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भारत में मानसिक स्वास्थ्य

Lokesh Pal April 09, 2025 02:55 36 0

संदर्भ

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली (आईआईटी, दिल्ली) में हाल ही में हुई आत्महत्या की घटना ने भारत में मानसिक स्वास्थ्य के संबंध में चिंताएँ बढ़ा दी हैं।

मानसिक स्वास्थ्य क्या है?

  • मानसिक स्वास्थ्य मानसिक सेहत की एक ऐसी स्थिति है, जो लोगों को जीवन के तनावों से निपटने, स्वयं की क्षमताओं को पहचानने, अच्छी तरह से सीखने और कार्य करने तथा अपने समुदाय में योगदान करने में सक्षम बनाती है।
  • यह स्वास्थ्य और सेहत का एक अभिन्न अंग है, जो निर्णय लेने, संबंध बनाने और जिस वातावरण में हम रहते हैं, उसे आकार देने की हमारी व्यक्तिगत और सामूहिक क्षमताओं को रेखांकित करता है।
  • मानसिक स्वास्थ्य एक बुनियादी मानव अधिकार है।

मानसिक स्वास्थ्य के प्रमुख पहलू

  • भावनात्मक कल्याण: इसके अंतर्गत भावनाओं को प्रभावी ढंग से समझना, प्रबंधित करना और व्यक्त करना शामिल है। साथ ही इसमें तनाव प्रबंधन, भावनाओं की एक शृंखला का अनुभव करने और जीवन की चुनौतियों का सामना करने की क्षमता शामिल है।
  • मनोवैज्ञानिक कल्याण: आत्म-मूल्य की भावना होना, स्वयं को समझना और विचारों एवं भावनाओं को प्रबंधित करने की क्षमता रखना।
  • सामाजिक कल्याण: स्वस्थ संबंध रखना, दूसरों के साथ बातचीत करने में सक्षम होना और समाज में सकारात्मक योगदान देना शामिल है।

मानसिक स्वास्थ्य क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • समग्र स्वास्थ्य को प्रभावित करता है: मानसिक स्वास्थ्य हमारे समग्र स्वास्थ्य के लिए महत्त्वपूर्ण है। यह हमारे सोचने, महसूस करने और कार्य करने के तरीके को प्रभावित करता है, जिससे हमारी संतुष्टिपूर्ण जीवन जीने, तनाव से निपटने और सार्थक संबंध बनाने की क्षमता प्रभावित होती है।
  • उत्पादकता में सुधार करता है: अच्छा मानसिक स्वास्थ्य ध्यान, निर्णय लेने और संज्ञानात्मक क्षमताओं को बढ़ाता है, जिससे कार्य की उच्च उत्पादकता और बेहतर शैक्षणिक प्रदर्शन देखने को मिलता है। यह व्यक्तिगत विकास और जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करता है।
  • शारीरिक स्वास्थ्य संबंध: मानसिक स्वास्थ्य और शारीरिक स्वास्थ्य का आपस में गहरा संबंध है। खराब मानसिक स्वास्थ्य हृदय रोग, मधुमेह और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली जैसी शारीरिक स्वास्थ्य समस्याओं में योगदान दे सकता है। इसके विपरीत, अच्छा मानसिक स्वास्थ्य बेहतर शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है।
  • स्वस्थ संबंधों को बढ़ावा देता है: मानसिक स्वास्थ्य सहानुभूति, समझ और प्रभावी संचार को बढ़ावा देता है, जिससे परिवार, दोस्तों और सहकर्मियों के साथ सकारात्मक संबंध बनाने और बनाए रखने में सहायता मिलती है।
  • दीर्घकालिक मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को रोकता है: स्व-देखभाल और समय पर हस्तक्षेप के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने से अवसाद, चिंता और मादक द्रव्यों के सेवन संबंधी विकारों जैसी गंभीर मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों के विकास को रोका जा सकता है। समय पर सहायता मिलने से बेहतर परिणाम और जीवन की गुणवत्ता सुनिश्चित होती है।

भारत में मानसिक स्वास्थ्य पर प्रमुख आँकड़े

  • मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की व्यापकता: राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NMHS) 2015-2016 के अनुसार, भारत में लगभग 150 मिलियन वयस्क मानसिक विकारों से पीड़ित हैं, जिन्हें मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच की आवश्यकता है।
    • भारत में 13-17 वर्ष की आयु के लगभग 7.3% व्यक्ति गंभीर मानसिक बीमारी से पीड़ित हैं।
  • आत्महत्या और मानसिक स्वास्थ्य: वर्ष 2018 से वर्ष 2022 के मध्य मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित आत्महत्याओं के मामलों में 44% की वृद्धि हुई है।
    • वर्ष 2022 में, 10,365 पुरुष (लगभग 72%) और 4,234 महिलाओं (लगभग 28%) ने मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित समस्याओं के चलते आत्महत्याएँ की हैं।
  • उपचार अंतराल: भारत में मानसिक विकारों के लिए उपचार अंतराल चिंताजनक रूप से उच्च बना हुआ है। शराब के सेवन से होने वाले विकारों के लिए, उपचार अंतराल 86% अधिक है और अन्य मानसिक विकारों के लिए (मिर्गी को छोड़कर) 60% से अधिक है।
    • मनोविकृति से पीड़ित केवल 29% लोग और अवसाद से पीड़ित एक-तिहाई लोग औपचारिक मानसिक स्वास्थ्य देखभाल प्राप्त करते हैं।
  • मनोचिकित्सक और स्वास्थ्य सेवा की सुलभता: भारत में प्रति 1 लाख जनसंख्या पर केवल 0.75 मनोचिकित्सक हैं, जो कि WHO द्वारा अनुशंसित प्रति 1 लाख जनसंख्या पर 3 मनोचिकित्सकों के मानक से बहुत कम है।
    • मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है, अनुमान है कि आबादी की मानसिक स्वास्थ्य संबंधी माँगों को पूर्ण करने के लिए 30,000 मनोचिकित्सकों, 37,000 मनोरोग नर्सों और 38,000 नैदानिक ​​मनोवैज्ञानिकों की आवश्यकता है।
  • कोविड-19 महामारी का प्रभाव: कोविड-19 महामारी ने मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को काफी सीमा तक बढ़ा दिया है, जिसके कारण वर्ष 2019 की तुलना में वर्ष 2020 में आत्महत्या से संबंधित मानसिक स्वास्थ्य मौतों में 25% की वृद्धि हुई है।

भारत में मानसिक बीमारी के कारण

  • सामाजिक-आर्थिक कारक: WHO की व्यापक मानसिक स्वास्थ्य कार्य योजना से ज्ञात होता है कि गरीबी एवं आर्थिक स्थिरता की कमी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के लिए प्रमुख योगदानकर्ता हैं, विशेष रूप से बच्चों और हाशिए पर स्थिति समुदायों जैसी कमजोर आबादी के मध्य।
    • वित्तीय असुरक्षा का सामना करने वाले लोग अक्सर दीर्घकालिक तनाव और चिंता का अनुभव करते हैं।
  • उपेक्षा और सामाजिक दबाव: WHO मानसिक स्वास्थ्य कार्य योजना के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों से पीड़ित लोगों को अक्सर सामाजिक उपेक्षा या अलगाव की स्थिति का का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके लिए मदद माँगना मुश्किल हो जाता है।
    • यह सामाजिक उपेक्षा शिक्षा से लेकर कार्यस्थलों तक सभी क्षेत्रों में व्याप्त है तथा मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में महत्त्वपूर्ण बाधा उत्पन्न करती है।
  • शैक्षणिक और नौकरी का दबाव
    • शैक्षिक तनाव: राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2016) के डेटा से ज्ञात होता है कि उच्च शैक्षणिक अपेक्षाएँ, विशेष रूप से आईआईटी और मेडिकल कॉलेजों जैसे प्रतिस्पर्द्धी वातावरण में, अवसाद और आत्महत्या जैसे मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों में योगदान करती हैं।
    • कार्यस्थल पर दबाव: नौकरी से संबंधित तनाव, लंबे समय तक काम करना और कार्यस्थल पर भेदभाव बर्नआउट, अवसाद और चिंता के बढ़ते मामलों से जुड़े हैं।
  • सामाजिक अलगाव और पारिवारिक मुद्दे
    • पारिवारिक अपेक्षाएँ: भारत में NIMHANS सहित विभिन्न अध्ययनों और रिपोर्टों के अनुसार, पारिवारिक अपेक्षाओं का बढ़ता दबाव, विशेष रूप से शैक्षणिक प्रदर्शन और कॅरियर विकल्पों में, छात्रों के मध्य मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में उल्लेखनीय वृद्धि से जुड़ा हुआ है।
    • पारंपरिक पारिवारिक सहायता का अभाव: WHO की मानसिक स्वास्थ्य कार्य योजना इस बात पर जोर देती है कि पारिवारिक सहायता प्रणालियों के टूटने से, विशेष रूप से शहरीकरण में, सामाजिक अलगाव होता है, जिसके परिणामस्वरूप अवसाद और चिंता हो सकती है।
  • मादक द्रव्यों का दुरुपयोग: NIMHANS रिपोर्ट और विश्व स्वास्थ्य संगठन मानसिक स्वास्थ्य कार्य योजना इस बात पर बल देती है कि मादक द्रव्यों का दुरुपयोग, विशेष रूप से शराब और नशीली दवाओं की लत, मानसिक विकारों की बढ़ती दरों में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है।
    • यह ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में बढ़ता चिंता का विषय बन गया है।
  • लैंगिक भेदभाव
    • महिलाएँ और मानसिक स्वास्थ्य: वर्ष 2016 के राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण ने इस बात पर प्रकाश डाला कि लिंग आधारित हिंसा और सामाजिक दबाव के कारण महिलाओं में अवसाद तथा चिंता का अनुभव होने की संभावना अधिक होती है।
    • WHO की मानसिक स्वास्थ्य कार्य योजना इस बात पर जोर देती है कि आर्थिक हाशिए पर स्थिति होने और लैंगिक असमानता के कारण महिलाएँ मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से असमान रूप से पीड़ित हैं।
  • प्रौद्योगिकी और सोशल मीडिया का प्रभाव
    • साइबरबुलिंग और ऑनलाइन उत्पीड़न: सोशल मीडिया के बढ़ते चलन के साथ, खासकर युवाओं को साइबरबुलिंग और ऑनलाइन उत्पीड़न की बढ़ती दरों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे निष्क्रियता, चिंता और अवसाद की भावनाएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
    • सोशल मीडिया की लत: सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग को कम आत्मसम्मान, सामाजिक तुलना और मानसिक थकावट से जोड़ा गया है, खासकर किशोरों और युवा वयस्कों के मध्य।

भारत में मानसिक स्वास्थ्य के लिए सरकारी पहल और नीतियाँ

  • राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (National Mental Health Programme- NMHP) (1982)
    • उद्देश्य: प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के माध्यम से किफायती मानसिक स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना।
    • घटक
      • जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (District Mental Health Programme-DMHP): 743 जिलों में परामर्श, संकट हस्तक्षेप और आउटरीच प्रदान करता है।
      • जनशक्ति विकास: मानसिक स्वास्थ्य में सामान्य चिकित्सकों को प्रशिक्षित करता है।
  • राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति, 2014
    • विजन: मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देना, मानसिक रोगों को रोकना और देखभाल तक पहुँच सुनिश्चित करना।
    • प्राथमिकता वाले क्षेत्र: सुभेद्य आबादी, सामुदायिक भागीदारी, उपेक्षा में कमी और मानवाधिकार संरक्षण।
    • WHO की व्यापक मानसिक स्वास्थ्य कार्य योजना 2013-2030 के साथ संरेखित करना।
  • मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम (2017)
    • आत्महत्या को अपराध से मुक्त करता है: आत्महत्या का प्रयास करना अब अपराध नहीं है।
    • अधिकार आधारित दृष्टिकोण: मानसिक स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच को मौलिक अधिकार के रूप में सुनिश्चित करता है।
    • बीमा समानता: शारीरिक स्वास्थ्य के समान मानसिक स्वास्थ्य के लिए कवरेज अनिवार्य करता है।
    • अग्रिम निर्देश: व्यक्तियों को उपचार संबंधी प्राथमिकताएँ निर्दिष्ट करने की अनुमति प्रदान करता है।
  • दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम (2016): यह मानसिक बीमारी को दिव्यांगता के रूप में मान्यता देता है, अधिकारों और लाभों को सुनिश्चित करता है।
  • राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NTMHP, 2022)
    • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य एवं तंत्रिका विज्ञान संस्थान (National Institute of Mental Health and Neuro Sciences-NIMHANS) के साथ साझेदारी में शुरू की गई पहल।
    • देश भर में मानसिक स्वास्थ्य तक पहुँच बढ़ाने के लिए टेली-मानस (Tele-MANAS) प्लेटफॉर्म के माध्यम से टेली परामर्श सेवाएँ प्रदान करता है।
      • टेली-मानस हेल्पलाइन: 20 भाषाओं में 24/7 टोल-फ्री परामर्श (14416 या 1-800-891-4416)।
  • राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति (National Suicide Prevention Strategy) (2022)
    • लक्ष्य: वर्ष 2030 तक आत्महत्या मृत्यु दर में 10% की कमी लाना।
    • मुख्य स्तंभ
      • स्वास्थ्य क्षेत्र: संकट हस्तक्षेप सेवाओं को मजबूत करना।
      • शिक्षा: स्कूलों/कॉलेजों में लचीलेपन को बढ़ावा देना।
      • मीडिया: आत्महत्याओं पर जिम्मेदारीपूर्ण रिपोर्टिंग।
      • निगरानी: डेटा संग्रह में सुधार (जैसे- राष्ट्रीय आत्महत्या रजिस्ट्री पायलट)।
  • सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप (2023–2024)
    • परिसरों में छात्र आत्महत्याओं और मानसिक स्वास्थ्य संकटों को दूर करने के लिए एक राष्ट्रीय टास्क फोर्स (मार्च 2024) के गठन का निर्देश दिया।
  • एकीकृत योजनाएँ
    • आयुष्मान भारत – स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र (HWC): प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा स्तरों पर बुनियादी मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ (परामर्श, स्क्रीनिंग) प्रदान करता है।
    • राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम (RKSK, 2014): स्कूल कार्यक्रमों और सहकर्मी शिक्षा के माध्यम से किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • किरण (KIRAN) हेल्पलाइन (2020): संकट, अवसाद और आत्महत्या की रोकथाम के लिए सामाजिक न्याय मंत्रालय की 24/7 मानसिक स्वास्थ्य हेल्पलाइन।
  • राज्य स्तरीय पहल
    • केरल: मानसिक स्वास्थ्य नीति वाला पहला राज्य (2013)
      • समुदाय आधारित देखभाल के लिए ‘अथानिप्पु’ (Athanippu) कार्यक्रम।
    • तमिलनाडु: ‘मनो अम्मा’ (Mano Amma) योजना निःशुल्क मनोरोग उपचार प्रदान करती है।
    • महाराष्ट्र: ग्रामीण मानसिक स्वास्थ्य शिविरों के लिए ‘मनसापूर्ति योजना’ (Mansa Purti Yojana)।

भारत में मानसिक स्वास्थ्य पर ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

प्राचीन भारत (1500 ईसा पूर्व-500 ई.पू.)

  • वैदिक और प्रारंभिक ग्रंथ: मानसिक स्वास्थ्य को शरीर, मन और आत्मा (आत्मा) के बीच संतुलन के रूप में देखा जाता है। 
  • उपचार
    • आयुर्वेद: चरक संहिता (300 ईसा पूर्व) ने मानसिक विकारों (उन्माद) को वर्गीकृत किया और जड़ी-बूटियों, योग और ध्यान का सुझाव दिया।
    • आध्यात्मिक उपचार: मंत्र, अनुष्ठान (जैसे- अथर्ववेद में अवसाद को ‘धीरोद्वेग’ (Dhirodvega) के रूप में उल्लेख किया गया है)।
  • बौद्ध/जैन योगदान
    • माइंडफुलनेस: बुद्ध की शिक्षाओं में मानसिक अनुशासन (सतिपत्तन सुत्त) पर जोर दिया गया।
    • शरणालय: मानसिक रूप से बीमार लोगों के लिए शुरुआती आश्रय, मठों (जैसे- तक्षशिला) के निकट बनाए गए थे।

मध्यकालीन काल (8वीं-18वीं शताब्दी)

  • इस्लामी प्रभाव
    • दुनिया का पहला मानसिक अस्पताल 792 ई. में बगदाद में स्थापित किया गया था।
      • भारत: दिल्ली सल्तनत और मुगल काल में समान संस्थाएँ (जैसे- हैदराबाद में दार-उल-शिफा)।
    • यूनानी चिकित्सा: मिश्रित ग्रीक-अरबी-भारतीय प्रणालियाँ; आहार, अरोमाथेरेपी और टॉक थेरेपी (इलाज-ए-नफसानी) का उपयोग किया जाता है।
  • तांत्रिक और लोक प्रथाएँ
    • तंत्र: पागलपन उत्पन्न करने वाली “बुरी आत्माओं को बाहर निकालने” के लिए अनुष्ठान।
    • कलंक: मानसिक बीमारी को अक्सर कर्म या अलौकिक शक्तियों के लिए उत्तरदायी ठहराया जाता है।

औपनिवेशिक युग (18वीं-20वीं शताब्दी)

  • पहला शरणालय
    • वर्ष 1787: बॉम्बे असाइलम (अब पुणे में मानसिक स्वास्थ्य संस्थान)।
    • वर्ष 1857: राँची इंडियन मेंटल हॉस्पिटल (एशिया का सबसे बड़ा)। 
  • पागलपन अधिनियम (Lunacy Acts)
    • 1858 अधिनियम: उपचार पर नहीं, बल्कि हिरासत में देखभाल पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • 1912 अधिनियम: रोगियों को “अपराधी” या “हानिरहित” के रूप में वर्गीकृत किया गया।
  • नकारात्मक विरासत
    • क्रूर उपचार: बिना सहमति के प्रतिबंध, अलगाव और इलेक्ट्रोकन्वल्सिव थेरेपी (ECT)।
    • सामाजिक उपेक्षा पर जोर: मानसिक अस्पताल सामाजिक रूप से बहिष्कृत लोगों के लिए “डंपिंग ग्राउंड” बन गए।

स्वतंत्रता के पश्चात (1947-2000)

  • भोरे समिति (1946)
    • अनुशंसाएँ: मानसिक स्वास्थ्य को सामान्य स्वास्थ्य सेवा के साथ एकीकृत करना।
      • मनोचिकित्सा में प्राथमिक डॉक्टरों को प्रशिक्षित करना।
    • परिणाम: राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP, 1982) का नेतृत्व किया।
  • आधुनिक मनोचिकित्सा का उद्भव 
    • 1950-60 के दशक: पहली एंटीसाइकोटिक दवाएँ (जैसे, क्लोरप्रोमज़ीन) पेश की गईं।
    • 1970 के दशक: NIMHANS (बंगलूरू) शोध के लिए एक प्रमुख संस्थान बन गया।

21वीं सदी: अधिकार और सुधार

  • प्रतिमान बदलाव: हिरासत से सामुदायिक देखभाल तक
    • वर्ष 2007: मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम ने औपनिवेशिक पागलपन अधिनियमों को प्रतिस्थापित किया है।
    • वर्ष 2017: मानसिक स्वास्थ्य सेवा अधिनियम ने अधिकारों की गारंटी दी और आत्महत्या को अपराध से मुक्त कर दिया।
  • वैश्विक प्रभाव
    • WHO संरेखण: भारत ने वर्ष 2018 में मानसिक स्वास्थ्य अंतर कार्रवाई कार्यक्रम (Mental Health Gap Action Programme-mhGAP) को अपनाया।
    • SDG: लक्ष्य 3.4 वर्ष 2030 तक मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है।

भारत में मानसिक स्वास्थ्य नीतियों में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता

  • रोकथाम और जागरूकता पर ध्यान देना: मानसिक स्वास्थ्य नीतियाँ मुख्य रूप से बीमारी की शुरुआत के बाद उपचार पर ध्यान केंद्रित करती हैं।
    • कलंक को कम करने और जागरूकता बढ़ाने के लिए स्कूल तथा समुदाय के स्तर पर रोकथाम, प्रारंभिक हस्तक्षेप और मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए।
  • अधिकार आधारित और समावेशी दृष्टिकोण: मानसिक स्वास्थ्य नीतियाँ अक्सर हाशिए पर पड़े समूहों, जैसे कि महिलाओं, LGBTQIA+ व्यक्तियों और अल्पसंख्यकों को बाहर रखती हैं।
    • नीतियों को अधिकार आधारित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, सभी समूहों के लिए मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तक समान पहुँच सुनिश्चित करना चाहिए और स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों में भेदभाव तथा हाशिए पर होने की समस्या को दूर करना चाहिए।
  • समुदाय आधारित मानसिक स्वास्थ्य देखभाल: मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिकतर संस्थागत है, जिसमें अस्पतालों और शरणालयों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
    • समुदाय आधारित मानसिक स्वास्थ्य देखभाल पर जोर दिया जाना चाहिए, जो सुलभ, लागत-प्रभावी और कम उपेक्षित  हो।
  • मानसिक स्वास्थ्य अनुसंधान और डेटा संग्रह को बढ़ाना: मानसिक स्वास्थ्य डेटा अक्सर सीमित और खंडित होता है, जिससे प्रभावी नीति-निर्माण में बाधा आती है।
    • मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों के दायरे को बेहतर ढंग से समझने और नीति और हस्तक्षेपों को सूचित करने के लिए मानसिक स्वास्थ्य अनुसंधान, डेटा संग्रह और निगरानी के लिए एक मजबूत प्रणाली विकसित की जानी चाहिए।

वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएँ

  • WHO की व्यापक मानसिक स्वास्थ्य कार्य योजना (2013-2030): मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तक सार्वभौमिक पहुँच और मानसिक स्वास्थ्य को सामान्य स्वास्थ्य सेवा में एकीकृत करना।
  • ब्राजील के “मनोवैज्ञानिक देखभाल केंद्र”: शरणालयों को समुदाय आधारित मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं से प्रतिस्थापित किया गया।
  • यूनाइटेड किंगडम का ‘मनोवैज्ञानिक उपचारों तक पहुँच में सुधार’ (IAPT): सामान्य मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों के लिए सामान्य परामर्शदाता संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा (CBT) प्रदान करते हैं।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका: मानसिक स्वास्थ्य समानता और व्यसन अधिनियम।
    • बीमाकर्ताओं द्वारा शारीरिक स्वास्थ्य कवरेज के बराबर मानसिक स्वास्थ्य कवरेज को अनिवार्य बनाता है।
  • ऑस्ट्रेलिया के ‘हेडस्पेस’ युवा केंद्र: युवा मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के लिए वन-स्टॉप केंद्र, परामर्श, सहकर्मी सहायता और व्यावसायिक प्रशिक्षण जैसी सेवाएँ प्रदान करते हैं।

भारत में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की चुनौतियाँ

  • मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित उपेक्षा : भारत के कई हिस्सों में मानसिक स्वास्थ्य एक वर्जित विषय बना हुआ है। मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति से पीड़ित लोगों को अक्सर समाज में उपेक्षा की दृष्टि से देखा जाता है, जिसके कारण वे मदद लेने से कतराते हैं।
    • WHO की व्यापक मानसिक स्वास्थ्य कार्य योजना (2013-2030) में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल में कलंक को वैश्विक स्तर पर एक महत्त्वपूर्ण बाधा के रूप में उजागर किया गया है। भारत में, इसके कारण मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की रिपोर्टिंग कम होती है और उपचार में देरी होती है।
  • मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तक सीमित पहुँच: WHO मानसिक स्वास्थ्य एटलस ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि भारत सहित निम्न आय वाले देशों में गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं वाले 85% लोगों को वह उपचार नहीं मिल पाता है, जिसकी उन्हें आवश्यकता है।
  • सीमित मानसिक स्वास्थ्य कार्यबल: भारत में मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की भारी कमी है, जहाँ प्रति 1 लाख लोगों पर केवल 0.75 मनोचिकित्सक हैं, जो WHO द्वारा प्रति लाख 3 मनोचिकित्सकों की अनुशंसित संख्या से बहुत कम है।
  • अपर्याप्त मानसिक स्वास्थ्य अवसंरचना: भारत में मानसिक स्वास्थ्य सुविधाएँ सीमित हैं, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
    • अधिकांश सेवाएँ शहरी केंद्रों में केंद्रित हैं, जिससे ग्रामीण आबादी के लिए पहुँच में बड़ा अंतर रह जाता है।
  • प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा में एकीकरण का अभाव: मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को अक्सर सामान्य स्वास्थ्य सेवा से अलग कर दिया जाता है, जिससे देखभाल बाधित हो जाती है और हस्तक्षेप में देरी होती है।
  • मानसिक स्वास्थ्य पर कम सार्वजनिक जागरूकता और शिक्षा: मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों के बारे में जागरूकता और शिक्षा में कमी है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, जहाँ लोग लक्षणों को पहचान नहीं पाते हैं या मदद के महत्त्व को नहीं समझ पाते हैं।
  • नीति में मानसिक स्वास्थ्य की उपेक्षा: भारत में एक मानसिक स्वास्थ्य नीति (2014) और मानसिक स्वास्थ्य सेवा अधिनियम (2017) है, लेकिन कम धन, जनशक्ति की कमी और नौकरशाही बाधाओं के कारण कार्यान्वयन कमजोर है।

भारत में मानसिक स्वास्थ्य के लिए आगे की राह

  • मानसिक स्वास्थ्य अवसंरचना को मजबूत करना: प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल को एकीकृत करने पर ध्यान केंद्रित करते हुए शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य सुविधाओं की संख्या बढ़ाना।
    • पहुँच सुनिश्चित करने और बड़े संस्थानों पर निर्भरता कम करने के लिए अधिक सामुदायिक मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम स्थापित करना।
  • निधि और संसाधन बढ़ाना: मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए निधि को प्राथमिकता देना, मानसिक स्वास्थ्य सेवा अधिनियम, 2017 और राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति के कार्यान्वयन के लिए पर्याप्त संसाधन सुनिश्चित करना।
    • विशेष रूप से ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में मनोचिकित्सकों, मनोवैज्ञानिकों और परामर्शदाताओं जैसे मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों के प्रशिक्षण के लिए धन आवंटित करना।
  • रोकथाम और प्रारंभिक हस्तक्षेप पर ध्यान देना: सामाजिक उपेक्षा को कम करने और लोगों को मानसिक स्वास्थ्य के बारे में शिक्षित करने के लिए राष्ट्रव्यापी मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता अभियान शुरू करना, मुद्दों की प्रारंभिक पहचान पर ध्यान केंद्रित करना।
    • स्कूलों और कार्यस्थलों में मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रमों को लागू करना ताकि व्यक्तियों को कौशल और उपलब्ध संसाधनों से संबंधित ज्ञान प्रदान किया जा सके।
  • नीति और कानूनी ढाँचे को मजबूत करना: समावेशी नीतियाँ सुनिश्चित करना, जो हाशिए पर पड़े समूहों (महिलाएँ, LGBTQIA+ व्यक्ति, बच्चे) की आवश्यकताओं को पूरा करना और मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ प्राप्त करने में उनके अधिकारों की रक्षा करना।
    • मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक निर्धारकों को संबोधित करने के लिए मानसिक स्वास्थ्य देखभाल को अन्य स्वास्थ्य और सामाजिक नीतियों के साथ एकीकृत करना।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना: मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार करने और देखभाल के लिए स्थायी मॉडल बनाने के लिए गैर-सरकारी संगठनों, निगमों और शैक्षणिक संस्थानों सहित सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्रों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करना।
    • समय पर सहायता प्रदान करने और पहुँच में बाधाओं को कम करने के लिए, विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में, टेली-मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के उपयोग का विस्तार करना।
  • मानसिक स्वास्थ्य अनुसंधान पर ध्यान देना: एक राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य रजिस्ट्री स्थापित करना और मानसिक स्वास्थ्य रुझानों की निगरानी करने, उच्च जोखिम युक्त आबादी की पहचान करने और साक्ष्य-आधारित हस्तक्षेप विकसित करने के लिए अनुसंधान को मजबूत करना।
  • मानसिक स्वास्थ्य देखभाल में सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने के लिए वैश्विक मानसिक स्वास्थ्य ढाँचों के साथ सामंजस्य स्थापित करना और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग करना।
  • सामाजिक और सांस्कृतिक संवेदनशीलता को बढ़ावा देना: ऐसे मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम विकसित करना, जो सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील हों और समुदायों के सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ पर विचार करना।
    • मीडिया अभियानों और सांस्कृतिक वर्जनाओं को तोड़ने में सामुदायिक नेताओं को शामिल करके मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े सामाजिक उपेक्षा को संबोधित करना।

निष्कर्ष 

आईआईटी, दिल्ली में हाल ही में हुई आत्महत्या की घटना भारत की मानसिक स्वास्थ्य नीतियों में आमूलचूल परिवर्तन की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती है, जिसमें प्रतिक्रियात्मक उपचार से लेकर सक्रिय रोकथाम, प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा के साथ एकीकरण और समुदाय आधारित देखभाल में वृद्धि करना शामिल है। सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को दूर करके, सामाजिक उपेक्षा को कम करके और बुनियादी ढाँचे एवं अनुसंधान को मजबूत करके, भारत मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक समग्र, अधिकार आधारित दृष्टिकोण को बढ़ावा दे सकता है, जिससे सभी नागरिकों का कल्याण सुनिश्चित हो सके।

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