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राष्ट्रीय दलहन मिशन

Lokesh Pal October 04, 2025 04:20 32 0

संदर्भ

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वित्त वर्ष 2025-26 से वित्त वर्ष 2030-31 की अवधि के लिए ₹11,440 करोड़ के वित्तीय परिव्यय के साथ दलहन में आत्मनिर्भरता मिशन को मंजूरी दे दी है।

  • मिशन का उद्देश्य घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना और दालों में आत्मनिर्भरता हासिल करना है।

मिशन के उद्देश्य

  • 2030-31 तक दालों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना।
  • आयात पर निर्भरता कम करना और विदेशी मुद्रा का संरक्षण करना।
  • आधुनिक तकनीकों के माध्यम से उत्पादन, उत्पादकता और किसानों की आय में वृद्धि करना।
  • जलवायु-अनुकूल और सतत् कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना।

वर्ष 2030-31 तक के लक्ष्य

  • दलहन की खेती का क्षेत्रफल 310 लाख हेक्टेयर तक बढ़ाना।
  • वित्त वर्ष 2023-24 में उत्पादन 24.2 मीट्रिक टन से बढ़ाकर 35 मीट्रिक टन करना।
  • उपज बढ़ाकर 1130 किलोग्राम/हेक्टेयर करना।
  • पर्याप्त ग्रामीण रोजगार के अवसर पैदा करना।

मिशन के प्रमुख घटक

  • अनुसंधान और बीज विकास
    • उच्च उपज देने वाली, कीट-प्रतिरोधी और जलवायु-प्रतिरोधी दलहन किस्मों पर ध्यान केंद्रित करना।
    • उपयुक्तता सुनिश्चित करने के लिए प्रमुख दलहन उत्पादक राज्यों में बहु-स्थानीय परीक्षण आयोजित करना।
    • राज्य पंचवर्षीय बीज उत्पादन योजनाएँ तैयार करेंगे, जिसमें भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) प्रजनक बीज उत्पादन की निगरानी करेगी।
    • साथी (बीज प्रमाणीकरण, अनुरेखणीयता और समग्र सूची) पोर्टल के माध्यम से आधारभूत और प्रमाणित बीज उत्पादन की निगरानी की जाएगी।
    • वित्त वर्ष 2030-31 तक 370 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में 126 लाख क्विंटल प्रमाणित बीज वितरित किए जाएँगे।
  • क्षेत्र का विस्तार
    • दलहन की खेती के अंतर्गत 35 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि लाने का लक्ष्य।
    • चावल की परती भूमि, विविधीकरण योग्य भूमि, अंतर-फसल और फसल विविधीकरण पर जोर।
    • किसानों को 88 लाख बीज किट निःशुल्क वितरित किए जाएँगे।
  • किसान क्षमता निर्माण
    • किसानों और बीज उत्पादकों के लिए संरचित प्रशिक्षण कार्यक्रम।
    • स्थायी तकनीकों और आधुनिक प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना।
    • ICAR, कृषि विज्ञान केंद्रों (Krishi Vigyan Kendras [KVK]) और राज्य विभागों द्वारा व्यापक प्रदर्शन।
  • बाजार और मूल्य शृंखला विकास
    • 1,000 प्रसंस्करण इकाइयों सहित कटाई-पश्चात् बुनियादी ढाँचे का विकास।
    • प्रसंस्करण और पैकेजिंग इकाइयों के लिए ₹25 लाख तक की सब्सिडी।
    • भौगोलिक विविधीकरण को बढ़ावा देने और हस्तक्षेपों को अनुकूलित करने के लिए क्लस्टर-आधारित दृष्टिकोण।
  • खरीद और मूल्य समर्थन
    • PM-आशा की मूल्य समर्थन योजना (Price Support Scheme [PSS]) के अंतर्गत तुअर, उड़द और मसूर की सुनिश्चित खरीद।
    • NAFED और NCCF अगले चार वर्षों (2029-30 तक) के लिए भागीदार राज्यों में 100% खरीद करेंगे।
    • किसानों का विश्वास बनाए रखने के लिए वैश्विक दलहन कीमतों की निगरानी हेतु तंत्र।
  • अभिसरण और समर्थन उपाय
    • मृदा स्वास्थ्य कार्यक्रम, कृषि यंत्रीकरण उप-मिशन, उर्वरक संतुलन और पौध संरक्षण के साथ संबंध।
    • दीर्घकालिक स्थिरता के लिए जलवायु-अनुकूल प्रथाओं को बढ़ावा देना।

महत्त्व

  • खाद्य सुरक्षा: बढ़ती आय और बेहतर जीवन स्तर के कारण घरेलू माँग में वृद्धि हुई है।
    • सबसे बड़ा आयातक: वैश्विक दाल आयात में भारत का योगदान 14% है।
    • वित्त वर्ष 2025 में, आयात नौ वर्षों के उच्चतम स्तर 67 लाख टन पर पहुँच गया।
  • आर्थिक लाभ: बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की बचत; किसानों की आय में वृद्धि।
  • पर्यावरणीय प्रभाव: जलवायु-प्रतिरोधी प्रथाओं को प्रोत्साहित करता है, मृदा स्वास्थ्य में सुधार करता है और फसल परती क्षेत्रों का उत्पादक उपयोग करता है।
  • सामरिक महत्त्व: दालों में आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करके आत्मनिर्भर भारत में योगदान देता है।

भारत में दालों की वर्तमान स्थिति

  • सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और आयातक: भारत विश्व में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक (वैश्विक उत्पादन का 25%), उपभोक्ता (वैश्विक उपभोग का 27%) और आयातक (14%) है।
  • पोषण संबंधी भूमिका: दालें, पादप प्रोटीन का सबसे सस्ता स्रोत हैं, जो कुपोषण से निपटने के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
  • आजीविका संबंधी भूमिका: 5 करोड़ से अधिक किसान और परिवार दालों पर निर्भर हैं, विशेषतः वर्षा आधारित और सीमांत क्षेत्रों में।
  • उत्पादन पैटर्न: लगभग 80% वर्षा आधारित है, इसलिए जलवायु परिवर्तनशीलता के प्रति संवेदनशील है।
  • क्षेत्रीय संकेंद्रण: उत्पादन क्षेत्रीय रूप से संकेंद्रित है, जिसमें मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान का योगदान लगभग 55% है, और शीर्ष 10 राज्य राष्ट्रीय उत्पादन में 91% से अधिक का योगदान करते हैं।
    • निहितार्थ: कुछ राज्यों पर अत्यधिक निर्भरता उत्पादन को क्षेत्रीय रूप से विषम और जलवायु के प्रति संवेदनशील बनाती है।
  • हाल की प्रगति
    • उत्पादन वित्त वर्ष 2015-16 में 16.35 मीट्रिक टन से बढ़कर वित्त वर्ष 2022-23 में 26.06 मीट्रिक टन (59.4% से अधिक) हो गया।
    • उन्नत किस्मों और सरकारी योजनाओं के कारण उत्पादकता में 38% की वृद्धि हुई, जिससे औसत उत्पादकता 851 किग्रा./हेक्टेयर तक पहुँच गई।

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