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राष्ट्रीय बीज कांग्रेस 2024

Lokesh Pal December 04, 2024 04:42 58 0

संदर्भ

हाल ही में राष्ट्रीय बीज कांग्रेस (National Seed Congress-NSC) का 13वाँ संस्करण उत्तर प्रदेश में संपन्न हुआ, जिसमें वैज्ञानिकों, नीति निर्माताओं और उद्योग जगत के नेताओं सहित 700 से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।

संकर फसलें (Hybrid Crops)

  • परिभाषा: एक ही प्रजाति की दो अलग-अलग किस्मों की क्रॉस-ब्रीडिंग करके दोनों प्रजातियों (नर-मादा) से वांछनीय गुणों वाली प्रजाति उत्पन्न करना।
  • उदाहरण: चावल, गेहूँ, मक्का और कपास की संकर किस्मों की भारत में व्यापक रूप से खेती की जाती है जैसे- सोनालिका जो हरित क्रांति में शुरू की गई रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली उच्च उपज देने वाली गेहूँ की किस्म है।
  • लाभ: उपज में वृद्धि, रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार और पोषण मूल्य में वृद्धि।

बायोफोर्टिफाइड फसलें (Biofortified Crops)

  • परिभाषा: ऐसी फसलें, जिन्हें आनुवंशिक रूप से तैयार किया गया है ताकि उनमें विटामिन, खनिज और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों जैसी आवश्यक पोषण सामग्री का उच्च स्तर हो।
  • उदाहरण: गोल्डन राइस (विटामिन A से भरपूर), आयरन-फोर्टिफाइड चावल और बीन्स।
  • लाभ: बेहतर पोषण मूल्य, कम कुपोषण और बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य सुनिश्चित करती है।

राष्ट्रीय बीज सम्मेलन के बारे में

  • राष्ट्रीय बीज कांग्रेस (NSC) एक वार्षिक आयोजन है, जिसमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के शोधकर्ता, नीति निर्माता, किसान और हितधारक एक साथ आते हैं।
  • यह भारत और विश्व स्तर पर कृषि को मजबूत करने के लिए बीज उत्पादन, फसल सुधार और वितरण प्रणालियों में प्रगति पर चर्चा करने के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है।
  • केंद्रीय कृषि मंत्रालय और अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (IRRI) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया जाता है।

उद्देश्य

  • नवाचार को बढ़ावा देना: बीज उत्पादन और फसल सुधार में अनुसंधान और तकनीकी प्रगति को प्रोत्साहित करना।
  • सहयोग को बढ़ावा देना: बीज उद्योग में सार्वजनिक-निजी भागीदारी और क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत करना।
  • किसान सशक्तीकरण को बढ़ावा देना: किसानों, बीज उद्यमियों और अन्य हितधारकों के बीच क्षमता निर्माण करना। 
  • नीतिगत विकास: क्षेत्र को विनियमित करने और सुधारने के लिए नए बीज विधेयक जैसे ढाँचे और सुधारों पर विचार-विमर्श करना।
  • सतत् कृषि: जलवायु परिवर्तन, कुपोषण और खाद्य सुरक्षा जैसी वैश्विक चुनौतियों का समाधान स्थायी प्रथाओं के माध्यम से करना।

NSC 2024 थीम: सतत् बीज पारिस्थितिकी तंत्र के लिए नवाचार

  • सतत् बीज पारिस्थितिकी तंत्र: खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, सतत् बीज पारिस्थितिकी तंत्र किसानों को समय पर, किफायती और उच्च गुणवत्ता वाली उपयुक्त फसल किस्मों के बीज उपलब्ध कराता है, जो सतत् कृषि के लिए आवश्यक हैं।
    • कुपोषण से निपटने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए संकर तथा बायोफोर्टिफाइड फसलों पर ध्यान केंद्रित करता है। 
  • जलवायु-लचीला अभ्यास: जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने के लिए तनाव-सहिष्णु बीज किस्मों की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
    • कृषि इनपुट लागत को कम करने के लिए प्रत्यक्ष बीज वाले चावल और शून्य जुताई जैसी प्रथाओं को प्रोत्साहित करता है।

  • त्वरित प्रजनन चक्र (Accelerated Breeding Cycles): बाजार में नवीन बीजों को शीघ्रता से लाने के लिए प्रजनन समय को कम करने पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • फसल की लचीलापन और उपज बढ़ाने के लिए अत्याधुनिक प्रजनन प्रौद्योगिकियों का कार्यान्वयन।

नीति और साझेदारी अनुशंसाएँ

  • नीतिगत रूपरेखा: बीज उद्योग को विनियमित करने और गुणवत्ता मानकों को सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक नए बीज विधेयक की आवश्यकता है।
    • बीज उत्पादन और वितरण में प्रमुख हितधारकों के रूप में किसानों को सशक्त बनाने के लिए बीज उद्यमिता को बढ़ावा देना।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): सतत् बीज उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सरकारी निकायों और निजी संस्थाओं के बीच सहयोग किया जाना चाहिए।
    • आपूर्ति शृंखलाओं को मजबूत करने और गुणवत्ता वाले बीजों तक पहुँच सुनिश्चित करने की पहल की जा रही है।
  • बीज पार्कों का विकास: उच्च गुणवत्ता वाले बीजों के अनुसंधान, विकास और बड़े पैमाने पर उत्पादन की सुविधा के लिए बीज पार्कों की स्थापना करना।
    • उत्तर प्रदेश को उच्च गुणवत्ता वाले बीज उत्पादन का केंद्र बनाने की योजना, जिसमें संकर, बायोफोर्टिफाइड फसलों और सब्जी के बीजों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
  • किसानों के लिए सहायता: उत्पादकता और लाभप्रदता को बढ़ावा देने के लिए बेहतर बीजों तक पहुँच के माध्यम से किसानों को सशक्त बनाना।
    • आत्मनिर्भरता और आर्थिक विकास में सुधार के लिए किसान-नेतृत्व वाली बीज उद्यमिता को प्रोत्साहित करना।
  • वैश्विक और स्थानीय सहयोग: कांग्रेस ने कृषि चुनौतियों से निपटने में अंतरराष्ट्रीय भागीदारी के महत्त्व को रेखांकित किया।
    • मौजूदा प्रणालियों में बायोफोर्टिफाइड चावल और संकर बीजों को एकीकृत करने के प्रयास सतत् विकास की दिशा में एक कदम दर्शाते हैं।

भारत के बीज पारिस्थितिकी तंत्र में चुनौतियाँ

  • बीज प्रतिस्थापन दर (SRR): SRR खेत से बचाए गए बीजों के बजाय प्रमाणित बीजों से बोए गए फसल क्षेत्र के अनुपात को दर्शाता है।
    • भारत का SRR अधिकांश फसलों के लिए लगभग 15-20% है, हालाँकि यह संकर बीजों के लिए 100% तक पहुँच जाता है।
  • मोनोकल्चर खेती (Monoculture Farming): बीटी कपास की व्यापक खेती जैव-विविधता को कम करती है और कीटों की संवेदनशीलता को बढ़ाती है।
  • बीज बाजार पर एकाधिकार: बहुराष्ट्रीय निगमों (जैसे- बेयर) का प्रभुत्व स्थानीय रूप से अनुकूलित बीजों तक पहुँच को सीमित करता है।
  • अन्य मुद्दे
    • अद्यतन कानून का अभाव (जैसे- लंबित बीज विधेयक)।
    • बीज उद्यमिता को अपर्याप्त प्रोत्साहन।

बीज उपलब्धता में सुधार के लिए सरकारी पहल

  • राष्ट्रीय बीज निगम (NSC): वर्ष 1963 में स्थापित, यह 60 फसलों की 600 से अधिक किस्मों के लिए आधारभूत और प्रमाणित बीज तैयार करता है।
  • बीज अधिनियम, 1966: बीज की गुणवत्ता को विनियमित करता है और राज्य बीज प्रमाणन एजेंसियों की स्थापना करता है।
  • राष्ट्रीय बीज नीति, 2002: किस्मों के विकास, बीज की गुणवत्ता आश्वासन और बौद्धिक संपदा संरक्षण पर जोर देती है।
  • बीज ग्राम कार्यक्रम (बीज ग्राम योजना): इसका उद्देश्य किसानों द्वारा बचाए गए बीजों की गुणवत्ता में सुधार करना है।
  • राष्ट्रीय बीज भंडार: जलवायु संबंधी व्यवधानों या आपात स्थितियों के दौरान बीज की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए भंडार बनाए रखता है।

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