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भारत में माइक्रोफाइनेंस

Lokesh Pal November 18, 2024 01:52 166 0

संदर्भ

बैंक, भारत के माइक्रोफाइनेंस (सूक्ष्म वित्त) क्षेत्र को आक्रामक रूप से ऋण प्रदान कर पिछली गलतियों को दोहरा रहे हैं, जिससे वित्तीय अस्थिरता का खतरा पैदा हो रहा है।

आधुनिक युग के माइक्रोफाइनेंस की उत्पत्ति (Origin of Modern Day Microfinance)

  • ग्रामीण बैंक फाउंडेशन: मोहम्मद यूनुस द्वारा वर्ष 1976 में स्थापित, बांग्लादेश का ग्रामीण बैंक माइक्रोफाइनेंस के क्षेत्र में अग्रणी संस्था थी।
  • संपार्श्विक-मुक्त ऋण: ग्रामीण बैंक, गरीबों को बिना किसी संपार्श्विक के लघु ऋण प्रदान करता है।
  • महिलाओं की उच्च भागीदारी: बैंक के 8.4 मिलियन ग्राहक हैं, जिनमें से 97% महिलाएँ हैं।
  • पुनर्भुगतान सफलता दर: बैंक की पुनर्भुगतान सफलता दर 95 से 98 प्रतिशत के बीच है।
  • नोबेल शांति पुरस्कार: वर्ष 2006 में मोहम्मद यूनुस तथा ग्रामीण बैंक दोनों को आर्थिक तथा सामाजिक विकास के उनके प्रयासों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

माइक्रोफाइनेंस (Microfinance) 

  • राष्ट्रीय कृषि तथा ग्रामीण विकास बैंक (National Bank for Agriculture and Rural Development- NABARD) द्वारा वर्ष 1998 में माइक्रोफाइनेंस के लिए सहायक नीति तथा नियामक ढाँचे पर गठित टास्क फोर्स के अनुसार,
    • माइक्रोफाइनेंस से तात्पर्य ‘ग्रामीण, अर्द्ध-शहरी और शहरी क्षेत्रों में गरीबों को बहुत छोटी राशि में बचत, ऋण और अन्य वित्तीय सेवाओं और उत्पादों का प्रावधान करना है, ताकि वे अपनी आय का स्तर बढ़ा सकें और जीवन स्तर में सुधार कर सकें’।
  • विनियामक ढाँचा
    • MFI का संचालन, RBI के गैर बैंकिंग वित्तपोषण कंपनी-माइक्रोफाइनेंस संस्थान (Non Banking Financing Company–microfinance institutions- NBFC-MFI)-निर्देश, वर्ष 2022 द्वारा किया जाता है।
    • माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूशंस नेटवर्क (Microfinance Institutions Network- MFIN) को इस क्षेत्र के लिए एक स्व-नियामक निकाय के रूप में शुरू किया गया था और सभी NBFC-MFI इसकी सदस्यता के लिए पात्र हैं।
      • वर्ष 2014 में, MFIN को औपचारिक रूप से RBI द्वारा एक स्व-नियामक निकाय के रूप में मान्यता दी गई थी।

माइक्रोफाइनेंस के घटक

  • माइक्रोक्रेडिट: बिना किसी संपार्श्विक, स्थिर रोजगार या सत्यापन योग्य क्रेडिट इतिहास (Credit History) के व्यक्तियों को लघु ऋण प्रदान किए गए है।
    • भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के अनुसार: माइक्रोफाइनेंस ऋण को एक संपार्श्विक-मुक्त ऋण के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो ₹3,00,000 तक की वार्षिक घरेलू आय वाले परिवार को दिया जाता है।
  • माइक्रोसेविंग्स: छोटी जमा आवश्यकताएँ, कम आय वाले व्यक्तियों के लिए कोई सेवा शुल्क नहीं।
  • माइक्रोइंश्योरेंस: स्वास्थ्य संबंधी आपात स्थितियों, प्राकृतिक आपदाओं, फसल विफलता आदि जैसे जोखिमों का प्रबंधन करने के लिए कम एवं वहनीय प्रीमियम और कवरेज बीमा उत्पाद।
  • समूह ऋण: एक मॉडल, जहाँ छोटे समूह संयुक्त रूप से ऋण की गारंटी देते हैं, जवाबदेही को बढ़ावा देते हैं और डिफॉल्ट दरों को कम करते हैं।
    • उदाहरण: संयुक्त देयता समूह (Joint Liability Group- JLG) 4-10 व्यक्तियों का एक अनौपचारिक समूह होता है, जो मुख्य रूप से किसान या ग्रामीण श्रमिक होते हैं।
      • ऋण आपसी गारंटी के माध्यम से सुरक्षित होते हैं, तथा पुनर्भुगतान की जिम्मेदारी साझा होती है।
  • माइक्रोफाइनेंस संस्थाएँ (Microfinance Institutions- MFI): विभिन्न आकार तथा कानूनी स्वरूप वाले अनेक संगठन माइक्रोफाइनेंस सेवाएँ प्रदान करते हैं।

  • वर्ष 1974: अहमदाबाद में पहली पंजीकृत MFI, स्वरोजगार महिला संघ (Self Employed Women’s Association- SEWA)।
  • वर्ष 1984: नाबार्ड (NABARD) ने गरीबी उन्मूलन के लिए स्वयं सहायता समूह (SHG) लिंकेज को एक महत्त्वपूर्ण साधन बताया।
  • वर्ष 2004:  RBI ने MFI ऋण को प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (Priority Sector Lending- PSL) में शामिल किया तथा MFI को वित्तीय समावेशन के एक साधन के रूप में मान्यता दी।

भारत में माइक्रोफाइनेंस

  • भारत के GVA में माइक्रोफाइनेंस का योगदान: नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (NCAER) के एक अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2018-19 में माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र ने भारत के सकल मूल्यवर्द्धन(Gross Value Added- GVA) में लगभग 2% का योगदान दिया।
  • ऋणों का भौगोलिक वितरण: ऋण पोर्टफोलियो का 76% ग्रामीण क्षेत्रों में है, जबकि 24% शहरी क्षेत्रों में है।
  • माइक्रोफाइनेंस सेक्टर के ऋण पोर्टफोलियो में वृद्धि: 31 मार्च, 2024 तक, माइक्रोफाइनेंस सेक्टर का सकल ऋण पोर्टफोलियो (Gross Loan Portfolio- GLP) 24.5% बढ़कर पिछले वर्ष के ₹3.48 लाख करोड़ से ₹4.33 लाख करोड़ तक पहुँच गया।
  • माइक्रोफाइनेंस ऋणों में वार्षिक वृद्धि: जून के अंत तक माइक्रोफाइनेंस ऋणों में वर्ष -दर-वर्ष 18.3% की वृद्धि हुई, हालाँकि डिफॉल्ट दरों में भी वृद्धि हुई है।
  • ऋण वसूली में कमी और देनदारियों में वृद्धि: माइक्रोफाइनेंस इंडस्ट्री नेटवर्क तथा इंडिया रेटिंग्स के आँकड़ेड़े ऋण संग्रह में गिरावट और देनदारियों में वृद्धि दर्शाते हैं।

माइक्रोफाइनेंस का महत्त्व

  • गरीबी उन्मूलन: माइक्रोफाइनेंस व्यक्तियों को छोटे व्यवसाय शुरू करने या उनका विस्तार करने,  आय उत्पन्न करने तथा परिवारों को गरीबी से बाहर निकालने में मदद करता है।
  • महिला सशक्तीकरण: महिला उधारकर्ताओं पर महत्त्वपूर्ण ध्यान देने के साथ, यह उनकी वित्तीय स्वतंत्रता और निर्णय लेने की शक्ति को बढ़ाता है।
  • आर्थिक विकास: छोटे व्यवसायों का समर्थन करके, माइक्रोफाइनेंस स्थानीय आर्थिक विकास तथा रोजगार सृजन में योगदान देता है।
  • सामाजिक प्रभाव: यह परिवारों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और बेहतर रहने की स्थिति तक बेहतर पहुँच को सक्षम बनाता है।
  • वित्तीय समावेशन: माइक्रोफाइनेंस संस्थाएँ वंचित आबादी को वित्तीय उत्पादों और सेवाओं तक पहुँच प्रदान करती हैं, तथा मुख्यधारा की बैंकिंग के साथ अंतर को समाप्त करती हैं।
    •  माइक्रोफाइनेंस वित्तीय समावेशन का एक चालक है और यह सीधे तौर पर SDG 1 (गरीबी उन्मूलन), SDG 5 (लैंगिक समानता) और SDG 8 (सभ्य कार्य और आर्थिक विकास) को संबोधित करता है।

भारत में माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में कार्यरत वित्तीय संस्थानों की श्रेणियाँ

  • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी-सूक्ष्म-वित्त संस्थाएँ (Non-Banking Financial Company – Micro-Finance Institutions -NBFC-MFIs): विशिष्ट NBFC ने वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से निम्न आय वर्ग के लोगों को बिना किसी जमानत के छोटे ऋण उपलब्ध कराने पर ध्यान केंद्रित किया है।
    • 30 जून 2024 तक, NBFC-MFI 1,68,747 करोड़ रुपये की बकाया ऋण राशि के साथ सूक्ष्म ऋण के सबसे बड़े प्रदाता हैं, जो कुल उद्योग पोर्टफोलियो का 39.8% है।
  • बैंक: लाइसेंस प्राप्त वित्तीय संस्थाएँ, जो जमा स्वीकार करने, ऋण देने, तथा व्यक्तियों एवं व्यवसायों को विभिन्न बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करने के लिए अधिकृत हैं।
    • 30 जून 2024 तक, बैंकों के पास माइक्रो-क्रेडिट पोर्टफोलियो में दूसरा सबसे बड़ा हिस्सा है, जिसका कुल बकाया ऋण 1,38,003 करोड़ रुपये है, जो कुल माइक्रोक्रेडिट का 32.5% है।
  • लघु वित्त बैंक (Small Finance Banks- SFBs): विशिष्ट बैंकों की स्थापना विशेष रूप से वंचित तथा असेवित वर्गों को बुनियादी बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करने के लिए की गई ह,, जिनमें छोटे व्यवसाय, सीमांत किसान तथा सूक्ष्म उद्यम शामिल हैं।
    • 30 जून 2024 तक, SFB के पास कुल 72,430 करोड़ रुपये की ऋण राशि है, जिसकी कुल हिस्सेदारी 17.1% है।
  • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (Non-Banking Financial Companies- NBFC): वित्तीय संस्थाएँ, जो बैंकों के समान कार्य करती हैं, जैसे ऋण देना और निवेश करना, परंतु बैंकिंग लाइसेंस नहीं रखतीं या मांग जमा स्वीकार नहीं करतीं है।
  • अन्य (गैर-लाभकारी MFI सहित): गैर-लाभकारी संगठन, ट्रस्ट या धारा 8 के तहत कंपनियोंयाँ जैसी संस्थाएँ, जो लाभ के उद्देश्य के बिना आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए सूक्ष्म-वित्त गतिविधियों में संलग्न हैं।
  • राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (National Rural Livelihood Mission- NRLM) यह अपने स्वयं सहायता समूह बैंक लिंकेज कार्यक्रम (SHG-BLP) के माध्यम से माइक्रोफाइनेंस जगत में भी महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।

भारत में माइक्रोफाइनेंस ऋण में वृद्धि के कारण

  • ऋण मांग में कमी: कॉर्पोरेट ऋण मांग में कमी के कारण बैंक खुदरा तथा सूक्ष्म वित्त ऋण देने की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
    • भारतीय रिजर्व बैंक ने विनियामक मानदंडों को कठोर कर दिया है, जिससे वित्तपोषण की शर्तें कठोर हो गई हैं।
    • इसलिए, बैंकों तथा NBFC द्वारा ऋण देने की दर घटकर 12% रहने की उम्मीद है, जो वित्त वर्ष 25 में कुल 19 लाख करोड़ रुपये होगी, जो पिछले वर्ष 22 लाख करोड़ रुपये थी।
  • प्राथमिकता क्षेत्र ऋण दबाव: बैंकों को प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में ऋण देने के लक्ष्य को पूरा करने का दायित्व सौंपा गया है।
    • प्राथमिकता क्षेत्र ऋण, एक सरकारी पहल है जिसके तहत बैंकों को कम ब्याज दर पर निर्दिष्ट प्राथमिकता क्षेत्रों में निवेश का एक प्रतिशत आवंटित करना होता है।
    • वर्तमान में केवल NBFC-MFI के रूप में पंजीकृत माइक्रोफाइनेंस संस्थानों को ही प्राथमिकता क्षेत्र के रूप में नामित किया गया है।
    • PSL के तहत लक्ष्य
      • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक तथा लघु वित्त बैंक: समायोजित निवल बैंक ऋण (Adjusted Net Bank Credit- ANBC) का 75 प्रतिशत या ‘ऑफ-बैलेंस शीट एक्सपोजर’ (Credit Equivalent Amount of Off-Balance Sheet Exposure- CEOBE) के समतुल्य ऋण राशि, जो भी अधिक हो।

ऋणों की ‘अंडरराइटिंग’ उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसके द्वारा ऋणदाता, उधारकर्ता को धन उधार देने के जोखिम का मूल्यांकन तथा आकलन करता है।

  • RBI द्वारा विनियामक परिवर्तन: गैर-बैंक माइक्रोफाइनेंस संस्थाओं (NBFC-MFI) द्वारा दी जाने वाली ब्याज दर की सीमा को हटाने से माइक्रोफाइनेंस ऋणों में तीव्र वृद्धि हुई है।
    • इसके साथ, ऋणों की ‘अंडरराइटिंग जोखिम-आधारित विश्लेषण के आधार पर की जाएगी, तथा उधारकर्ता के आधार पर जोखिम प्रीमियम वसूला जाएगा।
  • ऋण अंतराल को पाटना: माइक्रोफाइनेंस ऋण में वृद्धि को बैंकों द्वारा अंतिम छोर तक ऋण वितरण प्रदान करने तथा वंचित ग्रामीण आबादी को सशक्त बनाने के लिए ऋण अंतराल को पाटने के प्रयासों के रूप में देखा जा सकता है।
  • तकनीकी प्रगति: ऋण वितरण, संग्रह और निगरानी में प्रौद्योगिकी को अपनाने से माइक्रोफाइनेंस अधिक कुशल और स्केलेबल बन गया है।
  • निजी पूंजी का उदय: इस क्षेत्र की सिद्ध क्षमता और बढ़ती मांग के साथ, निजी पूंजी तेजी से माइक्रोफाइनेंस संस्थानों (MFI) की ओर आकर्षित हो रही है, जिससे आगे विस्तार को बढ़ावा मिल रहा है।

माइक्रोफाइनेंस ऋण में वृद्धि के कारण बैंकिंग क्षेत्र के लिए संभावित जोखिम

  • कम लाभ: खराब ऋणों के लिए अधिक प्रावधान लाभप्रदता को प्रभावित करता है।
  • बढ़ी हुई ब्याज दरें: बैंक मार्जिन की सुरक्षा के लिए सभी क्षेत्रों में उच्च दरें वसूल सकते हैं।
  • ऋण से परहेज: बढ़ती त्रुटियों के कारण बैंक इस क्षेत्र को ऋण देने में हिचकिचा सकते हैं, जिससे कम सेवा प्राप्त करने वाले उधारकर्ता प्रभावित होंगे।
  • ऋण जोखिम: माइक्रोफाइनेंस उधारकर्ताओं के बीच अत्यधिक ऋणग्रस्तता के कारण उच्च ‘डिफॉल्ट’ दरें हो सकती हैं, जिससे अप्रत्यक्ष रूप से बैंक प्रभावित होंगे।
  • प्रणालीगत जोखिम: माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में त्रुटि से व्यापक वित्तीय अस्थिरता पैदा हो सकती है, जिसका बैंकिंग प्रणाली पर प्रभाव पड़ सकता है।
  • नियामक और अनुपालन जोखिम: माइक्रोफाइनेंस ऋण में वृद्धि से सख्त नियमन हो सकते हैं, जिससे बैंकों के लिए अनुपालन लागत बढ़ सकती है।
  • ‘एवर-ग्रीनिंग’ ऑफ लोन: इस अभ्यास में ऋणदाता मौजूदा ऋणों को चुकाने में असमर्थ उधारकर्ताओं को नए ऋण प्रदान करते हैं, जिससे अस्थायी रूप से त्रुटि को रोका जा सकता है।
    • हालाँकि, इससे उधारकर्ता की वास्तविक वित्तीय स्थिति छिप जाती है और इससे अति-ऋणग्रस्तता हो सकती है, जिससे भविष्य में त्रुटि का जोखिम बढ़ जाता है।

माइक्रोफाइनेंस संस्थाओं की समग्र चुनौतियाँ

  • मुख्यधारा के बैंकों की तुलना में उच्च ब्याज दर: माइक्रोफाइनेंस संस्थानों में लेन-देन की मात्रा सीमित होती है, फिर भी उन लेन-देन की लागत स्थिर तथा पर्याप्त होती है, जो उन सभी के लिए एक बड़ी समस्या पैदा करती है।
    • सुदूर तथा ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक एवं संभार-तंत्रीय व्यय शामिल होता है।
    • MFI की परिचालन लागत प्रायः उधारकर्ताओं के लिए उच्च ब्याज दरों में परिवर्तित हो जाती है।
  • ऋण पर चूक: ये संस्थाएँ बिना किसी संपार्श्विक के ऋण प्रदान करती हैं, जिससे त्रुटि और खराब ऋणों का जोखिम बढ़ जाता है।
    • उधारकर्ता प्रायः विभिन्न MFI या अनौपचारिक ऋणदाताओं से कई ऋण प्राप्त करते हैं, जिससे ऋण का स्तर अस्थिर हो जाता है।
  • विषम वितरण: भारत के पूर्वी और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में ऋण पोर्टफोलियो में सबसे बड़ी हिस्सेदारी 37% है, इसके बाद दक्षिणी क्षेत्र में 27% और पश्चिमी क्षेत्र में 15% हिस्सेदारी है।
    • वर्ष 2022 तक, ऋण पोर्टफोलियो का 82% हिस्सा दस राज्यों में केंद्रित था।
  • पूंजी तक सीमित पहुँच: MFI को अपने परिचालन के लिए धन जुटाने में संघर्ष करना पड़ता है, खास तौर पर उन देशों में, जहाँ वित्तीय बाजार अविकसित हैं।
    • दानकर्ता फंडिंग तथा अनुदान पर अत्यधिक निर्भरता उनकी स्थायी रूप से विस्तार करने की क्षमता को सीमित कर सकती है।
  • वित्तीय साक्षरता का अभाव: उधारकर्ताओं में अक्सर ऋण की शर्तों, पुनर्भुगतान दायित्वों तथा वित्तीय प्रबंधन की समझ का अभाव होता है।
    • खराब वित्तीय साक्षरता ऋण के दुरुपयोग और पुनर्भुगतान में असमर्थता का कारण बन सकती है।
  • अपर्याप्त जमीनी स्तर की उपस्थिति: बैंकों के पास जमीनी स्तर पर वह बुनियादी ढाँचा नहीं है, जो माइक्रो-फाइनेंस संस्थानों (Micro-Finance Institutions- MFI), लघु वित्त बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के पास है।

भारत में माइक्रोफाइनेंस से संबंधित प्रमुख समितियाँ

  • वित्तीय समावेशन पर रंगराजन समिति (2008): वित्तीय समावेशन प्राप्त करने में माइक्रोफाइनेंस की भूमिका पर प्रकाश डाला गया।
  • वाई.एच मालेगाम समिति (2011): इसकी स्थापना भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा वर्ष 2010 में आंध्र प्रदेश माइक्रोफाइनेंस संकट की पृष्ठभूमि में माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में मुद्दों और चिंताओं का अध्ययन करने के लिए की गई थी।

भारत में माइक्रोफाइनेंस पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार के लिए पहल

  • SHG-बैंक लिंकेज कार्यक्रम (SHG-Bank Linkage Programme- SHG-BLP): NABARD द्वारा वर्ष 1992 में शुरू किया गया था। इस कार्यक्रम के तहत बैंकों को स्वयं सहायता समूहों के लिए बचत खाते खोलने की अनुमति दी गई थी।
    • स्वयं सहायता समूहों से प्रशिक्षित बैंक सखियाँ मध्यस्थ के रूप में कार्य करती हैं, जो स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों को लेन-देन तथा आवेदन प्रक्रिया में सहायता प्रदान करती हैं।
  • NABARD द्वारा सूक्ष्म वित्त विकास और इक्विटी फंड: NABARD ने सेमी-इक्विटी और अधीनस्थ ऋण साधनों के साथ MFI की सहायता के लिए वर्ष 2006 में माइक्रो फाइनेंस डेवलपमेंट एंड इक्विटी फंड (Micro Finance Development and Equity Fund- MFDEF) बनाया।
  • प्रधानमंत्री मुद्रा योजना: सरकार ने गैर-कॉर्पोरेट, गैर-कृषि लघु/सूक्ष्म उद्यमों को 10 लाख रुपये तक का ऋण उपलब्ध कराने के लिए वर्ष 2015 में इसे प्रारंभ किया था।
  • नाबार्ड का ई-शक्ति कार्यक्रम (e-Shakti Programme of NABARD): ई-शक्ति परियोजना का प्राथमिक लक्ष्य विभिन्न स्वयं सहायता समूहों के खातों को डिजिटल बनाना और समूहों के सदस्यों को वित्तीय समावेशन के दायरे में लाना है।
  • पीएम स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि (पीएम स्वनिधि): आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (भारत सरकार) ने लगभग 50 लाख स्ट्रीट वेंडर्स को एक वर्ष की अवधि के लिए 10,000 रुपये तक के जमानत मुक्त कार्यशील पूंजी ऋण की सुविधा देने के लिए इस योजना को शुरू किया।
  • कुदुम्बश्री (Kudumbashree): यह केरल सरकार द्वारा वर्ष 1998 में शुरू किया गया महिला सशक्तीकरण एवं गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम है।
    • यह माइक्रोफाइनेंस पर केंद्रित है, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों (SHGs) के माध्यम से बचत, ऋण और वित्तीय सहायता तक पहुँच प्रदान करता है।
  • माइक्रोफाइनेंस ऋण के लिए RBI का नियामक ढाँचा
    • वर्ष 2011 में NBFC-MFIs का निर्माण: ग्राहक-केंद्रित प्रथाओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए माइक्रोफाइनेंस संस्थानों के लिए एक अलग श्रेणी बनाई गई, जैसे उधारकर्ता ऋणग्रस्तता को सीमित करना और पारदर्शी मूल्य निर्धारण।
    • वर्ष 2022 में समन्वित दिशा-निर्देश
      • RBI ने अब माइक्रोफाइनेंस के रूप में योग्य होने के लिए ऋण के लिए 300,000 रुपये की सामान्य घरेलू सीमा निर्धारित की है।
      • NBFC-MFIs लाइसेंस के लिए अर्हता प्राप्त करने के लिए संस्थाओं के पास माइक्रोफाइनेंस में कम-से-कम 75% संपत्ति होनी चाहिए और NBFC पर सीमा को पहले की 10% की तुलना में बढ़ाकर 25% कर दिया गया है।
    • ऋण देने पर सलाह: एक से अधिक ऋण देने से रोकने और “एवरग्रीन” ऋण जैसी अनैतिक प्रथाओं को संबोधित करने के लिए समय-समय पर सलाह जारी की जाती है।
    • निरंतर निगरानी: RBI प्रभावी जोखिम प्रबंधन और विनियामक निरीक्षण के लिए क्रेडिट सूचना कंपनियों (CIC) को वास्तविक समय डेटा प्रस्तुत करने पर जोर देता है।

आगे की राह

  • विनियामक निरीक्षण को मजबूत करना: सभी माइक्रोफाइनेंस अभिकर्ताओं को प्रथाओं में एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए RBI के सुसंगत दिशा-निर्देशों का कड़ाई से अनुपालन लागू करना है।
  • संतुलित निरीक्षण की आवश्यकता: नीति निर्माताओं तथा बैंकों को क्रेडिट वितरण को बाधित किए बिना माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए शुरुआती चेतावनी संकेतों पर ध्यान देना चाहिए।
  • ऋण उद्देश्य सत्यापन: ऋणों के अंतिम उपयोग की निगरानी करके सुनिश्चित करके उनका उपयोग इच्छित तरीके से किया जा रहा है।
  • वित्तीय साक्षरता बढ़ाना: उधारकर्ताओं को जिम्मेदारी से उधार लेने, पुनर्भुगतान दायित्वों और शिकायत निवारण तंत्र के बारे में शिक्षित करने के लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करना है।
  • जोखिम न्यूनीकरण में सुधार: उधारकर्ताओं द्वारा अत्यधिक ऋण लेने से रोकने के लिए MFI के बीच ऋण जानकारी साझा करने को बढ़ावा देना।
  • संस्थागत क्षमता निर्माण: सेवा वितरण को बढ़ाने के लिए MFI, SHG सुविधाकर्ताओं तथा बैंक सखियों के लिए प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण में निवेश करना है।

निष्कर्ष

उचित ऋण प्रथाओं तथा इसकी मजबूत निगरानी के माध्यम से बैंकिंग क्षेत्र के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करना, स्थायी माइक्रोफाइनेंस विकास और वित्तीय स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है।

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