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सुंदरबन के पारिस्थितिकी सुधार हेतु प्रकृति आधारित समाधान

Lokesh Pal March 28, 2024 06:40 215 0

संदर्भ

  • पर्यावरण अध्ययन रिपोर्ट में पाया गया कि बांग्लादेश और भारत की विभिन्न नदियों से प्रत्येक वर्ष चार मिलियन टन माइक्रोप्लास्टिक बंगाल की खाड़ी और सुंदरबन में छोड़ा जाता है। इसके अतिरिक्त, सुंदरबन मैंग्रोव प्रणाली में मीठे जल का प्रवेश कम हो पाता है।
    • विशेषज्ञों के अनुसार, ताजा भूजल 250 मीटर से अधिक गहराई में पाया जा सकता है, किंतु कुछ मामलों में सुंदरबन में भूजल प्रकृति में खारा है।

सुंदरबन के बारे में

  • परिचय: यह दुनिया के सबसे अधिक जैव विविधता वाले मैंग्रोव वनों में से एक है।
    • 12 मिलियन से अधिक लोग (भारत में 4.5 मिलियन एवं बांग्लादेश में 7.5 मिलियन) इस पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर हैं।
  • वनस्पति और जीव: यह वनस्पतियों की 84 प्रजातियों को आश्रय प्रदान करता है, जिनमें 26 मैंग्रोव प्रजातियाँ, 453 प्रजातियाँ जीव-जंतु, 120 मछली की प्रजातियाँ, 290 प्रजातियाँ पक्षी, 42 प्रजातियाँ स्तनधारी, 35 सरीसृप एवं आठ उभयचर प्रजातियाँ शामिल हैं।

महत्त्व

  • मैंग्रोव जलवायु संरक्षक एवं आजीविका के स्रोत हैं।
  • आर्थिक और औषधीय मूल्य: हेतल (Hetal), कायोरा (Kayora) एवं गोलपाटा (Golpata) के फल व्यावसायिक बाजारों में बेचे जाते हैं।
  • होगला (Hogla) के फूलों का उपयोग खाद्य उद्योग में स्वादिष्ट व्यंजन बनाने के लिए किया जा सकता है एवं सूखी पत्तियों से रस्सियाँ तैयार की जा सकती हैं।
  • UNESCO विश्व धरोहर स्थल (UNESCO WHS): सुंदरबन एक रामसर स्थल एवं UNESCO विश्व धरोहर स्थल है।

संबंधित तथ्य

  • ज्वारीय नदियों (Tidal Rivers) एवं मैंग्रोव पर निर्भर: सुंदरबन गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना (GBM) डेल्टा में अवस्थित है तथा ज्वारीय नदियों एवं मैंग्रोव पर निर्भर है।
    • नदियाँ अधिकतर खारी हैं क्योंकि वे ‘मूल नदी’ से पृथक हैं। सुंदरबन बायोस्फीयर रिजर्व में ताजे पानी की कमी एक ज्वलंत मुद्दा है।
  • प्रमुख प्रभावकारी कारक: इनमें नदी का कटाव, वन संसाधनों का दोहन, मनुष्यों एवं जानवरों के बीच संघर्ष, ह्यूमन ट्रैफिकिंग, मानव हस्तक्षेप (पर्यटन गतिविधियाँ, मछली पकड़ना, छोटे पैमाने के व्यवसाय आदि), जंगली जानवरों का शिकार एवं बेरोजगारी शामिल हैं।
    • जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल के अनुसार, तापमान वृद्धि का मैंग्रोव वन के पारिस्थितिकी तंत्र पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
    • इसके अलावा, मैंग्रोव वनीकरण के लिए गैर-वन भूमि का उपयोग स्थिति को और भी खराब कर देता है।
    • बांग्लादेश के मोंगला बंदरगाह और भारत के लेदर एस्टेट के कारण हाइड्रोकार्बन एवं समुद्री पेंट जैसे रसायन नदियों तथा जल पारिस्थितिकी तंत्र को प्रदूषित करते हैं।
  • तटीय अपरदन (Coastal Erosion): इसके कारण, नदी के  खारे पानी से भूमि का अतिक्रमण हो गया है। इसने कई निवासियों को पश्चिम बंगाल एवं भारत के अन्य हिस्सों के शहरों तथा छोटे कस्बों में पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया है।
    • भारत के 104 द्वीपों में से 54 पर मानव बस्तियाँ हैं।
  • वनवासियों पर प्रभाव: जल की लवणता में वृद्धि, पर्यावरण प्रदूषण, सामाजिक-राजनीतिक अस्थिरता, जैव विविधता एवं समुद्र के स्तर में परिवर्तन, स्थानीय नदियों और खाड़ियों की बदलती विशेषताओं, नदी के कटाव तथा बुनियादी ढाँचे के मुद्दों ने वनवासियों के लिए स्थिति को कठिन बना दिया है। .
    • हितधारकों द्वारा भ्रष्टाचार एवं धोखाधड़ी की प्रथाएँ सुंदरबन पारिस्थितिकी तंत्र के सामने आने वाली चुनौतियों को धीरे-धीरे बढ़ा रही हैं।

आगे की राह

  • प्रकृति आधारित समाधान: ये सुंदरबन के लोगों एवं पर्यावरण का समर्थन करने का एक अच्छा तरीका हो सकता है। ऐसा ही एक उदाहरण स्ट्रीमबैंक की सुरक्षा के लिए है।
  • वेटिवर (Vetiver) की खेती करने के बजाय, अन्य घास प्रजातियाँ जैसे जंगली चावल (Porteresia Coarctata), मायरियोस्टैच्या वाइटियाना, बिस्किट घास (Paspalum Vaginatum), तथा नमक काउच घास  (Sporobolus Virginicus) की खेती की जा सकती है।
    • वेटिवर (Vetiver) एक स्थानीय प्रजाति नहीं है एवं इसमें लवण आधारित सहनशीलता की कमी है।
  • सतत कृषि को बढ़ावा देना: मृदा-सहिष्णु धान की किस्मों जैसे- दरसल (Darsal), नोना बोकरा (Nona Bokra), तालमुगुर (Talmugur) आदि की खेती की जानी चाहिए।
    • टिकाऊ कृषि को समर्थन देने के लिए सरकारी एवं गैर-सरकारी संगठनों द्वारा फसल की खेती को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
    • वर्षा जल संचयन एवं वाटरशेड संबंधी विकास पहलों को लागू करने से कृषि उत्पादन में वृद्धि होगी।
    • समर्सिबल पंपों के उपयोग को कम करना एवं हरित व्यवसाय शुरू करने के लिए महिलाओं द्वारा संचालित स्वयं सहायता समूहों तथा किसान उत्पादक संगठनों की स्थापना को बढ़ावा देना सतत विकास में योगदान दे सकता है।
    • अवैज्ञानिक कृषि पद्धतियों एवं अस्थिर सिंचाई विधियों को रोकने के प्रयास किए जाने चाहिए।
    • कार्बन क्रेडिट के अवसरों की खोज टिकाऊ प्रथाओं को प्रोत्साहित करते हुए विकास गतिविधियों का समर्थन कर सकती है।
  • जैविक कृषि को बढ़ावा देना: इससे पर्यावरणीय स्वास्थ्य को बनाए रखते हुए किसानों को अपनी आय बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
  • कृषि आधारित सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों की स्थापना: यह ग्रामीण सकल घरेलू उत्पादों में सुधार तथा रोजगार के अवसर उत्पन्न करने में योगदान दे सकता है।
    • औषधीय पौधों की खेती का समर्थन किसानों के लिए अतिरिक्त आय स्रोत प्रदान कर सकता है।
    • विभिन्न उत्पादों को विकसित करने के लिए गैर-लकड़ी वन संसाधनों का उपयोग प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण को सुनिश्चित करते हुए आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकता है।
  • सौर एवं जैव ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करने वाली नीतियाँ: यह क्षेत्र में आजीविका का समर्थन करने में महत्त्वपूर्ण सहायता कर सकती है।
  • लैंगिक समानता: यह भारतीय समाज में सर्वोपरि है एवं सुंदरबन में किसी भी विकास परियोजना के कार्यान्वयन तथा डिजाइन में महिला संचालित किसान उत्पादक संगठनों एवं स्वयं सहायता समूहों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
  • स्वास्थ्य देखभाल: सुंदरबन के निवासियों के लिए वैश्विक मानकों का पालन करने वाली अच्छी तरह से सुसज्जित स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएँ स्थापित करना आवश्यक है।
  • अपशिष्ट प्रबंधन: जल, स्वच्छता एवं स्वच्छता प्रथाओं के साथ-साथ प्रभावी ठोस तथा तरल अपशिष्ट प्रबंधन, सुंदरबन में स्थिरता के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
  •  आपदा तैयारी और शमन नीतियाँ: वे सुंदरबन में जलवायु जोखिमों को संबोधित करने के लिए अनिवार्य हैं।
    • ऐसी नीतियों की उचित अवधारणा एवं कार्यान्वयन क्षेत्र में अन्य विकास परियोजनाओं का पूरक हो सकता है।
  • जिम्मेदार और सतत पर्यटन: सुंदरबन के अनूठे भोजन एवं संस्कृति में इस क्षेत्र में पर्यटकों को आकर्षित करने की क्षमता है, जो इसके आर्थिक विकास में योगदान देता है।
    • यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि सुंदरबन को समर्पित परियोजनाओं की प्रभावशीलता एवं जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सक्षम एजेंसियों द्वारा गहन ऑडिट तथा निगरानी की जाए।
  • सूचना, शिक्षा एवं संचार गतिविधियाँ: इससे हितधारकों के बीच स्थिरता तथा स्वच्छता को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।

सुंदरबन की सुरक्षा के लिए मैंग्रोव संसाधनों का उपयोग करना

  • तालाब के जल पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्स्थापित करना: विभिन्न जलीय पौधों एवं मैंग्रोव पौधों जैसे- ई. क्रैसिप्स (E Crassipes), पी. स्ट्रैटियोट्स (P Stratiotes), आर. म्यूक्रोनाटा (R Mucronata) तथा बी. जिम्नोराइजा (B Gymnorrhiza) साथ ही दो अलग-अलग समुद्री शैवाल जैसे- एस वाइटी (S Wightii) एवं के अल्वारेजी (K Alvarezii) और शैवाल अनाबेना एसपी (Anabaena sp) का उपयोग तालाब के जल पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने के लिए किया जा सकता है। 
  • स्वदेशी भारतीय प्रमुख कार्प जैसे रोहू (Labeo rohita), कतला (Catla catla), मृगल (Cirrhinus mrigala), सिल्वर कार्प (Hypophthalmichthys molitrix), नील तिलापिया  (Oreochromis niloticus), भेटकी (Lates calcarifer), पारसे (Mugil parsia) एवं भांगर (Mugil tada) तालाबों के जल पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने में सहायता कर सकता है।
  • अपशिष्ट जल उपचार: प्रभावी अपशिष्ट जल उपचार में शामिल मुख्य प्रजातियाँ लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया जैसे Lactobacillus plantarum, L casei एवं Streptococcus lacti तथा प्रकाश संश्लेषक बैक्टीरिया जैसे Rhodopseudomonas palustrus एवं Rhodobacter spaeroide  हैं।
  • एक्सिगुओबैक्टीरियम ऑरेंटियाकम (Exiguobacterium aurantiacum) में फिनोल और पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन को विघटित करने की क्षमता होती है।
  • जैविक अपशिष्टों का खनिजकरण: बैसिलस, स्यूडोमोनास, एसिनेटोबैक्टर, सेलुलोमोनास, रोडोसुडोमोनास, नाइट्रोसोमोनास एवं नाइट्रोबैक्टर जेनेरा से संबंधित जीवाणु प्रजातियाँ इसमें मदद करने के लिए जानी जाती हैं।
    • यह अनुशंसा की जाती है कि मलबे को फँसाने एवं लाभकारी बैक्टीरिया के विकास को बढ़ावा देने के लिए बायोफिल्टर स्थापित किया जाए।
    • सौर तालाब फाउन्टेन जलवाहक (Solar Pond Fountain Aerators) स्थापित करने से पारिस्थितिकी तंत्र में और सुधार हो सकता है।

मैंग्रोव के बारे में

  • स्थान: मैंग्रोव उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं, यानी 25°N तथा 25°S अक्षांश के बीच।
  • चरम स्थितियों में जीवित रहना: मैंग्रोव में तटीय पर्यावरण की चरम स्थितियों में जीवित रहने के लिए विशेष अनुकूलन होता है।
  • अनॉक्सी मृदा (Anoxic Soil) में भी पनपना: उनमें जलजमाव एवं अनॉक्सी मृदा में जीवित रहने की क्षमता होती है तथा अनुकूलन के साथ खारे जल में सहनीय क्षमता होती है:
    • स्टिल्ट जड़ें
    • न्यूमेटोफोर्स
    • नमक उत्सर्जन ग्रंथियाँ
    • साल्ट एक्सक्लूडिंग रूट
    • विविपेरस बीज (Viviparous Seeds)
  • वैश्विक स्थिति: इंडोनेशिया में मैंग्रोव वन का सबसे बड़ा क्षेत्र (कुल क्षेत्र का 20%) है इसके बाद ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया, मैक्सिको एवं नाइजीरिया हैं, जिनमें कुल मिलाकर दुनिया के लगभग आधे मैंग्रोव हैं।

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