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भारत में एकीकृत ऊर्जा नीति की आवश्यकता

Lokesh Pal July 18, 2024 02:53 150 0

संदर्भ

हाल ही में विद्युत की कमी, जो कि पिछले दशक में नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में असंतुलित वृद्धि के कारण हुई है, केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर बेहतर संसाधन नियोजन की आवश्यकता को दर्शाती है।

  • ऊर्जा क्षेत्र में आपूर्ति पर्याप्तता में सुधार के लिए, नीतियाँ बनाते समय विविधता मेट्रिक्स (Diversity Metrics) का उपयोग किया जा सकता है।

भारत के विद्युत एवं ऊर्जा क्षेत्र के बारे में

भारत में आर्थिक विकास और जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए विद्युत एवं ऊर्जा दो आवश्यक इनपुट हैं।

  • भारत का विविधतापूर्ण विद्युत क्षेत्र: भारत का विद्युत क्षेत्र दुनिया में सबसे अधिक विविधतापूर्ण है। विद्युत क्षेत्र पारंपरिक स्रोतों जैसे कोयला, लिग्नाइट, प्राकृतिक गैस, तेल से लेकर व्यवहार्य गैर-पारंपरिक स्रोत जैसे पवन, सौर, कृषि और घरेलू अपशिष्ट पर निर्भर है।
    • G-20 देशों में भारत एकमात्र देश है, जो पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।

  • आँकड़े: वित्त वर्ष 2023 में भारत के विद्युत उत्पादन में 30 वर्षों में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई। केंद्रीय विद्युत मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2023 में भारत की विद्युत खपत 1,503.65 अरब यूनिट (Billion Units- BU) रही है।

    • वृद्धि देखी गई: जनवरी 2024 तक भारत में विद्युत उत्पादन 6.80% बढ़कर 1,452.43 बिलियन किलोवाट घंटे (kilowatt hours- kWh) हो गया।
    • स्थापित क्षमता: भारत विश्व में विद्युत का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक एवं उपभोक्ता है, जिसकी जनवरी 2024 तक स्थापित विद्युत क्षमता 429.96 गीगावाट है।
    • विभिन्न स्रोतों द्वारा योगदान: भारत की स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता (हाइड्रोपॉवर सहित) 182.05 गीगावाट थी, जो कुल स्थापित विद्युत क्षमता का 42.3% है।
      • अप्रैल 2024 तक, सौर ऊर्जा ने 82.63 गीगावाट का योगदान दिया, इसके बाद पवन ऊर्जा से 46.16 गीगावाट, बायोमास से 10.35 गीगावाट, लघु जलविद्युत से 5.00 गीगावाट, अपशिष्ट से ऊर्जा में 0.59 गीगावाट और जलविद्युत से 46.93 गीगावाट का योगदान रहा।
    • पारंपरिक स्रोतों पर निर्भरता: भारत, कोयले एवं तेल पर अधिक निर्भर है, जो वाणिज्यिक प्राथमिक ऊर्जा खपत का क्रमशः 53% और 20% है।
    • वित्त वर्ष 2014 में ताप विद्युत संयंत्र के लोड में 63% सुधार होने का अनुमान है, जो क्षेत्र में कम क्षमता वृद्धि के साथ-साथ मजबूत माँग वृद्धि के कारण है।

भारत में विद्युत और ऊर्जा की माँग में वृद्धि

देश में विद्युत की माँग तेजी से बढ़ी है और आने वाले वर्षों में इसके और बढ़ने की उम्मीद है। देश में विद्युत की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए स्थापित उत्पादन क्षमता में भारी वृद्धि की आवश्यकता है।

  • उच्च विद्युत की खपत: बढ़ती जनसंख्या के साथ-साथ विद्युतीकरण और प्रति व्यक्ति उपयोग में वृद्धि से और अधिक गति मिलेगी।
    • वित्त वर्ष 2023 में भारत में विद्युत की खपत 9.5% बढ़कर 1,503.65 बिलियन यूनिट (BU) हो गई।
  • केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (Central Electricity Authority- CEA) का डेटा: CEA का अनुमान है कि वर्ष 2030 तक भारत की विद्युत आवश्यकता बढ़कर 817 गीगावाट तक पहुँच जाएगी।
    • इसके अलावा, केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण का अनुमान है कि वर्ष 2029-30 तक नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन की हिस्सेदारी 18% से बढ़कर 44% हो जाएगी, जबकि तापीय ऊर्जा की हिस्सेदारी 78% से घटकर 52% हो जाने की उम्मीद है।

विद्युत एवं ऊर्जा क्षेत्र के लिए भारत की पहल एवं कार्यवाहियाँ

(India’s Initiatives and Actions for Power and Energy Sector)

पिछले दशक के दौरान, भारत के ऊर्जा क्षेत्र ने जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों और राजनीतिक अर्थव्यवस्था के विवादास्पद मुद्दों का सावधानीपूर्वक सामना किया है तथा वर्ष 2047 तक औद्योगिक देश बनने के लिए आवश्यक ऊर्जा माँग को पूरा करने की आवश्यकता को नजरअंदाज नहीं किया है।

  • आकर्षक अवसर: वर्ष 2024 के बजट में सरकार की विद्युत क्षेत्र की पहलों के लिए 50% अधिक धनराशि आवंटित की गई है।
    • तापीय इकाइयाँ (Thermal Units): भारत के 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य को पूरा करने और कोयले की माँग-आपूर्ति विसंगति के वार्षिक मुद्दे से निपटने के लिए, विद्युत मंत्रालय ने 81 तापीय इकाइयों की पहचान की है, जो वर्ष 2026 तक कोयले की जगह नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन शुरू कर देंगी।
    • हाल ही में भारत सरकार ने आधिकारिक तौर पर अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (International Energy Agency- IEA) का सदस्य बनने के लिए भी अपने प्रयास बढ़ा दिए हैं।
  • नीतिगत समर्थन (Policy Support): विभिन्न योजनाएँ जैसे- दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (Deen Dayal Upadhyay Gram Jyoti Yojana- DDUGJY) और एकीकृत विद्युत विकास योजना (Integrated Power Development Scheme- IPDS) से पूरे देश में विद्युतीकरण में सुधार होने की उम्मीद है।
    • प्रधानमंत्री- सूर्य घर- मुफ्त बिजली योजना (PM-Surya Ghar-Muft Bijli Yojana): इस योजना का उद्देश्य एक करोड़ घरों में छत पर सौर ऊर्जा लगाना है।
    • राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन (National Green Hydrogen Mission): स्वच्छ ऊर्जा स्रोत के रूप में हरित हाइड्रोजन को अपनाने में तेजी लाने का लक्ष्य, आपूर्ति शृंखलाओं के विकास का समर्थन करेगा, जो हाइड्रोजन को कुशलतापूर्वक परिवहन एवं वितरित कर सकते हैं।
    • पवन-सौर हाइब्रिड नीति (Wind-Solar Hybrid Policy): वर्ष 2018 में, ट्रांसमिशन इन्फ्रास्ट्रक्चर और भूमि का कुशलतापूर्वक उपयोग करने के लिए एक व्यापक ग्रिड-कनेक्टेड पवन-सौर फोटोवोल्टिक हाइब्रिड प्रणाली को बढ़ावा देने हेतु राष्ट्रीय नीति की घोषणा की गई थी।
    • आत्म-निर्भर भारत: आत्म-निर्भर भारत के तहत 24,000 करोड़ रुपये के वित्तीय परिव्यय के साथ सौर फोटोवोल्टिक विनिर्माण में PLI योजना शुरू की गई।
    • ‘रेंट ए रूफ’ नीति (Rent a Roof Policy): भारत सरकार वर्ष 2022 तक छत पर सौर परियोजनाओं के माध्यम से 40 गीगावाट विद्युत उत्पादन के अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए इस नीति का निर्माण कर रही है।
      • इसकी योजना वर्ष 2031 तक 15,700 मेगावाट की कुल स्थापित क्षमता वाले 21 नए परमाणु ऊर्जा रिएक्टर स्थापित करने की भी है।
    • अन्य प्रमुख सरकारी पहल: प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना (Pradhan Mantri Sahaj Bijli Har Ghar Yojana) अर्थात् सौभाग्य (SAUBHAGYA), हरित ऊर्जा गलियारा, नेशनल स्मार्ट ग्रिड मिशन और स्मार्ट मीटर नेशनल प्रोग्राम, भारत में हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से अपनाने तथा विनिर्माण (FAME इंडिया), अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन आदि।
      • सरकार की योजना वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने की है।
      • सरकार वर्ष 2030 तक प्राकृतिक गैस के उपयोग को मौजूदा प्राथमिक ऊर्जा स्तर 7% से बढ़ाकर 15% करने के लिए प्रतिबद्ध है।
  • उच्च निवेश: राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन वर्ष 2019-25 के अनुसार, 111 लाख करोड़ रुपये (1.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर) के कुल अपेक्षित पूँजीगत व्यय में से ऊर्जा क्षेत्र की परियोजनाओं का हिस्सा सबसे अधिक (24%) था।
    • विद्युत क्षेत्र में 100% FDI की अनुमति: इससे इस क्षेत्र में FDI प्रवाह को बढ़ावा मिला है।
      • अप्रैल 2000 से मार्च 2024 के बीच विद्युत क्षेत्र में कुल FDI प्रवाह 18.28 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।

भारतीय विद्युत एवं ऊर्जा क्षेत्र के समक्ष चुनौतियाँ

चालू दशक (2020-29) में, भारतीय विद्युत क्षेत्र में माँग वृद्धि, ऊर्जा मिश्रण और बाजार परिचालन के संबंध में बड़े परिवर्तन होने की संभावना है।

  • सीमित ऊर्जा संसाधन: भारत के पास कोयला, तेल और गैस जैसे ऊर्जा संसाधन सीमित हैं तथा अपनी बढ़ती ऊर्जा माँगों को पूरा करने के लिए वह आयात पर निर्भर है।
    • आयात संबंधी आँकड़े: मार्च 2024 में दर्ज की गई कुल मात्रा में, गैर-कोकिंग कोयले का आयात 15.33 मीट्रिक टन था, जो वित्त वर्ष 2023 के मार्च में 13.88 मीट्रिक टन था, जबकि कोकिंग कोयले का आयात एक वर्ष पहले 3.96 मीट्रिक टन के मुकाबले 5.34 मीट्रिक टन था। वित्त वर्ष 2024 के दौरान, गैर-कोकिंग कोयले का आयात 175.96 मीट्रिक टन था, जो वित्त वर्ष 2023 के दौरान आयातित 162.46 मीट्रिक टन से अधिक है।
    • इसके अलावा, भारत के कोयला भंडार निम्न गुणवत्ता वाले हैं और उनके निष्कर्षण और उपयोग से महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय चिंताएँ जुड़ी हुई हैं।
  • अपर्याप्त विद्युत उत्पादन: भारत की विद्युत उत्पादन की स्थापित क्षमता 7-8% वार्षिक आर्थिक वृद्धि को बनाए रखने के लिए अपर्याप्त है। विद्युत की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए भारत की वाणिज्यिक ऊर्जा आपूर्ति को लगभग 7 प्रतिशत की दर से विकसित करने की आवश्यकता है। वर्तमान में, भारत प्रति वर्ष केवल 20,000 मेगावाट ही जोड़ सकता है।
    • अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार, भारत की विद्युत की माँग वर्ष 2040 तक तीन गुनी हो जाने की उम्मीद है। इस माँग को पूरा करने के लिए, भारत सरकार ने वर्ष 2030 तक देश की स्थापित विद्युत उत्पादन क्षमता को 450 गीगावाट तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है।
  • राज्य विद्युत बोर्डों (State Electricity Boards- SEB) का असंतोषजनक प्रदर्शन: विद्युत वितरित करने वाले SEB को परिचालन अक्षमताओं, गलत विद्युत मूल्य निर्धारण और पारेषण एवं वितरण घाटे के कारण 20,000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान होता है।
    • इन नुकसान का एक बड़ा हिस्सा विद्युत चोरी और किसानों को मुफ्त विद्युत आपूर्ति के कारण होता है।
  • खराब बुनियादी ढाँचा: भारत अक्सर विद्युत कटौती और ब्लैकआउट से ग्रस्त रहता है।
    • पुराने हो रहे विद्युत संयंत्र तथा ट्रांसमिशन नेटवर्क विकास एवं ट्रांसमिशन दक्षता में बाधा डालते हैं।
    • खराब ऊर्जा अवसंरचना देश के ग्रामीण क्षेत्रों के विकास को भी प्रभावित कर रही है, जहाँ बहुत से लोगों के पास विद्युत की पहुँच नहीं है।
    • जलवायु परिवर्तन भारत की ऊर्जा अवसंरचना को भी प्रभावित कर रहा है, क्योंकि बाढ़ और सूखे जैसी चरम मौसम की घटनाएँ लगातार और गंभीर होती जा रही हैं।
    • समग्र तकनीकी और वाणिज्यिक (Aggregate Technical & Commercial- AT&C) हानि: यह विद्युत वितरण प्रणाली के प्रदर्शन की एक वास्तविक माप है क्योंकि इसमें तकनीकी और वाणिज्यिक हानि दोनों शामिल हैं। यह सिस्टम में इनपुट ऊर्जा और उन इकाइयों के बीच अंतर को दर्शाता है, जिनके लिए भुगतान किया जाता है।
  • अपर्याप्त निवेश: भारत के ऊर्जा क्षेत्र को अपने बुनियादी ढाँचे में सुधार और अपनी ऊर्जा क्षमता का विस्तार करने के लिए अत्यधिक निवेश की आवश्यकता है। हालाँकि, सरकार और निजी क्षेत्र ऊर्जा क्षेत्र में पर्याप्त निवेश नहीं कर रहे हैं।
    • भारत की कम प्रति व्यक्ति आय और उच्च गरीबी दर के कारण लोगों के लिए स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों का खर्च उठाना जटिल हो गया है।
    • COP 26 शिखर सम्मेलन में भारत ने वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म उत्पादन क्षमता हासिल करने की प्रतिज्ञा की। इसके लिए लगभग 32 लाख करोड़ रुपये के निवेश की आवश्यकता होगी।
  • नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का कम उपयोग: राष्ट्रीय विद्युत योजना (National Electricity Plan- NEP) वित्त वर्ष 2012 से वित्त वर्ष 2027 तक ऊर्जा माँग में 7% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (Compounded Annual Growth Rate- CAGR) का अनुमान लगाती है।
    • रिपोर्ट का अनुमान है कि NEP लक्ष्यों को पूरा करने के लिए सौर स्थापनाओं की गति को दोगुना कर 30 गीगावाट प्रति वर्ष से अधिक करने की आवश्यकता होगी।
  • विनियमन पर: विद्युत को सात अनुसूचियों में ‘समवर्ती सूची’ में सूचीबद्ध किया गया है, इसलिए केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय और सहयोग की कमी है।
  • अन्य: ट्रांसमिशन लाइनों पर ओवरलोडिंग, डिस्कॉम वित्तीय घाटे को दर्ज करना जारी रखते हैं, तकनीकी और वाणिज्यिक घाटा उच्च बना हुआ है, हालाँकि निजी भागीदारी की अनुमति है, डिस्कॉम के बीच उनकी उपस्थिति सीमित है।

भारत में नवीकरणीय ऊर्जा को समावेशी रूप से अपनाने में चुनौतियाँ

जलवायु कार्रवाई की बढ़ती आवश्यकता के साथ, ‘आधार भार’ (Base Load) आपूर्ति सुरक्षा के साथ-साथ प्रतिस्पर्द्धात्मकता के दृष्टिकोण से, नवीकरणीय ऊर्जा का दोहन किया जाना आवश्यक है।

  • उच्च कीमतें: विद्युत उत्पादन के लिए कोयले पर निर्भरता कम करने (जो 75% उत्पादन और 50% कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है), सस्ती कीमतों पर ‘राउंड द क्लॉक’  (Round The Clock- RTC) वैकल्पिक आपूर्ति विकसित करने में निहित है।
    • हालाँकि सौर टैरिफ प्रतिस्पर्द्धी हैं, अल्प से मध्यम अवधि के लिए, RTC आपूर्ति के लिए पूरक निम्न-कार्बन क्षमताएँ वर्तमान में महंगी (बैटरी), या जोखिम भरी (पनविद्युत संसाधन) हैं। 
    • ग्रीन हाइड्रोजन महंगा भी है। 
  • आपूर्ति सुरक्षा पर निर्भरता: बढ़ती माँग के साथ आपूर्ति सुरक्षा को पूरा करना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है।
    • उदाहरण: जल निकायों के सूख जाने के कारण, कनाडा, जो पहले अपने विशाल जल विद्युत संसाधनों पर काफी हद तक निर्भर था, अब सीमा पार से जीवाश्म ईंधन पर निर्भर विद्युत खरीद रहा है।
  • वितरण: शहरी गैस वितरण (City Gas Distribution- CGD) के मामले में एक बड़ी बाधा नगर निगम स्तर पर है, जहाँ नगरपालिका शुल्क के कारण पाइपलाइन बिछाने की लागत बहुत अधिक है। 
    • इसके अलावा, विद्युत क्षेत्र में कोयले की तुलना में गैस की व्यवहार्यता में सुधार करने के लिए, उपभोक्ताओं को भुगतान की जाने वाली विद्युत की वास्तविक लागत निर्धारित करने के लिए नियामक सुधारों की आवश्यकता है।
  • अन्य
    • EV पर्याप्त चार्जिंग बुनियादी ढाँचे की कमी से ग्रस्त हैं। 
    • कृषि क्षेत्र में नाइट्रोजन सबसे अधिक उपभोग किया जाने वाला पोषक तत्त्व है। हालाँकि, स्वच्छ विकल्प, अर्थात् ग्रीन अमोनिया, की ओर बदलाव महंगा है। 
    • रसोई गैस के मामले में, पाइप्ड प्राकृतिक गैस देश में LPG (बिना सब्सिडी) की प्रमुख आपूर्ति की तुलना में एक सस्ता विकल्प है।

एकीकृत ऊर्जा नीति की आवश्यकता

ऊर्जा शुल्क और सब्सिडी को कम करने, ऊर्जा क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने तथा समग्र लागत को कम करने के लिए ऊर्जा-कुशल प्रौद्योगिकियों में निवेश करने हेतु नीतियों को लागू करना समय की माँग है।

  • ऊर्जा सुरक्षा: भारत का 40% से अधिक तेल अस्थिर मध्य पूर्व से आता है। भू-राजनीतिक तनाव और प्रतिबंध आपूर्ति को बाधित कर सकते हैं, जिससे कीमतें और आर्थिक स्थिरता प्रभावित हो सकती है।
  • बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए: भारत की ऊर्जा माँग वर्ष 2040 तक सालाना 1.8% बढ़ने का अनुमान है। एक व्यापक नीति इस वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त और विश्वसनीय ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करती है।
  • घरेलू क्षमता: भारत में सौर और पवन जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के लिए अपार क्षमता है। एक अच्छी तरह से एकीकृत नीति इस क्षमता को अनलॉक कर सकती है, आयात पर निर्भरता को कम कर सकती है और ऊर्जा स्वतंत्रता को बढ़ावा दे सकती है।
  • पर्यावरणीय स्थिरता: चूँकि भारत ग्रीनहाउस गैसों का दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है, इसलिए एक एकीकृत नीति जो नवीकरणीय ऊर्जा और ऊर्जा दक्षता को प्राथमिकता देती है, जलवायु परिवर्तन प्रतिबद्धताओं को पूरा करने और एक स्थायी भविष्य सुनिश्चित करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।

आगे की राह

वर्ष 2047 तक ‘विकसित भारत’ की यात्रा पर अग्रसर एक विकासशील देश के रूप में, ‘न्यायसंगत’ परिवर्तन सरकारी नीति का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है, जो उचित मूल्य निर्धारण और बड़े पैमाने पर उपभोग वाले उत्पादों की उपलब्धता को सक्षम बनाता है।

  • एक अलग दृष्टिकोण की आवश्यकता: कार्बन पर भारत की वैश्विक भागीदारी, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व वाले COP सम्मेलनों में, यह सुनिश्चित करती है कि साझा किंतु विभेदित उत्तरदायित्त्व और क्रमिक क्षमताओं (Common But Differentiated Responsibilities) (Respective Capabilities- CBDR-RC) का सिद्धांत प्रबल हुआ है।
    • कम उत्सर्जन वाली रणनीतियों को हमारे सामाजिक-आर्थिक दायित्वों को ध्यान में रखते हुए नीतिगत प्रोत्साहनों के माध्यम से ऊर्जा मिश्रण के लिए एक अलग दृष्टिकोण प्रदान करना चाहिए।
    • इस प्रकार, नीतियों को प्रौद्योगिकी के विभिन्न पहलुओं और इसके विघटन की क्षमता को पहचानने के लिए विकसित किया जाना चाहिए।
      • उदाहरण के लिए: पेट्रोकेमिकल्स के उत्पादन के लिए कोयले का पुनः उपयोग या वायु से कार्बन पृथक करने की घटती लागत।
  • नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन का उपयोग: सरकार को प्रोत्साहन तथा सब्सिडी के माध्यम से नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के विकास को प्रोत्साहित करना चाहिए।
    • अक्षय ऊर्जा स्रोतों को प्रभावी ढंग से एकीकृत करने के लिए स्मार्ट ग्रिड तकनीक विकसित करना।
  • संस्था की भूमिका: नीति आयोग जैसी संस्थाएँ सूचना का प्रसार और संश्लेषण कर सकती हैं।
    • इसमें जलवायु संबंधी सभी मुद्दों को शामिल किया जाएगा, जैसे कराधान के नजरिए से जीवाश्म ईंधन और स्वच्छ ईंधन को संतुलित करना, बड़े पैमाने पर उपभोग वाले उत्पादों का मूल्य निर्धारण, कार्बन बाजार विकसित करना, ‘न्यायसंगत संक्रमण’ आवश्यकताओं को संबोधित करना आदि 
    • इससे मध्यम से दीर्घकालिक ऊर्जा संक्रमण की सुविधा भी मिलेगी, जहाँ हितधारक सहक्रियात्मक तरीके से और मापन योग्य परिणामों के साथ अपनी भूमिका सुचारू रूप से निभाने में सक्षम होंगे।
  • मौजूदा परियोजनाओं की समीक्षा: ईंधन विविधता को ‘जैविक’ तरीके से सुधारने के लिए, परियोजनाओं का मूल्यांकन करने के लिए ऋणदाताओं द्वारा उपयोग किए जाने वाले जोखिम मॉडल वर्तमान में कोयला परियोजनाओं के प्रति पक्षपाती हैं और उनकी समीक्षा किए जाने की आवश्यकता है।
    • उदाहरण: एक अध्ययन के अनुसार, यूरोप में, कम कार्बन वाले क्षेत्रों के लिए ऋण हानि-प्रावधान बड़े उत्सर्जकों की तुलना में दोगुना है।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी: सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल के व्यापक पैमाने पर कार्यान्वयन के लिए जोर देने की आवश्यकता है। निजी क्षेत्र विद्युत उत्पादन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, अधिक सहायक वातावरण देश की ऊर्जा कमी को पूरा करने में मदद करेगा।
  • तकनीकी नवाचार: विद्युत की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए, भारतीय विद्युत उद्योग को तकनीकी नवाचारों का उपयोग करना चाहिए।
    • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग: ऊर्जा उत्पादन और वितरण को अनुकूलित करने के लिए विद्युत उद्योग में AI का उपयोग किया जा रहा है।
      • AI एल्गोरिदम ऊर्जा की माँग का अनुमान लगाने और ऊर्जा आपूर्ति को अनुकूलित करने के लिए बड़ी मात्रा में डेटा का विश्लेषण कर सकते हैं। AI का उपयोग विद्युत उपकरणों की निगरानी और रखरखाव के लिए भी किया जा रहा है, जिससे रखरखाव लागत और डाउनटाइम कम हो रहा है।
    • ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी का उपयोग: ऊर्जा व्यापार और प्रबंधन में सुधार की इसकी क्षमता के लिए विद्युत उद्योग में इसका उपयोग किया जा रहा है।
      • इसका उपयोग पीयर-टू-पीयर ऊर्जा व्यापार को सक्षम करने के लिए किया जा सकता है, जिससे व्यक्तियों तथा व्यवसायों को बिचौलियों की आवश्यकता के बिना सीधे ऊर्जा खरीदने एवं बेचने की अनुमति मिलती है। 
      • इसका उपयोग ऊर्जा के स्रोत को ट्रैक करने और इसकी प्रामाणिकता सुनिश्चित करने, ऊर्जा बाजार में पारदर्शिता तथा विश्वास में सुधार करने के लिए भी किया जा सकता है।
  • अन्य: घरेलू तेल तथा गैस भंडारों की खोज और उत्पादन को प्रोत्साहित करना, नई निष्कर्षण प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान एवं विकास (R&D) में निवेश करना और आयात पर निर्भरता कम करने के लिए ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देना।
    • पावर ग्रिड, पाइपलाइन और भंडारण सुविधाओं सहित ऊर्जा बुनियादी ढाँचे को उन्नत और विस्तारित करने में निवेश करना।

निष्कर्ष

भारत यह सुनिश्चित करना चाहता है कि सभी को हर समय पर्याप्त विद्युत उपलब्ध हो, साथ ही जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता कम करके तथा अधिक पर्यावरण अनुकूल, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ते हुए स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन में तेजी लाना चाहता है।

  • भारत की ऊर्जा टोकरी को अक्षय, गैस, हाइड्रो और परमाणु आधारित क्षमताओं की अत्यधिक मात्रा में आवश्यकता है। वर्तमान में, वे कुल उत्पादन के 25% के मामूली स्तर पर हैं।

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