भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) के शोधकर्ताओं ने जल से माइक्रोप्लास्टिक हटाने के लिए एक सतत हाइड्रोजेल (Sustainable Hydrogel) डिजाइन किया है।
संबंधित तथ्य
माइक्रोप्लास्टिक्स के खतरे: IISc के अनुसार, माइक्रोप्लास्टिक्स मानव स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा है क्योंकि ये छोटे प्लास्टिक कण जल के माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश कर सकते हैं एवं बीमारियों का खतरा उत्पन्न कर सकते हैं।
ये कण एक पर्यावरणीय खतरा हैं एवं ध्रुवीय बर्फ की चोटियों तथा गहरे समुद्र की खाइयों जैसे दूरदराज के क्षेत्रों में भी पाए जाते हैं, जो जलीय एवं स्थलीय जीवन को खतरे में डालते हैं।
इंटरट्वाइंड पॉलीमर नेटवर्क (IPN): टिकाऊ हाइड्रोजेल में एक अद्वितीय ‘इंटरट्वाइंड पॉलीमर नेटवर्क’ होता है, जो दूषित पदार्थों को संगठित कर सकता है एवं UV प्रकाश विकिरण का उपयोग करके उन्हें नष्ट कर सकता है।
नए हाइड्रोजेल में तीन अलग-अलग पॉलीमर परतें होती हैं- चिटोसन (Chitosan), पॉलीविनाइल अल्कोहल (Polyvinyl Alcohol) एवं पॉलीएनिलिन (Polyaniline) जो एक साथ बँधी हुई होती हैं, ये परतें मिलकर एक IPN आर्किटेक्चर बनाती हैं।
नैनोक्लस्टर्स का एकीकरण: टीम ने इस मैट्रिक्स को कॉपर सब्स्टीट्यूट पॉलीओक्सोमेलेट (Copper Substitute Polyoxometalate) अर्थात् Cu-POM नामक सामग्री के नैनोक्लस्टर्स के साथ जोड़ा।
ये नैनोक्लस्टर उत्प्रेरक हैं, जो माइक्रोप्लास्टिक को समाप्त करने के लिए UV प्रकाश का उपयोग कर सकते हैं।
पॉलीमर एवं नैनोक्लस्टर के संयोजन से एक मजबूत हाइड्रोजेल बना, जिसमें बड़ी मात्रा में माइक्रोप्लास्टिक को सोखने तथा नष्ट करने की क्षमता थी।
ट्रैकिंग के लिए फ्लोरोसेंट डाई को जोड़ना: शोधकर्ताओं ने माइक्रोप्लास्टिक्स में एक फ्लोरोसेंट डाई को जोड़ा ताकि यह पता लगाया जा सके कि विभिन्न परिस्थितियों में हाइड्रोजेल द्वारा कितना सोख लिया गया एवं कितना नष्ट किया जा रहा है।
माइक्रोप्लास्टिक्स को हटाने में दक्षता: हाइड्रोजेल को अत्यधिक कुशल पाया गया क्योंकि यह लगभग तटस्थ pH (∼6.5) पर जल में दो अलग-अलग प्रकार के माइक्रोप्लास्टिक्स का लगभग 95% एवं 93% हटा सकता है।
प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए सरकार की पहल
जहाजों से प्रदूषण की रोकथाम के लिए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (MARPOL): भारत MARPOL का सदस्य है।
यह परिचालन या आकस्मिक कारणों से जहाजों द्वारा समुद्री पर्यावरण के प्रदूषण की रोकथाम को कवर करने वाला मुख्य अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन है।
MARPOL कन्वेंशन को 2 नवंबर, 1973 को IMO में अपनाया गया था।
भारत प्लास्टिक समझौता: इसे सितंबर 2021 में लॉन्च किया गया था। इसका उद्देश्य अपने हस्ताक्षरकर्ताओं को चार महत्त्वाकांक्षी एवं समयबद्ध लक्ष्यों तक पहुँचाकर भारत में प्लास्टिक के लिए एक चक्रीय अर्थव्यवस्था विकसित करना है।
प्रोजेक्ट रिप्लान: इसका मतलब प्रकृति में प्लास्टिक को कम करना है। इसका लक्ष्य प्रसंस्कृत एवं उपचारित प्लास्टिक कचरे को 20:80 के अनुपात में कपास फाइबर के कपड़ों के साथ मिलाकर कैरी बैग बनाना है।
अन-प्लास्टिक कलेक्टिव: यह भारतीय उद्योग परिसंघ, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम एवं WWF-इंडिया द्वारा सह-स्थापित है, जो एकल उपयोग प्लास्टिक को कम करने के लिए एक आंदोलन है।
ग्लोलिटर साझेदारी परियोजना: इसे शिपिंग एवं मत्स्यपालन से समुद्री प्लास्टिक कूड़े को रोकने और कम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन और संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा शुरू किया गया है।
माइक्रोप्लास्टिक्स
माइक्रोप्लास्टिक्स अत्यंत छोटे प्लास्टिक कण होते हैं।
आकार सीमा: ये कण 100 नैनोमीटर (nm) से 5 मिलीमीटर (mm) तक होते हैं।
स्रोत: वे विभिन्न स्थानों से आते हैं जैसे- प्लास्टिक कचरा, बड़ी प्लास्टिक वस्तुओं का टूटना एवं औद्योगिक गतिविधियाँ।
व्यापक उपस्थिति: माइक्रोप्लास्टिक्स हर जगह मौजूद हैं, जिनमें महासागर, नदियाँ, मिट्टी एवं यहाँ तक कि हवा में भी शामिल है।
पता लगाने की चुनौतियाँ: उनके छोटे आकार के कारण विशेष उपकरण के बिना उनका पता लगाना मुश्किल हो जाता है।
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