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मूडीज रेटिंग्स ने अमेरिकी क्रेडिट रेटिंग घटा दी

Lokesh Pal June 14, 2025 02:33 74 0

संदर्भ 

हाल ही में मूडीज ने अमेरिकी क्रेडिट रेटिंग घटा दी है। इस कदम पर बाजार की ओर से शांत प्रतिक्रिया मिली है, लेकिन यह अमेरिका के राजकोषीय नेतृत्व में वैश्विक विश्वास में सूक्ष्म गिरावट का संकेत है।

  • यह संघीय सरकार की साख को कम करने वाली तीन प्रमुख रेटिंग एजेंसियों की नवीनतम डाउनग्रेड है, स्टैंडर्ड एंड पूअर्स ने वर्ष 2011 में संघीय ऋण को डाउनग्रेड किया था और फिच रेटिंग्स ने वर्ष 2023 में इसका अनुसरण किया।
  • रेटिंग में गिरावट से संकेत मिलता है कि इंस्ट्रूमेंट के डिफॉल्ट होने का जोखिम पहले की तुलना में अधिक है।

क्रेडिट रेटिंग के बारे में

  • क्रेडिट रेटिंग, मूडीज, स्टैंडर्ड एंड पूअर्स या फिच जैसी एजेंसियों द्वारा जारी की गई उधारकर्ता की ऋण चुकाने की क्षमता का मूल्यांकन है।
  • यह ऋण-योग्यता को दर्शाता है और निवेशकों को डिफाल्ट जोखिम का आकलन करने में मदद करता है।
    • उदाहरण: उच्च रेटिंग (जैसे, AAA) कम जोखिम को दर्शाता है और कम रेटिंग (जैसे, BB या उससे कम) उच्च जोखिम को दर्शाता है।
  • क्रेडिट रेटिंग किसी ऋण साधन (Debt Instrument) को खरीदने, रखने या बेचने की सिफारिश नहीं है।
  • क्रेडिट रेटिंग के प्रकार
    • सॉवरेन रेटिंग: किसी देश की अपने कर्ज को चुकाने की क्षमता का आकलन करती है, जो उसकी उधार लेने की लागत और निवेशकों के विश्वास को प्रभावित करती है।
    • कॉर्पोरेट रेटिंग: फंड जुटाने के लिए किसी कंपनी की साख और वित्तीय स्थिरता का मूल्यांकन करती है।
    • बॉन्ड रेटिंग: किसी विशिष्ट ऋण साधन या बॉन्ड पर डिफॉल्ट के जोखिम का मापन करती है।

क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों (Credit Rating Agencies) का मूल्यांकन

  • गहन अध्ययन: रेटिंग्स कंपनी के बुनियादी तत्वों की शक्तियों और कमजोरियों के व्यापक मूल्यांकन पर आधारित होती हैं, जिसमें वित्तीय स्थिति एवं उद्योग के साथ-साथ मैक्रो-इकोनॉमिक, विनियामक और राजनीतिक वातावरण का गहन अध्ययन शामिल होता है।
  • अलग-अलग मानदंड: प्रत्येक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी के पास रेटिंग प्रदान करने के लिए अपने स्वयं के मानदंड और प्रत्येक घटक के लिए अलग-अलग आयाम हो सकते हैं।
  • कारक: क्रेडिट रेटिंग के लिए जिन सामान्य कारकों को ध्यान में रखा जा सकता है, उनमें जारीकर्ता कंपनी की परिचालन दक्षता, वित्तीय स्थिति, प्रबंधन की क्षमता और प्रभावशीलता, ऋण सेवा का पिछला रिकॉर्ड आदि शामिल हैं।

मूडी द्वारा अमेरिकी क्रेडिट रेटिंग में गिरावट के कारण

  • उच्च ऋण-GDP (High debt-to-GDP) अनुपात: मूडीज ने बढ़ते ऋण-GDP अनुपात को मुख्य कारणों में से एक बताया।
  • दीर्घकालिक राजकोषीय घाटा: अमेरिका में लगातार राजकोषीय घाटा बना रहा। वर्ष 2008 के बाद के दौर में आपातकालीन खर्च का एक नया मानदंड स्थापित हो गया — पहले बैंकों को बचाने के लिए, फिर आर्थिक पुनरुद्धार को प्रोत्साहित करने के लिए, और अंततः महामारी की अराजकता के दौरान घरों को सहारा देने के लिए।
  • राजनीतिक ध्रुवीकरण: पक्षपातपूर्ण गतिरोध के कारण राजकोषीय अनुशासन को लागू करने में असमर्थता, जिसके कारण बार-बार सरकारी बंद होने की धमकियाँ मिलती हैं।
  • विश्वास की कमी: डाउनग्रेड US संस्थानों और दीर्घकालिक राजकोषीय स्थिरता में कमजोर होते विश्वास को दर्शाता है।

अमेरिकी क्रेडिट रेटिंग में हालिया गिरावट के वैश्विक निहितार्थ

  • डॉलर का प्रभुत्व जोखिम में: केंद्रीय बैंक अपने भंडार को सोना, यूरो और डिजिटल मुद्राओं में विविधता प्रदान कर रहे हैं।
  • उभरते बाजार संबंधी सुभेद्यता: उच्च अमेरिकी ट्रेजरी प्रतिफल, भारत जैसे देशों के लिए उधारी की लागत बढ़ा सकते हैं।
  • ऐतिहासिक उदाहरण: वर्ष 2013 के ‘टेपर टैंट्रम’ ने यह स्पष्ट किया कि अमेरिकी मौद्रिक नीति में त्वरित परिवर्तन किस प्रकार उभरती हुई बाजार अर्थव्यवस्थाओं (EMEs) से पूंजी के तीव्र बहिर्वाह को उत्प्रेरित कर सकते हैं।
  • एक संकेतक के रूप में कार्य करता है: भारी ऋण बोझ और कम वृद्धि के साथ उधार लेने की स्थिति वाले उभरते बाजार, जैसे ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका, पहले से ही बढ़ती उधारी लागतों का सामना कर रहे हैं।
    • यहां तक ​​कि जर्मनी (ऋण-जीडीपी अनुपात 62.5%) और कनाडा (110.8%) सहित विकसित अर्थव्यवस्थाएँ भी अब अधिक बारीकी से जाँच के दायरे में कार्य कर रही हैं।

भारत की राजकोषीय चुनौतियाँ

  • उच्च ऋण स्तर: भारत का सामान्य सरकारी ऋण वर्ष 2025 में सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 80% तक पहुँचने का अनुमान है (IMF के अनुमानों के अनुसार), जो उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए अनुशंसित सीमा से काफी अधिक है।
    • यह उच्च ऋण स्तर सरकार के राजकोषीय क्षमता को सीमित करता है, जिससे आर्थिक परिवर्तन का समाधान करना या राजकोषीय घाटे को बढ़ाए बिना बुनियादी ढाँचे और सामाजिक विकास जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में निवेश करना मुश्किल हो जाता है।
  • लोकलुभावन खर्च: चुनाव-पूर्व मुफ्त उपहार (ऋण माफी, बिजली सब्सिडी) उत्पादकता बढ़ाए बिना बजट पर दबाव डालते हैं।
  • संरचनात्मक कमियाँ:
    • कम कर-GDP अनुपात (Low Tax-to-GDP Ratio) (11% पर): GDP के प्रतिशत के रूप में भारत का कर राजस्व OECD औसत (34%) से बहुत कम है, जिससे सरकार की विकास कार्यक्रमों को निधि देने की क्षमता सीमित हो जाती है।
      • इसका कारण संकीर्ण कर आधार, कर चोरी और कर प्रशासन में अक्षमता है।
    • दिवालियापन मामलों में न्यायिक विलंब: दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC), एक सकारात्मक सुधार है, लेकिन लंबे समय से चल रहे कानूनी विवादों के कारण इसमें बाधा आ रही है, जिससे ऋणों के समाधान में देरी हो रही है और निजी निवेश हतोत्साहित हो रहा है।
    • महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में कम निवेश: बुनियादी ढाँचे (जैसे, राजमार्ग, रेलवे) में प्रगति के बावजूद, भारत अभी भी लाजिस्टिक दक्षता, शिक्षा परिणामों और स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों में पिछड़ा हुआ है।

भारत में उच्च राजकोषीय घाटे के निहितार्थ

  • निजी निवेश को बाहर करना: उच्च राजकोषीय घाटे से सरकारी उधारी बढ़ती है, निजी क्षेत्र के लिए पूंजी कम होती है, ब्याज दरें बढ़ती हैं और निवेश कम होता है। (GDP के लिए निजी निवेश लगभग 20-22% है)।
  • विकृत ऋण प्रवाह: बैंक सरकार को ऋण देकर वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) मानदंडों को पूरा करते हैं, MSME और स्टार्टअप को ऋण सीमित करते हैं और इसलिए, उद्यमिता में कमी आती हैं।
  • विकास व्यय में कमी: केंद्रीय व्यय का 25% से अधिक हिस्सा ब्याज भुगतान में चला जाता है, जिससे बुनियादी ढाँचे, स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए कम धन प्राप्त होता है। इससे दीर्घकालिक विकास कमजोर होता है।

भारत के लिए आगे की राह

  • राजकोषीय अनुशासन आवश्यक है: भारत को अल्पकालिक लोकलुभावन उपायों से बचना चाहिए जो दीर्घकालिक राजकोषीय स्थिरता से समझौता करते हैं। 
    • इसके स्थान पर, स्थायी विकास नीतियों पर ध्यान होना चाहिए, जैसे-सब्सिडी को तर्कसंगत बनाना, कर अनुपालन में सुधार करना और राजस्व व्यय पर पूंजीगत व्यय को प्राथमिकता देना। 
  • रणनीतिक विविधीकरण: भारत को निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता विकसित करने और पारंपरिक बाजारों से परे व्यापार भागीदारों में विविधता लाने और क्षेत्रीय FTA को मजबूत करने के लिए लक्षित नीतियों की आवश्यकता है। ये वैश्विक परिवर्तनों के प्रति इसकी संवेदनशीलता को कम करेंगे।

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