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NCRB रिपोर्ट के मुख्य बिंदु

Lokesh Pal October 03, 2025 03:00 47 0

संदर्भ

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने अपनी प्रमुख वार्षिक सांख्यिकीय रिपोर्टें जारी कीं, जिनके शीर्षक हैं- भारत में जेल सांख्यिकी (PSI) 2023 रिपोर्ट, भारत में अपराध 2023 रिपोर्ट, और भारत में आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्या (ADSI) 2023 रिपोर्ट, जो देश भर में अपराध, जेलों, आकस्मिक मृत्यु तथा आत्महत्याओं के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती हैं।

रिपोर्ट के संबंध में अन्य तथ्य

  • भारत में अपराध रिपोर्ट: NCRB का सबसे पुराना प्रकाशन, यह पंजीकृत अपराधों, मामलों के निपटारे, गिरफ्तारियों और कमजोर समूहों (महिलाओं, बच्चों, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, वरिष्ठ नागरिकों) के विरुद्ध अपराधों को शामिल करता है।
    • इसमें साइबर अपराध, मानव तस्करी और पर्यावरण संबंधी अपराध जैसे उभरते क्षेत्र भी शामिल हैं।
  • भारत कारागार सांख्यिकी (PSI) रिपोर्ट: जेलों, कैदियों और जेल के बुनियादी ढाँचे पर केंद्रित है।
    • इसमें लैंगिक और आयु आधारित कैदियों से संबंधित डेटा, जेल की क्षमता, स्टाफिंग, बजट, व्यावसायिक प्रशिक्षण और कल्याणकारी उपाय शामिल हैं।
    • यह भारत में सुधारात्मक सुविधाओं पर प्रमुख डेटाबैंक के रूप में कार्य करता है।
  • भारत में आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्या (ADSI) रिपोर्ट: आकस्मिक मृत्यु (प्राकृतिक और अप्राकृतिक कारणों से) और आत्महत्याओं, जिनमें सड़क दुर्घटनाएँ, पीड़ितों का व्यावसायिक तथा सामाजिक विवरण एवं किसान आत्महत्याएँ शामिल हैं, पर विस्तृत डेटा प्रदान करता है।
    • यह इस विषय पर सबसे व्यापक राष्ट्रीय डेटाबैंक है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के बारे में

  • स्थापना: अपराध और अपराधियों पर सूचना संग्रह के रूप में वर्ष 1986 में गठित, NCRB भारत सरकार के गृह मंत्रालय (MHA) के अधीन कार्य करता है।
  • उत्पत्ति: NCRB की स्थापना टंडन समिति, राष्ट्रीय पुलिस आयोग (1977-1981) और गृह मंत्रालय के कार्यबल की सिफारिशों के आधार पर की गई थी।
  • भूमिका: यह अपराध संबंधी आँकड़ों को एकत्रित करने, उनका विश्लेषण करने और उनके प्रबंधन हेतु उत्तरदायी है तथा अपराधों और अपराधियों का पता लगाने में जाँचकर्ताओं की मदद करने के लिए बहुमूल्य जानकारी प्रदान करता है।
  • मुख्यालय: नई दिल्ली।
  • प्रकाशन: इसकी प्रमुख रिपोर्टों में भारत में अपराध, आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्याएँ, और कारागार संबंधी आँकड़े शामिल हैं, जिनमें राष्ट्रीय अपराध प्रवृत्तियों और पैटर्न का विवरण प्रदान किया गया है।

NCRB के कार्य

  • अपराध और अपराधी ट्रैकिंग नेटवर्क और प्रणाली (CCTNS): वर्ष 2009 से, NCRB CCTNS परियोजना की निगरानी, ​​समन्वय और कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार रहा है। यह एक ऐसा नेटवर्क है, जो देश भर के पुलिस थानों को जोड़कर आपराधिक सूचनाओं का एक केंद्रीकृत डेटाबेस तैयार करता है।
  • राष्ट्रीय डिजिटल पुलिस पोर्टल: इसे वर्ष 2017 में लॉन्च किया गया, यह पोर्टल पुलिस अधिकारियों को अपराधियों और संदिग्धों पर नजर रखने में मदद के लिए CCTNS डेटा तक पहुँच प्रदान करता है। यह नागरिकों को ऑनलाइन शिकायत दर्ज करने जैसी सेवाओं का उपयोग करने की भी अनुमति देता है।
  • यौन अपराधियों का राष्ट्रीय डेटाबेस (NDSO): NCRB इस डेटाबेस का रखरखाव करता है और अपराधियों की निगरानी में सहायता के लिए इसे नियमित रूप से राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के साथ साझा करता है।
  • ऑनलाइन साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल: NCRB इस पोर्टल के लिए केंद्रीय नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है, जिससे नागरिक साइबर अपराधों, विशेष रूप से चाइल्ड पोर्नोग्राफी और यौन अपराधों से संबंधित अपराधों की रिपोर्ट कर सकते हैं और साक्ष्य अपलोड कर सकते हैं।
  • सेंट्रल फिंगरप्रिंट ब्यूरो: NCRB इसकी देखरेख करता है और पूरे भारत में अपराध जाँच और सत्यापन प्रक्रियाओं में सहायक अभिलेखों का भंडारण और रखरखाव करता है।

A. भारत में अपराध, 2023 रिपोर्ट

भारत में अपराध, 2023 रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष

  • समग्र अपराध: वर्ष 2023 में 6.24 मिलियन मामले दर्ज किए गए (वर्ष 2022 से 7.2% वृद्धि)।
    • अपराध दर: प्रति लाख जनसंख्या पर 448.3 (वर्ष 2022 में 422.2 से ऊपर)।
    • भारत में औसतन प्रत्येक 5 सेकंड में एक अपराध होता है।
  • बदलता पैटर्न: पारंपरिक हिंसक अपराध (हत्या-2.8% की कमी), दुष्कर्म (5.9% की कमी), दहेज हत्या (4.6% की कमी), दुष्कर्म का प्रयास (15%की कमी ) में गिरावट देखी जा रही है, जबकि साइबर और शहरी अपराध (तीव्रगति से गाड़ी चलाना-7.5% की वृद्धि), सार्वजनिक मार्ग में बाधा डालना (62% की वृद्धि) आदि बढ़ रहे हैं।
    • साइबर अपराध: भारत में साइबर अपराध वर्ष 2023 में 31.2% बढ़ा, जिसमें अधिकतर मामले धोखाधड़ी से संबंधित थे।
      • कर्नाटक में सर्वाधिक साइबर अपराध के मामले (21,889) दर्ज किए गए, उसके बाद तेलंगाना (18,236) और उत्तर प्रदेश (10,794) का स्थान रहा।
    • महानगरीय शहर: महानगरीय शहरों में अपराध के मामले 10.6% बढ़कर 9.44 लाख हो गए, जिनमें 44.8% चोरी के मामले, 9.2% लापरवाही से गाड़ी चलाने के मामले और 8.1% सार्वजनिक मार्गों पर बाधा डालने के मामले थे।
      • दिल्ली में सर्वाधिक मामले सामने आए।
  • कमजोर वर्गों के विरुद्ध अपराध
    • महिलाएँ: महिलाओं के विरुद्ध अपराध में मामूली वृद्धि (0.7%) हुई, फिर भी घरेलू हिंसा (29.8%) प्रमुख बनी हुई है।
    • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति: अनुसूचित जातियों (SC) के विरुद्ध अपराध में मामूली वृद्धि हुई, हालाँकि अनुसूचित जनजातियों के विरुद्ध अपराध में 28.8% की वृद्धि हुई, जिसमें जातीय हिंसा के कारण मणिपुर सबसे आगे रहा (3,399 मामले, जो वर्ष 2022 में केवल 1 थे)।
      • मध्य प्रदेश दूसरे स्थान पर रहा, उसके बाद राजस्थान का स्थान था, राजस्थान की भूमिका विशेष रूप से महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि इसने मणिपुर और अन्य क्षेत्रों के आदिवासी समुदायों के सामने मौजूद निरंतर खतरे और जोखिम को उजागर किया।
    • बच्चे: बच्चों के विरुद्ध अपराध (9.2%) में वृद्धि हुई, जिसमें POSCO के तहत एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा शामिल है, जो बच्चों की सुभेद्यता और अधिनियम के तहत बेहतर रिपोर्टिंग दोनों को दर्शाता है।

अपराध रोकथाम और न्याय को मजबूत करने के मार्ग

  • साइबर सुरक्षा और डिजिटल साक्षरता को मजबूत करना: प्रत्येक राज्य में उन्नत फोरेंसिक क्षमताओं वाली विशेष साइबर अपराध पुलिस इकाइयाँ स्थापित करना।
    • नागरिकों, विशेषकर बुजुर्गों और ग्रामीण उपयोगकर्ताओं जैसे कमजोर समूहों को ऑनलाइन धोखाधड़ी से बचाने के लिए डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों का विस्तार करना।
  • शहरी अपराध प्रबंधन: महानगरीय प्रबंधन (CCTV, AI-आधारित यातायात निगरानी) में स्मार्ट निगरानी प्रणालियाँ लागू करना।
    • सड़क सुरक्षा अभियानों को प्राथमिकता देना और लापरवाही से गाड़ी चलाने तथा बाधा उत्पन्न करने से संबंधित अपराधों के सख्त प्रवर्तन को बढ़ावा देना।
    • विश्वास बहाली और त्वरित प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिए उच्च अपराध वाले शहरी क्षेत्रों में सामुदायिक पुलिसिंग मॉडल को बढ़ावा देना।
  • कमजोर समूहों की सुरक्षा
    • महिलाएँ: परामर्श और आश्रय गृहों का विस्तार करना; विशेष अदालतों के माध्यम से घरेलू क्रूरता और उत्पीड़न के मामलों की त्वरित सुनवाई करना।
    • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति: अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के प्रवर्तन को सुदृढ़ करना, उच्च दोषसिद्धि दर सुनिश्चित करना और सामाजिक पूर्वाग्रह को कम करने के लिए सामुदायिक जागरूकता अभियान संचालित करना।
    • बच्चे: POCSO जागरूकता कार्यक्रमों का दायरा बढ़ाना, बाल-अनुकूल पुलिस थानों में निवेश करना और तस्करी तथा दुर्व्यवहार के पीड़ितों के पुनर्वास का विस्तार करना।
  • न्यायिक और पुलिस सुधार: लंबित मामलों को कम करने और दोषसिद्धि दर बढ़ाने के लिए विचाराधीन मामलों की त्वरित सुनवाई करना।
    • डेटा-संचालित अपराध मानचित्रण, पूर्वानुमान विश्लेषण और एकीकृत आपराधिक डेटाबेस के साथ पुलिस व्यवस्था का आधुनिकीकरण करना।
    • पुलिसकर्मियों के लिए बेहतर प्रशिक्षण और मानसिक स्वास्थ्य सहायता सुनिश्चित की जानी चाहिए, विशेषकर उन मामलों में जहाँ संवेदनशील अपराध जैसे लैंगिक आधारित हिंसा, जाति से जुड़े अपराध और बच्चों से संबंधित अपराधों से निपटना होता है।
  • सामुदायिक और निवारक हस्तक्षेप: स्कूलों, पंचायतों और स्थानीय नेताओं को शामिल करते हुए, जमीनी स्तर पर हिंसा-निवारण कार्यक्रमों को बढ़ावा देना।
    • पीड़ितों की सहायता, पुनर्वास और जागरूकता अभियानों में गैर-सरकारी संगठनों की भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
    • युवा अपराध के मूल कारणों का समाधान करने के लिए शिक्षा, रोजगार के अवसरों और नशामुक्ति कार्यक्रमों में निवेश करना।

B. जेल सांख्यिकी भारत (PSI) 2023 रिपोर्ट

जेल सांख्यिकी भारत (PSI) 2023 रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष

  • कुल जेल जनसंख्या: वर्ष 2023 में जेल में बंद कैदियों की संख्या में कमी आएगी (वर्ष 2022 की तुलना में 4.4% की गिरावट)
    • भारत में वर्ष 2023 में कुल 1,332 जेलें थीं, जबकि वर्ष 2022 में यह संख्या 1,330 थी।

भारत में जेलों से संबंधित अन्य मुद्दे

  • जेलों में असमानता और भेदभाव: समृद्ध और उच्च जाति के कैदियों को प्रायः निजी बैरक तक पहुँच, बेहतर भोजन और कम श्रम जैसे विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं।
    • सर्वोच्च न्यायालय (2024) ने जाति-आधारित कार्य आवंटन (जैसे- दलितों द्वारा शौचालय स्वच्छ करना) को अनुच्छेद-14, 17, 21 और 23 का उल्लंघन मानते हुए रद्द कर दिया।
  • कर्मचारियों की कमी: भारत में जेल कर्मचारियों के 30% पद रिक्त हैं; कर्मचारी-कैदी अनुपात लगभग 1:7 है, जबकि यूनाइटेड किंगडम में यह अनुपात 2:3 है।
    • चिकित्सा कर्मचारियों की भारी कमी (प्रति डॉक्टर 775 कैदी बनाम अनुशंसित 1:300)
  • कारागार कल्याण के लिए कम बजट आवंटन: IJR 2025 के अनुसार, 18 राज्यों ने प्रति कैदी प्रतिदिन ₹100 से भी कम खर्च किया।
  • एकसमान जेल प्रबंधन की चुनौतियाँ: जेल राज्य का विषय है और इसलिए, एकसमान जेल प्रबंधन एक कठिन मुद्दा है।

  • राष्ट्रीय अधिभोग दर में थोड़ा सुधार हुआ और यह 120.8% (वर्ष 2022 में 131.4% से) हो गई, जिसका अर्थ है कि भारतीय जेलों में उनकी स्वीकृत क्षमता से लगभग 21% अधिक कैदी थे।
    • भीड़भाड़: दिल्ली की जेलें सर्वाधिक प्रभावित: 200% कैदी हैं और तेलंगाना में सबसे कम 72.8% कैदी हैं।
    • भीड़भाड़ से स्वच्छता, वायु-संचार, आहार की गुणवत्ता और स्वच्छ जल की उपलब्धता विकृत होती है।
  • विचाराधीन कैदी बनाम दोषी: सभी कैदियों में 73.5% विचाराधीन कैदी हैं। यह निरंतर न्यायिक देरी को दर्शाता है।
    • उत्तर प्रदेश में विचाराधीन कैदियों की संख्या सर्वाधिक थी।
    • कैदियों की जनसांख्यिकी: 44% कैदी 18-30 वर्ष की आयु के और 43% कैदी 30-50 वर्ष की आयु के हैं।
    • शिक्षा: 25% अशिक्षित, 40% दसवीं कक्षा से आगे नहीं।
  • महिला कैदियों की भेद्यता: महिलाओं (कैदियों का 4.1%) को अपर्याप्त लैंगिक-संवेदनशील सुविधाओं, सीमित स्वच्छता सुविधाओं और अपर्याप्त चिकित्सा देखभाल का सामना करना पड़ता है।
  • विदेशी कैदी: वर्ष 2022 की तुलना में वर्ष 2023 में 10.7% की वृद्धि हुई, जिसमें 74% विचाराधीन कैदी और 21% दोषी थे।
    • अधिकतर बांग्लादेश, नेपाल, म्याँमार, पाकिस्तान और नाइजीरिया से हैं।
  • जेलों में मौतें: वर्ष 2023 में 1,972 मौतें हुईं, जिनमें 150 अप्राकृतिक हुईं, जिनमें 96 आत्महत्याएँ शामिल हैं। यह कैदियों के मानसिक स्वास्थ्य की उपेक्षा को दर्शाता है।
    • पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक अप्राकृतिक मौतें हुईं।

भारत में कारागार के लिए विनियम – संवैधानिक ढाँचा

  • अनुच्छेद-14: सभी कैदी, जिनमें विचाराधीन कैदी और दोषी भी शामिल हैं, कानून के समक्ष समान हैं और समान सुरक्षा के हकदार हैं।
  • अनुच्छेद-21: यह गारंटी प्रदान करता है कि किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।
    • यह कैदियों के सम्मान, स्वास्थ्य, भोजन, कानूनी सहायता और यातना से सुरक्षा के अधिकारों का आधार बनता है।
  • अनुच्छेद-22: कानूनी सलाहकार से परामर्श करने, मनमानी गिरफ्तारी और निवारक निरोध से सुरक्षा के अधिकार सुनिश्चित करता है।
  • अनुच्छेद-23: विनियमित परिस्थितियों में जेल श्रम वैध है, लेकिन जबरन या शोषणकारी श्रम निषिद्ध है।
  • अनुच्छेद-39A: राज्य को विचाराधीन कैदियों सहित सभी के लिए न्याय तक पहुँच सुनिश्चित करने हेतु निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करने का निर्देश देता है।
  • सातवीं अनुसूची (सूची II) के अंतर्गत राज्य विषय: कारागार राज्य का विषय है, जो राज्य सरकारों को जेल प्रशासन, बजट और सुधारों की प्राथमिक जिम्मेदारी प्रदान करता है।

जेल सुधार और सिफारिश पर महत्त्वपूर्ण समितियाँ

  • मुल्ला समिति (1980-1983): न्यायमूर्ति ए.एन. मुल्ला की अध्यक्षता में।
    • प्रमुख सिफारिशें
      • भारतीय कारागार एवं सुधार सेवाओं की स्थापना।
      • विचाराधीन कैदियों को दोषियों से अलग करना।
      • जेलों तक मीडिया और जनता की पहुँच।
      • पुनर्वास, देखभाल और सुधारात्मक प्रशिक्षण पर जोर।
      • जेल सुधार के लिए पर्याप्त धनराशि का आवंटन।
  • कृष्णा अय्यर समिति (1987): महिला कैदियों पर केंद्रित।
    • सुझाव 
      • अधिक महिला कर्मचारी।
      • महिला कैदियों के लिए कानूनी सहायता, शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण।
      • हिरासत में यौन शोषण से सुरक्षा।
  • जेल सुधारों पर न्यायमूर्ति अमिताव रॉय पैनल (2018-2020)
    • भीड़भाड़: वकील-कैदी अनुपात को बनाए रखना, प्रत्येक 30 कैदियों के लिए कम-से- कम एक वकील उपलब्ध हो।
    • कर्मचारियों की कमी: रिक्त पदों पर भर्ती शुरू करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय को निर्देश देना।
      • मुकदमों के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग।
    • कैदी अधिकार: प्रत्येक नए कैदी को अपने पहले सप्ताह के दौरान प्रतिदिन अपने परिवार से एक निःशुल्क फोन कॉल करने की अनुमति देना।

भारत में जेल से संबंधित प्रमुख निर्णय

  • सुनील बत्रा बनाम दिल्ली प्रशासन (1978): न्यायिक स्वीकृति के बिना एकांत कारावास को असंवैधानिक ठहराया गया; न्यायालय ने पुष्टि की कि अनुच्छेद-21 के तहत कैदियों के मौलिक अधिकार बरकरार हैं।
  • हुसैनारा खातून बनाम बिहार राज्य (1979): सर्वोच्च न्यायालय ने त्वरित सुनवाई को एक मौलिक अधिकार घोषित किया, जिसके परिणामस्वरूप वैधानिक सीमाओं से परे हिरासत में लिए गए हजारों विचाराधीन कैदियों की रिहाई हुई।
  • फ्राँसिस कोरली मुलिन बनाम प्रशासक, दिल्ली (1981): यह माना गया कि अनुच्छेद-21 के तहत कैदियों को जीवन और सम्मान के अधिकार के तहत परिवार तथा वकीलों से संवाद करने का अधिकार है।
  • राममूर्ति बनाम कर्नाटक राज्य (1997): जेल प्रणाली में 9 मुख्य मुद्दों (अति भीड़भाड़, यातना, स्वास्थ्य आदि) की पहचान की और सरकारों को तत्काल सुधार लागू करने का निर्देश दिया।
  • प्रभा दत्त बनाम भारत संघ (1982): कैदियों से साक्षात्कार करने के प्रेस के अधिकार को बरकरार रखा, जिससे जेल प्रणाली में पारदर्शिता और सूचना तक पहुँच मजबूत हुई।
  • सुहास चकमा बनाम भारत संघ एवं अन्य (2024): सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि खुली जेलें भीड़भाड़ कम करने और पुनर्वास को बढ़ावा देने का एक प्रभावी समाधान हो सकती हैं।
    • इसने राज्य सरकारों को पूरे भारत में खुली जेल प्रणालियों को अपनाने और उनका विस्तार करने के लिए प्रोत्साहित किया।

भारत में जेल सुधार से संबंधित पहल

  • खुली जेल प्रणाली: विश्वास और अच्छे व्यवहार के आधार पर, कैदी न्यूनतम सुरक्षा के साथ रहते हैं और खुले में कार्य कर सकते हैं।
  • उद्देश्य: भीड़भाड़ कम करना और सामाजिक पुनर्मिलन को बढ़ावा देना।
    • राजस्थान में सर्वाधिक 41 खुली जेल हैं।
    • हालाँकि, केवल 3% कैदी ही खुली जेलों में रहते हैं; अधिकांश राज्यों में इनका कम उपयोग होता है।
  • ई-कारागार परियोजना: यह केंद्रीय गृह मंत्रालय की पहल है। कैदियों के रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण और इंटरऑपरेबल क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम (ICJS) के माध्यम से डेटा को एकीकृत करता है।
  • ई-मुलाकात: कैदियों और उनके परिवारों/कानूनी सलाहकारों के बीच डिजिटल संचार को सक्षम बनाता है।
  • विचाराधीन समीक्षा समितियाँ (UTRCs): सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रिहाई के योग्य विचाराधीन कैदियों के मामलों की समय-समय पर समीक्षा करने का आदेश दिया गया है।
    • उद्देश्य: मुकदमे-पूर्व हिरासत में कमी; जहाँ आवश्यक हो, जमानत और पैरोल सुनिश्चित करना।
    • मॉडल जेल मैनुअल (Model Prison Manual) और मॉडल अधिनियम 2023, दोनों के अंतर्गत समर्थित है।
  • कानूनी सहायता और ‘पैरा-लीगल वॉलंटियर’ कार्यक्रम: राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) द्वारा समर्थित है।
    • गतिविधियों में शामिल हैं: जेलों में कानूनी जागरूकता; विचाराधीन कैदियों को जमानत आवेदन करने में सहायता के लिए ‘पैरा-लीगल वॉलंटियर’।
  • व्यावसायिक प्रशिक्षण और पुनर्वास योजनाएँ: कुछ जेलों में शुरू की गई (जैसे- तिहाड़ जेल का स्मार्ट कार्यक्रम, सृजन परियोजना)।
    • फोकस: कौशल निर्माण, मनोवैज्ञानिक सहायता, जेल के बाद पुनः एकीकरण।
    • हालाँकि, ऐसे कार्यक्रम अपवाद हैं और पूरे देश में समान रूप से लागू नहीं होते हैं।
    • दिल्ली विश्वविद्यालय के दिल्ली कौशल एवं उद्यमिता विश्वविद्यालय (DSEU) ने तिहाड़ जेल के साथ साझेदारी की है ताकि कैदियों को कौशल-आधारित पाठ्यक्रम प्रदान किए जा सकें, जिनका उद्देश्य उनके पुनर्वास और समाज में एकीकरण है।
  • जेल श्रम सुधार: दंडात्मक श्रम से उत्पादक श्रम की ओर बदलाव।
    • कुछ खुली जेलों में, कैदियों को बाजार मूल्य के अनुसार मजदूरी दी जाती है, जिससे वे अपने भरण-पोषण का खर्च वहन करते हैं।
    • महाराष्ट्र ने वर्ष 1949 में एक व्यापक जेल वेतन प्रणाली शुरू की थी, जिसका बाद में अन्य राज्यों ने भी अनुसरण किया।
  • नवीन दृष्टिकोण
    • विपश्यना पर ध्यान: तिहाड़ जेल (1995) में मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देकर पुनरावृत्ति को सफलतापूर्वक कम किया।
    • आफ्टरकेयर’ कार्यक्रम (Aftercare Programs): सेवा सदन जैसे गैर-सरकारी संगठन आवास और रोजगार सहायता के माध्यम से पुनः एकीकरण में सहायता करते हैं।

भारत में जेल सुधारों के लिए आगे की राह

  • आदर्श कारागार अधिनियम, 2023 को अपनाना और लागू करना: राज्यों को पुनर्वास और अधिकार-आधारित लक्ष्यों के अनुरूप पुराने कारागार अधिनियम, 1894 को नए आदर्श अधिनियम से बदलना चाहिए।
    • यह अधिनियम शिक्षा, मानसिक स्वास्थ्य सहायता, महिलाओं और ट्रांसजेंडर कैदियों के लिए अलग आवास तथा प्रौद्योगिकी एकीकरण को बढ़ावा देता है।
  • कानूनी सहायता और त्वरित कार्यवाही तंत्र के माध्यम से विचाराधीन बंदियों की संख्या कम करना: विचाराधीन समीक्षा समितियों (UTRCs) की भूमिका का विस्तार करना और गिरफ्तारी के समय से ही मुफ्त कानूनी सहायता को मजबूत करना, न कि केवल मुकदमे के दौरान।
    • धारा 436A CrPC को प्रभावी ढंग से लागू करना और जेलों में भीड़ कम करने के लिए प्ली बार्गेनिंग को प्रोत्साहित करना।
  • खुली जेलों का विस्तार और उपयोग करना: सुहास चकमा (2024) मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुमोदित, अच्छे व्यवहार वाले दोषियों के लिए खुली जेलों को बढ़ावा देना।
    • ये संस्थान लागत कम करते हैं, आत्म-अनुशासन को बढ़ावा देते हैं और सामाजिक पुनर्मिलन में सहायता करते हैं, लेकिन वर्तमान में इनमें केवल 3% कैदी ही रह रहे हैं।
  • जेल स्टाफिंग और प्रशिक्षण को मजबूत बनाना: संवर्ग, सुधारात्मक और चिकित्सा कर्मचारियों के 30-45% रिक्त पदों को तत्काल भरना।
    • बुनियादी और सेवाकालीन प्रशिक्षण प्रदान करना, विशेष रूप से मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और मानवाधिकार अनुपालन में।
  • सम्मानजनक परिस्थितियाँ सुनिश्चित करना और भेदभाव को समाप्त करना: जाति-आधारित कर्तव्यों को समाप्त करना (जैसा कि हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्देशित किया गया है)।
    • महिला कैदियों के लिए स्वास्थ्य देखभाल, बच्चों की देखभाल और नियमित मुलाकातों सहित सुविधाओं में सुधार करना।
  • निगरानी तंत्र को मजबूत बनाना: विजिटर्स बोर्ड (BoVs) द्वारा नियमित निरीक्षण सुनिश्चित करना और पारदर्शिता के लिए मीडिया की पहुँच को प्रोत्साहित करना।
    • वर्ष 2022 में आवश्यक 3,100 से अधिक निरीक्षणों के मुकाबले केवल 899 निरीक्षण दर्ज किए गए; जवाबदेही के लिए इसमें सुधार किया जाना चाहिए।

C. भारत में आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्या (ADSI), 2023 रिपोर्ट

भारत में आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्या (ADSI) 2023 रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष

  • कुल दुर्घटनाजन्य मृत्यु और आत्महत्याएँ: भारत में वर्ष 2023 में 1,71,418 आत्महत्याएँ दर्ज की गईं, जबकि सड़क दुर्घटनाओं में 1,73,826 लोग मारे गए।
    • ये आँकड़े मिलकर मानसिक स्वास्थ्य संकट और सड़क सुरक्षा में विफलताओं के दोहरे संकट को उजागर करते हैं।
  • सड़क दुर्घटनाएँ: वर्ष 2023 में 4,64,029 सड़क दुर्घटनाएँ दर्ज की गईं, जो वर्ष 2022 की तुलना में 17,261 मामलों की वृद्धि है।
    • वर्ष 2022 की तुलना में वर्ष 2023 में मृत्यु दर में 1.6% की वृद्धि हुई।
    • दोपहिया वाहनों से होने वाली मौतों में 45.8% की वृद्धि हुई, उसके बाद पैदल यात्रियों और कारों/SUV/जीपों का स्थान रहा है।
    • तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में दोपहिया वाहनों से होने वाली मौतों में सर्वाधिक वृद्धि दर्ज की गई।
    • कारण: तेज गति (58.6%) और खतरनाक ड्राइविंग (23.6%) घातक दुर्घटनाओं के दो प्रमुख कारण थे।
    • समय और स्थान पैटर्न: अधिकतम दुर्घटनाएँ शाम 6-9 बजे (20.7%) के बीच हुईं, उसके बाद दोपहर 3-6 बजे (17.3%) के बीच हुईं।
    • राष्ट्रीय राजमार्गों पर 34.6%, राज्य राजमार्गों पर 23.4% और अन्य सड़कों पर 42% मौतें हुईं।
    • उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में राजमार्गों पर सर्वाधिक मौतें दर्ज की गईं।
  • किसान एवं कृषि श्रमिकों की आत्महत्याएँ: कृषि क्षेत्र में 10,786 आत्महत्याएँ (कुल आत्महत्याओं का 6.3%)
    • किसानों (4,690) की तुलना में अधिक कृषि मजदूरों (6,096) ने आत्महत्या की।
    • महाराष्ट्र (38.5%) और कर्नाटक (22.5%) में कुल मिलाकर 60% कृषक आत्महत्याएँ हुईं।
    • उच्च कृषक आत्महत्या वाले अन्य राज्य: आंध्र प्रदेश (8.6%), मध्य प्रदेश (7.2%), तमिलनाडु (5.9%)।
  • नशीली दवाओं के ओवरडोज से होने वाली मौतें: वर्ष 2023 में नशीली दवाओं के ओवरडोज से राष्ट्रीय स्तर पर 654 मौतें दर्ज की गईं।
    • पंजाब लगातार दूसरे वर्ष (89 मौतें) सबसे आगे रहा, उसके बाद मध्य प्रदेश (85) और राजस्थान (84) का स्थान रहा।
    • NDPS अधिनियम के तहत मामलों में भी पंजाब शीर्ष तीन राज्यों में शामिल है, जो तस्करी और नशीली दवाओं से संबंधित मौतों के बीच गहरे संबंध को दर्शाता है।
  • अवैध/नकली शराब से होने वाली मौतें: झारखंड में सर्वाधिक (194), उसके बाद कर्नाटक (79) और बिहार (57) का स्थान है।
    • पंजाब में ऐसी 33 मौतें हुईं, जो इसे शीर्ष पाँच राज्यों में शामिल करता है।

आगे की राह

सड़क दुर्घटनाएँ और यातायात सुरक्षा

  • यातायात कानूनों का कठोरता से पालन: स्वचालित चालान प्रणाली का विस्तार करना, तेज गति और नशे में वाहन चलाने पर कठोर दंड लगाना।
  • सड़क अभियांत्रिकी एवं अवसंरचना: विशेष रूप से दुर्घटना-प्रवण क्षेत्रों पर, साइनेज, स्ट्रीट लाइटिंग, पैदल यात्री क्रॉसिंग और सड़क विभाजकों में सुधार करना।
  • सुरक्षित राजमार्ग: दुर्घटना अवरोधक बनाना, दोपहिया वाहनों के लिए समर्पित लेन बनाना और राजमार्गों पर आपातकालीन चिकित्सा प्रतिक्रिया इकाइयों में सुधार करना।
  • जन जागरूकता अभियान: सुरक्षित ड्राइविंग प्रथाओं, हेलमेट/सीटबेल्ट के उपयोग और वाहन चलाते समय मोबाइल फोन के उपयोग के खतरों पर नियमित रूप से व्यापक अभियान चलाना।
  • प्रौद्योगिकी एकीकरण: सार्वजनिक परिवहन के लिए उन्नत चालक-सहायता प्रणालियों (ADAS), वाहन फिटनेस जाँच और GPS-आधारित गति निगरानी को प्रोत्साहित करना।

दवा की अधिक खुराक से होने वाली मौतें

  • NDPS प्रवर्तन को मजबूत बनाना: अंतर-राज्यीय और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से मादक पदार्थों की तस्करी के नेटवर्क को समाप्त करना।
  • दंड के बजाय पुनर्वास: नशामुक्ति और पुनर्वास केंद्रों का विस्तार करना; नशाग्रस्त व्यक्तियों के अपराधीकरण के बजाय उनके उपचार को प्राथमिकता देना।
  • सामुदायिक पुलिसिंग: नशाग्रस्त व्यक्तियों के प्रति कलंक को कम करने और शीघ्र हस्तक्षेप को प्रोत्साहित करने के लिए समुदाय-संचालित जागरूकता अभियान चलाना।
  • आँकड़ों पर आधारित कार्यवाही: NCRB और NDPS मामलों के आँकड़ों का उपयोग हॉटस्पॉट की पहचान करने और क्षेत्र-विशिष्ट नशा-विरोधी रणनीतियाँ (जैसे- पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश) तैयार करने के लिए करना।

अवैध/नकली शराब से होने वाली मौतें

  • सख्त नियमन और निगरानी: अवैध शराब उत्पादन और वितरण नेटवर्क पर छापेमारी तेज़ करना।
  • सामुदायिक जागरूकता: नकली शराब के स्वास्थ्य संबंधी खतरों के बारे में ग्रामीण और शहरी गरीब समुदायों को शिक्षित करना।
  • वैकल्पिक आजीविका: उन क्षेत्रों में आर्थिक विकल्प प्रदान करना, जहाँ अवैध शराब निर्माण आजीविका का आधार है।
  • स्वास्थ्य हस्तक्षेप: जिला अस्पतालों को ‘टॉक्सिकोलॉजी यूनिट्स’ और मेथेनॉल विषाक्तता के लिए तेज उपचार प्रोटोकॉल से संबद्ध करना।

किसानों की आत्महत्या के प्रमुख कारण क्या हैं?

  • ऋण भार: बढ़ती लागत और फसलों की कम कीमतें किसानों को ऋण के चक्र में फँसा देती हैं।
    • साहूकारों पर निर्भरता, जो अत्यधिक ब्याज दर (30-40%) वसूलते हैं, फसल खराब होने के बाद ऋण चुकाना असंभव बना देती है।
  • फसल खराब होना और जलवायु तनाव: अनियमित वर्षा, सूखा, बाढ़ और कीटों के हमले पैदावार को बुरी तरह प्रभावित करते हैं।
    • मानसून पर निर्भरता और घटते जल संसाधन कृषि जोखिमों को और बढ़ा देते हैं।
  • कम लाभप्रदता और बाजार में अस्थिरता: किसान प्रायः बीजों, उर्वरकों और कीटनाशकों पर बिक्री से होने वाली आय से अधिक खर्च करते हैं।
    • कपास, सोयाबीन, प्याज और दालों जैसी फसलों की कीमतों में गिरावट ग्रामीण संकट को और बढ़ा देती है।
  • नीतिगत कमियाँ और सीमित बीमा कवरेज: फसल बीमा योजनाएँ प्रायः काश्तकारों और भूमिहीन श्रमिकों को इससे बाहर कर देती हैं।
    • फसल नुकसान के लिए कम मुआवजा प्राप्त होने से वित्तीय तनाव बढ़ता है।
  • सामाजिक-सांस्कृतिक दबाव: विवाह, दहेज या सामाजिक दायित्वों पर होने वाला खर्च वित्तीय असुरक्षा को बढ़ाता है।
    • शराब और नशीली दवाओं की लत, खासकर ग्रामीण इलाकों में, संकट को और बढ़ा देती है।
  • मानसिक स्वास्थ्य की उपेक्षा: अवसाद, निराशा और सामाजिक उपेक्षा का भय आत्महत्याओं की बढ़ती घटनाओं में योगदान करते हैं।

बढ़ती किसान आत्महत्याओं के परिणाम

  • कृषि में आर्थिक नुकसान: आत्महत्याएँ एक उद्यम के रूप में कृषि” के कमजोर होने और उत्पादकता को कमजोर करने का संकेत हैं।
  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: कमाने वाले सदस्य की मृत्यु से पूरे ग्रामीण परिवार अस्त-व्यस्त हो जाते हैं और स्थानीय व्यवसायों पर भी इसका व्यापक प्रभाव पड़ता है।
  • सामाजिक परिणाम: परिवार, विशेषकर महिलाएँ और बच्चे, भावनात्मक आघात तथा वित्तीय अस्थिरता में रहते हैं।
  • मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव: उच्च आत्महत्या दर वाले समुदायों में मादक द्रव्यों के सेवन और मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों में वृद्धि देखी गई है।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के लिए ख़तरा: निरंतर कृषि संकट भारत की स्थायी खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित करने की क्षमता के लिए खतरा बन सकता है।

किसान आत्महत्याओं को कम करने के लिए सरकारी पहल

  • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY): फसल खराब होने पर मुआवजा देने के लिए फसल बीमा योजना।
  • प्रधानमंत्री-किसान सम्मान निधि: किसानों को वार्षिक रूप से ₹6,000 की प्रत्यक्ष आय सहायता।
  • ऋण माफी योजनाएँ: ऋणी किसानों को राहत प्रदान करने के लिए राज्य-स्तरीय पहल।
  • राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA): जलवायु-अनुकूल कृषि पद्धतियों पर केंद्रित।
  • e-NAM (राष्ट्रीय कृषि बाजार): बेहतर मूल्य प्राप्ति सुनिश्चित करने और बिचौलियों के शोषण को कम करने के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म।

आगे की राह क्या होनी चाहिए?

  • ऋण पहुँच को मजबूत करना: लघु एवं सीमांत किसानों के लिए संस्थागत ऋण का विस्तार करना; साहूकारों द्वारा शोषण पर अंकुश लगाना।
  • फसल विविधीकरण: जल की कम खपत वाली और जलवायु-प्रतिरोधी फसलों को प्रोत्साहित करना, जिससे एकल-फसल पर निर्भरता कम हो।
  • कानूनी MSP गारंटी: किसानों को बाजार के उतार-चढ़ाव से बचाने के लिए सुनिश्चित न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रदान करना।
  • मानसिक स्वास्थ्य सहायता: ग्रामीण परामर्श केंद्र स्थापित करना और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को एकीकृत करना।
  • जलवायु-प्रतिरोधी कृषि: सूखा-प्रतिरोधी किस्मों, कुशल सिंचाई और सतत् प्रथाओं को बढ़ावा देना।
  • ग्रामीण रोजगार विविधीकरण: कृषि-प्रसंस्करण, लघु उद्योगों और कौशल विकास के माध्यम से गैर-कृषि ग्रामीण रोजगार सृजित करना।

निष्कर्ष

ये आँकड़े साइबर अपराधों और सड़क दुर्घटनाओं से लेकर जेलों में बढ़ती भीड़भाड़ और किसानों की आत्महत्याओं तक, भारत में उभरती कमजोरियों को उजागर करते हैं। इन कमियों को दूर करने के लिए साक्ष्य-आधारित नीतियों, न्यायिक दक्षता और समावेशी कल्याणकारी रणनीतियों की आवश्यकता है।

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