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रक्षा मंत्रालय ने वर्ष 2025 को ‘सुधारों का वर्ष’ घोषित किया

Lokesh Pal January 06, 2025 02:53 30 0

संदर्भ

हाल ही में रक्षा मंत्रालय (भारत सरकार) ने वर्ष 2025 को ‘सुधारों के वर्ष’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया है।

संबंधित तथ्य

  • उद्देश्य: सशस्त्र बलों को तकनीकी रूप से उन्नत, युद्ध के लिए तैयार बल में परिवर्तित करना, जो बहु-क्षेत्रीय एकीकृत संचालन में सक्षम हो।

एकीकृत थिएटर कमांड (Integrated Theatre Commands) के बारे में

  • एकीकृत थिएटर कमांड (ITC) भारत में एक प्रस्तावित सैन्य संगठनात्मक संरचना है, जो विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों या परिचालन जिम्मेदारियों के लिए सेना, नौसेना और वायु सेना के बलों को एक कमांड के अधीन लाएगी।
  • कमांड एवं मुख्यालय: सेना के नवीनतम मसौदे में तीन विरोधी-आधारित थिएटर कमांड की परिकल्पना की गई है:
    • पाकिस्तान का सामना करने वाली पश्चिमी थिएटर कमान जयपुर में स्थापित करने की योजना है।
    • चीन के सामने उत्तरी थिएटर कमान की स्थापना लखनऊ में करने की योजना है।
    • हिंद महासागर क्षेत्र से उत्पन्न खतरों के लिए समुद्री थिएटर कमान के रूप में इसका मुख्यालय कोयंबटूर में बनाया जा सकता है।

सुधार के लिए प्रमुख फोकस क्षेत्रों की पहचान की गई

  • संयुक्तता और एकीकरण को मजबूत करना: संयुक्त संचालन और एकीकरण पहलों को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना, एकीकृत थिएटर कमांड की स्थापना की सुविधा प्रदान करना।
  • उभरते हुए तकनीकी डोमेन और प्रौद्योगिकियों को अपनाना: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, हाइपरसोनिक्स और रोबोटिक्स जैसी प्रौद्योगिकियों का उपयोग करते हुए साइबर और अंतरिक्ष जैसे डोमेन में प्रगति को प्राथमिकता देना।
  • अंतर-सेवा सहयोग को बढ़ावा देना: समन्वित अंतर-सेवा प्रशिक्षण और सहयोग के माध्यम से परिचालन आवश्यकताओं एवं संयुक्त क्षमताओं की साझा समझ को बढ़ावा देना।
  • अधिग्रहण प्रक्रियाओं को सरल बनाना: समय पर और प्रभावी क्षमता विकास सुनिश्चित करने के लिए अधिग्रहण प्रक्रियाओं को सरल और तेज करना।
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना: सुचारू प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को सक्षम करके और सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देकर रक्षा क्षेत्र तथा नागरिक उद्योगों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करना।
  • हितधारक सहयोग को बढ़ावा देना: रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर की बाधाओं को दूर करना, नागरिक-सैन्य समन्वय में सुधार करना, अक्षमताओं को दूर करना और संसाधनों के उपयोग को अनुकूलित करना।
  • भारत को रक्षा निर्यातक के रूप में स्थापित करना: ज्ञान विनिमय और संसाधन एकीकरण के लिए अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने और विदेशी मूल उपकरण निर्माताओं के साथ साझेदारी करके भारत को रक्षा उत्पादों के एक विश्वसनीय निर्यातक के रूप में स्थापित करना।

  • वयोवृद्ध सैनिक कल्याण पर ध्यान देना: वयोवृद्धों सैनिकों के अनुभव एवं विशेषज्ञता का लाभ उठाते हुए उनके लिए कल्याणकारी उपायों का अनुकूलन करना।
  • सांस्कृतिक गौरव और वैश्विक मानक स्थापित करना: भारतीय संस्कृति और उपलब्धियों पर गर्व करना, स्वदेशी क्षमताओं के माध्यम से वैश्विक मानकों को पूरा करने में आत्मविश्वास पैदा करना और आधुनिक सेनाओं से उपयुक्त सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना।

भारतीय रक्षा प्रणाली की संरचना

  • राष्ट्रपति: सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर।
  • संसद: रक्षा व्यय को अधिकृत करती है और सैन्य नीतियों की देख-रेख करती है।
  • रक्षा मंत्रालय: सशस्त्र बलों का प्रबंधन और प्रशासन करता है।
  • रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO): रक्षा अनुसंधान और विकास का संचालन करता है।
  • चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS): सरकार को एकल-बिंदु सैन्य सलाह प्रदान करता है।
  • भारतीय सेना: स्थल आधारित लड़ाकू बल।
  • भारतीय नौसेना: नौसेना संचालन एवं समुद्री सुरक्षा।
  • भारतीय वायु सेना: वायु एवं अंतरिक्ष शक्ति।

भारत के रक्षा क्षेत्र की स्थिति (2024)

  • रक्षा बजट: वर्ष 2024-25 के लिए कुल ₹6,21,941 करोड़ का आवंटन, जिसमें कुल सरकारी व्यय का 13% शामिल है। वर्तमान बजट वर्ष के फोकस क्षेत्र आधुनिकीकरण, कार्मिक कल्याण और अनुसंधान एवं विकास हैं।

  • वैश्विक रैंकिंग: वर्ष 2024 के ‘ग्लोबल फायरपॉवर इंडेक्स’ में सैन्य शक्ति के मामले में भारत दुनिया में चौथे स्थान पर है।
  • सक्रिय कार्मिक: 1.49 मिलियन, जिसमें 1.17 मिलियन रिजर्व बलों में हैं।

रक्षा उत्पादन और व्यापार

  • व्यापर: वर्ष 2022-23 में ₹1,087 बिलियन (US$13.5 बिलियन) तक पहुँच गया।
  • निर्यात: वर्ष 2023-24 में ₹210.83 बिलियन (US$2.63 बिलियन) तक बढ़ गया, जो पिछले दशक की तुलना में 21 गुना वृद्धि है।
    • निर्यात में मिसाइलों (ब्रह्मोस), युद्धपोतों और रडार जैसी महत्त्वपूर्ण प्रणालियों के निर्यात की ओर बदलाव देखा गया है।
  • प्रमुख निर्यात गंतव्य: दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका और मध्य पूर्वी देश।
  • आयात: मुख्य रूप से रूस, फ्राँस, इजरायल और संयुक्त राज्य अमेरिका से प्राप्त होता है।
    • SIPRI की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 और वर्ष 2023 के बीच, भारत के लिए सबसे बड़ा रक्षा निर्यातक रूस था, जिसने इस अवधि के कुल रक्षा आयात का 36 प्रतिशत हिस्सा प्राप्त किया। इसके बाद 33 प्रतिशत के साथ फ्राँस दूसरे स्थान पर रहा है।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) 
    • नीति: उच्च तकनीक रक्षा परियोजनाओं के लिए FDI सीमा को 74% (स्वचालित मार्ग) और 100% (सरकारी मार्ग) तक बढ़ाया गया है।
    • प्रभाव: OEM (मूल उपकरण निर्माता) और उन्नत प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के साथ वैश्विक साझेदारी को प्रोत्साहित किया गया।

भारत में रक्षा सुधारों का विकास

  • स्वतंत्रता के बाद का युग (1947-1961)
    • लोकतांत्रिक नागरिक नियंत्रण: सशस्त्र बलों की लोकतांत्रिक निगरानी सुनिश्चित करने के लिए प्रशासनिक ढाँचों के माध्यम से नागरिक प्राधिकरण को मजबूती से स्थापित किया गया।
    • चुनौतियाँ: इस अवधि में आयात पर भारी निर्भरता और सीमित घरेलू रक्षा क्षमताएँ मुख्य चुनौतियाँ थीं।
  • वर्ष 1962 के युद्ध के बाद पुनर्गठन संरचनात्मक समायोजन: सैन्य तत्परता और प्रतिक्रिया क्षमताओं को बढ़ाने के लिए भौगोलिक कमान और परिचालन ढाँचे को मजबूत किया गया।
  • कारगिल युद्ध सुधार (1999-2001): समन्वय, खुफिया जानकारी साझा करने और संयुक्त संचालन में सुधार के लिए रक्षा खुफिया एजेंसी (2002), त्रि-सेवा कमांड और एकीकृत रक्षा स्टाफ की स्थापना।

नए युग के सुधारों का दशक (2014-2024)

  • चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) और सैन्य मामलों के विभाग (DMA) 
    • सुव्यवस्थित सेवा समन्वय: वर्ष 2019 में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) और सैन्य मामलों के विभाग (DMA) का गठन अंतर-सेवा संतुलन को बढ़ावा देने में एक महत्त्वपूर्ण कदम था।
    • CDS, एक एकल-बिंदु सैन्य सलाहकार के रूप में, सेना, नौसेना और वायु सेना में एकीकृत रणनीतियों को सुनिश्चित करता है, जबकि DMA निर्णय लेने को सुव्यवस्थित करने और स्वदेशी क्षमताओं को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • अग्निपथ योजना: वर्ष 2022 में शुरू की गई, अग्निपथ योजना ने सशस्त्र बलों क्षमतावान बनाने के लिए ‘अग्निवीरों’ की अल्पकालिक भर्ती की शुरुआत की।
    • यह युवा और कुशल बल को बनाए रखते हुए दीर्घकालिक कार्मिक लागत को कम करता है, मानव संसाधन प्रथाओं को आधुनिक परिचालन आवश्यकताओं के साथ जोड़ता है।
  • एकीकृत युद्ध समूह (IBG): IBG कॉम्पैक्ट, मिशन-विशिष्ट इकाइयाँ हैं, जो तेजी से तैनाती और स्वतंत्र संचालन में सक्षम हैं। सक्रियता और दक्षता के लिए डिजाइन किए गए, वे आधुनिक खतरों का जवाब देने के लिए सशस्त्र बलों की क्षमता को बढ़ाते हैं।
  • रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP), 2020: रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP), 2020 चुनिंदा वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध लगाकर, निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देकर और खरीद में उच्च स्वदेशी सामग्री को अनिवार्य करके आत्मनिर्भरता पर जोर देती है।
  • आयुध कारखानों को DPSU में समूहीकृत किया गया: वर्ष 2021 में, स्वायत्तता, दक्षता और जवाबदेही में सुधार के लिए 41 आयुध कारखानों को सात रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (DPSU) में पुनर्गठित किया गया।
    • ये DPSU युद्ध सामग्री, वाहन और सैन्य-ग्रेड उपकरण जैसे विविध क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखते हैं, जिससे भारत की स्वदेशी विनिर्माण क्षमताएँ बढ़ती हैं।
  • निजी क्षेत्र की बेहतर भूमिका: वर्ष 2001 में रक्षा उत्पादन के उदारीकरण ने निजी क्षेत्र के विकास को गति दी।
    • टाटा समूह, एलएंडटी और महिंद्रा जैसे प्रमुख हितधारक अब परिवहन विमान, तोपखाने प्रणाली और मिसाइल प्रौद्योगिकियों में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
  • स्वदेशी क्षमताओं पर ध्यान केंद्रित करना
    • प्रमुख स्वदेशी परियोजनाएँ: मुख्य उपलब्धियों में HTT-40 प्रशिक्षक विमान, हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर, उन्नत रडार और युद्धपोत शामिल हैं।
    • सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियाँ: घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करने, आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए 500 से अधिक रक्षा वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
  • नवाचार में iDEX की भूमिका
    • स्टार्टअप को बढ़ावा देना: रक्षा उत्कृष्टता के लिए नवाचार (iDEX) पहल ने रक्षा आवश्यकताओं के लिए नवाचार करने के लिए स्टार्टअप और एमएसएमई को शामिल किया है।
    • R&D के लिए समर्थन: आधुनिक युद्ध आवश्यकताओं के साथ संरेखित करने के लिए AI, रोबोटिक्स और हाइपरसोनिक्स जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में नवाचार को प्रोत्साहित किया।
  • रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी: अंतरिक्ष में राष्ट्रीय रणनीतिक उद्देश्यों को सुरक्षित करने और सैन्य अभियानों में अंतरिक्ष क्षमताओं को एकीकृत करने के उद्देश्य से वर्ष 2019 में इसकी स्थापना की गई।

रक्षा क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता

  • आयात पर निर्भरता: वर्ष 2019-23  के बीच भारत सबसे बड़े हथियार आयातकों में से एक बना हुआ है, जिसकी वैश्विक आयात में 9.8% हिस्सेदारी है।
    • रक्षा खरीद का 58% से अधिक हिस्सा विदेशी फर्मों पर निर्भर करता है, जो निर्भरता को कम करने के लिए स्वदेशी विनिर्माण की आवश्यकता को दर्शाता है।
  • नए युग के सुरक्षा खतरे: साइबर युद्ध, अंतरिक्ष आधारित खतरे और ड्रोन जैसी उभरती चुनौतियों के लिए AI तथा क्वांटम संचार जैसी तकनीकों का आधुनिकीकरण आवश्यक है। नागरिक-सैन्य संलयन में चीन की प्रगति के कारण सुधारों की और आवश्यकता है।
  • रसद संबंधी चुनौतियाँ: आपूर्ति शृंखलाओं में अक्षमताएँ परिचालन तत्परता को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिए, वर्ष 2020 के गलवान संघर्ष के दौरान, आवश्यक उपकरण वितरित करने में देरी ने रसद संबंधी कमियों को उजागर किया।
  • कम रक्षा बजट: वित्त वर्ष 2024-25 के लिए भारत का रक्षा बजट 76 बिलियन डॉलर है, जो अमेरिका ($877 बिलियन) और चीन ($292 बिलियन) से काफी कम है, जिससे आधुनिकीकरण और अनुसंधान एवं विकास निवेश सीमित हो गया है।
  • खरीद में देरी: नौकरशाही प्रक्रियाएँ प्रायः अधिग्रहण में देरी करती हैं, जैसे कि राफेल सौदे को वर्षों की बातचीत के बाद अंतिम रूप दिया गया, जिससे युद्ध की तैयारियाँ प्रभावित होती हैं।
  • नियुक्तियों में देरी: जनरल बिपिन रावत के निधन के बाद लगभग 10 महीनों तक चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) की अनुपस्थिति ने सुधारों को बाधित किया।
  • कर्मियों के रहने की स्थिति: कई सैनिकों को प्रतिकूल रहन-सहन की सुविधाओं का सामना करना पड़ता है, विशेषकर लद्दाख जैसे उच्च ऊँचाई वाले क्षेत्रों में, जिससे उनका मनोबल प्रभावित होता है।
  • पूर्व सैनिकों के मुद्दे: सेवानिवृत्ति के बाद विलंबित पेंशन और सीमित नौकरी के अवसर पूर्व सैनिकों के लिए कल्याणकारी योजनाओं में कमियों को उजागर करते हैं।

रक्षा क्षेत्र में सुधार लाने की चुनौतियाँ

  • राजकोषीय बोझ: सीमित बजटीय आवंटन बुनियादी ढाँचे को आधुनिक बनाने, घरेलू उत्पादन को बढ़ाने और परिचालन लागतों को संतुलित करते हुए अत्याधुनिक तकनीक में निवेश करने की क्षमता को प्रभावित करते हैं।
  • नवाचार की कमी: उन्नत अनुसंधान एवं विकास पर अपर्याप्त ध्यान और विदेशी तकनीकों पर निर्भरता स्वदेशी महत्त्वपूर्ण घटकों और उच्च तकनीक वाले उपकरणों के विकास में बाधा डालती है।
  • खरीद में बाधाएँ: रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया में नौकरशाही लालफीताशाही और अक्षमताएँ निर्णय लेने, उत्पादन और आवश्यक प्रणालियों की तैनाती में देरी का कारण बनती हैं।
  • सुधारों का प्रतिरोध: राजनीतिक विरोध और अंतर-सेवा असहमति, जैसे एकीकृत थिएटर कमांड (ITC) पर चिंताएँ, महत्त्वपूर्ण संरचनात्मक परिवर्तनों के कार्यान्वयन को धीमा कर देती हैं।
  • निर्यात सीमाएँ: रक्षा PSU अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने के लिए संघर्ष करते हैं, हालाँकि निजी क्षेत्र बड़े पैमाने पर पूर्ण प्रणालियों के बजाय घटकों का निर्यात करता है, जिससे भारत की वैश्विक बाजार में उपस्थिति सीमित हो जाती है।
  • उभरती हुई प्रौद्योगिकी को अपनाना: AI, 5G/6G और क्वांटम सिस्टम जैसी नई प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करने में चुनौतियों के लिए वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बने रहने के लिए मजबूत नीतियों एवं महत्त्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता होती है।
  • निजी क्षेत्र की कम भागीदारी: हालाँकि, हाल के वर्षों में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, लेकिन वित्त वर्ष 2024 में यह अभी भी भारत के कुल रक्षा क्षेत्र उत्पादन का केवल 22% है।

रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए प्रमुख सरकारी पहल

पहल

विवरण और प्रभाव

सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियाँ (Positive Indigenization Lists) आयात प्रतिबंध समयसीमा के साथ पाँच सूचियाँ (509 सेवा वस्तुएँ, 5,012 DPSU वस्तुएँ), आत्मनिर्भरता और स्वदेशी विनिर्माण को बढ़ावा देंगी।
रक्षा औद्योगिक गलियारे (Defence Industrial Corridors) उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में स्थापित, 21,000 करोड़ रुपये की निवेश प्रतिबद्धताएँ आकर्षित करना।
सृजन पोर्टल (SRIJAN Portal) MSME और उद्योगों को रक्षा घटकों के विनिर्माण में सक्षम बनाकर स्वदेशीकरण को सुविधाजनक बनाया जाएगा।
रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (Defence Acquisition Procedure) घरेलू खरीद को प्राथमिकता दी जाएगी, जिससे रक्षा विनिर्माण में भारतीय उद्योगों की भूमिका बढ़ेगी।
सार्वजनिक खरीद वरीयता (Public Procurement Preference) स्थानीय विनिर्माण उद्योगों को समर्थन प्रदान करते हुए भारतीय फर्मों से अधिक खरीद सुनिश्चित करने के लिए इसे क्रियान्वित किया गया।
सरलीकृत लाइसेंसिंग प्रक्रिया (Simplified Licensing Process) लंबी वैधता अवधि के साथ सुव्यवस्थित, रक्षा विनिर्माण में व्यापार करने में आसानी को बढ़ाया गया।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास का उद्घाटन (Opening of Defence R&D) यह रक्षा क्षेत्र में नवाचार और उन्नत प्रौद्योगिकी विकास को बढ़ावा देने के लिए निजी उद्योग और स्टार्टअप को सहयोग के लिए प्रोत्साहित करता है।

रक्षा सुधारों के लिए आगे की राह

  • स्वदेशी विनिर्माण को बढ़ावा देना: सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची का विस्तार करके और PPP को बढ़ावा देकर मेक इन इंडिया पहल को मजबूत करना।
    • iDEX जैसे कार्यक्रम इस दिशा में एक स्वागत योग्य कदम हैं।
  • खरीद को सुव्यवस्थित करना: नौकरशाही देरी को दूर करने के लिए एक तेज रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (Defence Acquisition Procedure-DAP) लागू करना।
    • वास्तविक समय की ट्रैकिंग और अनुमोदन के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म विकसित करना।
  • बजट आवंटन बढ़ाना: आधुनिकीकरण और अनुसंधान एवं विकास में अंतराल को पाटने के लिए धीरे-धीरे रक्षा बजट बढ़ाना।
    • AI, हाइपरसोनिक्स और क्वांटम प्रौद्योगिकियों जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना।
  • सेवानिवृत्त सैनिकों के कल्याण को बढ़ावा देना: पेंशन योजनाओं का अनुकूलन करना और सेवानिवृत्ति के बाद कॅरियर के लिए पुनः कौशल अवसर प्रदान करना।
    • विशेष रूप से उच्च ऊँचाई वाले क्षेत्रों में रहने की स्थिति में सुधार करना।
  • प्रशिक्षण और एकीकरण का आधुनिकीकरण करना: संयुक्त परिचालन दक्षता के लिए एकीकृत थिएटर कमांड के निर्माण में तेजी लाना।
    • प्रशिक्षण मॉड्यूल में AI और रोबोटिक्स जैसी उभरती हुई तकनीक को शामिल करना।
  • समिति की रिपोर्ट का कार्यान्वयन: रक्षा मंत्री समिति की रिपोर्ट 2022 के पूर्ण कार्यान्वयन से, संयुक्तता, आधुनिकीकरण, मुकदमेबाजी और शिकायत निवारण आदि से संबंधित कई मुद्दों का समाधान किया जा सकता है।

निष्कर्ष

भारत द्वारा वर्ष 2025 को ‘सुधारों का वर्ष’ घोषित करना, अपने रक्षा क्षेत्र में बदलाव के लिए नई प्रतिबद्धता का संकेत है। दीर्घकालिक चुनौतियों का समाधान करके और नवाचार को अपनाकर, सरकार का लक्ष्य आत्मनिर्भरता और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता हासिल करना है। इन सुधारों के माध्यम से, भारत न केवल अपनी सुरक्षा की रक्षा करने के लिए तैयार है, बल्कि वैश्विक रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र में एक प्रमुख हितधारक के रूप में अपनी स्थिति को भी मजबूत करने के लिए तैयार है।

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