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राष्ट्रीय सहकारिता नीति-2025

Lokesh Pal July 26, 2025 04:46 40 0

संदर्भ

हाल ही में केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने समावेशी ग्रामीण विकास के लिए एक प्रमुख सुधार के रूप में राष्ट्रीय सहकारिता नीति-2025 का अनावरण किया।

संबंधित तथ्य

  • यह घोषणा संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष (2025) के अनुरूप है, जो समावेशी और सुदृढ़ विकास प्राप्त करने में सहकारी समितियों की वैश्विक मान्यता पर जोर देती है।
  • अंतरराष्ट्रीय सहकारिता दिवस प्रतिवर्ष जुलाई के प्रथम शनिवार को मनाया जाता है, वर्ष 2025 में यह 5 जुलाई को मनाया गया।
  • वर्ष 2025 की थीम:सहकारिता: एक बेहतर विश्व के लिए समावेशी एवं सतत् समाधान प्रस्तुत करना, जो सतत् विकास और सामाजिक समानता में उनकी भूमिका पर प्रकाश डालता है।
  • भारत सरकार ने वर्ष 2002 में पहली सहकारिता नीति प्रस्तुत की थी।

राष्ट्रीय सहकारिता नीति-2025 के बारे में

  • दूरदर्शी सुधार: यह नीति भारतीय प्रधानमंत्री केसहकार से समृद्धिके दृष्टिकोण को मूर्त रूप देती है, जो सहकारी प्रयासों के माध्यम से समृद्धि को बढ़ावा देती है।
  • समिति: पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु के नेतृत्व में RBI और नाबार्ड (NABARD) सहित हितधारकों वाली 40 सदस्यीय समिति बनाई गई है।
  • उद्देश्य: वर्ष 2047 तक भारत के विकसित राष्ट्र लक्ष्य को साकार करने हेतु एक समावेशी, प्रौद्योगिकी-संचालित और भविष्योन्मुखी सहकारी क्षेत्र का निर्माण करना।
  • राष्ट्रीय सहकारिता नीति-2025 के लक्ष्य
    • पैमाने और प्रभाव का विस्तार: सहकारी समितियों की संख्या में 30% की वृद्धि करना और वर्ष 2034 तक 50 करोड़ सक्रिय सदस्यों को एकीकृत करके उनके सकल घरेलू उत्पाद में योगदान को तीन गुना तक वृद्धि करना।
    • सार्वभौमिक कवरेज प्राप्त करना: जमीनी स्तर पर पहुँच सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक पंचायत में कम-से-कम एक प्राथमिक सहकारी इकाई स्थापित करना।
  • सहकारी क्षेत्र के लिए लक्ष्य प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय सहकारिता नीति-2025 के छह स्तंभों को भी शामिल किया गया।

राष्ट्रीय सहयोग नीति 2025 के प्रमुख प्रावधान

  • आदर्श सहकारी ग्राम: प्रत्येक तहसील में पाँच आदर्श सहकारी गाँवों की स्थापना, जिसकी शुरुआत गांधीनगर (नाबार्ड के नेतृत्व में) में एक पायलट परियोजना से होगी।
  • क्षेत्रीय विस्तार: पर्यटन, टैक्सी सेवाओं (सहकार टैक्सी), बीमा और हरित ऊर्जा क्षेत्रों में सहकारी समितियों को बढ़ावा देने से प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS) को आर्थिक रूप से सशक्त किया जा सकता है।
  • रोजगार और युवा संपर्क: इस नीति का उद्देश्य प्रत्येक ग्राम में एक सहकारी समिति की स्थापना करके और युवाओं की भागीदारी बढ़ाकर रोजगार सृजित करना है।
  • प्रौद्योगिकी एकीकरण: जवाबदेही में सुधार के लिए, विशेष रूप से PACS में, कंप्यूटरीकरण और तकनीक-संचालित पारदर्शी प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करना।
  • समावेशिता पर ध्यान देना: ग्राम समुदायों, ग्रामीण महिलाओं, दलितों और आदिवासियों को प्राथमिकता प्रदान करते हुए, सदस्य-केंद्रित विकास के माध्यम से समावेशी एवं समान विकास को सुनिश्चित करना।
  • प्रशिक्षण एवं शिक्षा: सहकारी पारिस्थितिकी तंत्र के लिए कुशल जनशक्ति तैयार करने हेतु त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय की स्थापना करना।
  • कार्यान्वयन रोडमैप: कुल 83 हस्तक्षेप बिंदुओं की पहचान की गई है, जिनमें से 58 पर कार्य पूर्ण हो चुका है; साथ ही प्रत्येक 10 वर्षों में कानूनी अद्यतन की रूपरेखा निर्धारित की गई है।
  • वैश्विक आकांक्षाएँ: भारतीय सहकारी उत्पादों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार और वैश्विक बाजार तक पहुँच के लिए राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड की स्थापना करना।

सहकारी समितियों के बारे में

  • सहकारी समितियाँ व्यक्तियों के स्वैच्छिक संघ हैं, जो अपनी समान आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए संघ का निर्माण करते हैं।
  • ये समितियाँ पारस्परिक सहायता और स्व-सहायता के सिद्धांत पर कार्य करती हैं और लाभ को अधिकतम करने की अपेक्षा अपने सदस्यों के कल्याण को प्राथमिकता देती हैं।
  • भारत में सहकारी समितियों की स्थिति
    • वर्तमान में आवास, डेयरी, कृषि, वित्त आदि विभिन्न क्षेत्रों में 8 लाख से अधिक सहकारी समितियाँ पंजीकृत हैं।
    • भारत सरकार द्वारा वर्ष 2021 मेंसहकार से समृद्धिके विजन को साकार करने के लिए सहकारिता मंत्रालय का गठन किया गया।
  • अधिकार क्षेत्र: संविधान के अंतर्गत सहकारिता राज्य सूची का विषय है।
    • सहकारी समितियाँविषय का उल्लेख संविधान की सातवीं अनुसूची के अंतर्गत राज्य सूची की प्रविष्टि 32 में किया गया है।

सहकारी बैंक

  • सहकारी बैंक वित्तीय संस्थाएँ होती हैं, जिनका स्वामित्व और प्रबंधन उनके सदस्यों द्वारा किया जाता है, जो उनके ग्राहक भी होते हैं।
  • वे वाणिज्यिक बैंकों की तरह लाभ को अधिकतम करने के बजाय, सामुदायिक कल्याण और सदस्यों के समर्थन पर ध्यान केंद्रित करते हुए, सहयोग के सिद्धांत पर कार्य करते हैं।

भारत में सहकारी समितियों के प्रकार

  • उपभोक्ता सहकारी समितियाँ: इन समितियों का उद्देश्य अपने सदस्यों को किफायती दामों पर गुणवत्तापूर्ण वस्तुएँ एवं सेवाएँ प्रदान करना है। उदाहरणार्थ: केंद्रीय भंडार और अपना बाजार।
  • उत्पादक सहकारी समितियाँ: ये समितियाँ छोटे उत्पादकों को संसाधन, तकनीक और बाजार तक पहुँच प्रदान करके उनका समर्थन करती हैं। उदाहरणार्थ: अमूल डेयरी सहकारी समिति और कर्नाटक हथकरघा बुनकर सहकारी समिति।
  • विपणन सहकारी समितियाँ: ये समितियाँ कृषि और अन्य उत्पादों के सामूहिक विपणन की सुविधा प्रदान करती हैं, जिससे उनके सदस्यों को बेहतर मूल्य सुनिश्चित होते हैं।
  • ऋण सहकारी समितियाँ: ये समितियाँ अपने सदस्यों, विशेष रूप से ग्रामीण और वंचित समुदायों के सदस्यों को ऋण तथा बचत जैसी वित्तीय सेवाएँ प्रदान करती हैं। उदाहरणार्थ: शहरी सहकारी बैंक और ग्रामीण सहकारी बैंक।
  • आवास सहकारी समितियाँ: ये समितियाँ संसाधनों को एकत्रित करके और सामूहिक रूप से आवास परियोजनाएँ विकसित करके अपने सदस्यों को किफायती आवास समाधान प्रदान करती हैं।
  • भारत में बहु-राज्य बनाम एकल-राज्य सहकारी समितियाँ
    • बहु-राज्यीय सहकारी समितियाँ कई राज्यों में संचालित होती हैं और बहु-राज्यीय सहकारी समिति अधिनियम, 2002 द्वारा शासित होती हैं, हालाँकि एकल राज्यीय सहकारी समितियाँ एक राज्य के भीतर संचालित होती हैं तथा संबंधित राज्य सहकारी समिति अधिनियम का पालन करती हैं।
      • IFFCO, अमूल और NCDFI बहु-राज्यीय सहकारी समितियाँ हैं।

भारत में सहकारी समितियों की स्थिति

  • वर्तमान आँकड़े: भारत में 8.3 लाख सहकारी समितियाँ हैं।
  • विविध गतिविधियाँ: 4,000 से अधिक प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS) को प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र खोलने की मंजूरी प्रदान की गई।
    • अन्य सहकारी समितियाँ ईंधन खुदरा, LPG वितरण तथा ग्रामीण जल एवं सौर योजनाओं में शामिल हैं।

भारत में सहकारी समितियों के लिए संवैधानिक प्रावधान

  • 97वाँ संविधान संशोधन: संविधान में भाग IXB (सहकारी समितियाँ) जोड़ा गया।
    • सहकारी समितियाँ बनाने के अधिकार को अनुच्छेद-19(1) के अंतर्गत स्वतंत्रता के अधिकार के रूप में शामिल किया गया।
    • सहकारी समितियों के संवर्द्धन से संबंधित अनुच्छेद-43(B) को भी राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों में से एक के रूप में शामिल किया गया।
  • बहु-राज्य सहकारी समितियाँ (संशोधन) अधिनियम, 2023: शासन को सुदृढ़ बनाने, पारदर्शिता बढ़ाने, जवाबदेही बढ़ाने, चुनावी प्रक्रिया में सुधार लाने और बहु-राज्य सहकारी समितियों में 97वें संविधान संशोधन के प्रावधानों को शामिल करने के लिए बहु-राज्य सहकारी समितियाँ (संशोधन) अधिनियम, 2002 में संशोधन लाया गया है।

भारत में सहकारिता की भूमिका

भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, सहकारी समितियों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने लाखों लोगों को सशक्त बनाया है, उनकी आजीविका में सुधार किया है तथा राष्ट्रीय विकास में योगदान दिया है।

ग्रामीण विकास

  • ऋण उपलब्धता में वृद्धि: सहकारी बैंक और ऋण समितियाँ किसानों और ग्रामीण उद्यमियों को किफायती ऋण उपलब्ध कराती हैं, जिससे वे अपने व्यवसायों में निवेश कर सकते हैं तथा उत्पादकता में सुधार कर सकते हैं।
    • सहकारी समितियाँ देश में कुल कृषि ऋण का 20% प्रदान करती हैं, जिससे किसानों के लिए वित्त तक पहुँच सुनिश्चित होती है।
  • कृषि आदान आपूर्ति: सहकारी समितियाँ उचित मूल्य पर बीज, उर्वरक और कीटनाशक जैसी गुणवत्तापूर्ण कृषि आदानों की खरीद और वितरण करती हैं, जिससे किसानों को समय पर उनकी पहुँच सुनिश्चित होती है।
    • उदाहरण के लिए, भारतीय कृषक उर्वरक सहकारी समिति (IFFCO) लाखों किसानों को उचित मूल्य पर उर्वरक और कृषि उत्पाद उपलब्ध कराती है।
  • कृषि उपज तक बाजार पहुँच: सहकारी समितियाँ किसानों की उपज को एकत्रित करके, बेहतर कीमतों पर समझौता करके और उन्हें घरेलू व अंतर्राष्ट्रीय बाजारों से जोड़कर उनके लिए बाजार पहुँच को सुगम बनाती हैं।
    • उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र के सह्याद्री फार्म्स ने सफलतापूर्वक प्रदर्शित किया है कि सहकारी समितियाँ किसानों की बाजार पहुँच कैसे बढ़ा सकती हैं।
  • ग्रामीण अवसंरचना विकास: सहकारी समितियाँ अक्सर ग्रामीण अवसंरचना, जैसे सिंचाई प्रणाली, सड़कें और भंडारण सुविधाओं में निवेश करती हैं, जिससे पूरे समुदाय को लाभ होता है।
    • उदाहरण के लिए, नाबार्ड कोल्ड स्टोरेज  और प्रसंस्करण इकाइयों जैसी सहकारी अवसंरचना परियोजनाओं के लिए पुनर्वित्त प्रदान करता है।

गरीबी उन्मूलन 

  • आय सृजन: सहकारी समितियाँ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बड़ी संख्या में लोगों को, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, रोजगार के अवसर प्रदान करती हैं।
    • उदाहरण के लिए, अमूल डेयरी सहकारी समिति ने गुजरात में लाखों डेयरी किसानों को आजीविका प्रदान की है।
  • कौशल विकास: सहकारी समितियाँ अक्सर अपने सदस्यों के कौशल को बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करती हैं, जिससे उनकी उत्पादकता और आय में सुधार होता है।
    • SEWA (स्व-नियोजित महिला संघ) एक सहकारी समिति है, जो महिलाओं को हस्तशिल्प, परिधान निर्माण आदि में कौशल विकसित करने में मदद करती है, जिससे उनकी आय एवं आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ती है।
  • सामाजिक सुरक्षा जाल: सहकारी समितियाँ सामाजिक सुरक्षा जाल के रूप में कार्य कर सकती हैं, आर्थिक कठिनाई या प्राकृतिक आपदाओं के समय अपने सदस्यों को सहायता प्रदान करती हैं।

सामाजिक और आर्थिक सशक्तीकरण

  • महिला सशक्तीकरण: महिला स्वयं सहायता समूह, जो प्रायः सहकारिता आधारित होते हैं, महिलाओं को वित्तीय संसाधन, प्रशिक्षण और अपनी समस्याओं को व्यक्त करने के लिए एक मंच प्रदान करके उन्हें सशक्त बनाते हैं।
    • वर्ष 1959 में स्थापित लिज्जत पापड़ महिलाओं के रोजगार पर एक सफल केस स्टडी है, जो दर्शाती है कि कैसे एक सहकारी व्यवसाय मॉडल महिलाओं को सशक्त बना सकता है और उनकी आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ावा दे सकता है।

  • सामुदायिक विकास: सहकारी समितियाँ शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और अन्य सामाजिक कल्याण गतिविधियों में निवेश करके सामुदायिक विकास में योगदान देती हैं।
    • उदाहरण के लिए, कृषक भारती सहकारी लिमिटेड (KRIBHCO) ने अपने सदस्यों और व्यापक समुदाय के जीवन स्तर में सुधार के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल और अस्पताल का निर्माण करवाया।

खाद्य सुरक्षा

  • कृषि उत्पादकता में वृद्धि: सहकारी समितियाँ आधुनिक कृषि पद्धतियों को अपनाने को बढ़ावा देती हैं, जिससे उपज में वृद्धि और गुणवत्ता में सुधार होता है।
    • देश के कुल चीनी उत्पादन में सहकारी समितियों का योगदान 31% और भारत में उत्पादित कुल दुग्ध उत्पादन में 10% से अधिक है।
    • वे मत्स्य व्यवसाय में 21% से अधिक का योगदान करते हैं और मत्स्य उद्योग तथा तटीय समुदायों को सहायता प्रदान करते हैं।
  • कुशल खाद्य वितरण: सहकारी समितियाँ खाद्यान्नों और अन्य कृषि उत्पादों का कुशल वितरण सुनिश्चित करती हैं, जिससे बर्बादी कम होती है और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
  • मूल्य स्थिरीकरण: सहकारी समितियाँ कृषि उत्पादों के क्रेता और विक्रेता दोनों के रूप में कार्य करके कीमतों को स्थिर रखने में मदद कर सकती हैं।
    • सहकारी समितियाँ देश में उत्पादित गेहूँ का 13% और धान का 20% से अधिक खरीदती हैं, जिससे किसानों को उचित मूल्य सुनिश्चित होता है। उदाहरण के लिए, भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ लिमिटेड (NAFED)।

भारत में सहकारी समितियों के समक्ष वर्तमान चुनौतियाँ

  • कमजोर शासन और जवाबदेही: कई सहकारी समितियाँ अप्रभावी शासन ढाँचे, सीमित पारदर्शिता और सदस्यों की कम भागीदारी से ग्रस्त हैं, जिससे कुप्रबंधन तथा भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।
    • पंजाब और महाराष्ट्र सहकारी बैंक (PMC बैंक) को क्रोनी कैपिटलिज्म के कारण एक बड़े संकट का सामना करना पड़ा, जिससे नकदी की भारी कमी हुई और इसके जमाकर्ताओं को असुविधा हुई।
  • वित्तीय अस्थिरता और NPA: वित्त तक पहुँच सीमित बनी हुई है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में। उच्च ब्याज दरों और बढ़ती गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) ने कई सहकारी समितियों को कमजोर कर दिया है।
    • RBI ने वर्ष 2021 और वर्ष 2025 के बीच भारत भर में 53 सहकारी बैंकों के लाइसेंस रद्द कर दिए।
  • कौशल की कमी और क्षमता संबंधी बाधाएँ: प्रशिक्षित कर्मियों की कमी, कमजोर वित्तीय प्रबंधन और अपर्याप्त प्रशिक्षण संस्थान सहकारी समितियों की परिचालन दक्षता तथा नेतृत्व क्षमता को सीमित करते हैं।
  • सीमित तकनीकी अपनाना: सहकारी समितियों के केवल 45% सदस्य ही डिजिटल उपकरणों से परिचित हैं, जिससे समिति के आधुनिकीकरण की गति धीमी हो रही है और तेजी से तकनीक-संचालित अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्द्धा में कमी आ रही है।
  • राजनीतिक हस्तक्षेप और आंतरिक संघर्ष: सहकारी समितियों को अक्सर राजनीतिक प्रभाव, आंतरिक प्रतिद्वंद्विता और सदस्यों के बीच जागरूकता की कमी का सामना करना पड़ता है, जिससे लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली और सामूहिक निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो जाती है।
  • क्षेत्रीय और कार्यात्मक असंतुलन: पूर्वी और पूर्वोत्तर क्षेत्रों में सहकारी समितियाँ अविकसित बनी हुई हैं, कई समितियाँ छोटी, एकल-उद्देश्य वाली और विभिन्न स्तरों पर प्रतिकूल समन्वय वाली बनी हुई हैं।

सहकारिता को मजबूत करने के लिए अन्य सरकारी पहल

  • सहकारिता मंत्रालय: वर्ष 2021 में सहकारिता मंत्रालय की स्थापना ने सहकारी क्षेत्र की आवश्यकताओं और चुनौतियों के समाधान हेतु एक समर्पित मंच प्रदान किया है।
  • वित्तीय सहायता: सरकार विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से सहकारी समितियों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
    • उदाहरण के लिए, प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS) के कंप्यूटरीकरण योजना के तहत सरकार ने लगभग 63,000 PACS को कंप्यूटरीकृत करने के लिए 2,516 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं।
  • विभिन्न क्षेत्रों को लक्षित करना
    • डिजिटल सेवाएँ: ग्रामीण नागरिकों को व्यापक ई-सेवाएँ प्रदान करने के लिए प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS) को सामान्य सेवा केंद्रों (CSC) में परिवर्तित किया जा रहा है।
    • स्वास्थ्य सेवा: ग्रामीण क्षेत्रों में किफायती दवाओं की पहुँच में सुधार के लिए प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS) द्वारा प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि केंद्रों का संचालन किया जा रहा है।
    • ऊर्जा: प्रधानमंत्री-कुसुम अभिसरण योजना के अंतर्गत, प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ (PACS) स्थायी कृषि के लिए किसानों के बीच सौर ऊर्जा अपनाने को बढ़ावा दे रही हैं।
    • मत्स्यपालन: मत्स्यपालकों को सशक्त बनाने और उनकी बाजार पहुँच बढ़ाने के लिए मत्स्य कृषक उत्पादक संगठन (FFPO) बनाए जा रहे हैं।

निष्कर्ष

राष्ट्रीय सहकारिता नीति-2025 कानूनी सुधारों, क्षेत्रीय विविधीकरण और जमीनी स्तर पर सशक्तीकरण के माध्यम से एक आत्मनिर्भर तथा समावेशी सहकारी अर्थव्यवस्था की परिकल्पना करती है। पारदर्शिता, तकनीकी एकीकरण और न्यायसंगत भागीदारी को बढ़ावा देकर, इसका उद्देश्य सहकारी समितियों को भारत के सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन और वर्ष 2047 तक विकसित भारत के दृष्टिकोण को साकार करना है।

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