भारतीय खोज एवं बचाव (SAR) एजेंसियों को समुद्र में उनके कार्यों में सहायता देने के लिए INCOIS के खोज एवं बचाव सहायता उपकरण (Search and Rescue Aid Too- SARAT) का एक नया संस्करण विकसित किया गया है।
खोज एवं बचाव सहायता उपकरण (SARAT)
विकसितकर्त्ता: केंद्रीयपृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (Indian National Centre for Ocean Information Services- INCOIS)
लॉन्च: SARAT को वर्ष 2016 में लॉन्च किया गया था एवं इसका उपयोग तटरक्षक बल द्वारा अपने समुद्री खोज अभियानों में बड़े पैमाने पर किया गया है।
यह उपकरण ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के तहत विकसित किया गया है।
कार्य: SARAT एप्लीकेशन समुद्र में खोई हुई वस्तुएँ तथा मनुष्य भी शामिल हैं, के संभावित खोज क्षेत्र का अनुकरण कर सकता है, बशर्ते कि खोई हुई वस्तु का अंतिम ज्ञात समय और स्थान उपलब्ध करा दिया जाए।
डेटा का स्रोत: SARAT, INCOIS के उच्च प्रदर्शन वाले कंप्यूटरों पर संचालित, अत्यधिक उच्च रिजॉल्यूशन वाले क्षेत्रीय महासागर मॉडलिंग सिस्टम से प्राप्त मॉडल धाराओं पर आधारित है।
SARAT संस्करण 2 की विशेषताएँ
जिस स्थान से खोज क्षेत्र का विस्तार होता है, उसे अब वस्तु की अंतिम ज्ञात स्थिति के रूप में सही किया गया है।
विजुअलाइजेशन: संस्करण-2 में लापता वस्तु को खोजने के संभावित क्षेत्र के बेहतर निर्णय के लिए बेहतर विजुअलाइजेशन की सुविधा दी गई है।
आसान पहचान: इसमें खोज क्षेत्रों की ‘कलर कोडिंग’ और वस्तु की अंतिम ज्ञात स्थिति की आसान पहचान के लिए ‘मार्कर’ जैसी सुविधाएँ भी हैं।
किसान कवच
जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) से संबद्ध वैज्ञानिकों द्वारा ‘किसान कवच‘ नामक एक कीटनाशक रोधी बॉडीसूट विकसित किया गया है।
‘किसान कवच’
किसान कवच भारत का पहला स्वदेशी निर्मित ‘कीटनाशक’ बॉडी सूट है, जिसका उद्देश्य खेत मजदूरों को उनके द्वारा छिड़के गए कीटनाशकों को निगलने और जमा होने से बचाना है।
विकसितकर्त्ता: कवच को DBT से संबद्ध संगठन इनस्टेम (inStem) बैंगलोर द्वारा विकसित किया गया है।
किसान कवच का निर्माण ‘सेपियो हेल्थ प्राइवेट लिमिटेड’ (Sepio Health Pvt. Ltd.) द्वारा किया जाएगा।
घटक: इस किट में एक ट्राउजर, पुलओवर और एक फेस-कवर शामिल है।
कपड़ा: किट के लिए ‘ऑक्सिम फैब्रिक’ इसलिए चुना गया है क्योंकि यह कपड़े या शरीर पर मौजूद कीटनाशकों को रासायनिक रूप से विखंडित कर सकता है और रसायनों को त्वचा में जाने से रोकता है।
‘ऑक्सिम्स’ को सूती कपड़े के सेल्यूलोज में एकीकृत किया गया, जिससे यह एक सक्रिय कपड़े में परिवर्तित हो गया।
कीमत: प्रति किट कीमत ₹4,000 है।
विशेषताएँ
किट ने ‘UV-लाइट एक्सपोजर’ के तहत एक विस्तृत तापमान सीमा में अपनी क्षमता बनाए रखी।
वहनीयता: यह किट धोने योग्य और पुनः प्रयोज्य है और 150 बार धोने के बाद भी सुरक्षित है, इसलिए यह लागत कुशल है।
अत्याधुनिक तकनीक: यह किट कीटनाशकों को निष्क्रिय करने के लिए न्यूक्लियोफाइल आधारित फैब्रिक तकनीक का उपयोग करती है।
राष्ट्रीय शहरी सहकारी वित्त एवं विकास निगम (NUCFDC)
हाल ही में शहरी सहकारी बैंकों (UCBs) की कठिनाइयों को दूर करने के लिए राष्ट्रीय शहरी सहकारी वित्त एवं विकास निगम (NUCFDC) नामक एक संगठन की स्थापना की गई है।
राष्ट्रीय शहरी सहकारी वित्त एवं विकास निगम (NUCFDC )
यह भारत में शहरी सहकारी बैंकों (UCBs) के लिए एक अम्ब्रेला संगठन है।
उद्देश्य: UCBs के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करना।
उनकी परिचालन दक्षता बढ़ाना।
सहकारी बैंकिंग क्षेत्र को मजबूत करना।
नोडल मंत्रालय: सहकारिता मंत्रालय (भारत सरकार)
स्थापना: 2 मार्च, 2024
यह भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के दिशा-निर्देशों के तहत क्षेत्र के लिए एक स्व-नियामक संगठन (SRO) के रूप में भी कार्य करता है।
यह निधि-आधारित एवं गैर-निधि-आधारित सेवाओं के माध्यम से UCBs को व्यापक सहायता प्रदान करता।
निधि आधारित सेवाओं के उदाहरण: आपातकाल के दौरान पूंजी समर्थन, निवेश एवं वित्तीय सहायता।
गैर-निधि आधार सेवाएँ: भुगतान एवं निपटान सेवाएँ, IT सेवाएँ प्रदान करना तथा परामर्श सेवाएँ प्रदान करना।
सहकारी बैंक
ये लघु वित्तीय संस्थान हैं।
इसके सदस्य मालिक एवं ग्राहक हैं।
विनियमन: भारतीय रिजर्व बैंक एवं संबंधित राज्य सरकार।
पंजीकृत: राज्य सहकारी समिति अधिनियम के तहत पंजीकृत।
प्रदान की गई सेवाएँ: देश में ग्रामीण एवं कम आय वाली आबादी हेतु।
मिल्कवीड फाइबर
केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय, भारत में मिल्कवीड फाइबर (Milkweed Fibre) सहित नए प्राकृतिक फाइबर में अपने अनुसंधान एवं विकास प्रयासों का विस्तार कर रहा है।
मिल्कवीड फाइबर
‘मिल्कवीड फाइबर’ एक सतत, प्राकृतिक पौधा फाइबर है, जिसे वनस्पति रेशम के रूप में भी जाना जाता है।
परिवार: यह एस्क्लेपियाडेसी (Asclepiadaceae) परिवार के जीनसएस्क्लेपियस (Asclepias) से संबंधित है।
मूल क्षेत्र: वे मिल्कवीड पौधों के बीज से प्राप्त होते हैं, जो उत्तरी अमेरिका की मूल प्रजाति हैं और विभिन्न प्रकार की मृदा की स्थितियों में उग सकते हैं।
विशेषताएँ
रचना: ये सेल्यूलोज, हेमिकेल्यूलोज एवं लिग्निन से बने होते हैं।
हाइड्रोफोबिसिटी: ‘मिल्कवीड फाइबर’ जल-विकर्षक होते हैं इसलिए प्राकृतिक मोम के कारण उनकी सतह हाइड्रोफोबिक होती है।
तेल सोखना: मिल्कवीड फाइबर, प्रति ग्राम फाइबर 100 ग्राम से अधिक इंजन तेल को अवशोषित कर सकता है।
घनत्व: ‘मिल्कवीड फाइबर’ का घनत्व जल की तुलना में कम होता है।
बारहमासी: मिल्कवीड के पौधे बारहमासी होते हैं एवं इन्हें प्रत्येक वर्ष दोबारा लगाने की आवश्यकता नहीं होती है, साथ ही इन्हें उर्वरकों की भी आवश्यकता नहीं होती है।
विषाक्तता: मिल्कवीड पौधे की पत्तियाँ एवं रस स्तनधारियों के लिए विषैले होते हैं।
प्रयोग
मिल्कवीड फाइबर का उपयोग जल-सुरक्षा उपकरणों में ‘लाइफ जैकेट’ और ‘बेल्ट’ के रूप में किया जाता है और यह अपने वजन से 30 गुना अधिक भार सहन करते हुए जल में तैर सकता है।
असबाब: मिल्कवीड फाइबर हल्के होते हैं और इनमें अच्छे ‘इन्सुलेशन’ गुण होते हैं। इन्हें इन्सुलेशन सामग्री के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
तकनीकी वस्त्र: मिल्कवीड फाइबर का उपयोग पर्यावरण के अनुकूल, गैर-एलर्जेनिक वस्त्र बनाने के लिए किया जा सकता है।
थाईलैंड में, मिल्कवीड फाइबर का उपयोग कपड़े बनाने के लिए किया जाता है एवं इसे रुक्स फाइबर (Rux Fiber) कहा जाता है।
सैनिटरी नैपकिन: मिल्कवीड फाइबर का उपयोग सैनिटरी नैपकिन के निर्माण में किया जा सकता है क्योंकि वे बहुत सारा तरल पदार्थ अवशोषित करते हैं एवं उनमें ऊर्ध्वाधर रूप से सोखने का गुण होता है।
चिकित्सा उपकरण: मिल्कवीड फाइबर का उपयोग उनके पारिस्थितिक एवं रासायनिक लाभों के कारण चिकित्सा सामान बनाने के लिए किया जा सकता है।
इसका उपयोग अस्थि ऊतक के लिए ‘बायोडिग्रेडेबल स्काॅफफोल्ड’ के रूप में किया जा सकता है
तुलसी गौड़ा
पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित एवं कर्नाटक के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् तुलसी गौड़ा का 86 वर्ष की आयु में निधन हो गया
तुलसी गौड़ा
जन्म: वर्ष 1944 में कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले के अंकोला तालुक के होन्नाली गाँव में हुआ।
वन विश्वकोश: औपचारिक स्कूली शिक्षा की कमी के बावजूद वनों के बारे में अपने विशाल ज्ञान के लिए उन्हें ‘वन विश्वकोश’ (Encyclopedia of Forest) के रूप में मान्यता मिली।
उल्लेखनीय योगदान
वनीकरण, अवैध शिकार को रोकने एवं वनाग्नि को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उन्हें पूरे कर्नाटक में 1 लाख से अधिक वृक्ष रोपित करने, भंडार एवं अभयारण्यों को मजबूत करने का श्रेय दिया जाता है। उनके प्रयासों से बाघ अभयारण्यों, संरक्षण क्षेत्रों तथा जैव विविधता की रक्षा हुई।
विरासत: हलाक्की आदिवासी समुदाय द्वारा ‘वृक्ष देवी’ के रूप में सम्मानित।
मान्यता: पर्यावरण संरक्षण के प्रति समर्पण के लिए वर्ष 2021 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
PM नरेंद्र मोदी ने उन्हें ‘मार्गदर्शक प्रकाशपुंज’ कहा, जिनका कार्य पीढ़ियों को पर्यावरण की रक्षा के लिए प्रेरित करेगा।
हलाक्की जनजाति
हलाक्की, वोक्कालिगा उत्तर कन्नड़ के पश्चिमी घाट के पास रहने वाली एक प्राचीन जनजाति (400 वर्ष) है। उन्हें ‘उत्तर कन्नड़ के आदिवासी’ भी कहा जाता है।
हलाक्की वोक्कालिगा अफ्रीका के मासाई मारा समुदाय से मिलते जुलते हैं।
हलाक्की कन्नड़ की एक अलग बोली बोलते हैं जिसे अच्चागन्नदा (Achchagannada) कहा जाता है।
उनकी विशिष्ट संस्कृति में महिलाएँ मोतियों एवं सारंगों से सजी होती हैं। उनके पारंपरिक कपड़े उन्हें जमीन पर कार्य करने में मदद करते हैं।
उनका जीवन जीने का तरीका अभी भी प्राचीन है एवं इन्हें मुख्यधारा के साथ जोड़ने की जरूरत है।
वे चावल की खेती करते हैं एवं गौड़ा के नेतृत्व में उनकी अपनी शासन प्रणाली है।
रॉटन फ्री-टेल्ड बैट (Wroughton’s Free-tailed Bat)
उत्तरी दिल्ली के यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क (YBP) में ‘रॉटन फ्री-टेल्ड बैट’ (Wroughton’s Free-tailed Bat) देखा गया है। काइरोप्टेरोलॉजिस्ट का कहना है कि इसे न केवल दिल्ली-NCR बल्कि उत्तर भारत में भी पहली बार दर्ज किया गया है।
रॉटन फ्री-टेल्ड बैट
वैज्ञानिक नाम: ओटोमॉप्स रॉटोनी (Otomops Wroughtoni)
संरक्षण की स्थिति
IUCN की रेड लिस्ट में ‘गंभीर रूप से संकटग्रस्त’ के रूप में सूचीबद्ध।
यह भारत के वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I में सूचीबद्ध है।
संबंधित मुद्दे: आवास की हानि एवं सीमित ज्ञात आबादी।
पर्यावास: मुख्य रूप से कर्नाटक के पास पश्चिमी घाट एवं दक्षिणी भारत के कुछ हिस्सों में पाया जाता है। पूर्वोत्तर भारत के मेघालय में भी पाया गया है।
विश्व स्तर पर, यह कंबोडिया में भी पाया जाता है।
गुफाओं, चट्टानों एवं ऊँचाई वाले जंगलों में रहने के लिए जाना जाता है।
अन्य विशेषताएँ
उड़ान झिल्ली से परे फैली लंबी पूंछ।
लंबी दूरी के संचार के लिए अनुकूलित ‘इकोलोकेशन’ कॉल।
यह मध्यम आकार की गुफाओं या अंधेरे, नम और थोड़े गर्म स्थानों में निवास करता है।
यह एक शक्तिशाली पक्षी माना जाता है।
रॉटन फ्री-टेल्ड बैट एक दुर्लभ प्रजाति है जो भारत एवं कंबोडिया में केवल चार स्थानों पर पाई जाती है।
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग (NCMEI)
NCMEI ने अपना 20वाँ स्थापना दिवस अल्पसंख्यक अधिकार दिवस (18 दिसंबर) 2024 को नई दिल्ली में मनाया।
NCMEI
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग अधिनियम, 2004 (2005 से प्रभावी) के तहत स्थापित।
इसका उद्देश्य संविधान के अनुच्छेद 30(1) में निहित अल्पसंख्यकों के शैक्षिक अधिकारों की रक्षा करना है।
सिविल न्यायालय की शक्तियों के साथ एक अर्द्ध-न्यायिक निकाय के रूप में कार्य करता है।
उद्देश्य एवं अधिदेश
सुनिश्चित करना कि अल्पसंख्यक समुदाय अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान स्थापित एवं प्रशासित कर सकें।
न्यायिक, सलाहकारी एवं अनुशंसात्मक भूमिकाओं के माध्यम से अल्पसंख्यक शैक्षिक अधिकारों की रक्षा एवं प्रचार करना।
अल्पसंख्यक स्थिति प्रमाणपत्र एवं अनापत्ति प्रमाणपत्र (NOCs) से संबंधित विवादों का निपटारा करना।
संवैधानिक प्रावधानों को बरकरार रखते हुए अल्पसंख्यक संस्थानों की शिकायतों का समाधान करना।
शक्तियाँ एवं अधिकार क्षेत्र
अल्पसंख्यक दर्जे एवं संबद्ध अधिकारों से संबंधित विवादों का समाधान करना।
NCMEI अधिनियम प्रावधानों का उल्लंघन पाए जाने पर अल्पसंख्यक दर्जा रद्द करना।
राज्य/केंद्रशासित प्रदेश प्राधिकारियों के आदेशों के विरुद्ध अपीलीय प्राधिकारी के रूप में कार्य करना।
कोई भी न्यायालय (संविधान के अनुच्छेद 226 और 227 के तहत अधिकारिता का प्रयोग करने वाले सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय को छोड़कर) आयोग द्वारा दिए गए किसी भी आदेश के संबंध में किसी भी मुकदमे, आवेदन या अन्य कार्यवाही पर विचार नहीं करेगा।
वर्मम थेरेपी
राष्ट्रीय सिद्ध संस्थान (National Institute of Siddha- NIS), चेन्नई ने सिद्ध चिकित्सा में पारंपरिक उपचार तकनीक, वर्मम थेरेपी (Varmam Therapy) का सबसे बड़ा सत्र आयोजित करके ‘गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड’ हासिल किया।
वर्मम थेरेपी
परिभाषा: ऊर्जा प्रवाह को विनियमित करने एवं विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए शरीर में महत्त्वपूर्ण बिंदुओं (वर्मम) का उपयोग करने वाली एक पारंपरिक सिद्ध चिकित्सा पद्धति।
अनुप्रयोग: न्यूरोलॉजिकल, मस्कुलोस्केलेटल विकारों एवं पुराने दर्द को संबोधित करता है।
उपलब्धि का महत्त्व
सिद्ध चिकित्सा को बढ़ावा देना: अंतरराष्ट्रीय मंच पर सिद्ध प्रथाओं की दृश्यता को बढ़ाना।
सांस्कृतिक विरासत: भारत की पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों को संरक्षित करने एवं मनाने के महत्त्व को पुष्ट करता है।
सार्वजनिक जागरूकता: एक पूरक स्वास्थ्य देखभाल दृष्टिकोण के रूप में ‘वर्मम थेरेपी’ को अपनाने को प्रोत्साहित करता है।
सिद्ध चिकित्सा
इसकी उत्पत्ति तमिलनाडु में हुई एवं यह दुनिया की सबसे पुरानी पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों में से एक है।
शरीर, मन एवं पर्यावरण के बीच संतुलन पर ध्यान केंद्रित करता है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC)
हाल ही में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के अगले अध्यक्ष का चयन करने के लिए प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति की बैठक हुई।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC)
NHRC पूरे देश में मानवाधिकारों की सुरक्षा एवं प्रचार के लिए भारत में स्थापित एक वैधानिक निकाय है।
स्थापना: भारत द्वारा वर्ष 1993 में मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम लागू करने के बाद NHRC अस्तित्व में आया।
चयन समिति: भारत के राष्ट्रपति, चयन समिति की सिफारिश के आधार पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के सदस्यों की नियुक्ति करते हैं, जिसमें शामिल हैं:
प्रधानमंत्री (अध्यक्ष)
लोकसभा अध्यक्ष
केंद्रीय गृह मंत्री
राज्यसभा के उपसभापति
संसद के दोनों सदनों में विपक्ष के नेता
सदस्यता: इसमें एक अध्यक्ष, पाँच पूर्णकालिक सदस्य एवं सात नामित सदस्य होते हैं।
एक व्यक्ति जो भारत का मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश रहा हो, अध्यक्ष होगा।
दो सदस्य: एक, जो भारत के सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश है या रहा है एवं एक सदस्य जो उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश है या रहा है।
तीन सदस्य: मानवाधिकारों से संबंधित मामलों का ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले व्यक्तियों में से एक महिला होगी।
सात नामित सदस्य: अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अल्पसंख्यक/पिछड़ा वर्ग/महिला/राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष एवं दिव्यांग व्यक्तियों के लिए मुख्य आयुक्त पदेन सदस्यों के रूप में कार्य करते हैं।
कार्यकाल: वे तीन वर्ष की अवधि तक या 70 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक, जो भी पहले हो, सेवा करते हैं।
निष्कासन: सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है।
वर्ष 2024 में भारत प्रेषण प्राप्तकर्ताओं में शीर्ष पर: विश्व बैंक
विश्व बैंक के अनुसार, वर्ष 2024 में भारत अनुमानित 129 बिलियन डॉलर के धन प्रेषण के साथ सबसे अधिक धन प्राप्त करने वाला देश होगा।
मुख्य बिंदु
भारत शीर्ष प्राप्तकर्ता के रूप में: भारत को वर्ष 2024 में वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक प्रेषण प्राप्त हुआ, जो कि $129 बिलियन था।
प्रेषण के अन्य शीर्ष प्राप्तकर्ता मेक्सिको, चीन, फिलीपींस एवं पाकिस्तान थे।
प्रेषण की वृद्धि दर: वर्ष 2024 में प्रेषण की वृद्धि दर 5.8% अनुमानित की गई थी, जो वर्ष 2023 में पंजीकृत 1.2% की वृद्धि दर से काफी अधिक है।
प्रमुख कारक
नौकरी बाजारों की रिकवरी: महामारी के बाद उच्च आय वाले देशों, विशेष रूप से OECD देशों में नौकरी बाजारों की रिकवरी ने प्रेषण को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रवासन: जनसांख्यिकीय प्रवृत्ति, आय अंतर एवं जलवायु परिवर्तन से प्रेरित प्रवासन दबाव ने भी प्रेषण की निरंतर वृद्धि में योगदान दिया।
प्रेषण बनाम FDI: पिछले दशक में, प्रेषण में 57% की वृद्धि हुई है, जबकि FDI में 41% की गिरावट आई है।
प्रेषण
प्रेषण विदेश में श्रमिकों, प्रवासी समुदायों के सदस्यों, या विदेशों में पारिवारिक संबंधों वाले नागरिकों द्वारा गृह देश में भेजा गया धन है।
इस धन का उपयोग प्रेषक के गृह देश में घरेलू आय का समर्थन करने के लिए किया जाता है एवं यह विकासशील देशों के लिए एक प्रमुख वित्तीय प्रवाह है।
Latest Comments