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वाणिज्य पोत परिवहन विधेयक, 2025

Lokesh Pal August 13, 2025 04:08 5 0

संदर्भ

हाल ही में संसद ने वाणिज्य पोत परिवहन विधेयक, 2025 पारित किया, जिससे भारत के समुद्री ढाँचे में एक बड़ा विधायी सुधार पूर्ण हो गया।

सम्बंधित तथ्य

  • पुराने कानून का स्थान: वाणिज्य पोत परिवहन विधेयक, 2025, पुराने और विस्तृत  तटीय नौवहन अधिनियम, 1958 का स्थान ग्रहण करता है, जिसमें 561 धाराएँ थीं और जो आधुनिक समुद्री चुनौतियों का समाधान करने में विफल रहा था।
  • दो प्रमुख समुद्री विधेयक: यह विधेयक, समुद्री माल परिवहन विधेयक, 2025 के पारित होने के बाद लाया गया है, जो वर्तमान संसद सत्र को महत्त्वपूर्ण समुद्री क्षेत्र के सुधार के रूप में दर्शाता है।

वाणिज्य पोत परिवहन विधेयक, 2025 के बारे में

  • यह विधेयक भारत के समुद्री ढाँचे के आधुनिकीकरण के उद्देश्य से एक ऐतिहासिक कानून है।
  • यह घरेलू कानूनों को अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं और अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) के अभिसमयों के अनुरूप बनाता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि देश का समुद्री क्षेत्र समकालीन और भविष्य की चुनौतियों के लिए सुसज्जित, तैयार और प्रासंगिक बना रहे।

वाणिज्य पोत परिवहन विधेयक, 2025 की मुख्य विशेषताएँ

  • सुव्यवस्थित कानूनी ढाँचा: यह प्रावधानों को 16 भागों और 325 खंडों में समेकित करता है, जिससे कानूनी ढाँचे को सरल बनाया गया है ताकि स्पष्टता और आवेदन में आसानी हो।
  • बेहतर सुरक्षा और आपातकालीन तैयारी: यह विधेयक नौवहन सुरक्षा, समुद्र में जीवन की सुरक्षा और आपातकालीन प्रतिक्रिया तंत्रों को मजबूत करता है, जिसमें बचाव कार्य और पर्यावरण सुरक्षा उपाय शामिल हैं।
  • भारतीय नौवहन क्षमता को बढ़ावा: यह भारतीय जहाजों के पंजीकरण को प्रोत्साहित करने, राष्ट्रीय नौवहन क्षमता और समुद्री उपस्थिति को बढ़ावा देने के उपाय प्रस्तुत करता है।
  • कम अनुपालन शर्तें: अनावश्यक विनियमों में कटौती करके, यह विधेयक समुद्री क्षेत्र में व्यापार करने में आसानी में सुधार करता है, नवाचार को बढ़ावा देता है और निवेश को आकर्षित करता है।

वाणिज्य पोत परिवहन विधेयक, 2025 का महत्त्व

  • आधुनिकीकरण की आवश्यकता पर ध्यान: भारत के समुद्री कानून, जिनमें से कुछ दशकों पुराने हैं, वर्तमान वैश्विक व्यापार वास्तविकताओं का सामना करने में असमर्थ थे, जिससे प्रतिस्पर्द्धात्मकता के लिए विधायी सुधार आवश्यक हो गए थे।
  • व्यापार दक्षता में वृद्धि: इन विधेयकों के माध्यम से वैश्विक मानकों को अपनाने से कानूनी विवाद कम होंगे, समुद्री माल की आवाजाही सुव्यवस्थित होगी और एक विश्वसनीय व्यापार केंद्र के रूप में भारत की भूमिका बढ़ेगी।
  • नियामक और सुरक्षा ढाँचे को मजबूत करना: विनियमन को सक्षम नीतियों के साथ मिलाकर, नया ढाँचा नाविक कल्याण, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण एवं समुद्र में उच्च सुरक्षा मानकों को बढ़ावा देता है।
  • आर्थिक विकास और वैश्विक प्रतिष्ठा को बढ़ावा: इन विधेयकों से विदेशी निवेश आकर्षित होने, जहाज की वहन क्षमता में वृद्धि होने और भारत को एक समुद्री शक्ति के रूप में स्थापित करने की संभावना है, जो सीधे तौर पर विकसित भारत के दृष्टिकोण में योगदान देगा।

अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन (International Maritime Organization- IMO)

  • IMO संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है, जो अंतरराष्ट्रीय नौवहन में सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित करती है।
  • स्थापना: वर्ष 1948 में अंतर-सरकारी समुद्री परामर्शदात्री संगठन (Inter-Governmental Maritime Consultative Organization- IMCO) के रूप में गठित किया गया था। वर्ष 1959 में यह संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी बन गई, जिसका नाम वर्ष 1982 में बदलकर IMO कर दिया गया।
  • मुख्यालय: लंदन, यू. के.
  • सदस्य: 174 सदस्य देश
    • भारत इसका संस्थापक सदस्य (वर्ष 1959) है।
  • भूमिका और कार्य
    • सुरक्षा, समुद्री सुरक्षा और प्रदूषण निवारण (समुद्री और वायु) पर वैश्विक नौवहन नियम विकसित करता है।
    • दायित्व, मुआवजा और समुद्री यातायात की सुविधा जैसे कानूनी मुद्दों को संबोधित करता है।
    • समुद्री पर्यावरण संरक्षण समिति (MEPC) सहित पाँच मुख्य समितियों के माध्यम से कार्य करता है।
  • कार्यान्वयन: यह कानूनों को लागू नहीं करता है, सदस्य IMO नियमों को घरेलू कानून में शामिल करते हैं।

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