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भारत में मध्यम वर्ग 2.0 तथा बदलता रोजगार क्षेत्र

Lokesh Pal February 18, 2025 03:26 235 0

संदर्भ

शीर्ष 5 IT कंपनियाँ (TCS, इन्फोसिस, विप्रो, HCL और टेक महिंद्रा) वर्तमान में रेलवे या सशस्त्र बलों की तुलना में अधिक भारतीयों को रोजगार देती हैं।

रोजगार पैटर्न में परिवर्तन

  • सार्वजनिक क्षेत्र से संबंधित रोजगार में गिरावट: सार्वजनिक क्षेत्र में रोजगार 194.7 लाख (वर्ष 1995) से घटकर 176.1 लाख (वर्ष 2012) हो गया।
    • संगठित निजी क्षेत्र की नौकरियाँ 80.6 लाख (वर्ष 1995) से बढ़कर 119.7 लाख (वर्ष 2012) हो गईं।
    • भारतीय रेलवे की नौकरियाँ 16.5 लाख (वर्ष 1990- 2091) से घटकर 12.5 लाख (2023- 2024) हो गईं।
    • केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (Central Public Sector Enterprises – CPSE) की नौकरियाँ 22.2 लाख (वर्ष 1990- 1991) से घटकर 8.1 लाख (वर्ष 2023-24) हो गईं।
  • निजी क्षेत्र में रोजगार में वृद्धि
    • IT उद्योग का विस्तार: शीर्ष 5 IT फर्मों (TCS, इन्फोसिस, विप्रो, HCL, टेक महिंद्रा) ने 15.34 लाख कर्मचारियों (वर्ष 2024) को रोजगार दिया, जो भारतीय रेलवे (12.5 लाख) और सशस्त्र बलों (14.2 लाख) से अधिक है।
    • बैंकिंग क्षेत्र में परिवर्तन: वर्ष 2022-23 तक निजी बैंकों ने रोजगार के मामले में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को पीछे छोड़ दिया।
      • निजी बैंक: 8.74 लाख (वर्ष 2023-24) तथा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक: <7.5 लाख।
      • प्रमुख निजी बैंक: HDFC (2.13 लाख), ICICI (1.41 लाख), एक्सिस (1.04 लाख), कोटक महिंद्रा (0.78 लाख), बंधन (0.75 लाख)।
  • कृषि से सेवाओं की ओर परिवर्तन (बिना किसी मजबूत विनिर्माण आधार के): भारत की अर्थव्यवस्था विकसित देशों में अवलोकित किए जाने वाले पारंपरिक कृषि → उद्योग → सेवा मॉडल का अनुसरण करने के बजाय कृषि से सेवाओं की ओर परिवर्तित हो गई।
    • रोजगार में कृषि की हिस्सेदारी 64% (वर्ष 1993-94) से घटकर 42.5% (वर्ष 2018- 2019) हो गई, लेकिन महामारी से प्रेरित रिवर्स माइग्रेशन (PLFS  डेटा) के कारण यह बढ़कर 46.2% (2023- 2024) हो गई।
    • चीन: अधिशेष श्रम को कृषि से विनिर्माण (GDP का 30%) में स्थानांतरित कर दिया, जबकि यह  भारत में विनिर्माण GDP के 16-17% पर स्थिर है (विश्व बैंक)।
  • विनिर्माण क्षेत्र में स्थिरता: विनिर्माण क्षेत्र कृषि से अधिशेष श्रम को अवशोषित करने में विफल रहा, जिससे संरचनात्मक परिवर्तन सीमित हो गया।
    • रोजगार में विनिर्माण का हिस्सा: 10.4% (वर्ष 1993- 1994) → 12.6% (वर्ष 2011- 2012) → 11.4% (2023- 2024) (PLFS वर्ष 2023- 2024)।
    • मेक इन इंडिया का लक्ष्य वर्ष 2022 तक विनिर्माण के सकल घरेलू उत्पाद के हिस्से को 25% तक बढ़ाना था, लेकिन यह 16-17% पर स्थिर है।
    • वियतनाम और बांग्लादेश: श्रम-गहन विनिर्माण (वस्त्र, इलेक्ट्रॉनिक्स) पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिससे औद्योगिक रोजगार में वृद्धि हुई।
  • सेवा क्षेत्र का प्रभुत्व (रोजगार ध्रुवीकरण) : आर्थिक उदारीकरण (वर्ष 1991 के बाद) के कारण IT, बैंकिंग, वित्त, कानूनी, स्वास्थ्य सेवा, आतिथ्य, रियल एस्टेट तथा खुदरा सेवाओं का उदय हुआ।
    • भारत IT में “दुनिया का बैक ऑफिस” बन गया, ठीक उसी तरह जैसे चीन वैश्विक विनिर्माण केंद्र बन गया।
    • सेवा क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद में 55-60% का योगदान देता है, लेकिन कृषि की तुलना में कम नौकरियाँ प्रदान करता है।
    • IT और वित्तीय सेवाएँ (उच्च वेतन वाली) बनाम गिग इकॉनमी वाली नौकरियाँ (कम वेतन वाली)।
    • TCS, इन्फोसिस, विप्रो, HCL, टेक महिंद्रा 15.34 लाख लोगों को रोजगार देते हैं, लेकिन गिग वर्क (उबर, जोमैटो, स्विगी) कम वेतन तथा बिना किसी नौकरी की सुरक्षा के लाखों लोगों को रोजगार देते हैं।
    • विकसित देश: मजबूत औद्योगीकरण (जैसे, अमेरिका, ब्रिटेन, जापान) के बाद सेवाओं में उछाल आया।
  • अनौपचारिक और गिग इकोनॉमी वाली नौकरियों में वृद्धि: औपचारिक रोजगार आर्थिक विकास के साथ तालमेल नहीं रख पाया है, जिसके कारण अनौपचारिक नौकरियों और गिग इकोनॉमी का विस्तार हुआ है।
    • आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labour Force Survey- PLFS) वर्ष 2023-24 के अनुसार, भारत का लगभग 90% कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है।
    • उबर: 10 लाख से अधिक ड्राइवर (भारत आर्थिक प्रभाव रिपोर्ट 2024)।
    • जोमैटो: 4.8 लाख फूड डिलीवरी करने वाले, 
    • स्विगी: 5.43 लाख डिलीवरी पार्टनर (अक्टूबर-दिसंबर 2024)।

भारत में मध्यम वर्ग

  • मध्यम वर्ग एक सामाजिक-आर्थिक समूह है, जिसकी आय श्रमिक वर्ग तथा धनी वर्ग के बीच होती है।
  • उनके पास मध्यम व्यय योग्य आय होती है, जिससे बचत, घर का स्वामित्व तथा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच संभव होती है।
  • आमतौर पर वे सफेदपोश नौकरियों, छोटे व्यवसायों तथा कुशल व्यवसायों में शामिल होते हैं।

मध्यम वर्ग की परिभाषाएँ

  • आय-आधारित परिभाषा
    • विश्व बैंक (वर्ष 2011): प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 10-50 डॉलर की कमाई।
    • भारत की उपभोक्ता अर्थव्यवस्था पर लोगों का शोध (People Research on India’s Consumer Economy- PRICE) (वर्ष 2021): आर्थिक रूप से सुरक्षित परिवार, जिनके गरीबी या भेद्यता की स्थिति में जाने की बहुत कम संभावना है, प्रति वर्ष प्रति परिवार 5,00,000 से 3,000,000 रुपये (वर्ष 2021 PPP-समायोजित शर्तें) कमाते हैं।
  • स्व-पहचान: बहुत से लोग आय की परवाह किए बिना स्वयं को मध्यम वर्ग के रूप में देखते हैं।
  • सरकारी परिभाषा: कोई मानक वर्गीकरण नहीं है, लेकिन आयकर ब्रैकेट को अक्सर संदर्भ के रूप में उपयोग किया जाता है।

भारत में मध्यम वर्ग का उदय

  • स्वतंत्रता-पूर्व काल (वर्ष 1947 से पहले): सीमित एवं कुलीन मध्यम वर्ग
    • छोटा मध्यम वर्ग औपनिवेशिक प्रशासन, कानून, शिक्षा तथा व्यापार में केंद्रित था।
    • प्राथमिक समूह: जमींदार, पेशेवर (वकील, डॉक्टर, शिक्षक), व्यापारी।
    • ब्रिटिश नीतियों ने जमींदारों, नौकरशाहों और पश्चिमी शिक्षा प्राप्त भारतीयों का पक्ष लिया।
    • वर्ष 1941 में भारत की जनसंख्या: 318 मिलियन (जनगणना)।
      • अनुमान है कि मध्यम वर्ग कुल जनसंख्या का 5% से भी कम है।
  • स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात्‌ की अवधि (वर्ष 1947- वर्ष 1991): सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा संचालित विकास
    • राज्य-नेतृत्व वाली आर्थिक नीतियों और औद्योगीकरण ने मध्यम वर्ग का विस्तार किया।
    • सरकारी नौकरियाँ, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम और विनियमित उद्योगों ने स्थिर रोजगार प्रदान किया।
    • भूमि सुधार और हरित क्रांति (1960-70 के दशक) ने ग्रामीण समृद्धि को बढ़ावा दिया।
    • जनसंख्या वृद्धि
      • वर्ष 1950 के दशक में भारतीय मध्यम वर्ग: ~10-15 मिलियन (जनसंख्या का 3-5%)।
      • सार्वजनिक क्षेत्र का रोजगार: 194.7 लाख (वर्ष 1995) से 176.1 लाख (वर्ष 2012) (श्रम मंत्रालय)।
      • शहरीकरण: 17% (वर्ष 1951) से 31% (वर्ष 2011 की जनगणना)।
  • उदारीकरण के बाद की अवधि (वर्ष 1991 से वर्तमान): निजी क्षेत्र में उछाल (मध्यम वर्ग 2.0)
    • वर्ष 1991 के आर्थिक सुधारों ने IT, बैंकिंग, दूरसंचार तथा निजी क्षेत्र के विकास के द्वार खोले।
    • सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों में गिरावट, कॉरपोरेट तथा स्टार्टअप में निजी रोजगार में वृद्धि।
    • भारत बड़े पैमाने पर विनिर्माण क्षेत्र के विकास को छोड़कर एक सेवा-संचालित अर्थव्यवस्था बन गया।
    • तीव्र शहरीकरण तथा उपभोक्तावाद ने मध्यम वर्ग की आकांक्षाओं को बढ़ावा दिया।
    • आर्थिक सुधारों ने निजी क्षेत्र के रोजगार, IT वृद्धि और शहरीकरण को बढ़ावा दिया।
    • मध्यम वर्ग 1.0 (सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों) से मध्यम वर्ग 2.0 (निजी क्षेत्र द्वारा संचालित विकास) में परिवर्तन।
    • सेवाओं, वित्त तथा IT के तीव्र विस्तार ने एक नए उपभोक्ता वर्ग का निर्माण किया।
    • जनसंख्या वृद्धि
      • मध्यम वर्ग का आकार: 50 मिलियन (वर्ष 2000) से 432 मिलियन (वर्ष 2021) (जनसंख्या का ~30%)।
      • शहरीकरण: 31% (वर्ष 2011); वर्ष 2030 तक 40% तक पहुँचने की उम्मीद (संयुक्त राष्ट्र के एक सर्वेक्षण के अनुसार) है।
      • IT क्षेत्र का कार्यबल: 54.30 लाख (वर्ष 2024) (नैसकॉम की रणनीतिक समीक्षा वर्ष 2024 के अनुसार)।
      • बैंकिंग रोजगार: निजी बैंक 8.74 लाख (वर्ष 2024) बनाम PSU बैंक 7.5 लाख।
    •  GDP वृद्धि: वर्ष 1991 के बाद 6-7% वार्षिक वृद्धि, मध्यम वर्ग की आय में वृद्धि।
  • भविष्य का दृष्टिकोण 
    • बढ़ते एआई-संचालित रोजगार परिवर्तनों हेतु पुनः कौशल की आवश्यकता है।
    • औद्योगिक विकास, बेहतर शहरी नियोजन तथा सस्ती शिक्षा की आवश्यकता है।
    • डिजिटल अर्थव्यवस्था और स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र के कारण अनुमानित विस्तार।
    • वर्ष 2025 तक मध्यम वर्ग की आबादी 41% (~ 600 मिलियन लोग) होने की उम्मीद (मैकन्जी के अनुसार) है।
    • भारत की शहरी आबादी वर्ष 2035 तक 675 मिलियन तक पहुँचने का अनुमान (संयुक्त राष्ट्र) है।
    • भारत की मध्यम वर्ग की खपत वर्ष 2030 तक $10 ट्रिलियन तक पहुँचने की उम्मीद है।

भारत में मध्यम वर्ग के लिए प्रमुख विकास कारक

  • आर्थिक उदारीकरण और निजी क्षेत्र का विस्तार: वर्ष 1991 के बाद के सुधारों ने आईटी, बैंकिंग, दूरसंचार तथा सेवाओं में अवसर के द्वार खोले।
    • स्टार्टअप तथा गिग इकॉनमी के विकास ने रोजगार का विस्तार किया।
    • उदाहरण: आईटी क्षेत्र में 15.34 लाख लोग कार्यरत हैं (TCS, इन्फोसिस, विप्रो, HCL, टेक महिंद्रा), जो सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों से अधिक है।
  • शहरीकरण और बुनियादी ढाँचे का विकास: मेट्रो शहर कॉरपोरेट और औद्योगिक क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों के साथ मध्यम वर्ग के विस्तार को बढ़ावा देते हैं।
    • टियर-2 तथा टियर-3 शहरों (अहमदाबाद, पुणे, हैदराबाद) की वृद्धि से खपत में वृद्धि हो रही है।
    • उदाहरण: भारत की शहरी आबादी वर्ष 2030 तक 40% तक पहुँचने का अनुमान (जनगणना 2011) है।
  • बढ़ती आय तथा उपभोग वृद्धि: अधिक व्यय योग्य आय से रियल एस्टेट, ऑटोमोबाइल, यात्रा और विलासिता संबंधी वस्तुओं पर व्यय में वृद्धि होती है।
    • मध्यम वर्ग शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा तथा डिजिटल सेवाओं की माँग को बढ़ाता है।
    • उदाहरण: भारत का मध्यम वर्ग वर्ष 2025 तक जनसंख्या का 41% तक पहुँचने का अनुमान है।
  • सेवा एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्रों का विकास: IT, वित्त, ई-कॉमर्स तथा दूरसंचार ने ‘व्हाइट-कॉलर’ नौकरियों में वृद्धि को बढ़ावा दिया है।
    • डिजिटल अर्थव्यवस्था तथा दूरस्थ कार्य, पेशेवरों के लिए रोजगार बाजार का विस्तार कर रहे हैं।
    • उदाहरण: भारत वैश्विक ‘बैक ऑफिस’ है, जिसका IT निर्यात 200+ बिलियन डॉलर (नैसकॉम, 2023) है।
  • वित्तीय समावेशन और ऋण पहुँच: ऋण और EMI तक आसान पहुँच, जिससे घर का स्वामित्व और उपभोक्ता खर्च में वृद्धि होगी।
    • उदाहरण:UPI तथा डिजिटल बैंकिंग ने 1 अरब से अधिक उपयोगकर्ताओं तक वित्तीय पहुँच का विस्तार किया।
  • शिक्षा एवं कौशल विकास: उच्च शिक्षा में नामांकन (IIT, IIM, निजी विश्वविद्यालय) से मध्यम वर्ग की आकांक्षाएँ बढ़ रही हैं।
    • उदाहरण: उच्च शिक्षा में भारत का सकल नामांकन अनुपात (Gross Enrollment Ratio- GER) बढ़कर 28% (वर्ष 2023) हो गया।
  • सरकारी नीतियाँ और सामाजिक कल्याण कार्यक्रम: GST, प्रत्यक्ष कर सुधार, मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, PLI योजनाएँ रोजगार सृजन को बढ़ावा दे रही हैं।
    • सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ (EPFO, आयुष्मान भारत) वित्तीय स्थिरता का समर्थन करती हैं।
    • उदाहरण: इलेक्ट्रॉनिक्स और विनिर्माण में PLI (उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन) योजनाओं से 60 लाख नौकरियाँ उत्पन्न होने की उम्मीद है।

मध्यम वर्ग 2.0 (नया मध्यम वर्ग)

  • परिभाषा: उदारीकरण (वर्ष 1991) के बाद उभरे मध्यम वर्ग का एक नया वर्ग, जो निजी क्षेत्र के रोजगार, आईटी, वित्त तथा सेवाओं से प्रेरित है।
  • मुख्य विशेषताएँ
    • डिजिटल समझदारी (Digital Savviness): कार्य, खरीदारी और मनोरंजन के लिए डिजिटल उपकरणों पर अत्यधिक निर्भरता।
      • डिजिटल अर्थव्यवस्था में भागीदारी (जैसे, फ्रीलांसिंग, ऑनलाइन व्यवसाय)।
    • उपभोक्तावाद: ब्रांडेड सामान, यात्रा, भोजन और एक महत्वाकांक्षी जीवनशैली पर ध्यान केंद्रित करना।
    • शिक्षा: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, कौशल-आधारित शिक्षा और अंतर्राष्ट्रीय संपर्क पर जोर।
    • निजी नौकरियाँ: निजी नौकरियों, गिग इकॉनमी और उद्यमिता पर निर्भरता में वृद्धि।
    • शहरीकरण: मुख्य रूप से शहरी, बेहतर अवसरों तक पहुँच के साथ लेकिन उच्च जीवन लागत।
    • सामाजिक गतिशीलता: शिक्षा, बचत और निवेश के माध्यम से ऊपर की ओर गतिशीलता के लिए मजबूत प्रेरणा।
    • सांस्कृतिक बदलाव: पारंपरिक मूल्यों के साथ पश्चिमी प्रभावों का मिश्रण; बढ़ती सामाजिक जिम्मेदारी।
    • आर्थिक रूप से स्वतंत्र: अधिक आर्थिक रूप से स्वतंत्र लेकिन नौकरी की असुरक्षा और मुद्रास्फीति का सामना करना पड़ता है।

भारत में मध्यम वर्ग 2.0 के लिए चुनौतियाँ

  • नौकरी की असुरक्षा और निजी क्षेत्र पर निर्भरता: पुराने मध्यम वर्ग के विपरीत, जिसके पास स्थिर सरकारी नौकरियाँ थीं, मध्यम वर्ग 2.0 निजी क्षेत्र की नौकरियों, स्टार्टअप और गिग वर्क पर निर्भर करता है, जो अधिक अस्थिर हैं।
  • स्टार्टअप संघर्ष: कई स्टार्टअप, जो एक बार आक्रामक तरीके से भर्ती करते थे, उन्हें फंडिंग की समस्या और छंटनी का सामना करना पड़ा है (उदाहरण के लिए, बायजू, ओयो, पेटीएम)।
  • जीवन यापन की बढ़ती लागत (शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, आवास): आवश्यक क्षेत्रों में मुद्रास्फीति मध्यम वर्ग के जीवन को वहनीय बना रही है।
    • शिक्षा: निजी स्कूलों की फीस वार्षिक रूप से 10-15% बढ़ रही है, जिससे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा महंगी हो रही है।
      • पिछले पाँच वर्षों में IIM तथा IIT ने फीस में 30-50% की वृद्धि की है।
    • स्वास्थ्य सेवा: भारत में स्वास्थ्य सेवा पर होने वाला 70% खर्च जेब से वहन करना पड़ता है, जिससे चिकित्सा संबंधी आपात स्थितियाँ आर्थिक रूप से बहुत भारी पड़ जाती हैं।

मध्यम वर्ग के लिए रोजगार योजनाएँ

प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (PMEGP) 

  • यह भारत सरकार द्वारा प्रारंभ की गई क्रेडिट-लिंक्ड सब्सिडी योजना है।
  • यह प्रधानमंत्री रोजगार योजना (PMRY) तथा ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम (REGP) को मिलाकर अगस्त 2008 में शुरू की गई।
  • इसका उद्देश्य ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में सूक्ष्म उद्यमों की स्थापना के माध्यम से स्वरोजगार के अवसर उत्पन्न करना है।

आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना (ABRY)

  • आत्मनिर्भर भारत 3.0 पैकेज के हिस्से के रूप में लॉन्च किया गया। 
  • यह EPFO ​​के माध्यम से वित्तीय सहायता प्रदान करते हुए, नियोक्ताओं को नई नौकरियाँ सृजित करने तथा COVID-19 महामारी के दौरान खोए हुए रोजगार को बहाल करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

कौशल भारत मिशन

  • इसे प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) के नाम से भी जाना जाता है। 
  • इसे वर्ष 2015 में लॉन्च किया गया था। यह भारत सरकार की एक प्रमुख योजना है, जिसका उद्देश्य कौशल विकास तथा उद्यमिता के माध्यम से युवाओं को रोजगार के लिए तैयार करना है।

      • जीवनशैली संबंधी बीमारियों और चिकित्सा मुद्रास्फीति के कारण स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम में वृद्धि हो रही है।
    • आवास संकट: मेट्रो शहरों में संपत्ति की कीमतें पहुँच से बाहर हैं; मुंबई का आवास मूल्य-से-आय अनुपात 11 गुना (वैश्विक औसत: 5 गुना) है।
  • सामाजिक सुरक्षा लाभ के बिना उच्च कर बोझ: मध्यम वर्ग के करदाता उच्च प्रत्यक्ष करों का भुगतान करते हैं, लेकिन सरकारी योजनाओं से न्यूनतम लाभ प्राप्त करते हैं।
    • 15% कर की दर ₹12 लाख की आय से शुरू होती है, जिससे ‘डिस्पोजेबल’ आय प्रभावित होती है।
    • कोई सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा प्रणाली नहीं: यूरोपीय देशों के विपरीत, भारत में मध्यम वर्ग के लिए मुफ्त स्वास्थ्य सेवा, पेंशन या बेरोजगारी लाभ का अभाव है।
    • ईंधन कर: पेट्रोल तथा डीजल की उच्च कीमतों से आवागमन की लागत बढ़ जाती है, जिससे ‘डिस्पोजेबल’ आय प्रभावित होती है।
  • स्वचालन और AI मध्यम वर्ग की नौकरियों का स्थान ले रहे हैं: AI नियमित नौकरियों को समाप्त कर रही है, जिससे मध्यम वर्ग 2.0 के लिए नौकरी की सुरक्षा एक चिंता का विषय बन गई है।
    • IT उद्योग: TCS, इन्फोसिस तथा विप्रो प्रवेश स्तर की नौकरियों की जगह एआई-आधारित रोजगार ले रहे हैं।
      • AI तथा डेटा साइंस पेशेवरों की माँग बढ़ रही है, लेकिन कई पारंपरिक IT कर्मचारियों में परिवर्तन के लिए कौशल की कमी है।
      • रिटेल और बैंकिंग: डिजिटलीकरण और स्वचालन के कारण बैंक क्लर्क कर्मचारियों की संख्या कम कर रहे हैं।
      • ई-कॉमर्स (अमेजन, फ्लिपकार्ट) के विस्तार के कारण रिटेल नौकरियों में कमी आ रही है।
  • EMI पर निर्भरता और बढ़ता घरेलू कर्ज: मध्यम वर्ग 2.0, घर, कार, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा के लिए ऋण पर निर्भर है, जिससे उच्च वित्तीय तनाव उत्पन्न होता है।
    • घरेलू ऋण-से-GDP अनुपात वर्ष 2023 में बढ़कर 37.6% हो गया है, जो ऋण में वृद्धि को दर्शाता है।
    • ब्याज दरों में बढोतरी (वर्ष 2023- वर्ष 2024) ने घर और कार ऋण पर EMI भुगतान बढ़ा दिया है।
    • कई परिवारों को शिक्षा ऋण चुकाने में कठिनाई होती है, विशेषकर यदि रोजगार बाजार की स्थिति खराब हो जाती है।
  • आवास सामर्थ्य और शहरी बुनियादी ढाँचे संबंधी मुद्दे: रियल एस्टेट की कीमतें बहुत अधिक हैं और अत्यधिक यातायात एवं खराब बुनियादी ढाँचे के कारण शहरी जीवन अस्थिर होता जा रहा है।
    • शहरों में किराए में वृद्धि: कोविड-19 महामारी के बाद महानगरों में घरों के किराए में 20-30% की वृद्धि हुई है।
    • अत्यधिक यातायात: बंगलूरू, मुंबई और दिल्ली में वर्ष भर में सर्वाधिक यातायात है। पिछले दशक में महानगरों में आवागमन का समय दोगुना हो गया है।
    • विश्वसनीय सार्वजनिक परिवहन की कमी: निजी वाहनों और कैब सेवाओं पर निर्भरता को बढ़ाता है, जिससे लागत बढ़ती है।
  • कार्य-जीवन संतुलन और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे: बढ़ता हुआ कार्य दबाव, लंबे समय तक काम करना, नौकरी का तनाव और दूर से काम करने की थकान, मध्यम वर्ग 2.0 के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे हैं।
    • IT तथा वित्त कर्मचारियों ने उच्च बर्नआउट की रिपोर्ट की: टेक, बैंकिंग और कॉरपोरेट क्षेत्रों में कर्मचारी सप्ताह में 60+ घंटे काम करते हैं, जिससे कार्य-जीवन संतुलन प्रभावित होता है।
    • मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ बढ़ रही हैं: WHO का अनुमान है कि भारत की कामकाजी आयु वर्ग की 15% आबादी चिंता या अवसाद से ग्रस्त है।

भारत में मध्यम वर्ग 2.0 के लिए आगे की राह

  • कर राहत और सामाजिक सुरक्षा विस्तार: 10-50 लाख रुपये की आय वर्ग के लिए आयकर की दरें कम की जाएँगी, ताकि खर्च करने योग्य आय में वृद्धि हो सके।
    • वित्तीय तनाव को कम करने के लिए सार्वभौमिक स्वास्थ्य बीमा और पेंशन योजनाएँ शुरू करना।
  • रोजगार सुरक्षा को मजबूत करना: निजी क्षेत्र की नौकरियों में औपचारिक रोजगार और श्रम कानून सुरक्षा को प्रोत्साहित करना।
    • विनिर्माण क्षेत्र में स्थिर नौकरियों के निर्माण के लिए PLI (उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन) योजनाओं का विस्तार करना।
  • वहनीय आवास और शहरी बुनियादी ढाँचा विकास: मेट्रो सिटी के आवास को वहनीय बनाने के लिए सामूहिक आवास परियोजनाओं में निवेश करना।
    •  सार्वजनिक परिवहन में सुधार करना और आवागमन की लागत कम करना।
    • डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए कौशल और पुनः कौशल: स्वचालन से होने वाली नौकरियों की हानि का सामना करने के लिए तकनीक और AI-केंद्रित कौशल कार्यक्रम शुरू करना।
    • NSDC (राष्ट्रीय कौशल विकास निगम) पहलों का विस्तार करना।
  • वित्तीय स्थिरता और ऋण प्रबंधन: मध्यम वर्ग के उधारकर्ताओं के लिए गृह और शिक्षा ऋण की ब्याज दरों को कम करना।
    • EMI और ऋण पर अत्यधिक निर्भरता को रोकने के लिए वित्तीय साक्षरता कार्यक्रमों को बढ़ावा देना।
  • उद्यमिता और स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देना: मध्यम वर्ग के उद्यमियों के लिए कम ब्याज दर वाले ऋण और कर प्रोत्साहन अपनाना।
    • रोजगार लाभ और कानूनी सुरक्षा के साथ गिग इकॉनमी श्रमिकों का समर्थन करना।
  • सार्वजनिक सेवाओं (शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा) को मजबूत करना: वहनीय निजी स्कूल विनियमन और सार्वजनिक स्कूल की गुणवत्ता में सुधार करना।
    • मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए आयुष्मान भारत कवरेज का विस्तार करना।

निष्कर्ष

मध्यम वर्ग 2.0 आर्थिक उदारीकरण, डिजिटल परिवर्तन और वैश्वीकरण से लाभान्वित होने वाले एक गतिशील, निजी क्षेत्र द्वारा संचालित कार्यबल के रूप में उभरा है। हालाँकि, रोजगार असुरक्षा, बढ़ती लागत, स्वचालन और वित्तीय तनाव जैसी चुनौतियों के लिए इसके सतत् विकास को सुनिश्चित करने के लिए कराधान, सामाजिक सुरक्षा, कौशल विकास और शहरी नियोजन में नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

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