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नए समुद्री कानून भारत को आधुनिक बनाएँगे, लेकिन दिशा में सुधार की आवश्यकता है

Lokesh Pal September 06, 2025 05:10 27 0

संदर्भ

हाल ही में, राज्यसभा ने भारतीय बंदरगाह अधिनियम, 1908 का स्थान लेते हुए भारतीय बंदरगाह विधेयक, 2025 पारित किया।

  • हाल ही में पारित किए गए अन्य समुद्री अधिनियम/विधेयक:-
    • तटीय नौवहन अधिनियम, 2025
    • समुद्री माल परिवहन विधेयक, 2025 
    • वाणिज्य पोत परिवहन अधिनियम, 2025
  • सामूहिक रूप से, इन अधिनियम/विधेयकों का उद्देश्य भारत के समुद्री क्षेत्र का आधुनिकीकरण करना, नियामकीय ढाँचे को सुव्यवस्थित करना तथा इसे वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप बनाना है।

नए समुद्री कानूनों का सारांश

अधिनियम / विधेयक 

प्रमुख प्रावधान

भारतीय बंदरगाह विधेयक, 2025 (भारतीय बंदरगाह अधिनियम, 1908 का स्थान लिया)
  • राज्यों को सशक्त बनाता है: कम महत्त्वपूर्ण बंदरगाहों के लिए राज्य समुद्री बोर्डों को वैधानिक मान्यता प्रदान करता है।
  • केंद्रीकृत योजना: केंद्रीय बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्री की अध्यक्षता में समुद्री राज्य विकास परिषद (MSDC) का गठन करता है।
  • विवाद निवारण: विवाद समाधान समिति (DRC) का गठन करता है, इसके विरुद्ध अपील केवल उच्च न्यायालयों में ही की जा सकती है।
  • टैरिफ निर्धारण: प्रमुख बंदरगाहों के लिए बंदरगाह प्राधिकरण बोर्ड द्वारा  एवं कम महत्त्वपूर्ण बंदरगाहों के लिए राज्य समुद्री बोर्ड द्वारा टैरिफ निर्धारण।
  • सुरक्षा प्रथम: MARPOL (जहाजों से प्रदूषण की रोकथाम के लिए अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन) और बलास्ट वाटर कन्वेंशन का अनुपालन अनिवार्य है।
    • प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण, आपातकालीन तैयारी और आपदा प्रबंधन के संबंध में नए दायित्व जोड़े गए हैं।
  • दंड सुधार: छोटे अपराधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है और पहली बार उल्लंघन करने पर दंडात्मक कार्रवाई की गई है।
वाणिज्य पोत परिवहन विधेयक, 2025 (वाणिज्य पोत परिवहन अधिनियम, 1958 का स्थान लिया)
  • सार्वभौमिक पंजीकरण: सभी जहाजों का, चाहे उनका आकार या प्रणोदन कुछ भी हो, पंजीकरण होना अनिवार्य है।
    • पुनर्चक्रण हेतु जहाजों का अस्थायी पंजीकरण शुरू किया गया है।
  • विस्तारित परिभाषा: इसमें अपतटीय ड्रिलिंग इकाइयाँ, पनडुब्बियाँ और ‘नॉन-डिसप्लेसमेंट क्राफ्ट्स’ शामिल हैं।
  • लचीला स्वामित्व: भारतीय नागरिकों, भारतीय कंपनियों, सहकारी समितियों, विदेशी नागरिक निगमों (OCI) और आंशिक विदेशी स्वामित्व की अनुमति देता है।
  • वित्तपोषण उपकरण: बेयरबोट चार्टर-कम-डेमिस (Bareboat Charter-Cum-Demise- BBCD) लीजिंग को मान्यता देता है।
  • संस्थागत निरंतरता: राष्ट्रीय नौवहन बोर्ड और नाविक कल्याण बोर्ड को बनाए रखता है।
  • समुद्र में प्रदूषण की रोकथाम: सभी जहाजों के लिए प्रदूषण प्रमाणपत्र अनिवार्य करता है।
समुद्री माल परिवहन विधेयक, 2025 (समुद्री माल परिवहन अधिनियम, 1925 का स्थान लिया)
  • हेग-विस्बी नियमों का अनुपालन: भारत के कार्गो दायित्व कानूनों को UK जैसे देशों द्वारा अपनाए जाने वाले वैश्विक रूप से स्वीकृत मानकों के अनुरूप बनाना, जिससे सीमा पार लेन-देन सरल हो सके।
  • केंद्र सरकार की भूमिका: ‘बिल ऑफ लोडिंग’ से संबंधित निर्देश जारी करना और नियमों में संशोधन करना।
    •  ‘बिल ऑफ लोडिंग’: मालवाहक द्वारा माल भेजने वाले को जारी किया गया दस्तावेज, जिसमें माल के प्रकार, मात्रा, स्थिति और गंतव्य जैसे विवरण होते हैं।
  • ईज ऑफ ट्रैड: पारदर्शिता को बढ़ावा, मुकदमेबाजी में कमी, निवेशकों का विश्वास बढ़ाना।
तटीय नौवहन विधेयक, 2025 
  • व्यापक पोत कवरेज: सभी पोतों (जहाज, नाव, नौकायन पोत, अपतटीय ड्रिलिंग इकाइयाँ) को नियंत्रित करता है, चाहे वे स्वचालित हों या न हो।
  • छूट देने की शक्तियाँ: केंद्र किसी भी श्रेणी के पोतों को अधिनियम से छूट दे सकता है।
  • सरलीकृत लाइसेंसिंग: DG शिपिंग तटीय नौवहन के लिए सुव्यवस्थित लाइसेंस जारी करेगा।
  • विस्तारित तटीय व्यापार: इसमें अन्वेषण, अनुसंधान और वाणिज्यिक गतिविधियाँ (मत्स्यपालन छोड़कर) शामिल हैं।
  • विदेशी पोतों का विनियमन: घरेलू माल ढुलाई में विदेशी पोतों के लिए स्पष्ट मानदंड।
  • रणनीतिक योजना: दीर्घकालिक विकास के लिए एक राष्ट्रीय तटीय और अंतर्देशीय नौवहन रणनीतिक योजना को अनिवार्य बनाता है।
  • राष्ट्रीय डेटाबेस: निवेशकों, संचालकों और नीति निर्माताओं की सहायता के लिए रियल-टाइम डेटाबेस।

सुधार की आवश्यकता

  • पुराने औपनिवेशिक युग के कानून: वर्ष 1908 का बंदरगाह अधिनियम तथा वर्ष 1958 का व्यापारी नौवहन अधिनियम समय के साथ अप्रासंगिक हो चुके थे, क्योंकि वैश्विक समुद्री सम्मेलन, अपतटीय गतिविधियाँ और आधुनिक वित्तीय तंत्र इनसे कहीं आगे निकल चुके थे।
  • आधुनिकीकरण अनिवार्य: निवेश आकर्षित करने और वैश्विक व्यापार प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिए सुसंगत, अद्यतन ढाँचे महत्त्वपूर्ण हैं।
  • ईज ऑफ ट्रेड: नया विधायी ढाँचा विखंडन को कम करने, सतत् बंदरगाह विकास को प्रोत्साहित करने तथा व्यापारिक प्रक्रियाओं में पूर्वानुमेयता सुनिश्चित करने हेतु सरल और सुविधाजनक कानूनों का आश्वासन देता है।
  • वैश्विक संरेखण: देयता, सुरक्षा, स्वामित्व और बीमा से संबंधित प्रावधान अब अंतरराष्ट्रीय समुद्री सम्मेलनों के साथ अधिक निकटता से संरेखित किए गए हैं।
  • व्यापक दृष्टिकोण: बंदरगाहों, नौवहन, तटीय व्यापार तथा माल ढुलाई को समग्र रूप से संबोधित करते हुए, ये सुधार एकीकृत एवं सुदृढ़ शासन ढाँचे की स्थापना करते हैं।

भारत के समुद्री क्षेत्र में प्रमुख चिंताएँ

1. संघीय चिंताएँ – केंद्रीकरण बनाम स्वायत्तता 

  • शक्तियों का केंद्रीकरण: केंद्रीय मंत्री की अध्यक्षता वाली समुद्री राज्य विकास परिषद, राज्यों को निर्देश जारी कर सकती है।
  • सहयोग से अधीनता की ओर: सहकारी संघवाद के बजाय, कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि नया बंदरगाह अधिनियम संघीय अधीनता का एक उदाहरण है, जिसे यह सुनिश्चित करने के लिए डिजाइन किया गया है कि राज्य अपनी प्राथमिकताओं की परवाह किए बिना सागरमाला और पीएम गति शक्ति जैसी केंद्रीय योजनाओं के साथ अपने बंदरगाह विकास को संरेखित करें।
  • स्वायत्तता की हानि: राज्य समुद्री बोर्ड केंद्र की मंजूरी के बिना ढाँचे में संशोधन नहीं कर सकते, जिससे वित्तीय और नियामक स्वतंत्रता कम हो जाती है।

2. नियामक और न्यायिक चिंता

  • बंदरगाह अधिनियम के तहत दी गई अस्पष्ट और विवेकाधीन शक्तियाँ, छोटे ऑपरेटरों पर बोझ बढ़ा सकती हैं।
  • विवाद समाधान दोष
    • बंदरगाह अधिनियम की धारा 17: यह दीवानी न्यायालयों को बंदरगाह विवादों की सुनवाई करने से रोकती है।
    • विवादों का निपटारा बंदरगाह प्राधिकरणों द्वारा स्वयं गठित आंतरिक समितियों के पास होता है।
  • स्वतंत्र न्यायिक समीक्षा के अभाव में निवेश में बाधा और विश्वास कम होने का खतरा है।

3. वाणिज्य पोत परिवहन अधिनियम, 2025 के तहत स्वामित्व संबंधी खामियाँ

  • कमजोर सुरक्षा उपाय: पहले के कानून में भारतीय ध्वज वाले जहाजों पर 100% भारतीय स्वामित्व अनिवार्य था। नया कानून आंशिक विदेशी स्वामित्व की अनुमति देता है, जिसकी सीमा कार्यकारी अधिसूचना पर छोड़ दी गई है।
  • बेयरबोट चार्टर-कम-डेमिस (BBCD): BBCD पंजीकरण भारतीय संचालकों को अंततः स्वामित्व प्राप्त करने के लिए विदेशी जहाजों को पट्टे पर देने की अनुमति देता है।
    • BBCD भारत की नियामक क्षमता का परीक्षण कर सकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि स्थानांतरण वास्तव में हो। यदि स्पष्ट एवं लागू करने योग्य नियम न हों, तो विदेशी पट्टादाता अनिश्चित काल तक प्रभावी नियंत्रण बनाए रख सकते हैं।
  • नौकरशाही का बोझ: सभी जहाजों का अनिवार्य पंजीकरण, चाहे उनका आकार कुछ भी हो, छोटे संचालकों पर अत्यधिक बोझ डाल सकता है।
  • सुविधा के झंडे का जोखिम: अत्यधिक कार्यकारी विवेकाधिकार भारतीय ध्वज वाले जहाजों पर विदेशी प्रभुत्व को अनुमति दे सकता है।

4. तटीय नौवहन अधिनियम, 2025 के तहत छोटे ऑपरेटरों पर बोझ

  • जहाजरानी संरक्षण कमजोर: तटीय व्यापार को भारतीय ध्वज वाले जहाजों के लिए आरक्षित रखते हुए, DG शिपिंग “राष्ट्रीय सुरक्षा” या “रणनीतिक योजनाओं” जैसे अस्पष्ट आधारों पर विदेशी जहाजों को अनुमति दे सकता है।
  • अनुपालन भार: डेटा उपयोग पर स्पष्टता के बिना अनिवार्य यात्रा और कार्गो रिपोर्टिंग, जो मछुआरा समुदायों और छोटे ऑपरेटरों को असमान रूप से प्रभावित करती है।
  • केंद्रीय नियोजन प्रभुत्व: राष्ट्रीय तटीय और अंतर्देशीय नौवहन रणनीतिक योजना स्थानीय प्राथमिकताओं को दरकिनार कर सकती है।

5. प्रक्रिया संबंधी चिंताएँ: गहन संसदीय बहस या स्थायी समिति की जाँच के बिना व्यापक सुधारों को पारित करना लोकतांत्रिक वैधता और सार्वजनिक परामर्श के बारे में प्रश्न उठाता है।

समुद्री क्षेत्र की दक्षता बढ़ाने के लिए भारत क्या उपाय अपना सकता है?

  • स्पष्ट सीमाएँ निर्धारित करना: स्वामित्व और लाइसेंसिंग नियमों को कानून में स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए, न कि कार्यपालिका के विवेक पर छोड़ा जाना चाहिए।
  • न्यायिक स्वतंत्रता बहाल करना: निवेशकों का विश्वास बढ़ाने के लिए विवाद समाधान हेतु निष्पक्ष न्यायालयों तक पहुँच सुनिश्चित करना।
  • छोटे ऑपरेटरों की सुरक्षा करें: जहाज के आकार और ऑपरेटर क्षमता के अनुपात में पंजीकरण और अनुपालन ढाँचों को सरल बनाना।
  • संघीय संतुलन को मजबूत करना: बंदरगाह नियोजन और नीति में राज्यों की सार्थक भूमिका होनी चाहिए और सभी के लिए एक ही तरह के केंद्रीय निर्देशों से बचना चाहिए।
  • लाइसेंसिंग में पारदर्शिता सुनिश्चित करना: विदेशी जहाजों को जहाजरानी व्यापार में शामिल करने के लिए वस्तुनिष्ठ, सुपरिभाषित मानदंड।
  • BBCD नियमों को सख्ती से लागू करना: यह सुनिश्चित करना कि पट्टे पर दिए गए जहाज अंततः भारतीय ऑपरेटरों को स्वामित्व हस्तांतरित कर दें।

आगे की राह

  • सुरक्षा उपायों के साथ आधुनिकीकरण: सुधार आवश्यक हैं, लेकिन केंद्रीकरण और अस्पष्ट प्रावधान संघवाद और निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा को कमजोर करते हैं।
  • समावेशिता एवं व्यापार सुगमता में संतुलन: सुधारों से बड़े ऑपरेटरों को लाभ मिल सकता है, किंतु यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि छोटे ऑपरेटरों और राज्य हाशिए पर न चले जाएँ।
  • परामर्श तंत्र को मजबूत करना: व्यापक बहस और समिति की जाँच सुधारों को परिष्कृत कर सकती है और राजनीतिक आम सहमति बना सकती है।
  • दीर्घकालिक दृष्टिकोण: भारत को संप्रभुता, न्यायिक स्वतंत्रता या संघवाद से समझौता किए बिना अपने समुद्री क्षेत्र का आधुनिकीकरण करना होगा।

निष्कर्ष

भारत का समुद्री क्षेत्र के लिए कई सुधार किये जा रहे हैं, लेकिन यदि इसमें व्यापक स्तर पर सुधार नहीं किया गया तो इससे कुछ लोगों के लिए व्यापार करना आसान हो जाएगा, जबकि दीर्घावधि में संघीय संतुलन और समुद्री सुरक्षा कमजोर हो जाएगी।

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