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राष्ट्रीय ध्वज दिवस: तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने की यात्रा

Lokesh Pal July 22, 2024 02:27 106 0

संदर्भ

22 जुलाई, 1947 को भारत की संविधान सभा ने राष्ट्रीय ध्वज को अपनाया था। अतः इस दिन को राष्ट्रीय ध्वज दिवस के रूप मनाया जाता है। 

संबंधित तथ्य

  • यह हमारे इतिहास का एक यादगार दिन था और तिरंगे को अपनाना भारत की औपनिवेशिक शासन से मुक्त एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापित होने की यात्रा में एक महत्त्वपूर्ण क्षण था।

22 जुलाई, 1947 को संविधान सभा की प्रक्रिया

  • कार्यवाही के आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, संविधान सभा की बैठक नई दिल्ली के संविधान हॉल में सुबह 10 बजे हुई, जिसकी अध्यक्षता डॉ. राजेंद्र प्रसाद कर रहे थे। 
    • संविधान सभा की बैठक 9 दिसंबर, 1946 से हो रही थी और तब तक कई विषयों पर चर्चा हो चुकी थी।

  • एजेंडे में पहला आइटम ‘ध्वज के बारे में पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा लाया गया प्रस्ताव’ था।
  • इसके बाद, भारत के पहले प्रधानमंत्री ने निम्नलिखित प्रस्ताव पेश किया: संकल्प लिया गया कि भारत का राष्ट्रीय ध्वज गहरे केसरिया (केसरी), सफेद और गहरे हरे रंग का समान अनुपात में क्षैतिज तिरंगा होगा।
    • चक्र का डिजाइन अशोक के सारनाथ सिंह स्तंभ के शीर्ष पर दिखाई देने वाले चक्र के समान होगा।
    • चक्र का व्यास सफेद पट्टी की चौड़ाई के लगभग बराबर होगा।
    • ध्वज की चौड़ाई और लंबाई का अनुपात सामान्यतः 2:3 होगा।

नेहरू द्वारा ध्वज संबंधी प्रस्ताव के संबंध में भाषण

  • नेहरू ने कहा कि प्रस्ताव द्वारा परिभाषित ध्वज को औपचारिक प्रस्ताव द्वारा नहीं, बल्कि लोकप्रिय प्रशंसा और उपयोग द्वारा अपनाया गया था।

22 अगस्त, 1907 को जर्मनी के स्टटगार्ट में अंतरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में भीकाजी कामा द्वारा फहराए गए “भारतीय स्वतंत्रता के ध्वज” का डिजाइन।

  • उन्होंने स्पष्ट किया कि ध्वज को सांप्रदायिक दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए और जब ध्वज तैयार किया गया था, तो इसका कोई सांप्रदायिक महत्त्व नहीं था।

भारत का राष्ट्रीय ध्वज: संक्षिप्त यात्रा

  • परिचय
    • 1906
      • ऐसा माना जाता है कि पहला राष्ट्रीय ध्वज, जिसमें लाल, पीले और हरे रंग की तीन क्षैतिज पट्टियाँ शामिल थीं, 7 अगस्त 1906 को कलकत्ता (अब कोलकाता) में लोअर सर्कुलर रोड के पास पारसी बागान स्क्वायर पर फहराया गया था।
    • 1921
      • बाद में वर्ष 1921 में स्वतंत्रता सेनानी पिंगली वेंकय्या ने महात्मा गांधी से मुलाकात की और ध्वज के एक मूल डिजाइन का प्रस्ताव रखा, जिसमें दो लाल और हरे रंग की पट्टियाँ शामिल थीं।
    • 1931
      • कई बदलावों से गुजरने के बाद वर्ष 1931 में कराची में कांग्रेस कमेटी की बैठक में तिरंगे को हमारे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया था।
    • 1947
      • 22 जुलाई, 1947 को हुई संविधान सभा की बैठक के दौरान भारतीय ध्वज को उसके वर्तमान स्वरूप में अपनाया गया था।
  • भारतीय तिरंगे से संबंधित नियम
    • प्रतीक और नाम (अनुचित उपयोग रोकथाम) अधिनियम, 1950:
      • यह राष्ट्रीय ध्वज, सरकारी विभाग द्वारा उपयोग किए जाने वाले चिह्न, राष्ट्रपति या राज्यपाल की आधिकारिक मुहर, महात्मा गांधी और प्रधानमंत्री के चित्रमय निरूपण तथा अशोक चक्र के उपयोग को प्रतिबंधित करता है।
  • राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम, 1971
    • यह राष्ट्रीय ध्वज, संविधान, राष्ट्रगान और भारतीय मानचित्र सहित देश के सभी राष्ट्रीय प्रतीकों के अपमान को प्रतिबंधित करता है।
    • यदि कोई व्यक्ति अधिनियम के तहत निम्नलिखित अपराधों में दोषी ठहराया जाता है, तो वह 6 वर्ष की अवधि के लिए संसद एवं राज्य विधानमंडल के चुनाव लड़ने हेतु अयोग्य हो जाता है।
      • राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करना।
      • भारत के संविधान का अपमान करना।
      • राष्ट्रगान के गायन को रोकना।

    • हमने ध्वज के लिए एक ऐसे डिजाइन के बारे में सोचा जो सुंदर हो, क्योंकि किसी राष्ट्र का प्रतीक देखने में सुंदर होना चाहिए।
    • हमने एक ऐसे ध्वज के बारे में सोचा जो अपने संयोजन और अपने अलग-अलग हिस्सों में किसी तरह राष्ट्र की भावना, राष्ट्र की परंपरा, उस मिश्रित भावना तथा परंपरा का प्रतिनिधित्व करे, जो भारत में हजारों वर्षों से विकसित हुई है। 
  • इस प्रकार यह निर्णय लिया गया कि चक्र को रखा जाए, चरखे को नहीं और इस उद्देश्य के लिए, अशोक स्तंभ के ऊपर दिखाई देने वाला प्रसिद्ध चक्र चुना गया।
  • यह चक्र भारत की प्राचीन संस्कृति का प्रतीक है; यह उन कई चीजों का प्रतीक है, जिनके लिए भारत सदियों से प्रसिद्ध है। 
  • अशोक के साथ जुड़ाव सिर्फ इसलिए महत्त्वपूर्ण नहीं था क्योंकि अशोक का नाम न केवल भारत के इतिहास में बल्कि विश्व इतिहास में सबसे शानदार नामों में से एक है।

संशोधन संबंधी प्रस्ताव

  • दो संशोधन तैयार किए गए थे, लेकिन उनमें से कोई भी अंततः पेश नहीं किया गया।
  • पहला संशोधन प्रस्ताव
    • मध्य प्रांत और बरार के एच. वी. कामथ ने कहा कि उन्होंने मूल रूप से एक संशोधन तैयार किया था जिसमें कहा गया था कि “सफेद पट्टी के केंद्र में चक्र के अंदर, शांतम्, शिवम्, सुंदरम् का प्राचीन भारतीय प्रतीक स्वास्तिक अंकित किया जाए।
  • दूसरा संशोधन प्रस्ताव
    • मध्य प्रांत और बरार के ही डॉ. पी.एस. देशमुख ने कहा कि वह तिरंगे को “पूर्णतः अक्षुण्ण रखना चाहते हैं तथा चरखा भी वैसा ही रखना चाहते हैं”, लेकिन “इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि सदन प्रस्तावित ध्वज को ही अपनाना चाहता है”, उन्होंने संशोधन पेश नहीं किया।

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