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मनरेगा मजदूरी दरें

Lokesh Pal October 29, 2025 03:45 87 0

संदर्भ

सर्वोच्च न्यायालय ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस निर्देश को बरकरार रखा है, जिसमें पश्चिम बंगाल में मनरेगा (MGNREGS) संबंधी कार्यों को पुनः शुरू करने का आदेश दिया गया था।

सर्वोच्च न्यायालय  का अवलोकन 

  • सर्वोच्च न्यायालय  ने स्पष्ट किया कि मनरेगा के अंतर्गत कार्य का अधिकार किसी भी प्रशासनिक विवाद के कारण अनिश्चितकाल तक रोका नहीं जा सकता।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय की इस राय से सहमति जताई कि यह अधिनियम ऐसी स्थिति की कल्पना नहीं करता, जहाँ जाँच लंबित रहने के कारण रोजगार स्थगित कर दिया जाए।
  • निर्णय में यह भी कहा गया कि अनियमितताओं की जाँच जारी रह सकती है, लेकिन इस दौरान मजदूरों के अधिकारों और भुगतान पर रोक नहीं लगाई जा सकती।

संबंधित तथ्य 

  • केंद्र सरकार ने वर्ष 2022 में पश्चिम बंगाल में यह कहते हुए कि वेतन वितरण और क्रियान्वयन में अनियमितताएँ हुई हैं, मनरेगा योजना निलंबित कर दी थी।
  • जून 2025 में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने कहा कि यह निलंबन मनरेगा अधिनियम, 2005 के तहत “कार्य के अधिकार” का उल्लंघन है और त्वरित भुगतान तथा कार्य पुनः प्रारंभ करने का आदेश दिया।
  • 28 अक्टूबर, 2025 को सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र की अपील खारिज कर दी, जिससे राज्य में योजना की पुनर्बहाली का मार्ग प्रशस्त हुआ।

मनरेगा के बारे में 

  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) विश्व का सबसे बड़ा रोजगार गारंटी कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य उन ग्रामीण परिवारों को प्रतिवर्ष कम-से-कम 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराकर आजीविका सुरक्षा को बढ़ाना है, जिनके वयस्क सदस्य अकुशल शारीरिक श्रम करने के लिए स्वेच्छा से आगे आते हैं।
  • लॉन्च: महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, वर्ष 2005 में पारित हुआ और 2 फरवरी, 2006 से लागू किया गया।
  • यह एक अधिकार-आधारित कानून है, जो सरकार को जवाबदेह बनाता है कि वह माँग पर रोजगार उपलब्ध कराए।
  • क्रियान्वयन: ग्रामीण विकास मंत्रालय (MoRD) और राज्य सरकारों के संयुक्त सहयोग से लागू किया जाता है।
    • ग्राम पंचायतें स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार, परियोजनाओं की योजना और क्रियान्वयन में केंद्रीय भूमिका निभाती हैं।
  • वित्तीय ढाँचा 
    • मनरेगा को मुख्य रूप से केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित किया जाता है, जो अकुशल श्रम की लागत का 100% तथा सामग्री लागत का 75% वहन करती है।
    • राज्य सरकारें सामग्री लागत का शेष 25% योगदान देती हैं तथा माँग के 15 दिनों के अंदर कार्य उपलब्ध न होने पर बेरोजगारी भत्ते के लिए जिम्मेदार होती हैं।

मनरेगा की प्रमुख उपलब्धियाँ

  • रोजगार सृजन: वर्ष 2006 से अब तक 31 अरब व्यक्ति-दिवस का रोजगार सृजित किया गया है।
    •  वित्त वर्ष 2024-25 में कुल 196.30 करोड़ व्यक्ति-दिवस का कार्य सृजित हुआ।
      वर्तमान में लगभग 25 करोड़ पंजीकृत श्रमिक हैं।
  • वित्तीय निवेश:  अब तक सरकार ने इस योजना पर ₹6.4 लाख करोड़ से अधिक खर्च किए हैं।
    •  केंद्रीय बजट 2025 में इस योजना के लिए ₹86,000 करोड़ आवंटित किए गए।
  • जल संरक्षण:  लगभग 3 करोड़ से अधिक जल-संरक्षण परिसंपत्तियों (जैसे- तालाब, नहरें, चेक डैम) का निर्माण किया गया है।
  • प्रौद्योगिकी-संचालित कार्यान्वयन: पारदर्शिता और दक्षता को बढ़ावा देने के लिए ऑनलाइन पंजीकरण, इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर और मोबाइल ऐप के माध्यम से परिसंपत्तियों की जियोटैगिंग जैसे उपकरणों की शुरुआत।
  • ग्रामीण मजदूरी पर प्रभाव: कई अध्ययनों के अनुसार, मनरेगा ने ग्रामीण मजदूरों की सौदेबाजी क्षमता बढ़ाई, जिससे मजदूरी दरों में वृद्धि हुई। 
    • कोविड-19 महामारी के दौरान यह योजना ग्रामीण भारत के लिए जीवनरेखा सिद्ध हुई।

मनरेगा की मजदूरी दरें कैसे तय होती हैं?

  • धारा 6 (Section 6) के अनुसार दो विधियाँ हैं:
    • धारा 6(1):  केंद्र सरकार मजदूरी दर अधिसूचित कर सकती है, जो न्यूनतम ₹60 से कम नहीं होनी चाहिए, चाहे न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948 (MWA) में कोई भी प्रावधान हो।
    • धारा 6(2):  जब तक केंद्र मजदूरी दर अधिसूचित न करे, तब तक राज्य का न्यूनतम कृषि वेतन लागू होगा।
  • प्रारंभ में, वर्ष 2005 से वर्ष 2009 तक, मनरेगा मजदूरी राज्यों की न्यूनतम कृषि मजदूरी के बराबर थी।
  • बढ़ती लागत के कारण केंद्र ने वर्ष 2009 में मनरेगा मजदूरी को 100 रुपये तक सीमित कर दिया, जिससे न्यूनतम मजदूरी से विचलन हुआ और MWA का उल्लंघन हुआ।
  • वर्ष 2011-12 से मनरेगा मजदूरी को कृषि श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-AL) के अनुसार अनुक्रमित किया गया है, लेकिन आधार वर्ष पुराना (वर्ष 2009) ही बना हुआ है।

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