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‘भ्रामक’ विज्ञापन

Lokesh Pal March 11, 2025 03:40 13 0

संदर्भ

हाल ही में जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, जयपुर ने बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख खान, अजय देवगन और टाइगर श्रॉफ के साथ-साथ विमल पान मसाला निर्माता जे.बी. इंडस्ट्रीज को नोटिस जारी किया है।

संबंधित तथ्य

  • भ्रामक विज्ञापन: यह शिकायत विमल पान मसाला में केसर के मिश्रण के बारे में भ्रामक प्रचार से संबंधित है।
  • आरोप: टैगलाइन “दाने दाने में है, केसर का दम” कथित तौर पर भ्रामक वाक्य है।
  • शिकायत में तर्क दिया गया है कि
    • यह उत्पाद स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, जिससे कैंसर जैसी गंभीर बीमारियाँ हो सकती हैं।
    • कंपनी इसके हानिकारक प्रभावों से अवगत है, लेकिन भ्रामक विज्ञापन जारी रखती है।
    • जनता को एक खतरनाक उत्पाद का सेवन करने के लिए गुमराह किया जा रहा है।
  • शिकायतकर्ता ने अभिनेताओं के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई और भ्रामक विज्ञापनों पर तत्काल प्रतिबंध लगाने की माँग की है।

भ्रामक विज्ञापन/प्रचार के बारे में

  • भ्रामक विज्ञापन उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए किए गए झूठे या भ्रामक दावे हैं। इनसे निर्माता या विज्ञापनकर्ताओं पर जुर्माना और कारावास सहित कानूनी कार्यवाही हो सकती है। 
  • उदाहरण के लिए: सर्वोच्च न्यायालय ने पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड को खासकर कोविड-19 महामारी के इलाज के रूप में “कोरोनिल” के प्रचार के लिए झूठे विज्ञापन जारी करने से प्रतिबंधित कर दिया था। 
  • कानून: उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 ऐसे विज्ञापनों के विरुद्ध सख्त उपाय प्रदान करता है। 
  • भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत धारा
    • धारा 35: बेची गई, वितरित की गई वस्तुओं या प्रदान की गई सेवाओं के संबंध में शिकायत।
    • धारा 89: उपभोक्ता हितों को नुकसान पहुँचाने वाले झूठे या भ्रामक विज्ञापनों के लिए दंड।
  • विज्ञापन की निगरानी हेतु नियामक निकाय

नियामक निकाय

भूमिका और प्रमुख प्रावधान

भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (Advertising Standards Council of India-ASCI)
  • विज्ञापन और मीडिया पेशेवरों द्वारा वर्ष 1985 में स्थापित गैर-सांविधिक न्यायाधिकरण।
  • यह सुनिश्चित करता है कि विज्ञापन निष्पक्ष, ईमानदार हों और ASCI कोड का अनुपालन करते हों।
केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (Central Consumer Protection Authority-CCPA)
  • उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन, अनुचित व्यापार प्रथाओं और भ्रामक विज्ञापनों को विनियमित करने के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत स्थापित किया गया।
  • भ्रामक विज्ञापनों की रोकथाम और समर्थन के लिए दिशा-निर्देश, 2022 जारी किए गए, जिनमें गैर-भ्रामक विज्ञापन, प्रलोभन और मुफ्त दावा विज्ञापनतथा विज्ञापनदाताओं की जिम्मेदारियाँ शामिल हैं।

भ्रामक विज्ञापन से निपटने के लिए अन्य कानून

  • भारतीय मानक ब्यूरो (प्रमाणन) विनियम, 1988
  • खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006
  • दवा एवं जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1955 (DOMA)
  • दवा एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940
  • सिगरेट एवं अन्य तंबाकू उत्पाद (विज्ञापन का प्रतिषेध तथा व्यापार, वाणिज्य, उत्पादन, आपूर्ति एवं वितरण का विनियमन) अधिनियम, 2003
  • उपभोक्ता मामले विभाग द्वारा भ्रामक विज्ञापनों के विरुद्ध शिकायत (GAMA) हेतु ऑनलाइन पोर्टल

राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) के बारे में

  • स्थापना: वर्ष 1988 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत।
  • अधिकार: उपभोक्ता विवादों का सस्ता, त्वरित और संक्षिप्त निवारण प्रदान करता है।
  • अध्यक्ष: सर्वोच्च न्यायालय का वर्तमान या सेवानिवृत्त न्यायाधीश या उच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश।
  • अधिकार
    • ऐसी शिकायतों पर विचार करता है, जहाँ विवाद का मूल्य ₹2 करोड़ से अधिक है।
    • राज्य आयोगों और जिला मंचों के आदेशों पर अपीलीय और पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार रखता है।
  • अपील प्रक्रिया: पीड़ित पक्ष NCRDC के आदेश के 30 दिनों के भीतर भारत के सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकता है।
  • दायरा: उपभोक्ता संरक्षण कानूनों के तहत ‘वस्तु’ और ‘सेवाएँ’ दोनों को शामिल करता है।
  • शिकायत कौन दर्ज कर सकता है?
    • एक उपभोक्ता।
    • कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत पंजीकृत स्वैच्छिक उपभोक्ता संघ।
    • केंद्र या राज्य सरकार।
    • व्यापक उपभोक्ता प्रभाव के मामले में एकाधिक उपभोक्ता।
  • प्रधान कार्यालय: नई दिल्ली।

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