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राष्ट्रीय रक्त आधान विधेयक, 2025

Lokesh Pal December 17, 2025 04:01 8 0

संदर्भ

हाल ही में राष्ट्रीय रक्त आधान विधेयक, 2025 संसद में प्रस्तुत किया गया, जिसका थैलेसीमिया रोगियों और उनके पक्षधर समूहों ने स्वागत किया है।

रक्त आधान के बारे में

  • रक्त आधान एक चिकित्सीय प्रक्रिया है, जिसमें संपूर्ण रक्त या उसके विशिष्ट घटक (जैसे- लाल रक्त कोशिकाएँ, प्लाज्मा, प्लेटलेट्स अथवा थक्के बनाने वाले कारक) दाता से प्राप्तकर्ता की रक्त परिसंचरण प्रणाली में शिरा के माध्यम से प्रविष्ट कराए जाते हैं।
  • रक्त आधान से पूर्व रक्त उत्पादों की गुणवत्ता, अनुकूलता तथा प्राप्तकर्ता की सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु कई चरण अपनाए जाते हैं।

राष्ट्रीय रक्त आधान विधेयक की आवश्यकता

  • विखंडित प्रणाली: रक्त आधान सेवाएँ, सार्वजनिक और निजी रक्त बैंकों के मिश्रण के माध्यम से असमान दिशा-निर्देशों के अंतर्गत संचालित होती हैं।
  • असमान प्रदर्शन: कुछ राज्यों में कुशल नेटवर्क और ट्रेसबिलिटी प्रणाली है, जबकि अन्य राज्यों में रक्त की कमी, समाप्त हो चुका रक्त भंडार और कमजोर निगरानी देखी जाती है।
  • कमजोर कानूनी आधार: स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय और राज्य रक्त आधान परिषदें मुख्यतः नीतियों और दिशा-निर्देशों के आधार पर कार्य करती हैं, न कि बाध्यकारी कानून के अंतर्गत।
  • उच्च मानवीय लागत: थैलेसीमिया रोगियों, आपातकालीन मामलों तथा अपर्याप्त रूप से जाँचे गए रक्त के प्राप्तकर्ताओं को कम की जा सकने वाली कमी और संक्रमण का सामना करना पड़ता है।

विधेयक के प्रमुख प्रावधान

  • राष्ट्रीय रक्त आधान प्राधिकरण: विधेयक में रक्त आधान सेवाओं की केंद्रीकृत निगरानी और शासन के लिए एक राष्ट्रीय रक्त आधान प्राधिकरण की स्थापना का प्रस्ताव है।
    • यह प्राधिकरण राज्यों के बीच असमानता को कम करने और तकनीकी पर्यवेक्षण प्रदान करने हेतु बनाया जाएगा।
  • सेवाओं का मानकीकरण: इसका उद्देश्य रक्त और रक्त घटकों के संग्रह, परीक्षण, प्रसंस्करण, भंडारण, वितरण, जारी करने और आधान के लिए समान राष्ट्रीय मानक निर्धारित करना है।
  • नियामक पर्यवेक्षण: इस कानून के तहत सभी रक्त केंद्रों का अनिवार्य पंजीकरण कराना आवश्यक है ताकि अनियमित संचालकों और अवैध या असुरक्षित रक्त संग्रह केंद्रों को समाप्त किया जा सके।
  • आपूर्ति में वृद्धि: यह विधेयक सुरक्षित, पर्याप्त और नैतिक रक्त आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए स्वैच्छिक और बिना पारिश्रमिक के रक्तदान को बढ़ावा देता है।
  • प्रवर्तन तंत्र: इसमें रक्त आधान सेवाओं में असुरक्षित, अनैतिक या नियमों का पालन न करने वाली प्रथाओं को रोकने के लिए सख्त दंडात्मक प्रावधान प्रस्तुत किए गए हैं।

विधेयक के लाभ

  • कानूनी रूप से बाध्यकारी रोगी सुरक्षा: यह विधेयक परीक्षण और गुणवत्ता मानकों को वैधानिक दायित्व के रूप में प्रस्तुत करता है और सुरक्षा मानदंडों के उल्लंघन होने पर कानूनी उपाय प्रदान करता है।
  • समान राष्ट्रीय मानक: इस विधेयक का उद्देश्य राज्यों में एकसमान नियम सुनिश्चित करना है, जिससे रेफरल और रक्त इकाइयों के अंतर-राज्यीय हस्तांतरण को प्रभावित करने वाले नियामकीय अंतरों को कम किया जा सके।

  • आपातकालीन आधानों की सुरक्षा: यह विधेयक रक्त आधान से प्रसारित होने वाले संक्रमणों के जोखिम को कम करने के लिए सुरक्षा प्रोटोकॉल को मजबूत करता है।
  • संस्थानों के लिए स्पष्टता और उत्तरदायित्व: अस्पतालों और रक्त बैंकों के लिए पंजीकरण, रिपोर्टिंग, लेखा-परीक्षण और अनुपालन की स्पष्ट आवश्यकताएँ निर्धारित करता है।

विधेयक के क्रियान्वयन में चुनौतियाँ

  • केंद्र–राज्य समन्वय: स्वास्थ्य राज्य का विषय होने के कारण समान राष्ट्रीय मानकों को लागू करने हेतु अनुकूलन और मजबूत केंद्र–राज्य सहयोग की आवश्यकता होगी।
  • निरीक्षण और प्रवर्तन क्षमता: प्रभावी कार्यान्वयन राष्ट्रीय प्राधिकरण के लिए पर्याप्त कर्मचारियों, प्रयोगशालाओं, वित्त पोषण, प्रशिक्षित कर्मियों और वास्तविक समय डेटा प्रणालियों पर निर्भर करेगा।
  • छोटे रक्त बैंकों पर वित्तीय दबाव: बुनियादी ढाँचे को उन्नत करने, कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने और कोल्ड-चेन लॉजिस्टिक्स को बनाए रखने की लागत छोटे रक्त बैंकों पर दबाव डाल सकती है और अपर्याप्त वित्तीय सहायता की स्थिति में कम सुविधा वाले क्षेत्रों में इनके बंद होने का खतरा उत्पन्न कर सकती है।
  • डिजिटल निगरानी: निगरानी संबंधी प्रावधानों की सफलता सार्वजनिक और निजी रक्त बैंकों में परस्पर संचालित डिजिटल प्रणालियों पर निर्भर करेगी, जिससे रक्त की आपूर्ति या उपलब्धता में कोई बाधा न आए।

थैलेसीमिया के बारे में

  • रोग की प्रकृति: थैलेसीमिया एक वंशानुगत रक्त विकार है, जो हीमोग्लोबिन के कम या शून्य उत्पादन के कारण होता है।
  • रक्त और ऑक्सीजन परिवहन पर प्रभाव: दोषपूर्ण हीमोग्लोबिन के कारण लाल रक्त कोशिकाएँ संवेदनशील और अल्पायु होती हैं, जिससे दीर्घकालिक एनीमिया और ऊतकों तक ऑक्सीजन की आपूर्ति में कमी हो जाती है।
  • प्रकार: थैलेसीमिया को मुख्यतः अल्फा और बीटा प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है, जिनमें थैलेसीमिया मेजर’ इसकी सर्वाधिक गंभीर अभिव्यक्ति है। इस अवस्था में जीवनपर्यंत चिकित्सकीय प्रबंधन और नियमित देखभाल की आवश्यकता होती है।।
  • लक्षण: थकान, पीलापन, हड्डियों की समस्याएँ,  प्लीहा का बढ़ना, पीलिया, फेफड़ों में उच्च रक्तचाप और गहरे रंग का मूत्र शामिल है।
  • उपचार की आवश्यकता: गंभीर मामलों में रोगियों को जीवनरक्षा हेतु प्रत्येक 2–4 सप्ताह में नियमित रक्त आधान की आवश्यकता होती है।
  • थैलेसीमिया की रोकथाम और प्रबंधन हेतु सरकारी कदम
    • थैलेसीमिया बाल सेवा योजना  (TBSY): केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा कोल इंडिया लिमिटेड के सहयोग से लागू, जिसके अंतर्गत देश के 17 सूचीबद्ध अस्पतालों में अस्थि-मज्जा प्रत्यारोपण हेतु ₹10 लाख तक की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
    • जाँच और वाहक पहचान: 26 मार्च, 2025 तक कुल 15,87,903 व्यक्तियों की जाँच की गई तथा 50,462 व्यक्तियों को वाहक के रूप में पहचाना गया है।

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