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राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन

Lokesh Pal August 16, 2025 03:15 7 0

संदर्भ

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नवंबर 2024 में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वतंत्र केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (NMNF) को मंजूरी दी थी।

प्राकृतिक खेती क्या है?

  • परिभाषा: रसायन मुक्त कृषि पद्धति, जिसमें पशुधन (अधिमानतः स्थानीय नस्ल की गाय) और विविध फसलों को एकीकृत किया जाता है, जो भारतीय पारंपरिक ज्ञान पर आधारित है।
  • लक्ष्य: मृदा स्वास्थ्य में सुधार, पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्स्थापित करना, इनपुट लागत कम करना और जलवायु लचीलापन बढ़ाना।
  • पारिस्थितिकी तंत्र दृष्टिकोण: मृदा, जल, सूक्ष्मजीव, पौधों, पशुओं, जलवायु और मानवीय आवश्यकताओं की परस्पर निर्भरता को मान्यता देता है।
  • इसे मासानोबु फुकुओका (Masanobu Fukuoka) ने अपनी पुस्तक “द वन-स्ट्रॉ रेवॉल्यूशन” (वर्ष 1975) में प्रस्तुत किया था।
  • भारत में इसे परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) के अंतर्गत भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति कार्यक्रम (BPKP) के रूप में प्रचारित किया जाता है।

परंपरागत कृषि विकास योजना (Paramparagat Krishi Vikas Yojana- PKVY)

  • शुभारंभ वर्ष: वर्ष 2015।
  • योजना का प्रकार: केंद्र प्रायोजित योजना (CSS), राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (NMSA) के अंतर्गत मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन (SHM) का विस्तारित घटक।
  • उद्देश्य: जैविक कृषि को समर्थन और बढ़ावा देना।

प्राकृतिक खेती के घटक: ये प्रथाएँ एक अनुकूल सूक्ष्म जलवायु का निर्माण करती हैं, जो मृदा में अधिकतम लाभकारी सूक्ष्मजीव गतिविधि का समर्थन करती है:

  • बीजामृतम् – बीजों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए गोबर और गोमूत्र से बने सूक्ष्मजीवी मिश्रण से बीजों को लेपित करना।
  • जीवामृतम – लाभकारी मृदा सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ाने के लिए गोबर, गोमूत्र, गुड़, दाल का आटा, जल और मृदा का मिश्रण डालना।
  • मल्चिंग – मृदा में जैविक आवरण निक्षेपित कर ह्यूमस निर्माण को समृद्ध करना और जल वाष्पीकरण को कम करना।
  • ‘वाफासा’ तकनीक- अनुकूल सूक्ष्म जलवायु बनाकर मृदा में इष्टतम वायु संचार और नमी बनाए रखना।
  • कीट प्रबंधन – कीटों को सुरक्षित रूप से नियंत्रित करने के लिए गोबर, गोमूत्र और हरी मिर्च से बने प्राकृतिक काढ़े (कश्यम्) का उपयोग करना।

राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (NMNF) के बारे में

  • योजना का प्रकार: केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत केंद्र प्रायोजित योजना।
  • वित्तीय परिव्यय (वर्ष 2025-26 तक, 15वें वित्त आयोग की समाप्ति): कुल ₹2,481 करोड़।
  • उद्देश्य: सतत् कृषि को सशक्त करना, मृदा स्वास्थ्य में सुधार करना, पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्स्थापित करना, किसानों की इनपुट लागत कम करना और जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन एवं सुरक्षित खाद्य प्रणालियों का निर्माण करना।
  • कवरेज: 15,000 प्राकृतिक कृषि समूहों में 7.5 लाख हेक्टेयर।

राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन के उद्देश्य

  • सतत् कृषि: खरीदे गए आदानों पर निर्भरता कम करने और आदान लागत कम करने के लिए कृषि-आधारित जैविक आदानों का उपयोग करके प्रकृति-आधारित प्रणालियों को बढ़ावा देना।
  • मृदा एवं स्थायित्व: मृदा स्वास्थ्य में सुधार और सतत् कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहित करना।
  • पशुधन एकीकरण: कृषि और पशुपालन को एकीकृत करते हुए पशुधन-आधारित मॉडलों (अधिमानतः स्थानीय गाय की नस्लें) को लोकप्रिय बनाना।
  • अनुसंधान एवं विस्तार: ICAR, KVK और कृषि विश्वविद्यालयों के माध्यम से कृषि-पारिस्थितिकी अनुसंधान और विस्तार सेवाओं को सुदृढ़ बनाना।
  • ज्ञान एकीकरण: अवस्थिति विशिष्ट जैविक कृषि (NF) पद्धतियों को विकसित करने के लिए कृषक अनुभव को वैज्ञानिक विशेषज्ञता के साथ जोड़ना।
  • मानक एवं प्रमाणन: रसायन-मुक्त उत्पादों के लिए वैज्ञानिक रूप से समर्थित मानक और किसान-अनुकूल प्रमाणन स्थापित करना।
  • राष्ट्रीय ब्रांडिंग: प्राकृतिक रूप से उगाए गए रसायन-मुक्त उत्पादों के लिए एक एकल राष्ट्रीय ब्रांड बनाना और उसका प्रचार करना।

NMNF के घटक

  • प्राकृतिक कृषि क्लस्टर: MNF का लक्ष्य 15,000 प्राकृतिक कृषि क्लस्टरों में 7.5 लाख हेक्टेयर भूमि को कवर करना है, जिनमें से प्रत्येक 50 हेक्टेयर क्षेत्र में 125 किसानों को कवर करेगा।
  • जैव-इनपुट संसाधन केंद्र (BRC): किसानों के लिए उपयोग के लिए तैयार इनपुट की आसान उपलब्धता हेतु 10,000 आवश्यकता-आधारित केंद्र स्थापित किए जाएँगे।
  • सामुदायिक सहायता: किसानों का मार्गदर्शन करने और सामुदायिक जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रति क्लस्टर दो कृषि सखियों/कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन (CRP) की तैनाती की जाएगी।

कृषि विज्ञान केंद्र (KVK)

  • उत्पत्ति: भारत में कृषि अनुसंधान के जनक माने जाने वाले प्रो. एम.एस. स्वामीनाथन द्वारा प्रतिपादित अवधारणा।
  • भूमिका: कृषि प्रौद्योगिकी के लिए ज्ञान एवं संसाधन केंद्र के रूप में कार्य करना।
  • संबंध: राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली (NARS) को विस्तार प्रणालियों और किसानों से जोड़ना।

कार्यान्वयन

  • प्रशिक्षण कार्यक्रम: KVK, कृषि विश्वविद्यालयों, स्थानीय राष्ट्रीय कृषि संस्थानों और मॉडल प्रदर्शन फार्मों के माध्यम से व्यापक प्रशिक्षण।
  • प्रोत्साहन: दो वर्षों में प्रति किसान 1 एकड़ तक प्रति वर्ष ₹4,000 प्रति एकड़ का उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन।
  • प्रमाणन: सहभागिता गारंटी प्रणाली (Participatory Guarantee System) भारत के अंतर्गत राष्ट्रीय जैविक एवं प्राकृतिक कृषि केंद्र (NCONF) द्वारा प्रबंधित सरल कृषक-अनुकूल प्रमाणन प्रणाली।
  • निगरानी: NMNF पोर्टल के माध्यम से रियल टाइम पर जियो-टैग द्वारा निगरानी।

अभिसरण एवं नीति एकीकरण

  • केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं के साथ समन्वय: केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण, ग्रामीण विकास, खाद्य प्रसंस्करण, पंचायती राज, आयुष, सहकारिता और पशुपालन।
  • बाजार संपर्क: पशुधन संवर्द्धन, प्राकृतिक संसाधन प्रदर्शन फार्मों और APMC, हाटों तथा डिपो के माध्यम से स्थानीय बाजार संपर्क के लिए राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ संबद्धता।
  • छात्र जुड़ाव: ग्रामीण कृषि कार्य अनुभव (RAWE) कार्यक्रम और प्राकृतिक संसाधन पर समर्पित स्नातक, स्नातकोत्तर और डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के माध्यम से छात्रों को राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन में शामिल किया जाएगा।

प्राकृतिक खेती की आवश्यकता

  • सीमित संसाधनों पर दबाव: लघु एवं सीमांत किसानों को मृदा और जल पर भारी दबाव का सामना करना पड़ता है, जिससे मृदा का क्षरण होता है और भू-जल स्तर गिरता है; प्राकृतिक संसाधन सतत् कृषि का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
  • हरित क्रांति के बाद का बदलाव: उच्च-इनपुट वाली कृषि से हटकर सतत्, जलवायु-अनुकूल प्रणालियों की ओर बढ़ना, जो पर्यावरणीय प्रभाव को कम करती हैं।
  • जन आंदोलन दृष्टिकोण: इसके लिए वैज्ञानिक समर्थन, दीर्घकालिक निवेश, तथा कृषक, स्वयं सहायता समूहों, PACS, FPO और स्थानीय राष्ट्रीय पशुपालन संस्थाओं को शामिल करते हुए मजबूत विस्तार नेटवर्क की आवश्यकता होती है।

प्राकृतिक कृषि से संबंधित चुनौतियाँ

  • उपज में प्रारंभिक कमी: पारंपरिक से प्राकृतिक कृषि में परिवर्तन प्रायः प्रारंभिक उपज में क्षरण का कारण बनता है।
  • जलवायु पर निर्भरता: जलवायु परिस्थितियों पर अत्यधिक निर्भरता जलवायु परिवर्तनशीलता के प्रति लचीलापन कम करती है। IPCC ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक कृषि प्रणालियों की स्थिरता और पूर्वानुमानशीलता के लिए जोखिम उत्पन्न करता है।
  • इनपुट तैयार करने में कठिनाइयाँ: जैविक इनपुट (जैसे- जीवामृत, बीजामृत) बनाने में समय, श्रम और संसाधनों की आवश्यकता होती है।
  • श्रीलंका से प्रेरणा: श्रीलंका में 100% जैविक खेती की ओर अचानक किए गए परिवर्तन और रासायनिक उर्वरकों पर प्रतिबंध के कारण चावल जैसी प्रमुख फसलों की उपज में भारी गिरावट आई, जिससे खाद्य सुरक्षा पर संकट गहराया और देश आर्थिक व राजनीतिक अस्थिरता की ओर बढ़ा।

जैविक कृषि बनाम प्राकृतिक कृषि 

पहलू प्राकृतिक कृषि  जैविक कृषि 
अवधारणा न्यूनतम मानवीय हस्तक्षेप का समर्थन, प्राकृतिक प्रक्रियाओं पर विश्वास; मासानोबु फुकुओका की “डू नथिंग फार्मिंग “ से प्रेरित। मृदा प्रबंधन और कीट नियंत्रण के लिए योजनाबद्ध हस्तक्षेप के साथ कंपोस्ट, गोबर की खाद और जैव-उर्वरक जैसी जैविक लागत का उपयोग किया जाता है।
लागत सभी रासायनिक और बाह्य उर्वरकों पर प्रतिबंधित मृदा की उर्वरता तथा कीट नियंत्रण के लिए जीवामृत, गीली घास और प्राकृतिक मिश्रण (जैसे- नीम का तेल) जैसे कृषि-व्युत्पन्न संसाधनों पर निर्भर करता है। स्वीकृत जैविक उर्वरकों जैसे कि वर्मीकंपोस्ट और हरी खाद का उपयोग करता है; कीटों के प्रबंधन के लिए जैविक और जैव-कीटनाशकों का प्रयोग करता है।
मृदा स्वास्थ्य मृदा की संरचना को नुकसान पहुँचाए बिना प्राकृतिक रूप से मृदा की पूर्ति के लिए यह मृदा में उपस्थित सूक्ष्मजीवों और कार्बनिक पदार्थों पर निर्भर करता है। जैविक संशोधनों और कभी-कभार जुताई के माध्यम से मृदा को समृद्ध बनाता है।
लागत कम लागत, कृषि-व्युत्पन्न सामग्री का उपयोग, न्यूनतम बाह्य लागत। जैविक लागत, मशीनरी, रखरखाव और प्रमाणीकरण की खरीद के कारण उच्च लागत।
फसल उपज प्रारंभिक उत्पादन कम हो सकता है, लेकिन समय के साथ स्थायी रूप से स्थिर हो जाएगी। सामान्यतः प्राकृतिक कृषि से अधिक लेकिन पारंपरिक कृषि से कम।

प्राकृतिक खेती को वैश्विक रूप से अपनाना

अंतरराष्ट्रीय पहल

  • COP-26 (ग्लासगो, नवंबर 2021) में, ब्रिटेन के नेतृत्व में 45 सरकारों ने प्रकृति की रक्षा और सतत् कृषि को बढ़ावा देने के लिए कार्रवाई का संकल्प लिया।
  • इस प्रतिबद्धता का उद्देश्य मृदा स्वास्थ्य में सुधार और किसानों के लिए सतत् कृषि तकनीकों को सुलभ बनाने हेतु 4 बिलियन डॉलर से अधिक के सार्वजनिक निवेश का लाभ उठाना था।

यूरोपीय संघ के उपाय

  • मई 2020 में, यूरोपीय संघ ने यूरोपीय ग्रीन डील के तहत ‘फार्म टू फोर्क’ रणनीति शुरू की।
  • इसके लक्ष्यों में रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग और जोखिमों को 50% तक कम करना और वर्ष 2030 तक सबसे खतरनाक कीटनाशकों के उपयोग को सीमित करना शामिल है।

श्रीलंका से प्रेरणा

  • श्रीलंका ने अप्रैल 2021 में रासायनिक उर्वरकों और कृषि रसायनों के आयात पर प्रतिबंध लगाते हुए पूरी तरह से जैविक कृषि अपनाने का प्रयास किया।
  • इस कदम से फसल का उत्पादन  कम हुआ और मुद्रास्फीति (कुल मिलाकर 8.3%, खाद्य मुद्रास्फीति 11.7%) में वृद्धि हुई।

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