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राष्ट्रीय वैश्विक क्षमता केंद्र (GCC) नीति ढाँचा

Lokesh Pal September 17, 2025 02:13 13 0

संदर्भ

हाल ही में भारतीय उद्योग संघ (Confederation of Indian Industry-CII) ने भारत को नवाचार-आधारित वैश्विक क्षमता केंद्रों (Global Capability Centres-GCCs) के वैश्विक मुख्यालय के रूप में स्थापित करने हेतु एक राष्ट्रीय नीति ढाँचे का प्रस्ताव प्रस्तुत किया है।

  • इसका उद्देश्य 20-25 मिलियन रोजगार सृजित करना और वर्ष 2030 तक $600 बिलियन का योगदान करना है।

संबंधित तथ्य

  • केंद्रीय बजट 2025-26 में क्षमता केंद्रों की स्थापना को प्रोत्साहित करने हेतु, विशेषकर टियर-II शहरों में, राज्यों के लिए मार्गदर्शक के रूप में एक राष्ट्रीय GCC ढाँचे का प्रस्ताव किया गया है।
    • यह CII की आगामी मॉडल स्टेट GCC नीति को पूरक करेगा, जो केंद्र -राज्य संरेखण सुनिश्चित करेगा और वर्ष 2030 तक भारत के GCC फुटप्रिंट को दोगुना करेगा।

GCC और ग्लोबल इन-हाउस सेंटर (Global In-house Center- GIC)

  • एक GIC, और GCC मूलतः समान अवधारणाएँ हैं, किंतु इनमें एक प्रमुख अंतर है, GCC किसी कंपनी की बहुविध गतिविधियों के लिए वैश्विक केंद्र के रूप में कार्य करता है, जबकि GIC किसी कंपनी का स्वामित्वयुक्त केंद्र होता है, जो प्रायः दूसरे देश में स्थापित किया जाता है।

वैश्विक क्षमता केंद्रों (GCC) के बारे में

  • परिभाषा: एक वैश्विक क्षमता केंद्र (GCC) एक बहुराष्ट्रीय निगम (MNC) द्वारा स्थापित एक रणनीतिक अपतटीय या निकटवर्ती इकाई है, जो विविध व्यावसायिक कार्यों में ‘इन-हाउस’ क्षमताओं का निर्माण करती है।

  • स्वामित्व और कार्य: वे पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनियाँ हैं, जो आईटी विकास, वित्त, अनुसंधान और विकास, मानव संसाधन और विश्लेषण जैसे महत्त्वपूर्ण संचालन का प्रबंधन करती हैं।
    • उदाहरण: वर्ष 2024 में, गोल्डमैन सैच ने अपने बंगलूरू GCC का विस्तार एक वैश्विक नवाचार हब में किया, जो एआई-संचालित वित्तीय विश्लेषिकी पर ध्यान केंद्रित करते हुए, कॉस्ट सेंटर से वैल्यू क्रिएटर तक भारत के संक्रमण को रेखांकित करता है।
  • भूमिका का विकास: प्रारंभ में लागत बचत हेतु ‘बैक ऑफिस’ की भूमिका निभाने वाले GCC आज वैश्विक उद्यमों के लिए नवाचार और डिजिटल परिवर्तन के प्रमुख केंद्रों के रूप में विकसित हो चुके हैं।

प्रस्तावित ढाँचे के प्रमुख तत्त्व

  • CII ने GCCS के लिए एक व्यापक रूपरेखा का सुझाव दिया है ताकि भारत को एक ‘बैक-ऑफिस’ गंतव्य से नवाचार, डिजिटल सेवाओं और उच्च-मूल्य वाले उद्यम समाधानों के लिए एक वैश्विक केंद्र में बदल दिया जा सके।
  • उद्देश्य: प्रस्तावित राष्ट्रीय GCC नीति का उद्देश्य है:
    • वर्ष 2030 तक भारत का GCC फुटप्रिंट।
    • लागत-बचत उन्मुख बैक-ऑफिस मॉडल से आगे बढ़ते हुए GCCs को वैश्विक उद्यमों के लिए अनुसंधान एवं विकास (R&D) पॉवर हाउस में रूपांतरित करना।
    • GCCs के विकास को स्थिरता, नवाचार-आधारित पारिस्थितिकी तंत्र और संतुलित क्षेत्रीय प्रगति के साथ समन्वित करना।
      • उदाहरण के लिए, हैदराबाद और बंगलूरू वर्तमान में भारत के 40% से अधिक GCCs का केंद्र हैं। किंतु प्रस्तावित ढाँचा इस दायरे को विस्तारित करते हुए विशाखापट्टनम, इंदौर और कोयंबटूर जैसे टियर-II हब तक ले जाना चाहता है, ताकि समावेशी एवं संतुलित शहरी विकास सुनिश्चित किया जा सके।
  • नीति के स्तंभ: CII का प्रस्तावित ढाँचा तीन स्तंभों पर टिका हुआ है – राष्ट्रीय दिशा, पारिस्थितिकी तंत्र, औसत दर्जे का परिणाम – चार महत्त्वपूर्ण सफलता कारकों – प्रतिभा, बुनियादी ढाँचा, क्षेत्रीय समावेशन और नवाचार द्वारा समर्थित।
  • रणनीतिक बदलाव: पॉलिसी फ्रेमवर्क लागत-अर्बिट्रेज से मूल्य-निर्माण और नवाचार पर ध्यान केंद्रित करता है, भारत को फिलीपींस, वियतनाम और पोलैंड जैसे उभरते गंतव्यों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने वाले एक प्रमुख वैश्विक GCC हब के रूप में स्थापित करता है।

CII फ्रेमवर्क की प्रमुख सिफारिशें

  • डिजिटल आर्थिक क्षेत्र: सहज डिजिटल कनेक्टिविटी और उपयोगिताओं के साथ प्लग-एंड-प्ले हब स्थापित करना।

  • GCC काउंसिल: केंद्र और ऑफथम (Ofthum) के मध्य समन्वय सुनिश्चित करने के लिए एक अंतर-मंत्रालयी निकाय की स्थापना करना।
  • उद्योग-अकादमिक भागीदारी: संयुक्त अनुसंधान केंद्र, IIT-INFOSYS भागीदारी के समान, AI और ग्रीन टेक में छात्रों को कौशल विकसित करने के लिए।
  • पर्यावरण, सामाजिक और शासन (Environmental, Social, and Governance – ESG) प्रोत्साहन: ग्रीन बिल्डिंग के लिए कर छूट और रिस्पोंसिबल AI अपनाने के लक्ष्य को भारत के नेट जीरो लक्ष्य (वर्ष 2070) के साथ संरेखित किया गया।
    • ESG प्रोत्साहन: यह पुरस्कार, दंड, या नीति तंत्र को संदर्भित करता है, जो ESG लक्ष्यों के साथ संरेखित सतत् प्रथाओं को अपनाने के लिए व्यवसायों, निवेशकों या व्यक्तियों को प्रोत्साहित करने के लिए डिजाइन किया गया है।
  • राष्ट्रीय योजनाओं के साथ एकीकरण: समग्र बुनियादी ढाँचे के विकास के लिएस्मार्ट सिटी मिशन (SCM) और पीएम गति शक्ति के साथ GCC विस्तार।
    • जबकि SCM शहरी परिवर्तन को लक्षित करता है, गति शक्ति राष्ट्रीय कनेक्टिविटी सुनिश्चित करती है और भारत के एकीकृत, डिजिटल और सतत् बुनियादी ढाँचे की दृष्टि को आगे बढ़ाती है।

भारत की GCC यात्रा

  • 1990 का दशक-लागत-केंद्रित IT और बैक-ऑफिस हब।
  • 2000 का दशक-मल्टी-फंक्शन डिलीवरी हब।
  • वर्ष 2015 के बाद-डिजिटल और नवाचार हब।
  • वर्ष 2020 के बाद – ग्लोबल एंटरप्राइज हब ड्राइविंग रेजिलिएंस और डिजिटल हब।

भारत में GCC की स्थिति

  • वैश्विक नेतृत्व: भारत अब विश्व के वैश्विक क्षमता केंद्र (GCC) का लगभग 50% होस्ट करता है। वर्ष 2024 (नैसकॉम 2024) के अनुसार, भारत में 1,600 केंद्र स्थापित हैं।
    • माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन, जेपी मॉर्गन और वॉलमार्ट जैसी प्रमुख कंपनियों ने भारत को अपने वैश्विक अनुसंधान एवं विकास (R&D) केंद्रों के लिए चुना है, जिससे भारत का नेतृत्व और मजबूत हुआ है।
  • रोज़गार सृजन: GCC सीधे 2.16 मिलियन पेशेवरों को रोजगार प्रदान करता है और लगभग 10.4 मिलियन अप्रत्यक्ष नौकरियों (नैसकॉम 2024) का समर्थन करता है।
  • आर्थिक योगदान: भारत के GCC ने सकल मूल्य वर्द्धित (2023–24) में 68 अरब डॉलर का योगदान दिया। 
    • विशेषज्ञों के अनुसार यह योगदान वर्ष 2030 तक 154–199 अरब डॉलर तक बढ़ जाएगा, जिससे यह निर्यात में भी महत्त्वपूर्ण योगदान देगा।

राष्ट्रीय GCC नीति की आवश्यकता

  • रोजगार सृजन: एक राष्ट्रीय GCC नीति वर्ष 2030 तक 20–25 मिलियन नौकरियाँ प्रदान कर सकती है, जिनमें 4–5 मिलियन प्रत्यक्ष रोजगार शामिल हैं।
  • नैसकॉम रिपोर्ट, 2024: जयपुर, कोच्चि और कोयंबटूर जैसे टियर II केंद्रों में GCC की नियुक्तियों में 20% वार्षिक वृद्धि देखी जाएगी, जिससे शहरीकरण और युवा रोजगार को बढ़ावा मिलेगा।
  • क्षेत्रीय संतुलन: बंगलूरू और हैदराबाद को बुनियादी ढाँचे की कमी, यातायात की भीड़ और बढ़ती अचल संपत्ति की लागत का सामना करना पड़ रहा है।
    • एक राष्ट्रीय नीति संतुलित विकास सुनिश्चित करते हुए टियर II और टियर III शहरों पर ध्यान केंद्रित कर सकती है।
    • उदाहरण: स्मार्ट सिटी मिशन के तहत विशाखापत्तनम और इंदौर को GCC केंद्रों के रूप में विकसित किया जा रहा है।
  • निर्यात और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा: डिजिटल सेवाओं के निर्यात ने वित्त वर्ष 2024 (RBI) में 194 बिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान दिया।
    • GCC के रणनीतिक विस्तार से भारत को उभरते GCC गंतव्यों जैसे फिलीपींस और पोलैंड के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने में मदद मिलेगी।
  • नवाचार और स्टार्ट-अप एकीकरण: GCC स्टार्ट-अप के साथ जुड़कर वैश्विक कंपनियों के लिए अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं के रूप में विकसित हो सकते हैं।
    • उदाहरण: पेप्सिको GCC, हैदराबाद की कृषि-तकनीकी साझेदारियाँ, किसानों को AI-आधारित फसल समाधानों से जोड़ती हैं।
  • स्थायित्व और ESG: भारत का नेट-जीरो लक्ष्य 2070 हरित परिसरों और ESG-आधारित संचालन की माँग करता है।
    • GCC नीति नवीकरणीय ऊर्जा उपयोग, उत्तरदायी AI और वृत्ताकार अर्थव्यवस्था प्रथाओं को एकीकृत कर सकती है।

भारत में GCC विकास के लिए चुनौतियाँ और बाधाएँ

  • बुनियादी ढाँचे की कमी: टियर-II शहरों में विश्वस्तरीय कार्यालय स्थल, मेट्रो कनेक्टिविटी और विश्वसनीय उपयोगिताओं का अभाव है।
    • उदाहरण: स्मार्ट सिटी होने के बावजूद, इंदौर अभी भी बिजली की कमी से जूझ रहा है, जिससे बड़े पैमाने पर GCC निवेश में बाधा आ रही है।
  • प्रतिभा की कमी: भारत में बड़ी संख्या में इंजीनियर हैं, लेकिन एआई, सेमीकंडक्टर डिजाइन और साइबर सुरक्षा प्रतिभा का अभाव है।
  • नैसकॉम, 2023 सर्वेक्षण: 50% GCC उभरती प्रौद्योगिकियों के लिए कर्मचारी भर्ती में कठिनाई की रिपोर्ट करते हैं।
  • नीति विखंडन: कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों में मजबूत आईटी/GCC नीतियाँ हैं, लेकिन अन्य पिछड़े हैं। इससे GCC को आकर्षित करने में क्षेत्रीय असमानता पैदा होती है।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा: फिलीपींस और वियतनाम कम वेतन वाली फर्मों को आकर्षित करते हैं।
    • पोलैंड और आयरलैंड अनुसंधान एवं विकास केंद्रों के लिए यूरोपीय संघ के लाभों और राजकोषीय प्रोत्साहनों का लाभ उठाते हैं।
  • ईएसजी अनुपालन दबाव: निवेशकों द्वारा स्थिरता संबंधी प्रकटीकरण की बढ़ती माँग के साथ यदि GCC, ESG मानदंडों का पालन करने में विफल रहते हैं, तो भारत को हरित पूँजी प्रवाह खोने का जोखिम है।

GSS विकास को समर्थन देने वाली वैश्विक नीति एवं साझेदारी के उदाहरण

  • आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) डिजिटल अर्थव्यवस्था नीति ढाँचा: राष्ट्रों को डिजिटल अवसंरचना और शासन में सामंजस्य स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
  • विश्व बैंक वैश्विक कौशल साझेदारी: युवाओं को सीमा पार गतिशीलता संबंधी कौशल के साथ GCC भूमिकाओं के लिए प्रशिक्षित करता है।
  • आसियान स्मार्ट सिटीज नेटवर्क: उभरती अर्थव्यवस्थाओं में समन्वित डिजिटल अवसंरचना नियोजन का प्रदर्शन करता है।

वैश्विक GCC सर्वोत्तम अभ्यास और सबक

  • सिंगापुर: “स्मार्ट नेशन” पहल और कॉरपोरेट कर प्रोत्साहनों ने 1,600 बहुराष्ट्रीय GCC के लिए एक केंद्र का निर्माण किया।
  • आयरलैंड (डबलिन): विशेष अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (IFSC) क्षेत्रों ने प्रमुख वित्तीय GCC (सिटीबैंक, जेपी मॉर्गन) को आकर्षित किया।
  • फिलीपींस: अंग्रेजी बोलने वाले युवाओं की अधिक संख्या का लाभ उठाकर वॉयस-आधारित GCC में अपना प्रभाव स्थापित किया।
  • पोलैंड: यूरोपीय संघ समर्थित नवाचार प्रोत्साहनों ने पोलैंड को इंजीनियरिंग GCC का केंद्र बना दिया।
  • अमेरिका: संघीय अनुसंधान एवं विकास ‘कर क्रेडिट’ ने नवाचार-आधारित GCC विकास को बढ़ावा दिया।

आगे की राह

  • राष्ट्रीय GCC परिषद: वाणिज्य/आईटी मंत्रालय के अंतर्गत एक केंद्रीय समन्वय निकाय की स्थापना की जानी चाहिए। यह नीतिगत एकरूपता सुनिश्चित करेगा, अनुमोदनों को सुव्यवस्थित करेगा और GST परिषद की तर्ज पर कार्य करते हुए अंतरराज्यीय मुद्दों का समाधान करेगा।
  • टियर-II केंद्रों में कौशल विकास: टियर-II शहरों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता, डेटा विज्ञान और हरित प्रौद्योगिकियों के लिए विशिष्ट विश्वविद्यालय स्थापित किए जाने चाहिए। इससे क्षेत्रीय प्रतिभाओं का विकास होगा, शहरी दबाव कम होगा और भविष्य के लिए तैयार कार्यबल सुनिश्चित होगा।
  • ESG और अनुसंधान एवं विकास के लिए राजकोषीय प्रोत्साहन: ESG-अनुपालक परिसरों और अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं में निवेश करने वाले GCC को लक्षित कर छूट प्रदान की जानी चाहिए। राज्यों द्वारा सह-वित्तपोषित एक राष्ट्रीय नवाचार कोष, अग्रणी प्रौद्योगिकी पहलों का समर्थन कर सकता है।
  • भारत की वैश्विक ब्रांडिंग: भारत को G20, दावोस और ब्रिक्स जैसे वैश्विक मंचों पर ‘विश्व के GCC मुख्यालय’ के रूप में प्रदर्शित किया जाना चाहिए। इस ब्रांडिंग में भारत के कुशल कार्यबल, लागत लाभ और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को उजागर किया जाना चाहिए।
  • आदर्श राज्य नीतियाँ: राज्यों के लिए उपयोग में आसान नियम विकसित किए जाने चाहिए, ताकि उन्हें अपनाना सरल हो। इसमें प्रोत्साहन, बुनियादी ढाँचे के मानदंड और प्रतिभा विकास मॉड्यूल शामिल होने चाहिए, जिससे निवेशकों के लिए अनिश्चितता कम हो।

निष्कर्ष

GCC का विस्तार न्याय, समानता और संघीय सहयोग के संवैधानिक मूल्यों को मूर्त रूप देता है, साथ ही नवाचार और स्थिरता को भी बढ़ावा देता है। अंबेडकर के संवैधानिक नैतिकता के विचार से प्रेरित होकर, GCC भारत के समावेशी विकास को गति प्रदान कर सकते हैं और विश्व के GCC मुख्यालय के रूप में अपनी भूमिका को और मजबूत कर सकते हैं।

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