राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) द्वारा आयोजित तीसरी राष्ट्रीय लोक अदालत के दौरान एक करोड़ से अधिक मामलों का निपटारा किया गया।
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (National Legal Services Authority-NALSA)
भूमिका: समाज के वंचित वर्गों को निःशुल्क कानूनी सेवाएँ प्रदान करना और विवादों के सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए लोक अदालतों का आयोजन करना।
उद्देश्य: मामलों का शीघ्र निपटान और न्यायपालिका पर बोझ कम करना।
विभिन्न स्तरों पर विधिक सेवा संस्थान
राष्ट्रीय स्तर: विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत गठित।
मुख्य संरक्षक: भारत के मुख्य न्यायाधीश
कार्यकारी अध्यक्ष: सर्वोच्च न्यायालय का सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायाधीश, जिसे मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से राष्ट्रपति द्वारा नामित किया जाएगा।
राज्य स्तर: राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण।
मुख्य संरक्षक: राज्य उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश
जिला स्तर: जिला विधिक सेवा प्राधिकरण।
पदेन अध्यक्ष: जिला न्यायाधीश
तालुका/उप-विभाग स्तर: तालुका/उप-विभागीय विधिक सेवा समिति।
अध्यक्षता: वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश।
उच्च न्यायालय: उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति
उच्चतम न्यायालय: उच्चतम न्यायालय कानूनी सेवा समिति
NALSA और संवैधानिक आधार
अनुच्छेद-22(1): गिरफ्तारी के मामले में अपनी पसंद के कानूनी व्यवसायी से परामर्श करने और सुरक्षा का अधिकार।
अनुच्छेद-39A (भाग IV-DPSP): सभी के लिए न्याय और समाज के गरीब तथा कमजोर वर्गों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करता है। (42वें CAA 1976 द्वारा जोड़ा गया)
अनुच्छेद-14: राज्य के लिए कानून के समक्ष समानता सुनिश्चित करना अनिवार्य बनाता है।
अनुच्छेद-21: निःशुल्क कानूनी सहायता या निःशुल्क कानूनी सेवा का अधिकार मौलिक अधिकार है।
निःशुल्क कानूनी सेवाएँ पाने के लिए कौन पात्र है?
महिलाएँ और बच्चे
SC/ST के सदस्य
औद्योगिक कामगार
सामूहिक आपदा, हिंसा, बाढ़, सूखा, भूकंप, औद्योगिक आपदा के शिकार।
दिव्यांग व्यक्ति
हिरासत में लिए गए व्यक्ति
वे व्यक्ति जिनकी वार्षिक आय संबंधित राज्य सरकार द्वारा निर्धारित आय से कम है, यदि मामला सर्वोच्च न्यायालय के अलावा किसी अन्य न्यायालय में है।
5 लाख रुपये से कम: यदि मामला सर्वोच्च न्यायालय में है।
मानव तस्करी या बेगार के शिकार व्यक्ति।
लोक अदालत
यह वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्रों में से एक है।
एक ऐसा मंच जहाँ न्यायालय में या मुकदमे-पूर्व चरण में लंबित विवादों/मामलों का सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटारा/समझौता किया जाता है।
वैधानिक स्थिति: विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के अंतर्गत।
बाध्यकारी एवं अंतिम: लोक अदालत द्वारा दिया गया निर्णय सिविल न्यायालय का निर्णय माना जाता है तथा यह अंतिम होता है एवं सभी पक्षों पर बाध्यकारी होता है। इसके विरुद्ध किसी भी न्यायालय में अपील नहीं की जा सकती।
लोक अदालतें जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित की जा सकती हैं।
राज्य/जिला विधिक सेवा प्राधिकरण या सर्वोच्च न्यायालय/उच्च न्यायालय/तालुका विधिक सेवा समिति ऐसे अंतरालों और स्थानों पर तथा ऐसे अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने के लिए एवं ऐसे क्षेत्रों में लोक अदालत का आयोजन कर सकती है, जैसा वह उचित समझे।
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