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मोनोक्लोनल एंटीबॉडी

Lokesh Pal November 05, 2025 02:56 7 0

संदर्भ

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने भारतीय संगठनों, कंपनियों और निर्माताओं से निपाह वायरस (NiV) के विरुद्ध मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (mAbs) के विकास तथा उत्पादन के लिए एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट (EoI) आमंत्रित किए हैं।

मोनोक्लोनल एंटीबॉडी क्या हैं?

  • मोनोक्लोनल एंटीबॉडी प्रयोगशाला में निर्मित अणु होते हैं, जो प्रतिरक्षा तंत्र की तरह हानिकारक रोगजनकों (जैसे वायरस और बैक्टीरिया) की प्रतिरोधक क्षमता की नकल करते हैं।

  •  इन्हें “मोनोक्लोनल” कहा जाता है क्योंकि ये एक ही मूल कोशिका  से उत्पन्न समान प्रतिरक्षा कोशिकाओं (क्लोनों) द्वारा निर्मित किए जाते हैं,  इसलिए ये केवल एक विशिष्ट लक्ष्य (एंटीजन) को पहचानते और उससे जुड़ते हैं।
  • कार्य प्रणाली 
    • यह रोगजनक या कोशिका की सतह पर स्थित किसी विशिष्ट एंटीजन से जुड़ते हैं।
    • यह जुड़ाव विषाक्त पदार्थों को निष्क्रिय कर सकता है, रिसेप्टरों को अवरुद्ध कर सकता है या अन्य प्रतिरक्षा घटकों द्वारा कोशिका विनाश की प्रक्रिया को सक्रिय कर सकता है।
  • उत्पादन 
    • इन्हें हाइब्रिडोमा तकनीक (Hybridoma Technique) से बनाया जाता है, जिसमें इच्छित एंटीबॉडी बनाने वाली बी-कोशिका (B-cell) को मायलोमा (कैंसर) कोशिका से जोड़ा जाता है।
    • यह संलयन एक हाइब्रिडोमा का निर्माण करता है, जो अनंत काल तक विभाजित होकर समान एंटीबॉडी का बड़ी मात्रा में उत्पादन कर सकता है।

  • प्रयोग 
    • चिकित्सा उपचार: कैंसर थेरेपी (जैसे, रिटक्सिमैब, ट्रैस्टुजुमाब), ऑटोइम्यून बीमारियों (जैसे, एडालिमुमैब) और वायरल संक्रमण (जैसे, COVID-19 मोनोक्लोनल एंटीबॉडी) में उपयोग किया जाता है।
    • निदान: त्वरित एंटीजन परीक्षण और प्रयोगशाला निदान में।
    • अनुसंधान: कोशिकाओं और ऊतकों में विशिष्ट अणुओं की पहचान या पृथक्करण के लिए।
  • लाभ 
    • अत्यधिक विशिष्ट और लक्षित कार्यवाही।
    • व्यापक दवाओं की तुलना में दुष्प्रभाव कम।
    • जब टीके या एंटीवायरल उपलब्ध या प्रभावी न हों, तब उपयोगी।
  • सीमाएँ
    • उत्पादन और भंडारण महँगा (कोल्ड चेन आवश्यक)।
    • कभी-कभी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न कर सकते हैं।
    • यदि लक्ष्य एंटीजन में उत्परिवर्तन (Mutation) हो जाए, तो प्रभाव घट सकता है।
  • निपाह नियंत्रण में उपयोग
    • संक्रमणोत्तर रोकथाम (Post-Exposure Prophylaxis): स्वास्थ्यकर्मियों, परिजनों और प्रयोगशाला में कार्य करने वाले कर्मचारियों के लिए जो बिना पर्याप्त सुरक्षा के संपर्क में आए हों।
    • चिकित्सीय उपयोग: संक्रमण के प्रारंभिक चरण में mAbs के आदान से वायरस का प्रभाव कम होता है, रोग की प्रगति रुकती है और मृत्यु दर कम होती है।

ICMR की पहल के बारे में

  • उद्देश्य:  निपाह वायरस के विरुद्ध स्वदेशी मोनोक्लोनल एंटीबॉडी विकसित करना, उत्पादन करना और प्रकोप की स्थिति में चिकित्सीय एवं रोकथाम उपयोग हेतु भंडारण करना।
  • क्रियान्वयन एजेंसी:  ICMR और ICMR–नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV), पुणे इसका तकनीकी मार्गदर्शन, अनुसंधान सहयोग और सभी चरणों में पर्यवेक्षण प्रदान करेंगे।
  • सहयोग मॉडल: ICMR भारतीय उद्योगों और जैव-प्रौद्योगिकी कंपनियों के साथ साझेदारी करेगा, ताकि घरेलू mAb प्लेटफॉर्म विकसित किया जा सके, जो बड़े पैमाने पर उत्पादन सक्षम बनाए।
  • वर्तमान स्थिति
    • स्वदेशी रूप से विकसित mAbs का उपयोग करके पशु परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा किया गया।
    • ICMR-राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (NIV), पुणे ने इस क्षेत्र में उन्नत अनुसंधान एवं विकास शुरू किया है।
  • तर्क 
    • उच्च मृत्यु दर: नैदानिक प्रबंधन और प्रतिक्रिया के आधार पर 40–75% तक।
    • भारत में बार-बार प्रकोप: वर्ष 2001 से लगातार, विशेष रूप से केरल में (वर्ष 2018, वर्ष 2021, वर्ष 2023, वर्ष 2024, वर्ष 2025)।
    • वर्तमान कमी: कोई अनुमोदित वैक्सीन या एंटीवायरल नहीं है पहले के प्रकोपों में विदेशी mAbs पर निर्भरता के कारण वितरण में विलंब हुआ।
    • रणनीतिक आवश्यकता: घरेलू उत्पादन क्षमता आत्मनिर्भरता और आपातकालीन तैनाती सुनिश्चित करेगी।

निपाह वायरस (NiV) के बारे में

  • प्रकृति
    • निपाह वायरस एक जूनोटिक वायरस है (जो जानवरों से मनुष्यों में प्रसारित होता है)। यह संक्रमित भोजन या व्यक्ति-से-व्यक्ति में भी प्रसारित हो सकता है।
    • यह गंभीर श्वसन रोग और एन्सेफलाइटिस (मस्तिष्क की सूजन) का कारण बनता है।
    • उच्च मृत्यु दर और महामारी की क्षमता के कारण इसे अत्यधिक रोगजनक वायरस के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • उद्गम और इतिहास
    • पहली बार पहचान: वर्ष 1998–99 में मलेशिया में सूअर पालकों में।
    • नाम: सुंगई निपाह नामक गाँव से लिया गया, जहाँ यह पहली बार दर्ज किया गया।
    • मुख्य भंडार: ‘टेरोपस’ जीनस के ‘फ्रूट बैट’ (जिन्हें ‘फ्लाइंग फॉक्स’ भी कहा जाता है)।
  • संक्रमण के माध्यम
    • पशु-से-मानव: संक्रमित चमगादड़ों या सूअरों के संपर्क से; या चमगादड़ की लार अथवा इनके मूत्र से दूषित खजूर के रस के सेवन से।
    • मानव-से-मानव संक्रमण: मुख्यतः श्वसन से उत्सर्जित बूँदों, शारीरिक द्रवों या दूषित सतहों के संपर्क के माध्यम से होता है, विशेषकर स्वास्थ्य सेवा संस्थानों में।
  • मृत्यु दर: 40–75%, जो स्वास्थ्य सेवाओं और प्रतिक्रिया पर निर्भर करती है।
  • भारत में पाया जाने वाला स्ट्रेन: बांग्लादेश क्लेड (NiV-B) जो व्यक्ति-से-व्यक्ति संक्रमण और अधिक मृत्यु दर के लिए जाना जाता है, यह मलेशियाई स्ट्रेन से अधिक खतरनाक है।

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