्भ

भारत के राष्ट्रपति और भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India-CJI) ने भारतीय मध्यस्थता संघ के शुभारंभ पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और नई दिल्ली में प्रथम राष्ट्रीय मध्यस्थता सम्मेलन, 2025 को संबोधित किया।

संबंधित तथ्य

  • उन्होंने विवादों को सुलझाने और अदालतों का बोझ कम करने के लिए मध्यस्थता पर जोर दिया। 
  • राष्ट्रपति ने कहा कि मध्यस्थता अधिनियम, 2023 सभ्यतागत विरासत को मजबूत करने की दिशा में पहला कदम है।
    • इस बात पर जोर दिया गया कि प्रभावी विवाद और संघर्ष समाधान को केवल कानूनी आवश्यकता नहीं बल्कि सामाजिक अनिवार्यता माना जाता है।

प्रथम राष्ट्रीय मध्यस्थता सम्मेलन के मुख्य बिंदु

  • सच्चे न्याय के रूप में मध्यस्थता: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और CJI संजीव खन्ना ने इस बात पर जोर दिया कि मध्यस्थता न्याय का कमतर रूप नहीं है, बल्कि यह अधिक समझदारीपूर्ण और अधिक प्रभावी है।
    • उन्होंने कहा कि मध्यस्थता व्यापार करने की सुगमता और जीवन जीने की सुगमता दोनों को बढ़ा सकती है।
  • ऐतिहासिक महत्त्व: भारत में अदालत के बाहर समझौते की समृद्ध परंपरा रही है, जिसे औपनिवेशिक शासकों ने विदेशी कानूनी व्यवस्था लागू करते समय अनदेखा कर दिया था।
  • मध्यस्थता अधिनियम, 2023: इस अधिनियम को भारत के पारंपरिक विवाद समाधान तंत्र को पुनर्जीवित करने तथा एक मजबूत मध्यस्थता ढाँचा बनाने की दिशा में एक कदम के रूप में देखा जाता है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों पर ध्यान: राष्ट्रपति मुर्मू ने सुलभ न्याय और सामाजिक सद्भाव सुनिश्चित करने के लिए पंचायतों  तथा ग्रामीण क्षेत्रों में मध्यस्थता प्रथाओं का विस्तार करने का आह्वान किया।
  • न्यायिक बैकलॉग में कमी: मध्यस्थता को न्यायालयों पर बोझ कम करने और न्याय प्रदान करने में तेजी लाने के समाधान के रूप में देखा जाता है।
  • मध्यस्थता बनाम मुकदमेबाजी: CJI खन्ना ने मुकदमेबाजी, जो लक्षणों का उपचार करती है और मध्यस्थता, जो मूल कारणों को संबोधित करती है और संबंधों को ठीक करती है, के बीच अंतर बताया।
    • वर्ष 2016 से वर्ष 2025 की शुरुआत के बीच, मध्यस्थता के माध्यम से 7.5 लाख से अधिक मामलों का निपटारा किया गया।

मध्यस्थता के बारे में

  • मध्यस्थता एक स्वैच्छिक, गोपनीय और संरचित प्रक्रिया है, जिसमें एक तटस्थ तृतीय पक्ष (मध्यस्थ) विवादित पक्षों के बीच वार्ता को सुगम बनाता है ताकि उन्हें पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान तक पहुँचने में मदद मिल सके।
    • यह सहयोगात्मक समस्या समाधान पर केंद्रित है तथा वैकल्पिक विवाद समाधान (Alternate Dispute Resolution- ADR) का एक प्रकार है।
    • मध्यस्थ चर्चा की सुविधा प्रदान करता है, लेकिन निर्णय आरोपित नहीं किया जाता। जब तक सहमति नहीं बन जाती और औपचारिकता नहीं हो जाती, तब तक परिणाम बाध्यकारी नहीं होता।
    • वर्ष 2016 से वर्ष 2025 की शुरुआत के बीच, मध्यस्थता के माध्यम से 7.57 लाख मामलों का समाधान किया गया।

वैकल्पिक विवाद समाधान (Alternate Dispute Resolution- ADR) के बारे में 

  • ADR का तात्पर्य पारंपरिक अदालतों के बाहर विवादों को निपटाने के तंत्र से है, जो तीव्र और लागत-प्रभावी न्याय को बढ़ावा देता है।
  • ADR के प्रकार: मध्यस्थता, सुलह, पंचनिर्णय, वार्ता और लोक अदालतें।

मध्यस्थता के प्रकार

  • न्यायालय द्वारा संचालित मध्यस्थता: न्यायालय की निगरानी में आयोजित की जाती है।
  • निजी मध्यस्थता: पक्षकार स्वतंत्र रूप से मध्यस्थ नियुक्त करते हैं।
  • सामुदायिक मध्यस्थता: जमीनी स्तर पर विवाद समाधान (जैसे- पंचायतें)।

भारत में मध्यस्थता का महत्त्व 

  • न्यायिक दक्षता: भारत में 5 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं तथा उच्च न्यायालयों में प्रति 18.7 लाख लोगों पर एक जज है।
    • मध्यस्थता मुकदमेबाजी से पहले के चरण में विवादों को हल करके अदालतों में भीड़भाड़ कम करने में मदद करती है।
  • सांस्कृतिक अनुकूलता: भारत में समुदाय आधारित विवाद समाधान की एक लंबी परंपरा है, जैसे कि पंचायत, खाप और गाँव के बुजुर्ग।
  • रिश्तों को सुरक्षित रखना: मध्यस्थता टकराव रहित होती है; यह विश्वास, सहयोग को बढ़ावा देती है और प्रायः सकारात्मक समाधान प्रस्तुत करती है।
    • मुकदमेबाजी में अक्सर जीत और हार दोनों ही होती है, जिससे रिश्तों में तनाव या स्थायी नुकसान होता है। यह अंतर्निहित मुद्दों को संबोधित करने में विफल हो सकता है, केवल सतही समाधान प्रदान करता है।
  • लागत-प्रभावी और त्वरित: प्रक्रियात्मक देरी और लंबित मामलों के कारण अदालतों में मुकदमेबाजी में सालों लग सकते हैं। इसके विपरीत, मध्यस्थता आम तौर पर कुछ सत्रों में विवादों को सुलझा देती है, जिससे समाधान प्रक्रिया तेज हो जाती है।
    • लघु और मध्यम उद्यमों (Small and medium enterprises- SME) के पास अक्सर लंबी कानूनी लड़ाई को बनाए रखने के लिए संसाधनों की कमी होती है। मध्यस्थता उन्हें विवादों को जल्दी से निपटाने की अनुमति देती है, जिससे व्यापार निरंतरता और संबंध सुरक्षित रहते हैं।
  • लचीली प्रक्रिया: कोई कठोर अदालती प्रक्रिया नहीं; पार्टियों का प्रक्रिया पर अधिक नियंत्रण होता है।
  • स्वैच्छिक प्रकृति: पक्ष बिना कारण बताए किसी भी चरण में मध्यस्थता में प्रवेश कर सकते हैं और बाहर निकल सकते हैं।
  • गोपनीयता: सभी चर्चाएँ और प्रकट की गई जानकारी निजी रहती है।

अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता के सफल मामले

  • कैंप डेविड समझौते (वर्ष 1978): अमेरिका ने मिस्र और इजरायल के बीच मध्यस्थता की। इससे शांति संधि हुई और मिस्र ने इजरायल को मान्यता दी।
  • गुड फ्राइडे समझौता (वर्ष 1998): अमेरिका, ब्रिटेन और आयरलैंड ने मध्यस्थता की। इससे उत्तरी आयरलैंड में दशकों से चल रहा संघर्ष समाप्त हो गया।
  • केन्या चुनाव-पश्चात् संकट (वर्ष 2007-08): कोफी अन्नान की मध्यस्थता ने आगे की जातीय हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता को रोका। इससे महत्त्वपूर्ण संवैधानिक तथा चुनावी सुधार हुए।

मध्यस्थता के लिए न्यायिक प्रोत्साहन तथा संस्थागत समर्थन

  • मामलों का संदर्भ: अदालतें लंबित मामलों को कानूनी सेवा प्राधिकरणों (Legal Services Authorities- LSA) के अंतर्गत मध्यस्थता केंद्रों को संदर्भित करती हैं, ताकि लंबित मामलों की संख्या कम हो सके।
  • NALSA की भूमिका: राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (National Legal Services Authority-NALSA) राज्य-स्तरीय मध्यस्थता केंद्र स्थापित करके और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करके मध्यस्थता को बढ़ावा देता है।
  • मध्यस्थता और सुलह परियोजना समिति (Mediation and Conciliation Project Committee- MCPC) मध्यस्थता और सुलह परियोजना समिति का गठन भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा देश में मध्यस्थता और सुलह के प्रभावी कार्यान्वयन की देखरेख के लिए किया गया था।
    •  MCPC की स्थापना 9 अप्रैल, 2005 के प्रशासनिक आदेश द्वारा की गई थी।
  • मध्यस्थता से संबंधित ऐतिहासिक मामले
    • एफकॉन्स इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड बनाम चेरियन वर्की कंस्ट्रक्शन कंपनी (2010): सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि वैकल्पिक विवाद समाधान (Alternative Dispute Resolution- ADR) तेजी से राहत सुनिश्चित करता है और अदालत का बोझ कम करता है।
    • सलेम एडवोकेट बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ (2005): सर्वोच्च न्यायालय ने मध्यस्थता में प्रक्रियात्मक संरचना की आवश्यकता पर जोर दिया।
    • एम.आर. कृष्ण मूर्ति बनाम द न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (2019) सर्वोच्च न्यायालय ने व्यापक कानून की आवश्यकता पर जोर दिया, जिसकी परिणति मध्यस्थता अधिनियम, 2023 के अधिनियमन में हुई।

मध्यस्थता में अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाएँ

  • सिंगापुर
    • सिंगापुर मध्यस्थता केंद्र (Singapore Mediation Centre- SMC) और सिंगापुर अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र (Singapore International Mediation Centre- SIMC) प्रशिक्षित पेशेवरों के साथ संस्थागत मध्यस्थता प्रदान करते हैं।
    • सिंगापुर मध्यस्थता सम्मेलन (2019) मध्यस्थता निपटान समझौतों के सीमा पार प्रवर्तन की अनुमति देता है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका: मध्यस्थता न्यायालय द्वारा एकीकृत है और प्रायः सिविल मामलों में अनिवार्य पूर्व-परीक्षण है।
  • ऑस्ट्रेलिया: राष्ट्रीय मध्यस्थ प्रत्यायन प्रणाली (National Mediator Accreditation System – NMAS): मध्यस्थों के लिए मानकीकृत योग्यताएँ और आचार संहिताएँ।

मध्यस्थता अधिनियम, 2023

  • मध्यस्थता के माध्यम से निपटान: इस अधिनियम के अनुसार, व्यक्तियों को किसी भी न्यायालय या न्यायाधिकरण में जाने से पहले मध्यस्थता के माध्यम से दीवानी या वाणिज्यिक विवादों को निपटाने का प्रयास करना चाहिए।
  • मुकदमेबाजी-पूर्व मध्यस्थता: पक्षों को किसी भी न्यायालय या कुछ न्यायाधिकरणों में जाने से पहले मध्यस्थता के माध्यम से दीवानी या वाणिज्यिक विवादों को निपटाने का प्रयास करना चाहिए। भले ही वे मुकदमेबाजी-पूर्व मध्यस्थता के माध्यम से किसी समझौते पर पहुँचने में विफल हों, न्यायालय या न्यायाधिकरण किसी भी स्तर पर पक्षों को मध्यस्थता के लिए संदर्भित कर सकता है।
  • समयबद्ध प्रक्रिया: मध्यस्थता 120 दिनों के भीतर समाप्त होनी चाहिए, जिसे 60 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है।
  • भारतीय मध्यस्थता परिषद: मध्यस्थों, सेवा प्रदाताओं और संस्थानों को विनियमित करने के लिए एक वैधानिक निकाय।
  • स्वैच्छिक और अनिवार्य मध्यस्थता: इस अधिनियम का उद्देश्य मध्यस्थता के दो रूपों को नियंत्रित करना है, अर्थात स्वैच्छिक और अनिवार्य, यह इस बात पर निर्भर करता है कि मध्यस्थता पर सहमति है या कानूनी रूप से आवश्यक है।
  • बहिष्कृत विवाद: आपराधिक मामले, गंभीर धोखाधड़ी और दूरसंचार एवं पर्यावरण जैसे क्षेत्रीय मुद्दे बहिष्कृत हैं।
  • न्यायालय द्वारा निर्देशित मध्यस्थता की अनुमति: न्यायालय कुछ सिविल और वैवाहिक विवादों को मध्यस्थता के लिए संदर्भित कर सकते हैं। 
  • सामुदायिक मध्यस्थता प्रावधान: सद्भाव को प्रभावित करने वाले स्थानीय विवादों का मध्यस्थ पैनल द्वारा समाधान किया जा सकता है।

मध्यस्थता को लागू करने में चुनौतियाँ

  • जागरूकता की कमी: लोग अभी भी न्याय को अदालती फैसलों के बराबर मानते हैं।
  • प्रशिक्षित मध्यस्थों की कमी: विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में कुशल पेशेवर कम हैं।
  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: जिलों में समर्पित मध्यस्थता केंद्रों का अभाव।
  • प्रवर्तनीयता संबंधी भ्रम: वर्ष 2023 से पहले, मध्यस्थता समझौतों की कानूनी स्थिति पर स्पष्टता का अभाव।
  • सांस्कृतिक प्रतिरोध: विरोधात्मक तरीकों को प्राथमिकता देना और केस को “जीतना”।
  • औपचारिक संरचना का अभाव: हालाँकि निजी या स्वैच्छिक मध्यस्थता, तेजी से प्रचलित हो रही है पर एक औपचारिक और संस्थागत ढाँचे का अभाव है।
    • चूँकि ऐसे समझौतों को हमेशा अदालती आदेशों में नहीं बदला जाता है, इसलिए अगर कोई पक्ष चूक करता है तो पार्टियों को शर्तों को लागू करना मुश्किल हो सकता है।
  • कानूनी मान्यता का अभाव: निजी मध्यस्थता के माध्यम से किए गए समझौतों को मौजूदा कानूनी प्रावधानों के तहत स्पष्ट रूप से मान्यता नहीं दी जाती है, जिससे उन्हें अदालत द्वारा संदर्भित मध्यस्थता की तुलना में कम लागू किया जा सकता है।

आगे की राह

  • जागरूकता अभियान: मध्यस्थता की समझ और स्वीकृति को बढ़ावा देने के लिए कानूनी साक्षरता अभियान।
    • मध्यस्थता अधिनियम, 2023 की सफलता के लिए “मध्यस्थता मानसिकता” आवश्यक है।
  • क्षमता निर्माण: भावनात्मक बुद्धिमत्ता, सक्रिय श्रवण और बातचीत कौशल के साथ मध्यस्थों को प्रशिक्षित करना।
  • कानूनी शिक्षा सुधार: कानून स्कूलों को मध्यस्थता में व्यावहारिक प्रशिक्षण शामिल करना चाहिए।
  • तकनीकी एकीकरण: विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में पहुँच का विस्तार करने के लिए ऑनलाइन विवाद समाधान (ODR) को बढ़ावा देना।
  • जमीनी स्तर पर सशक्तीकरण: मध्यस्थता अधिनियम ढाँचे के तहत पंचायतों और स्थानीय निकायों को शामिल करना।
  • वैश्विक भागीदारी: सिंगापुर जैसे मॉडल से सीखना और भारत को वैश्विक मध्यस्थता केंद्र के रूप में स्थापित करना।

निष्कर्ष:

मध्यस्थता ने स्वयं को अतीत की परंपरा, वर्तमान की आवश्यकता तथा विवाद समाधान की भावी आधारशिला के रूप में मजबूती से स्थापित कर लिया है।

  • चूँकि अदालतों पर काम का अत्यधिक बोझ है, इसलिए मध्यस्थता एक विश्वसनीय, प्रभावी और सौहार्दपूर्ण समाधान है, जो सभी के लिए न्याय तक पहुँच को बढ़ावा देती है और यह वर्ष 2047 तक विकसित भारत के विजन को साकार करने का एक महत्त्वपूर्ण साधन बन जाती है।

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