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मोदीनॉमिक्स

Lokesh Pal July 04, 2024 03:23 28 0

संदर्भ

मोदीनॉमिक्स (Modinomics) को वर्ष 2014 से अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित और संचालित आर्थिक नीतियों के समूह के रूप में संदर्भित किया जाता है। 

  • मुख्य सिद्धांत: मोदीनॉमिक्स का उद्देश्य ‘मेक इन इंडिया’ के लिए निवेश को प्रोत्साहित करना है। भारत को विनिर्माण, नवाचार और विकास के लिए बाजार आधारित अर्थव्यवस्था के वैश्विक केंद्र में बदलना। 

भारत में निजी निवेश की स्थिति

निवेश ट्रैकिंग फर्म ‘प्रोजेक्ट्स टुडे’ के नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, 

  • निजी क्षेत्र की नई निवेश योजनाएँ: वर्ष 2023-24 में इसमें 15.3% की गिरावट आएगी। 
    • विनिर्माण क्षेत्र: प्रस्तावित परिव्यय वर्ष 2022-23 में ₹19.85 लाख करोड़ से कम होकर वर्ष 2023-24 में ₹11.9 लाख करोड़ के साथ 40% की गिरावट की स्थिति में पहुँच गया है। 

  • विदेशी निवेश: प्रस्तावित परिव्यय वर्ष 2023-24 में 31.7% या ₹1.5 लाख करोड़ घटकर ₹3.23 लाख करोड़ से थोड़ा अधिक हो गया। 
  • आर्थिक सर्वेक्षण 2022-2023: भारत में निजी क्षेत्र के निवेश में वर्ष 2012 से सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) के अनुपात में गिरावट आ रही है। 
    • वित्त वर्ष 2020-21: सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के प्रतिशत के रूप में निजी क्षेत्र का निवेश घटकर 19.6 प्रतिशत रह गया। 

निजी क्षेत्र का निवेश

  • यह उन सभी लाभकारी व्यवसायों द्वारा अर्थव्यवस्था में किया गया निवेश है, जिनका स्वामित्व या संचालन सरकार के पास नहीं है। 
  • निर्धारक: निजी क्षेत्र के निवेश के 5 निर्धारक हैं। 
    • उपभोक्ता माँग: निजी अंतिम उपभोग व्यय (Private Final Consumption Expenditure- PFCE), जो कि घरेलू उपभोग पर खर्च की जाने वाली राशि है, सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में वर्ष 1950-51 में 89 प्रतिशत से वर्ष 2019 तक 61 प्रतिशत तक घट गई है। 
    • ऋण तक पहुँच (Access  to Credit): वर्ष 2016 से, हालाँकि निजी क्षेत्र को बैंक ऋण में मामूली दर से वृद्धि हुई है, लेकिन निजी क्षेत्र के निवेश में गिरावट आई है। 
    • कॉरपोरेट लाभप्रदता (Corporate Profitability): सूचीबद्ध कॉरपोरेट लाभ (करों के बाद लाभ, PAT द्वारा मापा गया) पिछले नौ तिमाहियों के दौरान सकल घरेलू उत्पाद के 4.0-4.5 प्रतिशत पर स्थिर रहा है और पूर्व-कोविड अवधि (वित्त वर्ष 2018 से वित्त वर्ष 2020) के सकल घरेलू उत्पाद के 2.1 प्रतिशत के औसत से लगभग दोगुना है। 
      • लेकिन यह अर्थव्यवस्था का एक कमजोर दृष्टिकोण प्रदर्शित करती है, क्योंकि अर्थव्यवस्था के लगभग 45 प्रतिशत यानी अनौपचारिक क्षेत्र के व्यवसायों की लाभप्रदता को मापा नहीं जा रहा है। 
    • क्षमता उपयोग: यह मूल रूप से इस बात का माप है कि किसी कंपनी या अर्थव्यवस्था में स्थापित क्षमता का उपयोग उत्पादन के लिए किस सीमा तक किया जा रहा है। क्षमता उपयोग जितना अधिक होगा, नए निवेश किए जाने की संभावना उतनी ही अधिक होगी। 
      • यह न केवल वर्तमान माँग का संकेत है, बल्कि भविष्य की माँग में कंपनी के विश्वास का भी संकेत है। 
    •  समग्र व्यावसायिक विश्वास (Overall  Business Confidence): देश के कर और श्रम कानूनों में सुधार, निश्चितता और स्थिरता निवेशकों का विश्वास बढ़ा रही है। 

निजी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार के उपाय

  • समष्टि अर्थशास्त्र संबंधी स्थिरता सुनिश्चित करना: मुद्रास्फीति लक्ष्य व्यवस्था और राजकोषीय घाटा लक्ष्य व्यवस्था लागू करके समष्टि अर्थशास्त्र स्थिरता पुनर्स्थापित करना। 
  • IBC ढाँचा (IBC framework): सरकार ने ऋण वितरण एवं रिकवरी की स्थिति में बैंकों को IBC ढाँचे के माध्यम से कानूनी सहारा प्रदान करके उनके लिए जोखिम कम करने का प्रयास किया। साथ ही निवेशकों को इससे निपटने का आसान विकल्प भी प्रदान किया है। 
  • पूँजीगत व्यय में निवेश में वृद्धि: परिवहन, विद्युत, सिंचाई, खाद्य प्रसंस्करण आदि में निवेश के रूप में बुनियादी ढाँचे के संपर्क को बढ़ावा दिया जा रहा है। 
  • कॉरपोरेट कर की दर में कटौती: सितंबर 2019 में, सरकार ने तत्कालीन मौजूदा कंपनियों के लिए ‘बेस कॉरपोरेट टैक्स’ को 30 प्रतिशत से घटाकर 22 प्रतिशत करने की घोषणा की और नई विनिर्माण फर्मों के लिए इसे 25 प्रतिशत से घटाकर 15 प्रतिशत करने की घोषणा की। 
  • उत्पादन सब्सिडी और प्रोत्साहन योजनाएँ: उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना या RoDTEP योजना जैसी आदि योजनाओं के माध्यम से उदार उत्पादन सब्सिडी उपलब्ध कराई गई है। 
  • आत्मनिर्भर भारत: घरेलू उत्पादकों को संरक्षण प्रदान करने के लिए टैरिफ लगाए गए हैं, जिससे मेक इन इंडिया, स्टैंड अप इंडिया जैसी योजनाओं को बढ़ावा मिल सके और घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित किया जा सके। 
  • ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (Ease of Doing Business): विश्व बैंक की डूइंग बिजनेस रिपोर्ट (DBR), 2020 में भारत 63वें स्थान पर था। 

निजी निवेश में स्थिरता का कारण

  • निवेश के जोखिम घटक की अनदेखी: अधिकांश उपाय एक ही लक्ष्य की पूर्ति करते हैं, अर्थात् लागत में कमी करके निवेश पर प्रतिफल बढ़ाना, राजस्व में वृद्धि करना तथा कर-पश्चात् लाभ में वृद्धि करना, जबकि जोखिम शमन घटक की अनदेखी की जाती है। 
  • निवेश की  प्रतिवर्त्यता और मापनीयता (Reversibility and Scalability of Investments): विनिर्माण क्षेत्र में बड़ा, अविभाज्य और प्रतिवर्ती निवेश करना कठिन होता है, अर्थात इसमें जोखिम का कारक अधिक होता है, जिसके कारण किसी भी महत्वपूर्ण परियोजना को मंजूरी देने से पहले किसी भी निवेश के जोखिमों पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता होती है।  
  • अनिश्चित एवं अस्थिर कानून: कर (उदाहरण के तौर पर GST) और श्रम कानूनों से संबंधित कानूनों एवं नियमों में लगातार परिवर्तन से अनिश्चितता उत्पन्न होती है, जिससे निवेश जोखिम की प्रवृत्ति कम हो जाती है। 

निवेश जोखिम

जोखिम तीन प्रकार की कार्रवाई से उत्पन्न होते हैं, जो प्रतिस्पर्द्धियों का पक्ष लेते हैं, सीधे दबाव डालते हैं, या निवेशक के दृष्टिकोण से आपूर्ति शृंखला को खतरे में डालते हैं। 

  • नेशनल चैंपियन रिस्क (National Champions Risk): नकारात्मक पूंजीवाद के मामले में कुछ नेशनल चैंपियंस के पक्ष में नीतिगत ढांचे में अचानक परिवर्तन ने अन्य घरेलू फर्मों को इस डर से निवेश करने से रोक दिया है कि उनके अपरिवर्तनीय निवेश को विवेकाधीन नीति परिवर्तनों के जोखिम को ध्यान में रखना होगा। 
    • उदाहरण: यह ऑनलाइन और भौतिक खुदरा, हवाई अड्डों, सीमेंट, बंदरगाहों, दूरसंचार और मीडिया क्षेत्र में संभव हो चुका है। 
  • प्रत्यक्ष और बलपूर्वक राज्य कार्रवाई (Direct and Coercive State Action): जब टैक्स टेररिज्म का माहौल बन जाता है, जिसमें प्रवर्तन निदेशालय या कर अधिकारियों द्वारा चुनिंदा छापे, नियामक एजेंसियों द्वारा मनमाने फैसले या विशुद्ध रूप से जबरन वसूली की कार्रवाई (चुनावी बॉण्ड प्रकरण) के परिणामस्वरूप लाखों करोड़ रुपये का निवेश मुश्किल हो जाता है, तो निवेशकों की जोखिम संबंधी धारणा में तेजी से बदलाव आता है। 
    • उदाहरण: केयर्न/वेदांता और वोडाफोन द्वारा, सरकार के पूर्वव्यापी कर लगाए जाने को चुनौती देने के लिए द्विपक्षीय निवेश संधियों का सहारा लेना। 
  • आपूर्ति शृंखला जोखिम (Supply Chain Risk): कच्चे माल और घटकों की टैरिफ संरचना में विवेकाधीन और अचानक परिवर्तन या सरकार द्वारा लगाए गए उत्पाद प्रतिबंध, कम लागत वाली आपूर्ति तक पहुँच के बारे में निवेशकों के बीच जोखिम की धारणा को कम करते हैं। 
    • मेक इन इंडिया को सफल बनाने के लिए विनिर्माण कंपनियों को विश्व में कहीं से भी कच्चे माल और इनपुट तक पहुँच के बारे में आश्वस्त होना होगा। 
    • उदाहरण: वियतनाम ने सभी प्रमुख व्यापारिक हितधारकों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर करके आपूर्ति शृंखला जोखिमों को कम करने का प्रयास किया है, जिससे निवेशकों को यह आश्वासन मिला है कि वे वर्तमान में और भविष्य में भी आपूर्ति तक पहुँच पर विश्वास कर सकते हैं।

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