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‘मोइदम’: अहोम राजवंश की टीला-दफन प्रणाली

Lokesh Pal July 09, 2024 03:03 227 0

संदर्भ

असम के चराईदेव जिले में अहोम युग के ‘मोइदम’ (Moidams) को यूनेस्को (UNESCO) की अंतरराष्ट्रीय सलाहकार संस्था अंतरराष्ट्रीय स्मारक एवं स्थल परिषद (International Council on Monuments and Sites- ICOMOS) द्वारा विश्व धरोहर सूची के लिए अनुशंसित किया गया है। 

‘मोइदम’ (Moidam) के बारे में

  • मोइदम: मोइदम ताई अहोम राजाओं एवं रानियों की कब्रगाह हैं। 
    • मोइदम में अहोम राजघराने के अवशेषों के साथ-साथ उनकी प्रिय वस्तुएँ भी रखी हुई हैं। 

  • शब्द से व्युत्पन्न: शब्द ‘मोइदम’  ताई-अहोम शब्द ‘फ्रांगमाई-डैम’ से लिया गया है, जहाँ ‘फ्रांगमाई’ का अर्थ है ‘कब्र में डालना’ और ‘डैम’ का अर्थ है  ‘मृत व्यक्ति की आत्मा’, अहोम अपने मृतकों को दफनाते थे।

अहोम साम्राज्य

  • अहोम लोगों का मूल 
    • ताई-भाषी लोगों का मूल संभवतः दक्षिण चीन या म्याँमार में था।
    • वे 1228 ईसवी में असम आ गए थे।
    • उन्होंने चावल की खेती एवं क्षेत्र में बुनियादी ढाँचा तकनीकों को बढ़ावा दिया।
  • स्थापना
    • अहोम राजवंश की स्थापना 1228 ईसवी में चाओलुंग सुकाफा (Chaolung Sukapha) द्वारा असम की ब्रह्मपुत्र घाटी में की गई थी।
    • सुकाफा को उनके असाधारण नेतृत्व के लिए ‘चाओलुंग’ (Chaolung) की उपाधि दी गई।
    • अहोम राज्य बेगारी प्रथा पर निर्भर था। राज्य के लिए काम करने के लिए मजबूर किए जाने वालों को पाइक कहा जाता था।
  • अहोम धर्म एवं समाज: प्रारंभ में आदिवासी देवताओं की पूजा की जाती थी, बाद में वे ब्राह्मणों तथा हिंदू धर्म से प्रभावित हुए।
  • मुगल आक्रमण एवं ब्रिटिश शासन: अहोम प्रतिरोध के कारण असम पर कब्जा करने के मुगल प्रयास विफल रहे।
    • अहोम साम्राज्य को 1800 के दशक में विद्रोह का सामना करना पड़ा एवं अंततः बर्मी आक्रमण (Burmese Invasion) के सामने झुकना पड़ा।
    • प्रथम आंग्ल-बर्मी युद्ध (1824-1826) में अंग्रेजों ने बर्मी लोगों को निष्कासित कर  दिया।
    • राजवंश ने 600 वर्षों तक संप्रभुता बरकरार रखी जब तक कि वर्ष 1826 में यांडूब की संधि के अंतर्गत ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा असम पर कब्जा नहीं कर लिया गया।

  • स्थित: वे असम के चराईदेव (Charaideo) जिले में शाही परिवारों का विश्राम स्थल हैं।
  • संरचना: मोइदम अर्द्धगोलाकार दफन टीले हैं, जो मृतक की स्थिति के आधार पर आकार में भिन्न होते हैं, जिसमें एक कक्ष, आहुति के लिए ईंट की संरचना वाला एक मिट्टी का टीला एवं पश्चिम में एक धनुषाकार प्रवेश द्वार के साथ एक अष्टकोणीय सीमा वाली दीवार होती है। 
    • छोटे मोइदम में इनमें से कुछ विशेषताओं का अभाव है।
  • तुलना: मोइदम की तुलना मिस्र के पिरामिडों से की जा सकती है।
  • अपनाई गई प्रथाएँ: 18वीं शताब्दी के बाद, अहोम शासकों ने दाह-संस्कार की हिंदू पद्धति को अपनाया एवं अंतिम संस्कार की हड्डियों तथा राख को चराईदेव में एक मोइदम में दफनाना शुरू कर दिया।
  • प्रथा का बंद होना: ताई अहोम शासकों के अन्य धर्मों (हिंदू धर्म एवं बौद्ध धर्म) में परिवर्तित होने के बाद दफनाने की प्रथा बंद हो गई। 
  • संपत्ति को प्रभावित करने वाले कारक: मोइदम को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक भारी वर्षा, मिट्टी का कटाव एवं वनस्पति विकास हैं। ये प्राकृतिक तत्त्व साइट के संरक्षण तथा रखरखाव के लिए चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं।
  • मोइदम का सांस्कृतिक महत्त्व: अहोम मोइदम ताई-अहोम कब्रिस्तान का एक असाधारण उदाहरण है, जो उनकी अंत्येष्टि परंपराओं एवं संबंधित ब्रह्मांड विज्ञान का मूर्त रूप से प्रतिनिधित्व करता है।

अंतरराष्ट्रीय स्मारक एवं स्थल परिषद (ICOMOS) रिपोर्ट

  • ICOMOS: अंतरराष्ट्रीय स्मारक एवं स्थल परिषद (International Council on Monuments and Sites – ICOMOS) सांस्कृतिक विरासत के लिए यूनेस्को को परामर्श देने वाली फ्राँस स्थित संस्था है।
    • यह एक अंतरराष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन है जो पेशेवरों, विशेषज्ञों, स्थानीय अधिकारियों, कंपनियों एवं विरासत संगठनों के प्रतिनिधियों से बना है तथा दुनिया भर में वास्तुकला एवं परिदृश्य विरासत के संरक्षण तथा संवर्द्धन के लिए समर्पित है।
  • ICOMOS द्वारा अहोम ‘मोइदम’ को शामिल करने का सुझाव: ICOMOS ने 21-31 जुलाई को नई दिल्ली में होने वाले विश्व धरोहर समिति के 46वें सामान्य सत्र के लिए ‘सांस्कृतिक एवं मिश्रित संपत्तियों के नामांकन का मूल्यांकन’ (Evaluations of Nominations of Cultural and Mixed Properties) रिपोर्ट तैयार की है।
    • भारत से एकमात्र आवेदक के रूप में अहोम के मोइदम को सूचीबद्ध किया गया था।

UNESCO विश्व धरोहर स्थल

  • परिचय: विश्व धरोहर स्थल एक ऐसा स्थल या क्षेत्र है, जिसे संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (United Nations Educational, Scientific and Cultural Organisation- UNESCO) द्वारा प्रशासित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन द्वारा कानूनी संरक्षण प्राप्त है। 
  • नामित: इन साइटों को सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, वैज्ञानिक या अन्य प्रकार के महत्त्व के लिए यूनेस्को (UNESCO) द्वारा नामित किया जाता है।
  • समर्थन: यह वर्ष 1972 में यूनेस्को (UNESCO) द्वारा स्थापित विश्व सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक विरासत के संरक्षण से संबंधित कन्वेंशन के रूप में ज्ञात अंतरराष्ट्रीय समझौते द्वारा समर्थित है।
  • विश्व धरोहर स्थलों की अस्थायी यूनेस्को सूची: इन्हें अलग-अलग देशों द्वारा पहचाना जाता है, जिन्हें वे ‘उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य’ मानते हैं और विश्व विरासत सूची में शिलालेख के लिए उपयुक्त हो सकते हैं। इसे वर्ल्ड हेरिटेज सेंटर द्वारा प्रकाशित किया गया है।
  • विरासत स्थलों के प्रकार: स्थल तीन प्रकार के होते हैं: सांस्कृतिक (Cultural), प्राकृतिक (Natural) एवं मिश्रित (Mixed)।
    • सांस्कृतिक विरासत में प्रतीकात्मक, ऐतिहासिक, कलात्मक, सौंदर्यशास्त्र, नृजातीयविज्ञान, मानवशास्त्रीय, वैज्ञानिक या सामाजिक महत्त्व वाली कलाकृतियाँ, स्मारक, इमारतें, स्थल एवं संग्रहालय शामिल हैं। 
    • प्राकृतिक विरासत स्थल उत्कृष्ट पारिस्थितिक प्रक्रियाओं, अद्वितीय घटनाओं या दुर्लभ प्रजातियों के आवास वाले असाधारण प्राकृतिक क्षेत्र हैं। 
    • मिश्रित विरासत स्थल सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक महत्त्व को मिश्रित करते हैं, ऐतिहासिक इमारतों या पुरातात्त्विक स्थलों को असाधारण प्राकृतिक विशेषताओं के साथ जोड़ते हैं।
  • भारत एवं विश्व धरोहर स्थल: भारत की 42 संपत्तियाँ विश्व धरोहर सूची में अंकित हैं।
    • भारत में सांस्कृतिक विरासत स्थल: 34
    • भारत में प्राकृतिक विरासत स्थल: 7 
    • भारत में मिश्रित विरासत स्थल: 1 (खांगचेन्जोंगा राष्ट्रीय उद्यान)।

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