म्याँमार में गृहयुद्ध के कारण भारत में विशेष रूप से मणिपुर में मोरेह सीमा पर शरणार्थियों की संख्या बढ़ गई है।
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन (United Nations Refugee Convention), 1951
बहुपक्षीय संधि: इसमें शरणार्थी के रूप में कौन पात्र है और शरण देने वाले देशों के शरण देने संबंधी अधिकार एवं जिम्मेदारियाँ निर्धारित की गई हैं।
बहिष्करण: युद्ध अपराधी और कुछ अन्य शरणार्थी के रूप में योग्य नहीं हैं।
संरक्षण: नृजाति, धर्म, राष्ट्रीयता, सामाजिक समूह या राजनीतिक राय के कारण उत्पीड़न से भागने वाले व्यक्तियों को अधिकार प्रदान करता है।
मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR), 1948 पर आधारित: यहअनुच्छेद-14 पर आधारित है, जो शरण लेने के अधिकार को मान्यता देता है।
1967 प्रोटोकॉल: शरणार्थी की परिभाषा का विस्तार करके इसमें केवल यूरोप ही नहीं, बल्कि सभी देशों के व्यक्तियों को शामिल किया गया है।
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (United Nations High Commissioner for Refugees-UNHCR)
उद्देश्य: शरणार्थियों, विस्थापित समुदायों और राज्यविहीन व्यक्तियों की सुरक्षा करना।
वर्ष 1950 में स्थापित: मूल रूप से द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विस्थापित यूरोपीय लोगों की सहायता के लिए।
मुख्यालय: जिनेवा, स्विट्जरलैंड।
मिशन: जीवन बचाना, सुरक्षा प्रदान करना और शरणार्थियों के लिए बेहतर भविष्य की दिशा में कार्य करना।
मणिपुर में शरणार्थियों का आगमन
27 जनवरी, 2025 से अब तक लगभग 260 म्याँमार से आए शरणार्थियों ने भारत में शरण ली है।
म्याँमार की सेना द्वारा किए गए हवाई हमलों के कारण 9 जनवरी, 2025 से शरणार्थियों का भीड़ के रूप में आगमन प्रारंभ हो गया था।
प्रारंभ में, लगभग 100 लोगों ने अस्थायी शरण ली, लेकिन बमबारी कम होने के बाद वे वापस लौट आए।
27 जनवरी से 29 जनवरी के बीच, म्याँमार में तीव्र संघर्ष के परिणामस्वरूप 261 अतिरिक्त शरणार्थी मणिपुर पहुँचे, जो अभी तक वापस नहीं लौटे हैं।
शरणार्थी की कानूनी परिभाषा
वर्ष 1951 के जिनेवा कन्वेंशन के अनुसार, शरणार्थी वह व्यक्ति है जो नस्ल, धर्म, राष्ट्रीयता, किसी विशेष सामाजिक समूह की सदस्यता या राजनीतिक राय के आधार पर उत्पीड़न के भय के कारण अपने राष्ट्रीयता वाले देश से बाहर है और ऐसे भय के कारण वापस लौटने में असमर्थ अथवा अनिच्छुक है।
भारत में शरणार्थियों के लिए कानूनी प्रावधानों का अभाव
राष्ट्रीय, क्षेत्रीय या अंतरराष्ट्रीय ढाँचे का अभाव: भारत और अधिकांश दक्षिण एशियाई देशों में औपचारिक शरणार्थी नीति का अभाव है और सरकार ने कभी भी आधिकारिक तौर पर इस अनुपस्थिति को स्पष्ट नहीं किया है।
शरणार्थियों के प्रबंधन को संरचित कानूनी ढाँचों के बजाय तदर्थ उपायों के माध्यम से प्रबंधित किया जाता है।
कानूनी प्रावधान के अभाव का कारण
वर्ष 1951 के शरणार्थी सम्मेलन के प्रति संदेह: भारत ने अपने आतंरिक मामलों में अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप के संदेह से वर्ष 1951 के सम्मेलन या वर्ष 1967 के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं करने का निर्णय किया।
शरणार्थी संकट का ऐतिहासिक अनुभव: वर्ष1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के कारण लाखों शरणार्थी भारत आए, जिससे संसाधनों पर दबाव पड़ा। भारत को अंतरराष्ट्रीय सहायता की उम्मीद थी, लेकिन उसे बहुत कम सहायता मिली, जिससे वैश्विक शरणार्थी तंत्र पर निर्भर रहने की उसकी अनिच्छा को बल मिला।
भू-राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: छिद्रित सीमाएँ, जनसांख्यिकीय बदलाव, राजनीतिक अस्थिरता एवं आंतरिक सुरक्षा खतरे भारत को कानूनी रूप से बाध्यकारी शरणार्थी प्रतिबद्धताओं के प्रति सतर्क करते हैं।
चयनात्मक शरणार्थी नीति और राजनीतिक प्रभाव: भारत सार्वभौमिक कानूनी सिद्धांतों के बजाय कूटनीतिक और राजनीतिक विचारों के आधार पर शरण देता है। सरकार चुनिंदा रूप से सुरक्षा प्रदान करती है, जो अक्सर धर्म, राष्ट्रीयता और भू-राजनीतिक हितों से प्रभावित होती है।
भारत-म्याँमार सीमा अवलोकन
कुल लंबाई: 1,643 किमी.।
निम्नलिखित भारतीय राज्यों के साथ सीमा साझा करता है:
अरुणाचल प्रदेश: म्याँमार के साथ 520 किमी. सीमा।
नागालैंड: म्याँमार के साथ 215 किमी. सीमा।
मणिपुर: म्याँमार के साथ 398 किमी. सीमा।
मिजोरम: म्याँमार के साथ 510 किमी. सीमा।
मणिपुर की सीमाएँ
भारतीय राज्य
नागालैंड: मणिपुर के उत्तर में।
असम: मणिपुर के पश्चिम में।
मिजोरम: मणिपुर के दक्षिण-पश्चिम में।
अंतरराष्ट्रीय सीमाएँ
म्याँमार: मणिपुर के दक्षिण और पूर्व में।
भारत-म्याँमार सीमा पर शरणार्थी संकट के लिए जिम्मेदार कारक
म्याँमार में गृहयुद्ध और सैन्य अभियान: म्याँमार के सैन्य जुंटा और प्रतिरोधक समूहों के बीच चल रहे संघर्ष, जिसमें लगातार हवाई हमले शामिल हैं, नागरिकों को विस्थापित होने के लिए मजबूर करते हैं।
नृजातीय उत्पीड़न एवं हिंसा: कुकी- जैसे नृजातीय अल्पसंख्यकों को लक्षित हमलों का सामना करना पड़ता है, जिससे विस्थापन की दर बढ़ रही है।
राजनीतिक अस्थिरता और विद्रोह: राजनीतिकतख्तापलट के बाद की उथल-पुथल ने विद्रोह को बढ़ावा दिया है, जिससे सीमा पर तनाव और बढ़ गया है।
भारत में अस्पष्ट शरणार्थी नीति: औपचारिक ढाँचे की अनुपस्थिति शरणार्थियों को प्रबंधित करना और एकीकृत करना जटिल बनाती है।
सीमा संघर्ष और मानवीय संकट: मणिपुर के पास सशस्त्र संघर्ष और भोजन, आश्रय तथा स्वास्थ्य सेवा तक अपर्याप्त पहुँच संकट को और बढ़ा देती है।
आगे की राह
मानवीय और सुरक्षा उपाय: अस्थायी आश्रय स्थल स्थापित करना, चिकित्सा सहायता प्रदान करना और मानवीय सीमा सुरक्षा सुनिश्चित करना।
राजनयिक एवं नीतिगत ढाँचा: म्याँमार, आसियान और संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के साथ कूटनीतिक प्रयासों को मजबूत करना; एक स्पष्ट शरणार्थी नीति स्थापित करना।
अंतरराष्ट्रीय एवं सामुदायिक सहयोग: शरणार्थियों की संख्या को प्रबंधित करने और नृजातीय तनाव को रोकने के लिए UNHCR और स्थानीय समुदायों के साथ कार्य करना।
दीर्घकालिक समाधान: जब परिस्थितियाँ सुधरें तो आर्थिक एकीकरण या सुरक्षित प्रत्यावर्तन के लिए पुनर्वास योजनाओं को बढ़ावा देना।
म्याँमार में संघर्ष समाधान: भारत को क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए शांति वार्ता को सुगम बनाना चाहिए और लोकतांत्रिक पुनर्स्थापन का समर्थन करना चाहिए।
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