हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय परिसर का औपचारिक उद्घाटन किया गया।
नालंदा विश्वविद्यालय
राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान (Institute of National Importance- INI): नालंदा विश्वविद्यालय, बिहार के नालंदा जिले के राजगीर में स्थित एक केंद्रीय अनुसंधान विश्वविद्यालय है, जिसे राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान (INI) और उत्कृष्टता के रूप में नामित किया गया है।
विदेश मंत्रालय की प्रमुख परियोजना: भारत सरकार के विदेश मंत्रालय की प्रमुख परियोजना के रूप में, यह प्रसिद्ध प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के उत्तराधिकारी के रूप में अपना महत्त्व रखता है, तथा शिक्षा के इस ऐतिहासिक केंद्र की विरासत को बनाए रखता है।
सहयोगी देश: भारत के अलावा 17 देशों ने विश्वविद्यालय की स्थापना में सहायता की है- ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, भूटान, ब्रुनेई दारुस्सलाम, कंबोडिया, चीन, इंडोनेशिया, लाओस, मॉरीशस, म्याँमार, न्यूजीलैंड, पुर्तगाल, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, श्रीलंका, थाईलैंड और वियतनाम।
नालंदा विश्वविद्यालय के पुनरुद्धार की पृष्ठभूमि
वर्ष 2006: राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ने आधिकारिक तौर पर नालंदा को पुनर्जीवित करने का प्रस्ताव रखा।
बिहार विधानसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने चुनिंदा एशियाई देशों के साथ साझेदारी में बोधगया नालंदा इंडो-एशियन इंस्टिट्यूट ऑफ लर्निंग की स्थापना का प्रस्ताव रखा।
वर्ष 2007: नालंदा की पुनर्स्थापना का प्रस्ताव फिलीपींस के मंडावे में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में अनुमोदित किया गया।
वर्ष 2007: बिहार विधानसभा ने राजगीर में प्राचीन स्थल के निकट एक नया अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय बनाने के लिए नालंदा विश्वविद्यालय विधेयक पारित किया।
वर्ष 2009: थाईलैंड के हुआ हिन (Hua Hin) में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में इस बात का समर्थन दोहराया गया।
वर्ष 2010: संसद ने इस अधिनियम को नालंदा विश्वविद्यालय विधेयक से प्रतिस्थापित कर दिया, जिसके तहत विश्वविद्यालय को ‘राष्ट्रीय महत्त्व’ का विश्वविद्यालय घोषित किया गया तथा प्रशासन के नियमों की रूपरेखा तैयार की गई।
वर्ष 2013: बी. वी. दोषी के वास्तुशिल्प ‘कंसल्टेंट्स’ द्वारा प्रस्तावित परिसर के लिए मास्टरप्लान का चयन एक अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता के बाद किया गया था।
नए नालंदा विश्वविद्यालय की शुरुआत
प्रथम बैच: नालंदा विश्वविद्यालय ने 2014 में पंद्रह छात्रों के अपने पहले बैच को प्रवेश दिया।
कक्षाएँ: राजगीर कन्वेंशन सेंटर में कक्षाएँ आयोजित की गईं, तथा बिहार सरकार द्वारा संचालित होटल तथागत को छात्रों के लिए अस्थायी छात्रावास परिसर के रूप में स्थापित किया गया।
विश्वविद्यालय के पहले चांसलर: नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री आमर्त्य सेन, जो वर्ष 2007 से इस परियोजना से जुड़े थे, विश्वविद्यालय के पहले चांसलर बने।
प्रथम विजिटर: तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी प्रथम विजिटर बने।
नए नालंदा विश्वविद्यालय परिसर की विशेषताएँ
परिसर का डिजाइन: परिसर का डिजाइन प्राचीन नालंदा की वास्तुकला और भौगोलिक स्थिति को प्रतिबिंबित करने का लक्ष्य रखता है।
प्रशासनिक ब्लॉक में नालंदा खंडहरों से प्राप्त ईंटों की वास्तुकला और उन्नत सीढ़ियों का अनुकरण किया गया है।
नालंदा महावीर (Nalanda Mahavira)
संस्कृत/पाली में ‘महावीर’ का अर्थ है “महान मठ”।
नालंदा महावीर पाँचवीं से तेरहवीं शताब्दी तक सक्रिय रहा।
स्थापना: इसकी स्थापना 5वीं शताब्दी के प्रारंभ में बिहार में गुप्त वंश के कुमारगुप्त द्वारा की गई थी तथा यह 12वीं शताब्दी के अंत तक 800 वर्षों तक फला-फूला।
लोकप्रियता में वृद्धि: हर्षवर्धन और पाल राजाओं के काल के दौरान इसकी लोकप्रियता में वृद्धि हुई।
ह्वेन त्सांग का विवरण (7वीं शताब्दी के चीनी यात्री)
प्राचीन नालंदा का सबसे विस्तृत विवरण प्रदान किया गया।
मठ में लगभग 10,000 छात्र, 2,000 शिक्षक और कर्मचारियों का एक बड़ा दल था। हालाँकि, कई विद्वान पुरातात्त्विक साक्ष्यों के आधार पर ह्वेन त्सांग के आँकड़ों से असहमत हैं।
नालंदा निस्संदेह एक महान बौद्ध विहार था
वृद्ध एवं संत मठाधीश शीलभद्र के नेतृत्व में नालंदा में वेद, हिंदू दर्शन, तर्कशास्त्र, व्याकरण और चिकित्सा की भी शिक्षा दी जाती थी।
भारतीय गणित के अग्रदूत और शून्य के आविष्कारक आर्यभट्ट छठी शताब्दी ई. के दौरान नालंदा के सम्मानित शिक्षकों में से एक थे।
शामिल छात्रों की संख्या: बौद्ध संप्रदाय के सदस्य, अन्य धर्मों के अभ्यर्थी जिन्होंने कठोर मौखिक परीक्षा उत्तीर्ण की थी।
इतिहासकार ए. एल. बाशम ने अपनी क्लासिक पुस्तक ‘द वंडर दैट वाज इंडिया’ (1954) में इसका विस्तृत विवरण दिया है।
मठवासी शिक्षण संस्थान: नालंदा को दुनिया के पहले आवासीय विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता था। यह एक मठवासी संस्थान था, क्योंकि यह मुख्य रूप से एक ऐसा स्थान था, जहाँ भिक्षु और भिक्षुणियाँ रहते थे और अध्ययन करते थे।
यह बौद्ध धर्म के सभी प्रमुख दर्शनों की शिक्षा देता था।
इसमें चीन, कोरिया, जापान, तिब्बत, मंगोलिया, श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व एशिया जैसे दूर-दराज के क्षेत्रों से छात्र आया करते थे।
नष्ट: 1190 के दशक में, यह संस्था तुर्क-अफगान सैन्य जनरल बख्तियार खिलजी के आक्रमण का शिकार हो गई। यह विनाशकारी आग तीन महीने तक भड़कती रही, जिसने बौद्ध ज्ञान के सबसे मूल्यवान संग्रह को नष्ट कर दिया।
पुनः खोज: इस विश्वविद्यालय की पुनः खोज वर्ष 1812 में स्कॉटिश सर्वेक्षक फ्राँसिस बुकानन-हैमिल्टन द्वारा की गई तथा बाद में वर्ष 1861 में सर अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा इसे प्राचीन विश्वविद्यालय के रूप में पहचाना गया।
यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल (UNESCO World Heritage Site): यह एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल भी है।
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