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राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून की आवश्यकता

Lokesh Pal August 25, 2025 02:49 10 0

संदर्भ

23 अगस्त को भारत ने चंद्रयान 3 की सफलता का जश्न मनाते हुए अपना दूसरा राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस मनाया, जिसमें विशेषज्ञों ने वैश्विक प्रतिबद्धताओं को लागू करने और वाणिज्यिक गतिविधियों को विनियमित करने के लिए एक राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून बनाने का आग्रह किया।

संबंधित तथ्य

  • वर्ष 2025 अंतरिक्ष दिवस का विषय है ‘आर्यभट्ट से गगनयान: प्राचीन ज्ञान से अनंत संभावनाओं तक’ (Aryabhatta to Gaganyaan: Ancient Wisdom to Infinite Possibilities)।

राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून के बारे में

  • राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून एक घरेलू कानूनी ढाँचा है, जो किसी देश की अंतरिक्ष गतिविधियों को नियंत्रित करता है, अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का अनुपालन सुनिश्चित करता है और सरकार, निजी क्षेत्र एवं निवेशकों को लाइसेंसिंग, दायित्व और वाणिज्यिक अधिकारों पर स्पष्टता प्रदान करता है।

भारत को राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून की आवश्यकता क्यों है?

  • अंतरराष्ट्रीय दायित्व: यूनाइटिड नेशन्स ऑफिस फॉर आउटर स्पेस अफेयर्स (United Nations Office for Outer Space Affairs- UNOOSA): इस बात पर जोर देता है कि अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को लागू करने योग्य नियमों में बदलने के लिए घरेलू कानून आवश्यक हैं।
    • बाह्य अंतरिक्ष संधि (Outer Space Treaty- OST), 1967
      • साझी विरासत सिद्धांत: अंतरिक्ष समस्त मानव जाति का अधिकार क्षेत्र है; कोई भी राष्ट्र संप्रभुता का दावा नहीं कर सकता हैं।
      • शांतिपूर्ण उपयोग: बाह्य अंतरिक्ष का शस्त्रीकरण नहीं किया जाना चाहिए।
      • राज्य का उत्तरदायित्व: राज्य सरकारी और निजी दोनों गतिविधियों के लिए जिम्मेदार हैं।
      • दायित्व खंड: राष्ट्र अपने अंतरिक्ष पिंडों से होने वाले नुकसान के लिए उत्तरदायी हैं।
      • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: स्थायी अन्वेषण और डेटा साझाकरण को प्रोत्साहित करता है।
  • भारत में घरेलू अंतराल: केवल नीतिगत ढाँचा (कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं)
    • भारतीय अंतरिक्ष नीति-2023: निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करती है।
    • अंतरिक्ष उद्योग के लिए भारतीय मानकों की सूची (2023): गुणवत्ता और सुरक्षा मानक निर्धारित करती है।
    • IN-SPACe मानदंड, दिशा-निर्देश और प्रक्रियाएँ (NPG 2024): गैर-सरकारी संस्थाओं को नियंत्रित करती है।
    • भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन एवं प्राधिकरण केंद्र (Indian National Space Promotion and Authorisation Centre- IN-SPACe): वर्तमान में बिना किसी वैधानिक प्राधिकार के, कार्यकारी आदेशों के तहत संचालित होता है, इसके नियामक निर्णयों को कानूनी रूप से चुनौती दी जा सकती है।
  • उद्योग की चिंताएँ
    • अस्पष्ट लाइसेंसिंग: अंतरिक्ष विभाग (DoS), दूरसंचार विभाग (DoT) और रक्षा मंत्रालय से प्राप्त अनुमोदनों के अतिव्यापन से परियोजनाओं में देरी होती है।
    • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अस्पष्टता: स्वचालित मार्ग में स्पष्टता का अभाव उपग्रहों और उनके घटकों में निवेश को हतोत्साहित करता है।
    • देयता जोखिम: OST के तहत भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्तरदायी बना हुआ है, लेकिन निजी फर्मों के पास बीमा और जोखिम-साझाकरण ढाँचे का अभाव है।
    • कमजोर बौद्धिक संपदा (IP) संरक्षण: प्रतिभा और प्रौद्योगिकी के विदेश प्रवास का जोखिम बना रहता है।
  • सुरक्षा और स्थायित्व संबंधी चिंताएँ: अंतरिक्ष अपशिष्ट प्रबंधन, दुर्घटना जाँच प्रोटोकॉल और डेटा प्रशासन एवं उपग्रह संचार मानदंडों के लिए कोई बाध्यकारी कानूनी ढाँचा नहीं है।
    • दोहरे उपयोग वाली तकनीकों (नागरिक और रक्षा) पर स्पष्ट निगरानी की आवश्यकता है।
  • वैश्विक तुलनाएँ: जापान, लक्जमबर्ग, संयुक्त राज्य अमेरिका: प्राप्त किए गए अंतरिक्ष संसाधनों पर लाइसेंसिंग, दायित्व और वाणिज्यिक अधिकारों को कवर करने वाले स्पष्ट कानून हैं।
  • भारत का जोखिम: स्पष्टता के बिना, भारत अंतरिक्ष वाणिज्य और नवाचार में पिछड़ सकता है।
  • भू-राजनीतिक कोण
    • वैश्विक प्रतिद्वंद्विता: बाह्य अंतरिक्ष में अमेरिका-चीन-रूस के बीच प्रतिस्पर्द्धा का तीव्र होना।
    • रणनीतिक स्वायत्तता: एक राष्ट्रीय कानून सुरक्षित, सतत् और न्यायसंगत अंतरिक्ष प्रशासन में भारत की भूमिका को मजबूत करेगा।

भारत की वर्तमान पहल

  • एंट्रिक्स कॉरपोरेशन लिमिटेड (Antrix Corporation Limited) (1992): उपग्रह प्रक्षेपण के लिए इसरो की पहली वाणिज्यिक शाखा।
  • अंतरिक्ष गतिविधियाँ विधेयक का मसौदा (2017): प्रस्तुत किया गया लेकिन पारित नहीं हुआ; इसका उद्देश्य वाणिज्यिक अंतरिक्ष गतिविधियों को विनियमित करना था।
  • न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NewSpace India Limited- NSIL, 2019): इसरो प्रौद्योगिकियों को उद्योग जगत को हस्तांतरित करने हेतु वाणिज्यिक शाखा।
  • IN-SPACe (2020): निजी अंतरिक्ष गतिविधियों को अधिकृत और विनियमित करने हेतु नोडल निकाय।
  • भारतीय अंतरिक्ष नीति, 2023: निजी क्षेत्र और स्टार्ट-अप्स के लिए एक रोडमैप प्रदान किया गया।

अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून के बारे में

  • नियमों और सिद्धांतों का एक निकाय, जो मुख्यतः संयुक्त राष्ट्र के ढाँचे के अंतर्गत आता है, राज्यों और निजी संस्थाओं की अंतरिक्ष गतिविधियों को नियंत्रित करता है।
  • यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि बाह्य अंतरिक्ष का उपयोग शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए किया जाए, यह “समस्त मानव जाति का प्रांत” हो, और राष्ट्रीय विनियोग को प्रतिबंधित करता है।
  • यह निम्नलिखित मुद्दों को नियंत्रित करता है:
    • बाह्य अंतरिक्ष की खोज और उपयोग
    • क्षति के लिए उत्तरदायित्व
    • मानवता के दूत के रूप में अंतरिक्ष यात्री
    • पर्यावरण संरक्षण (अंतरिक्ष मलबा, कक्षा में परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध)
    • अंतरराष्ट्रीय सहयोग और विवाद निपटान

अंतरिक्ष गतिविधियों पर पाँच प्रमुख संयुक्त राष्ट्र घोषणाएँ/सिद्धांत

  • बाह्य अंतरिक्ष के अन्वेषण और उपयोग में राज्यों की गतिविधियों को नियंत्रित करने वाले कानूनी सिद्धांतों की घोषणा (1963): अंतरिक्ष कानून की नींव, बाह्य अंतरिक्ष संधि (1967) का पूर्ववर्ती इसमें कहा गया कि बाह्य अंतरिक्ष सभी के लिए स्वतंत्र है और संप्रभुता का कोई भी दावा मान्य नहीं है।
  • अंतरराष्ट्रीय प्रत्यक्ष टेलीविजन प्रसारण के लिए कृत्रिम पृथ्वी उपग्रहों के राज्यों द्वारा उपयोग को नियंत्रित करने वाले सिद्धांत (1982): उपग्रह प्रसारण में संप्रभुता और सांस्कृतिक अखंडता के सम्मान पर बल दिया गया।
  • बाह्य अंतरिक्ष से पृथ्वी के सुदूर संवेदन से संबंधित सिद्धांत (1986): डेटा का उपयोग संवेदित राज्यों के लाभ के लिए किया जाना चाहिए, जिससे संप्रभुता, गोपनीयता और विकासात्मक उपयोग सुनिश्चित हो सके।
  • बाह्य अंतरिक्ष में परमाणु ऊर्जा स्रोतों के उपयोग से संबंधित सिद्धांत (1992): अंतरिक्ष यान में रेडियो आइसोटोप थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटर (Radioisotope Thermoelectric Generators- RTGs) और अन्य परमाणु ऊर्जा के उपयोग के लिए सुरक्षा ढाँचा।
  • सभी राष्ट्रों के लाभ और हित में बाह्य अंतरिक्ष के अन्वेषण और उपयोग में अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर घोषणा (1996): विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए समान पहुँच और अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर जोर दिया गया है।

राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून बनाने में चुनौतियाँ

  • नियामक विखंडन: कई मंत्रालयों के होने से दोहराव और देरी होती है।
  • कमजोर वैधानिक समर्थन: IN-SPACe के पास विधायी अधिकार का अभाव है।
  • बीमा और देयता संबंधी मुद्दे: स्टार्ट-अप्स के लिए प्रवेश में उच्च बाधाएँ।
  • FDI प्रतिबंध: सीमित दायरा वैश्विक पूँजी प्रवाह को हतोत्साहित करता है।
  • आईपी सुरक्षा अंतराल: प्रतिभा पलायन और प्रौद्योगिकी पलायन का जोखिम।

आगे की राह

  • एक व्यापक अंतरिक्ष गतिविधि कानून लागू करना: OST दायित्वों के अनुरूप वैधानिक ढाँचा प्रदान करना।
    • सरकार और निजी क्षेत्र की भूमिकाओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना।
  • IN-SPACe को मजबूत करना: ‘सिंगल-विंडो’ नियामक के रूप में वैधानिक शक्तियाँ प्रदान करना।
    • समयबद्ध लाइसेंसिंग और पारदर्शी अस्वीकृति मानदंड स्थापित करना।
  • बीमा ढाँचा विकसित करना: स्टार्ट-अप प्रवेश बाधाओं को कम करने के लिए सरकार समर्थित पुनर्बीमा या संयुक्त जोखिम मॉडल।
    • उदाहरण: फ्राँस अंतरिक्ष अपशिष्ट देयता बीमा को सब्सिडी प्रदान करता है।
  • FDI मानदंडों को उदार बनाना: सुरक्षा उपायों के साथ उपग्रह घटकों और सेवाओं में स्वचालित मार्ग के तहत 100% FDI की अनुमति देना।
  • IP संरक्षण और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ाना: पेटेंट, कॉपीराइट की रक्षा करना और उद्योग-अकादमिक साझेदारी को प्रोत्साहित करना।
    • प्रतिभा को बनाए रखना और IP-अनुकूल देशों की ओर पलायन को रोकना।
  • स्थायित्व उपायों को शामिल करना: अपशिष्ट के शमन, दुर्घटना जाँच और सुरक्षा मानकों को कानूनी रूप से लागू करना।
    • वाणिज्यिक विकास को दीर्घकालिक स्थान स्थायित्व के साथ संतुलित करना।

इसरो और भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की प्रमुख उपलब्धियाँ: एक परिदृश्य

प्रारंभिक उपलब्धियाँ

  • आर्यभट्ट (1975): भारत का प्रथम उपग्रह, जिसने देश को संगठित रूप से अंतरिक्ष अनुसंधान की दिशा में अग्रसर किया।
  • रोहिणी उपग्रह (1980): स्वदेशी रॉकेट (SLV-3) का उपयोग करके प्रक्षेपित किया गया भारत का पहला उपग्रह।

प्रक्षेपण वाहन विकास

  • ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (Polar Satellite Launch Vehicle- PSLV): विश्वसनीय कार्यवाहक, जो भारत और अन्य देशों के लिए लागत-प्रभावी बहु-उपग्रह प्रक्षेपणों को सक्षम बनाता है।
  • जीएसएलवी और जीएसएलवी मार्क III / एलवीएम-3 (GSLV & GSLV Mk III / LVM-3): एलवीएम-3 को भारी उपग्रहों के प्रक्षेपण की अनुमति है; इसने चंद्रयान-2 और चंद्रयान-3 को भी प्रक्षेपित किया है और भविष्य में गगनयान मिशन के लिए प्रयोग किया जाएगा।
  • लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (Small Satellite Launch Vehicle- SSLV): छोटे पेलोड के लिए अंतरिक्ष तक वहनीय पहुँच।

अंतरिक्ष अन्वेषण

  • चंद्रयान-1 (2008): चंद्रमा पर जल के अणुओं की पुष्टि हुई।
  • चंद्रयान-2 (2019): ऑर्बिटर ने चंद्रमा का मानचित्रण जारी रखा।
  • चंद्रयान-3 (2023): भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश बना।
  • मंगलयान (2014): मंगल की कक्षा में पहुँचने वाला पहला एशियाई देश, और अपने पहले ही प्रयास में सफल होने वाला दुनिया का पहला देश।
  • आदित्य-L1 (2023): लैग्रेंज बिंदु से सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला भारतीय सौर मिशन।
  • आगामी: भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए गगनयान मिशन; शुक्रयान (शुक्र मिशन); दीर्घकालिक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन।

उपग्रह अनुप्रयोग एवं राष्ट्रीय लाभ

  • इन्सैट (INSAT) शृंखला: दूरसंचार, टीवी प्रसारण और मौसम पूर्वानुमान को बढ़ावा दिया।
  • IRS शृंखला: सबसे बड़े पृथ्वी अवलोकन केंद्रों में से एक कृषि, वानिकी, जल संसाधन, शहरी नियोजन और आपदा प्रबंधन में सहायता प्रदान की।
  • GSAT शृंखला: संचार को सुदृढ़ बनाया।
  • नाविक (NAVIC) (2018): भारत की स्वदेशी नेविगेशन प्रणाली, राष्ट्रीय सुरक्षा, परिवहन और आपदा प्रतिक्रिया को सुदृढ़ किया।
  • एजूसैट (EDUSAT-2004): शिक्षा के लिए समर्पित पहला उपग्रह।
  • डिस्नेट और टेलीमेडिसिन: शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में ग्रामीण क्षेत्रों की कमियों को पूरा करना।
  • भुवन प्लेटफॉर्म: भारतीय मानचित्रण सेवा (गूगल अर्थ का विकल्प)।

वाणिज्यिक उपलब्धियाँ

  • एंट्रिक्स (Antrix) और न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL): इसरो की व्यावसायिक शाखाएँ।
  • PSLV-C37 (2017): एक ही मिशन में 104 उपग्रहों का विश्व रिकॉर्ड प्रक्षेपण।
    • इसरो ने 30 से अधिक देशों के 450 से अधिक विदेशी उपग्रहों का प्रक्षेपण किया है, जो कम लागत और उच्च दक्षता वाले अंतरिक्ष समाधानों का प्रदर्शन है।

वैज्ञानिक एवं वैश्विक योगदान

  • एक्सपोसैट (XPoSat-2024): एक्स-रे खगोल विज्ञान के लिए भारत का पहला समर्पित ध्रुवणमापी मिशन। 
  • निसार (NISAR) (2025): पारिस्थितिकी तंत्र, खतरों और जलवायु परिवर्तन का अध्ययन करने के लिए नासा के साथ संयुक्त मिशन।
  • आपदा प्रबंधन सहायता कार्यक्रम (Disaster Management Support Programme- DMSP): चक्रवात निगरानी, बाढ़ मानचित्रण और पूर्व चेतावनी में सहायक उपग्रह डेटा।
  • जलवायु निगरानी, ​​मौसम पूर्वानुमान और पृथ्वी अवलोकन में सक्रिय भूमिका।

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