हाल ही में, भारतीय प्रधानमंत्री ने मिशन SCOT की सफलता पर भारतीय अंतरिक्ष स्टार्टअप ‘दिगंतरा’ (Indian space startup Digantara) की सराहना की है।
मिशन SCOT (Space Camera for Object Tracking/वस्तु ट्रैकिंग के लिए अंतरिक्ष कैमरा)
यह स्पेस सिचुएशनल अवेयरनेस (SSA) के लिए विश्व के पहले वाणिज्यिक उपग्रहों में से एक है, जिसे रेजिडेंट स्पेस ऑब्जेक्ट्स (RSOs) की ट्रैकिंग एवं निगरानी बढ़ाने के लिए डिजाइन किया गया है।
डेवलपर: दिगंतारा, एक भारतीय अंतरिक्ष स्टार्टअप है जो आदित्य बिड़ला वेंचर्स एवं SIDBI द्वारा समर्थित है।
प्रक्षेपणयान: स्पेसएक्स के ट्रांसपोर्टर-12 मिशन से संबंधित।
कक्षा:निम्न पृथ्वी कक्षा (LEO) ट्रैकिंग के लिए सूर्य-तुल्यकालिक कक्षा में संचालित होता है।
प्रमुख विशेषताएँ
क्षमताएँ
5 सेमी के आकार तक की ‘रेजिडेंट स्पेस ऑब्जेक्ट्स’ (RSO) को ट्रैक करता है।
उच्च पुनरावलोकन दर और बेहतर ट्रैकिंग सटीकता प्रदान करता है।
अंतरिक्ष अपशिष्ट पर नजर रखता है, टकराव जोखिम प्रबंधन एवं अंतरिक्ष ट्रैफिक सुरक्षा को बढ़ाता है।
तकनीकी लाभ (Technological Edge): दृश्य क्षेत्र (Field of View- FoV), मौसम एवं भौगोलिक बाधाओं जैसी पारंपरिक सीमाओं से अप्रभावित।
सुरक्षित अंतरिक्ष संचालन के लिए सतत एवं विश्वसनीय निगरानी।
लक्ष्य एवं उद्देश्य
अंतरिक्ष सुरक्षा: रियल टाइम में अंतरिक्ष अपशिष्ट की ट्रैकिंग के माध्यम से टकराव के जोखिम को कम करना।
प्रभावी अंतरिक्ष यातायात प्रबंधन का समर्थन करना।
राष्ट्रीय सुरक्षा: अंतरिक्ष संपत्तियों की सुरक्षा के लिए क्षमताओं को मजबूत करना।
अंतरालों समाप्त करना: वर्तमान अंतरिक्ष निगरानी प्रणालियों की सीमाओं को संबोधित करना।
स्पेस सिचुएशनल अवेयरनेस (SSA)
स्पेस सिचुएशनल अवेयरनेस (SSA) अंतरिक्ष वस्तुओं एवं उनके पर्यावरण पर नजर रखने का अभ्यास है।
यह अंतरिक्ष गतिविधियों का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है, जो अंतरिक्ष को सुरक्षित और सतत बनाए रखने में मदद करता है।
कीलिंग कर्व
कीलिंग कर्व की रिपोर्ट के अनुसार, वनाग्नि एवं मानवीय गतिविधियों के कारण वर्ष 2024 में वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) का उत्सर्जन रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गया।
कीलिंग कर्व
परिभाषा: कीलिंग कर्व, अमेरिका के हवाईद्वीप में मौना लोआ वेधशाला में मापा गया वायुमंडलीय CO₂ स्तरों का एक रिकॉर्ड है।
ग्राफ प्रतिनिधित्व: ग्राफ, समय के साथ पृथ्वी के वायुमंडल में CO₂ की सांद्रता को दर्शाता है, जिसे प्रति मिलियन भागों (Parts Per Million- ppm) में व्यक्त किया गया है।
उत्पत्ति: कीलिंग कर्व का विकास चार्ल्स डेविड कीलिंग द्वारा किया गया था, जिन्होंने वर्ष 1958 में CO₂ के स्तर को रिकॉर्ड करना प्रारंभ किया था।
मौसमी उतार-चढ़ाव
CO₂ अवशोषण में मौसमी उतार-चढ़ाव के कारण वक्र एक असमान पैटर्न प्रदर्शित करता है:
वसंत एवं गर्मियों में CO₂ का स्तर कम हो जाता है क्योंकि पौधे प्रकाश संश्लेषण के लिए अधिक CO₂ अवशोषित करते हैं।
सर्दियों में CO₂ का स्तर बढ़ जाता है जब पौधे CO₂ का अधिक उत्सर्जन करते हैं।
मन्नान समुदाय
मन्नान समुदाय के मुखिया एवं केरल के एकमात्र आदिवासी राजा दिल्ली में गणतंत्र दिवस परेड में अनुसूचित जनजाति विकास विभाग के अतिथि के रूप में भाग लेंगे।
यह आयोजन पहली बार दर्शाता है कि कोई आदिवासी राजा गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होगा।
मन्नान समुदाय
केरल की अनुसूचित जनजाति (ST): मन्नान समुदाय को केरल में अनुसूचित जनजाति (ST) के रूप में मान्यता प्राप्त है।
अद्वितीय राजत्व: यह दक्षिण भारत में वर्तमान में मौजूद एकमात्र आदिवासी जनजातीय राजवंश है।
आवास क्षेत्र:
यह समुदाय मुख्य रूप से इडुक्की वन्यजीव अभयारण्य के बफर जोन में, विशेष रूप से कोझिमाला में, आवासित है।
कोझिमाला, जनजाति के केंद्र के रूप में कार्य करता है एवं इसमें एक राजा द्वारा शासित 48 बस्तियाँ शामिल हैं।
भाषा: मन्नान समुदाय एक अद्वितीय बोली का उपयोग करता है, जिसमें तमिल एवं मलयालम के तत्वों का मिश्रण होता है।
वंश प्रणाली: ये मातृवंशीय प्रणाली का पालन करते हैं।
शासक का चुनाव: शासक, जिसे राजा मन्नान के नाम से जाना जाता है, का चुनाव समुदाय के मुखियाओं द्वारा आनुवंशिकता के आधार पर योग्य लोगों में से किया जाता है।
अद्वितीय अनुष्ठान कला
मन्नान समुदाय मन्ननकुथु नामक एक अद्वितीय जनजातीय कला का प्रदर्शन करता है।
यह कला शैली क्लासिक तमिल कविता शिलाप्पथिकारम की कहानियों का वर्णन करती है।
भारतीय नौसेना के जहाज ने मॉरीशस का हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण पूरा किया
भारतीय नौसेना के जहाज INS सर्वेक्षक ने 25,000 वर्ग समुद्री मील से अधिक क्षेत्र को शामिल करते हुए मॉरीशस का हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण पूरा किया।
फेयर शीट, नॉटिकल चार्ट एवं सर्वेक्षण उपकरण सहित सर्वेक्षण के आउटपुट आधिकारिक तौर पर मॉरीशस के राष्ट्रपति धरमबीर गोखूल को सौंप दिए गए।
हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण
हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण महासागरों, नदियों एवं झीलों जैसे जल निकायों को मापने तथा मानचित्रण करने की प्रक्रिया है।
इसमें सुरक्षित नेविगेशन, सहायता निर्माण परियोजनाओं एवं जल संसाधनों के प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिए गहराई, आकार, ज्वार, धाराओं तथा जल के नीचे की विशेषताओं का अध्ययन करना शामिल है।
ये सर्वेक्षण सटीक डेटा संग्रह के लिए सोनार, GPS एवं इको साउंडर्स जैसे उपकरणों का उपयोग करते हैं
मिशन का महत्त्व
नव विकसित समुद्री चार्ट मॉरीशस को समुद्री बुनियादी ढाँचे, संसाधन प्रबंधन एवं तटीय विकास योजना को बढ़ाने में सहायता करेगा।
यह पहल समुद्री विकास एवं क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने में भारत तथा मॉरीशस के मध्य साझेदारी को रेखांकित करती है।
यह भारत की SAGAR (Security and Growth for All in the Region) पहल के अनुरूप है।
भारतीय नौसेना के हाइड्रोग्राफिक प्रयास
पिछले पाँच वर्षों में, भारतीय नौसेना के सर्वेक्षण जहाजों ने मित्र देशों के साथ संयुक्त अभियान प्रारंभ किया है, जिसमें 89,000 वर्ग किमी को शामिल किया गया है एवं 96 समुद्री चार्ट तैयार किए गए हैं।
उन्होंने विशेष रूप से हिंद महासागर क्षेत्र में क्षमता निर्माण एवं ज्ञान साझा करने के माध्यम से योगदान दिया है।
ISRO का 100वाँ रॉकेट लॉन्च
इसरो जनवरी 2025 में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से GSLV मिशन के साथ अपना 100वाँ रॉकेट लॉन्च करने के लिए तैयारी में है।
100वाँ प्रयास
नाविक सैटेलाइट कांस्टेलेशन: इसमें NVS-02 उपग्रह भी शामिल होगा, जो इंडियन कांस्टेलेशन (नाविक) सेवाओं के साथ दूसरी पीढ़ी के नेविगेशन को बढ़ाने के इसरो के प्रयास का हिस्सा है।
इंडियन कांस्टेलेशन के साथ नेविगेशन ( NavIC)
इंडियन रीजनल नेविगेशन उपग्रह प्रणाली (IRNSS), जिसे इंडियन कांस्टेलेशन नेविगेशन (NavIC) भी कहा जाता है, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा विकसित एक स्वदेशी नेविगेशन उपग्रह प्रणाली है।
परिचालन स्थिति: IRNSS-NavIC परियोजना वर्ष 2018 में पूरी तरह से परिचालन में है।
सैटेलाइट कांस्टेलेशन: इसमें भूस्थैतिक एवं भूतुल्यकालिक कक्षाओं में सात उपग्रह शामिल हैं, जिसमें कवरेज तथा सटीकता बढ़ाने के लिए NVS-01 एवं NVS-02 जैसे दूसरी पीढ़ी के उपग्रहों को स्थापित करने की योजना है।
अनुप्रयोग: NavIC नेविगेशन तकनीक में आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करते हुए कृषि, आपदा प्रबंधन, ट्रैकिंग एवं सैन्य संचालन में अनुप्रयोगों का समर्थन करता है।
वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा: NavIC, ग्लोनास (रूस), गैलीलियो (EU) एवं BeiDou (चीन) के विकल्प के रूप में कार्य करता है, जो वैश्विक उपग्रह नेविगेशन प्रौद्योगिकी में भारत की स्थिति को मजबूत करता है।
वाणिज्य मंत्रालय ने वर्ष 2030 तक 10000 GI टैग का लक्ष्य रखा है।
हाल ही में, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने नई दिल्ली में उद्योग संवर्द्धन तथा आंतरिक व्यापार विभाग (DPIIT) तथा इंडिया टुडे समूह द्वारा नई दिल्ली में आयोजित GI समागम में वर्ष 2030 तक 10,000 भौगोलिक संकेत (GI) टैग तक पहुँचने का लक्ष्य निर्धारित किया।
संबंधित तथ्य
वर्तमान में विभाग द्वारा 605 GI टैग जारी किये गए हैं।
कार्यान्वयन रणनीति
सरकार इस लक्ष्य के क्रियान्वयन की निगरानी के लिए एक समिति का गठन करेगी।
लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए “संपूर्ण सरकार” दृष्टिकोण का पालन किया जाएगा।
भौगोलिक संकेतक (GI)
भौगोलिक संकेतक टैग एक संकेतक है, जो किसी उत्पाद को एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र से उत्पन्न होने वाले एवं विशिष्ट गुणवत्ता या प्रतिष्ठा वाले उत्पाद के रूप में पहचानता है।
निषेध: यह किसी तीसरे पक्ष द्वारा इसके उपयोग को रोकता है जिसका उत्पाद लागू मानकों के अनुरूप नहीं है।
हालाँकि, यह धारक को किसी को उन्हीं तकनीकों का उपयोग करके उत्पाद बनाने से रोकने में सक्षम नहीं बनाता है जो उस संकेतक से संबंधित मानकों में निर्धारित हैं।
प्रयोज्यता: इसका उपयोग कृषि उत्पादों, खाद्य पदार्थों, वाइन एवं स्पिरिट पेय, हस्तशिल्प तथा औद्योगिक उत्पादों के लिए किया जाता है।
नोडल एजेंसी: वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत उद्योग तथा आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग।
वैधता: 10 वर्ष।
अनुदानित: चेन्नई में भौगोलिक संकेतक रजिस्ट्री।
कानूनी ढाँचा
विश्व व्यापार संगठन (WTO) में TRIPS पर समझौता GI को नियंत्रित करता है।
वस्तुओं के भौगोलिक संकेत (पंजीकरण एवं संरक्षण) अधिनियम, 1999 भारत में वस्तुओं से संबंधित भौगोलिक संकेतों के पंजीकरण तथा बेहतर सुरक्षा प्रदान करने का प्रयास करता है।
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