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राष्ट्रीय महत्त्वपूर्ण खनिज मिशन

Lokesh Pal February 01, 2025 02:49 21 0

संदर्भ 

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 16,300 करोड़ रुपये के व्यय और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों आदि द्वारा 18,000 करोड़ रुपये के अपेक्षित निवेश के साथ राष्ट्रीय महत्त्वपूर्ण खनिज मिशन (National Critical Mineral Mission-NCMM) के शुभारंभ को मंजूरी दे दी है।

राष्ट्रीय महत्त्वपूर्ण खनिज मिशन के बारे में

  • केंद्रीय बजट वर्ष 2024-25 में घोषित
  • उद्देश्य: घरेलू और विदेशी स्रोतों से खनिज उपलब्धता सुनिश्चित करके भारत की महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखला को सुरक्षित करना।
    • खनिज अन्वेषण, खनन, प्रसंस्करण और पुनर्चक्रण में नवाचार, कौशल विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने के लिए तकनीकी, विनियामक और वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ाकर मूल्य शृंखलाओं को मजबूत करना।
  • अवधि: वित्त वर्ष 2024-25 से वित्त वर्ष 2030-31 तक।

NCMM की मुख्य विशेषताएँ

  • क्षेत्र: संपूर्ण मूल्य शृंखला को शामिल करता है- अन्वेषण, खनन, प्रसंस्करण, तथा अंतिम उत्पादों से प्राप्तियाँ।
  • अन्वेषण: भारत और अपतटीय क्षेत्रों में गहन अन्वेषण।
  • नियामक प्रक्रिया: महत्त्वपूर्ण खनिज खनन परियोजनाओं के लिए त्वरित स्वीकृति।
  • वित्तीय प्रोत्साहन: अन्वेषण और ओवरबर्डन तथा टेलिंग से वसूली के लिए प्रदान किया गया।

मिशन घटक

  1. घरेलू उत्पादन में वृद्धि : अन्वेषण और खनन का विस्तार (1200 परियोजनाएँ, 100+ ब्लॉकों की नीलामी), अपतटीय क्षेत्रों में खनन (पॉलिमेटेलिक नोड्यूल), विनियामक अनुमोदन में तीव्रता लाना तथा ओवरबर्डन, टेलिंग और अपशिष्ट पदार्थों से महत्त्वपूर्ण खनिजों की प्रतिपूर्ति करना।
  2. विदेश में परिसंपत्तियों का अधिग्रहण: संसाधन संपन्न देशों में मानचित्रण, अन्वेषण और अवसंरचना विकास के लिए सरकारी सहायता के साथ सार्वजनिक उपक्रमों तथा निजी कंपनियों को विदेशों में महत्त्वपूर्ण खनिज परिसंपत्तियों का अधिग्रहण करने के लिए प्रोत्साहित करना।
  3. महत्त्वपूर्ण खनिजों का पुनर्चक्रण: पुनर्चक्रण के लिए दिशा-निर्देश और प्रोत्साहन योजनाएँ विकसित करना तथा घरेलू एवं आयातित उत्पादों की प्राप्तियों को अनुकूलित करने के लिए पुनर्चक्रण सलाहकार समूह की स्थापना करना।
  4. व्यापार और बाजार: संसाधन संपन्न देशों के साथ व्यापार बढ़ाना, महत्त्वपूर्ण खनिजों पर आयात शुल्क समाप्त करना तथा आपूर्ति व्यवधानों से बचाव के लिए राष्ट्रीय महत्त्वपूर्ण खनिज भंडार विकसित करना।
  5. वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीकी उन्नति: अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देना, उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करना तथा महत्त्वपूर्ण खनिज प्रौद्योगिकियों में नवाचार एवं वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए विनियमों को सरल बनाना।
  6. मानव संसाधन विकास: संसाधन संपन्न देशों के लिए लक्षित डिग्री कार्यक्रमों, छात्रवृत्तियों और क्षमता निर्माण कार्यक्रमों के माध्यम से कुशल कार्यबल विकसित करना।
  7. वित्तपोषण और राजकोषीय प्रोत्साहन: अन्वेषण और खनन को प्रोत्साहित करने, अंतरराष्ट्रीय वित्तपोषण का लाभ उठाने तथा मिशन गतिविधियों के वित्तपोषण के लिए मौजूदा योजनाओं के साथ एकीकरण करने के लिए राजकोषीय उपाय विकसित करना।

प्रशासनिक ढाँचा

  • मिशन सचिवालय का निर्माण किया जाएगा।
    • संयुक्त सचिव के नेतृत्व में, इसमें भू-वैज्ञानिक, खनिज अर्थशास्त्री और उद्योग पेशेवर शामिल होंगे।
  • अधिकार प्राप्त समिति: कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में, मिशन की गतिविधियों की निगरानी और समीक्षा करने के लिए संबंधित मंत्रालयों के सदस्य इसमें शामिल होंगे।
    • खान मंत्रालय प्रशासनिक मंत्रालय होगा।

महत्त्वपूर्ण खनिजों के बारे में

  • परिभाषा: ये वे खनिज हैं, जो आर्थिक विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं, लेकिन इनकी भौगोलिक उपलब्धता की कमी और सीमा के कारण आपूर्ति शृंखला में भेद्यता तथा व्यवधान के कारण इनकी महत्ता बनी हुई है।

  • प्रमुख महत्त्वपूर्ण खनिज: खान मंत्रालय द्वारा गठित महत्त्वपूर्ण खनिजों की पहचान संबंधी समिति की रिपोर्ट में 30 महत्त्वपूर्ण खनिजों की पहचान की गई है,
    • एंटीमनी, बेरिलियम, बिस्मथ, कोबाल्ट, ताँबा, गैलियम, जर्मेनियम, ग्रेफाइट, हैफनियम, इंडियम, लीथियम, मोलिब्डेनम, नियोबियम, निकेल, पीजीई, फॉस्फोरस, पोटाश, आरईई, रेनियम, सिलिकॉन, स्ट्रोंटियम, टैंटालम, टेल्यूरियम, टिन, टाइटेनियम, टंगस्टन, वैनेडियम, जिरकोनियम, सेलेनियम और कैडमियम।
  • शीर्ष उत्पादक: अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार, महत्त्वपूर्ण खनिजों के प्रमुख उत्पादक चीन, कांगो, चिली, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया हैं। 
    • प्रसंस्करण के मामले में चीन का वैश्विक प्रभुत्व है।
  • उपयोग
    • उन्नत इलेक्ट्रॉनिक्स: ये अर्द्धचालक निर्माण और उच्च-स्तरीय इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
    • स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी: ये खनिज कई स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में एक आवश्यक घटक हैं, जैसे- पवन टरबाइन और सौर पैनलों से लेकर इलेक्ट्रिक वाहनों तक।
    • परिवहन और संचार: इनका उपयोग लड़ाकू जेट विमानों, ड्रोन और रेडियो सेट, विमान बनाने में भी किया जाता है और ये मुख्य रूप से इलेक्ट्रिक वाहन निर्माण उद्योग को गति प्रदान करते हैं।
    • विविध क्षेत्र: मोबाइल फोन, टैबलेट, इलेक्ट्रिक वाहन, सौर पैनल, पवन टरबाइन, फाइबर ऑप्टिक केबल और रक्षा तथा चिकित्सा अनुप्रयोगों जैसे विविध क्षेत्रों में उन्नत प्रौद्योगिकियों का निर्माण करना।
    • बैटरी और भंडारण प्रौद्योगिकी: लीथियम-आयन जैसी बैटरी प्रौद्योगिकी में प्रगति के संदर्भ में भंडारण प्रौद्योगिकी विकसित करने के लिए ये खनिज महत्त्वपूर्ण हैं।

महत्त्वपूर्ण खनिजों का महत्त्व

  • हरित ऊर्जा संक्रमण में महत्त्वपूर्ण भूमिका: बैटरी (लीथियम, कोबाल्ट), सौर पैनल (सिलिकॉन, सिल्वर) और पवन टरबाइन (दुर्लभ मृदा तत्त्व) जैसी प्रौद्योगिकियों के लिए आवश्यक।
    • अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (International Energy Agency-IEA) के अनुसार, वर्ष 2023 में लीथियम की माँग में 30% की वृद्धि हुई, जबकि निकेल, कोबाल्ट और ग्रेफाइट की माँग में 8-15% की बढोतरी हुई।
  • वैश्विक जलवायु लक्ष्य: शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने और वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए महत्त्वपूर्ण।
    • आईईए द्वारा अनुमान: वर्ष 2040 तक, माँग में वृद्धि होने की उम्मीद है:
      • लीथियम (8x), ग्रेफाइट (4x), कोबाल्ट, निकेल और दुर्लभ मृदा तत्त्व (2x)।
  • आर्थिक और सामरिक महत्त्व: महत्त्वपूर्ण खनिजों का कुल वैश्विक मूल्य वर्ष 2023 में 325 बिलियन डॉलर आँका गया था।
    • रक्षा उपकरण, ईवी और सेमीकंडक्टर के निर्माण के लिए महत्त्वपूर्ण।

भारत में महत्त्वपूर्ण खनिजों के भंडार

  • ग्रेफाइट: भारत में 9 मिलियन टन का भंडार है, जिसमें 12 खदानों में उत्पादन लिया जाता है।
    • वर्ष 2021-22 में तमिलनाडु भारत में ग्रेफाइट का अग्रणी उत्पादक था, जो कुल उत्पादन का 63% था। ओडिशा दूसरा प्रमुख उत्पादक था।
    • अरुणाचल प्रदेश में भारत के सर्वाधिक ग्रेफाइट भंडार है, जिसमें देश के कुल संसाधनों का 43% हिस्सा है।
  • लीथियम: भारत का पहला लीथियम भंडार वर्ष 1999 में जम्मू और कश्मीर में खोजा गया था।
    • भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India-GSI) ने राजस्थान के डेगाना में भी लीथियम भंडार की खोज की है, जो जम्मू और कश्मीर के भंडार से बड़ा माना जाता है।
  • इल्मेनाइट (टाइटेनियम): भारत के पास वैश्विक भंडार का 11% हिस्सा है, फिर भी वह प्रतिवर्ष 1 बिलियन डॉलर मूल्य का टाइटेनियम डाइऑक्साइड आयात करता है।
    • ओडिशा भारत में इल्मेनाइट का अग्रणी उत्पादक है, जो वर्ष 2021-22 में देश के कुल उत्पादन में 60% का योगदान देता है। 
    • केरल और तमिलनाडु क्रमशः दूसरे और तीसरे सबसे बड़े उत्पादक हैं।
  • फॉस्फोरस: राजस्थान और मध्य प्रदेश भारत के दो राज्य हैं, जहाँ सर्वाधिक फॉस्फेट भंडार हैं:
    • राजस्थान: भारत के कुल रॉक फॉस्फेट भंडार और संसाधनों का 31% है।
    • मध्य प्रदेश: भारत के कुल रॉक फॉस्फेट भंडार और संसाधनों का 19% है।
  • पोटाश: राजस्थान भारत में पोटाश का सबसे बड़ा उत्पादक है, जो देश के कुल पोटाश संसाधनों का 91% योगदान देता है।
    • राज्य में अनुमानित 2.4 बिलियन टन पोटाश भंडार है, जो भारत के कुल अनुमानित भंडार का लगभग 90% है।
    • अन्य प्रमुख भंडार मध्य प्रदेश (पन्ना जिला) और उत्तर प्रदेश (सोनभद्र और चित्रकूट जिले) में स्थित हैं।
  • दुर्लभ मृदा तत्त्व (Rare Earth Elements-REE): भारत में समुद्र तट की रेत से 11.93 मिलियन टन मोनाजाइट का अनुमान है, जिसमें 55-65% दुर्लभ मृदा ऑक्साइड होते हैं।
    • आंध्र प्रदेश भारत का ऐसा राज्य है, जहाँ दुर्लभ मृदा तत्त्वों (REE) को प्राप्त करने के सबसे अधिक संसाधन हैं, जिनकी क्षमता 3.69 मिलियन टन है।
    • REE संसाधनों वाले अन्य राज्यों में शामिल हैं: केरल, तमिलनाडु, ओडिशा।
  • प्लेटिनम समूह तत्त्व (Platinum Group Elements-PGE): लगभग 15.7 टन PGE ओडिशा (नीलगिरि, बौला-नुआसाही, सुकिंदा) और कर्नाटक (हनुमालपुरा) में स्थित हैं।

महत्त्वपूर्ण खनिजों की आयात निर्भरता

  • लीथियम: लीथियम के लिए भारत 100% आयात पर निर्भर है, जिसे मुख्य रूप से चिली, रूस और चीन से प्राप्त किया जाता है।
  • कोबाल्ट: पूरी तरह से आयातित, जिसके मुख्य स्रोत चीन, बेल्जियम और जापान हैं।
  • निकेल: स्वीडन, चीन और इंडोनेशिया जैसे देशों से 100% आयातित।
  • वैनेडियम: पूरी तरह से आयातित, मुख्य रूप से कुवैत, जर्मनी और दक्षिण अफ्रीका से।
  • जर्मेनियम: पूरी तरह से चीन, दक्षिण अफ्रीका और फ्राँस से आयातित।
  • रेनियम: भारत रूस, यूके और चीन से आयात पर निर्भर है।
  • बेरिलियम और टैंटलम: पूरी तरह से आयातित, कोई घरेलू भंडार नहीं बताया गया।
  • सिलिकॉन: भारत सीमित मात्रा में उत्पादन करता है और चीन, मलेशिया और नॉर्वे से आयात पर बहुत अधिक निर्भर करता है।

महत्त्वपूर्ण खनिजों के उत्पादन के लिए सरकारी पहल

  • खान एवं खनिज अधिनियम (2023) में संशोधन: सरकार ने महत्त्वपूर्ण खनिज ब्लॉकों की नीलामी की अनुमति देने के लिए खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 में संशोधन किया है। पहली नीलामी नवंबर 2023 में 20 ब्लॉकों के लिए आयोजित की गई थी।
    • इन संशोधनों का उद्देश्य अन्वेषण और खनन में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ाना है।
    • सुव्यवस्थित नीलामी प्रक्रिया और अन्वेषण लाइसेंस की शुरुआत का उद्देश्य गहरे तथा अप्रयुक्त खनिज भंडारों का दोहन करना है।
  • रिफाइनिंग और प्रसंस्करण क्षमताओं को मजबूत करना: भारत ने डाउनस्ट्रीम प्रक्रियाओं के लिए आयात पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए घरेलू रिफाइनिंग और प्रसंस्करण बुनियादी ढाँचे के निर्माण के प्रयास शुरू किए हैं।
    • वर्ष 2024 के दौरान, खान मंत्रालय के विज्ञान और प्रौद्योगिकी कार्यक्रम के अनुसंधान एवं विकास घटक के तहत, महत्त्वपूर्ण खनिजों के निष्कर्षण, पुनर्प्राप्ति एवं पुनर्चक्रण से संबंधित 10 अनुसंधान व विकास परियोजनाओं को विभिन्न भारतीय संस्थानों और अनुसंधान प्रयोगशालाओं के माध्यम से शुरू करने के लिए मंजूरी दी गई है।

खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड (KABIL)

  • यह एक संयुक्त उद्यम कंपनी है, जिसका गठन भारत को महत्त्वपूर्ण खनिजों की विश्वसनीय आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए किया गया था।
  • KABIL को वर्ष 2019 में कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत शामिल किया गया था।
  • यह तीन सरकारी उद्यमों के बीच एक संयुक्त उद्यम है:

नेशनल एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड (National Aluminium Company Ltd.-NALCO), हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड (Hindustan Copper Limited-HCL), और मिनरल एक्सप्लोरेशन एंड कंसल्टेंसी लिमिटेड (Mineral Exploration & Consultancy Limited-MECL)।

महत्त्वपूर्ण खनिजों पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग

  • द्विपक्षीय साझेदारियाँ
    • ऑस्ट्रेलिया: मार्च 2022 में, KABIL ने महत्त्वपूर्ण खनिज निवेश साझेदारी के लिए ऑस्ट्रेलिया के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए और ऑस्ट्रेलिया-भारत महत्त्वपूर्ण खनिज अनुसंधान केंद्र की स्थापना की।
      • ये पहल लीथियम तथा कोबाल्ट परियोजनाओं एवं सतत् खनन पर अनुसंधान पर केंद्रित हैं।
    • लैटिन अमेरिका (अर्जेंटीना, चिली, बोलीविया): भारत ने जनवरी 2024 में अर्जेंटीना में एक सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी के साथ पाँच लीथियम ब्राइन ब्लॉक के लिए 24 मिलियन डॉलर का लीथियम अन्वेषण समझौता किया।
      • KABIL ने लीथियम अन्वेषण के लिए अर्जेंटीना में 15,703 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया।
      • KABIL बोलीविया और चिली में परिसंपत्तियों के अधिग्रहण को सुगम बनाकर खनिज आपूर्ति सुनिश्चित करने पर सक्रिय रूप से काम कर रहा है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका: भारत, अमेरिका के नेतृत्व वाली खनिज सुरक्षा भागीदारी (MSP) के तहत कोबाल्ट, लीथियम, निकेल और दुर्लभ मृदा तत्त्वों की आपूर्ति शृंखलाओं को बढ़ाने के लिए एक समझौते पर बातचीत कर रहा है।
    • कनाडा और ब्राजील: भारत द्विपक्षीय जुड़ाव के माध्यम से खनन और महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखलाओं में सहयोग की संभावना तलाश रहा है।
    • मध्य एशिया के साथ सहयोग: नवंबर 2024 में, भारत और कजाखस्तान ने भारत में टाइटेनियम स्लैग का उत्पादन करने के लिए IREUK टाइटेनियम लिमिटेड नामक एक संयुक्त उद्यम का गठन किया।
      • भारत ने क्षेत्र के समृद्ध संसाधन आधार का लाभ उठाने के लिए ‘भारत-मध्य एशिया दुर्लभ मृदा मंच’ की स्थापना का प्रस्ताव रखा है।

बहुपक्षीय साझेदारियाँ

  • खनिज सुरक्षा भागीदारी (Mineral Security Partnership-MSP): भारत जून 2023 में वैश्विक स्तर पर अनुकूलित और जिम्मेदार महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखलाओं को बढ़ावा देने के लिए 14वें सदस्य के रूप में शामिल हुआ।
  • क्वाड और इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (Indo Pacific Economic Framework-IPEF): भारत स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों और महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखला लचीलेपन को मजबूत करने के लिए इस फ्रेमवर्क में भाग लेता है। 
  • G20 और G7: भारत ने इन प्लेटफॉर्मों के माध्यम से महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिए न्यायसंगत और लचीली आपूर्ति शृंखला सुनिश्चित करने वाले सिद्धांतों की सक्रिय रूप से वकालत की है।
  • अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (International Energy Agency): भारत के खान मंत्रालय ने वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप महत्त्वपूर्ण खनिज क्षेत्र के लिए नीतियों, विनियमों और निवेश रणनीतियों को सुव्यवस्थित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।
  • महत्त्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों पर पहल (Initiative on Critical & Emerging Technologies-iCET): वार्षिक समीक्षा बैठकों के साथ मई 2022 में घोषित की गई।
    • iCET के अंतर्गत अमेरिकी संस्थानों के सहयोग से GSI, IBM और IREL की भागीदारी से 12 परियोजनाएँ तैयार की गईं।
  • चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता (क्वाड): भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान को शामिल करने वाला रणनीतिक मंच।
    • क्वाड इन्वेस्टर्स नेटवर्क (Quad Investors Network-QIN) की स्थापना के साथ स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति शृंखलाओं और महत्त्वपूर्ण खनिजों पर ध्यान केंद्रित करना।
  • वैश्विक दक्षिण के साथ जुड़ाव: भारत ने ताँबा और कोबाल्ट जैसे खनिजों के स्रोत के लिए जांबिया, कांगो और नामीबिया सहित अफ्रीकी देशों के साथ साझेदारी शुरू की है।
  • ये सहयोग नैतिक स्रोत, निष्पक्ष प्रथाओं और खनिज आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लाने पर जोर देते हैं।

भारत के महत्त्वपूर्ण खनिज मिशन में चुनौतियाँ

  • भारी आयात निर्भरता: लीथियम, कोबाल्ट और निकेल जैसे महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिए भारत लगभग पूरी तरह से आयात पर निर्भर है। 
    • वित्त वर्ष 2023-24 में, भारत ने लीथियम, कोबाल्ट, निकेल और ताँबे के आयात पर ₹34,000 करोड़ से अधिक खर्च किए, जिसमें 70-80% लीथियम का आयात चीन से किया गया था। 
    • भारत ने वर्ष 2017 से 2023 के बीच चीन से 50,000 टन ग्रेफाइट और 5,300 टन निकेल ऑक्साइड खरीदा।

  • आपूर्ति शृंखलाओं में चीन का प्रभुत्व: चीन वैश्विक उत्पादन का लगभग 60% और महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिए 85% प्रसंस्करण क्षमता को नियंत्रित करता है, जिसमें दुर्लभ मृदा तत्त्व, लीथियम और कोबाल्ट शामिल हैं।
    • चीन वैश्विक स्तर पर 59% लीथियम और 73% कोबाल्ट का प्रसंस्करण करता है, जो मिडस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम मूल्य शृंखलाओं पर हावी है।
    • वर्ष 2023 में, चीन ने ग्रेफाइट और अन्य खनिजों पर निर्यात प्रतिबंध लगा दिए, जिससे वैश्विक आपूर्ति शृंखला बाधित हो गई।
  • घरेलू प्रसंस्करण क्षमताओं का अभाव: भारत में महत्त्वपूर्ण खनिजों के शोधन और प्रसंस्करण के लिए बुनियादी ढाँचे का अभाव है, जो डाउनस्ट्रीम उद्योगों के लिए आवश्यक हैं।
    • भारत में नीलाम किए गए अधिकांश खनिज ब्लॉक अपर्याप्त घरेलू प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों के कारण बिना बिके रह जाते हैं।
  • तकनीकी और अनुसंधान एवं विकास घाटा: निष्कर्षण और शोधन प्रौद्योगिकियों के लिए अनुसंधान और विकास में सीमित निवेश है।
    • उन्नत खनन तकनीकों के अभाव के कारण कोबाल्ट और निकेल जैसे दुर्लभ खनिज भारत में अभी तक खोजे नहीं जा सके हैं।
  • भू-राजनीतिक कमजोरियाँ: महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिए कुछ देशों पर निर्भरता के कारण भारत को भू-राजनीतिक तनावों के कारण आपूर्ति में व्यवधान का सामना करना पड़ रहा है।
    • वर्ष 2010 के चीन-जापान विवाद के दौरान, चीन ने दुर्लभ मृदा तत्वों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, जिससे जापान के तकनीकी उद्योग पर गंभीर प्रभाव पड़ा।
    • अमेरिका-चीन के बीच चल रही प्रतिद्वंद्विता के कारण महत्त्वपूर्ण खनिजों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाए गए हैं, जिससे संकेंद्रित आपूर्ति शृंखलाओं के जोखिम उजागर हुए हैं।
  • निजी क्षेत्र की अपर्याप्त भागीदारी: अस्पष्ट नीतियों और उच्च जोखिमों के कारण अन्वेषण और प्रसंस्करण में निजी क्षेत्र की भागीदारी सीमित है।
    • वर्ष 2023 में खान और खनिज अधिनियम में संशोधन के बावजूद, महत्त्वपूर्ण खनिज ब्लॉकों की नीलामी में निजी क्षेत्र की पर्याप्त रुचि नहीं रही है।
  • सोर्सिंग में पर्यावरण और नैतिक चिंताएँ (Environmental and Ethical Concerns in Sourcing): वैश्विक खनन प्रथाओं को अक्सर मानवाधिकारों के उल्लंघन और पर्यावरण क्षरण के लिए जाँच का सामना करना पड़ता है।
    • कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में चीनी फर्मों के विरुद्ध आरोपों में बाल श्रम और कोबाल्ट खनन कार्यों में जबरन बेदखली शामिल है।

आगे की राह

  • नीतिगत सुधार और प्रोत्साहन: भारत को व्यवहार्यता अंतर निधि और अनुसंधान एवं विकास निवेश में वृद्धि के माध्यम से घरेलू खनन और प्रसंस्करण क्षमताओं में तेजी लाने की आवश्यकता है।
    • सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और निजी क्षेत्रों को विदेशों में खनिज परिसंपत्तियों को प्राप्त करने और/या वित्तीय निवेश करने में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
  • आपूर्ति स्रोतों का विविधीकरण: भारत को लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के देशों के साथ साझेदारी को मजबूत करके चीन पर अपनी निर्भरता कम करनी चाहिए।
    • देश को मोजांबिक, मेडागास्कर और ब्राजील सहित सिंथेटिक ग्रेफाइट के लिए वैकल्पिक स्रोतों का पता लगाना चाहिए।
  • बहुपक्षीय जुड़ाव को मजबूत करना: भारत को एमएसपी और क्वाड जैसे ढाँचे के माध्यम से महत्त्वपूर्ण खनिजों तक समान पहुँच के लिए वैश्विक संवादों में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए।
    • बहुपक्षीय जुड़ाव को इन महत्त्वपूर्ण संसाधनों के लिए लचीली और टिकाऊ आपूर्ति शृंखला बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  • तकनीकी और अनुसंधान एवं विकास सहयोग: भारत को अत्याधुनिक शोधन और पुनर्चक्रण प्रौद्योगिकियों को प्राप्त करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान जैसी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के साथ साझेदारी करनी चाहिए।
    • पुनर्चक्रण प्रौद्योगिकियों में निवेश कच्चे माल के आयात पर निर्भरता को कम करने और महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिए एक परिपत्र अर्थव्यवस्था बनाने में मदद कर सकता है।
  • ESG (पर्यावरण, सामाजिक और शासन) अनुपालन: भारत को अपनी सोर्सिंग प्रथाओं में ESG (पर्यावरण, सामाजिक और शासन) अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए, विशेष रूप से कांगो और दक्षिण अमेरिकी देशों जैसे देशों के साथ साझेदारी में।

निष्कर्ष

राष्ट्रीय महत्त्वपूर्ण खनिज मिशन (National Critical Mineral Mission-NCMM) का उद्देश्य भारत की महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखला को सुरक्षित करना, आत्मनिर्भरता बढ़ाना और घरेलू अन्वेषण, पुनर्चक्रण और अंतरराष्ट्रीय अधिग्रहण के माध्यम से नवाचार को बढ़ावा देना है। तकनीकी प्रगति, वैश्विक सहयोग और टिकाऊ प्रथाओं को बढ़ावा देकर, NCMM वैश्विक महत्त्वपूर्ण खनिज पारिस्थितिकी तंत्र में भारत की स्थिति को मजबूत करता है, आर्थिक विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा का समर्थन करता है।

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