हाल ही में RBI द्वारा डिजिटल पेमेंट इंडेक्स (RBI-DPI) जारी किया गया है।
सूचकांक की मुख्य विशेषताएँ
मात्रा के आधार पर: डिजिटल पेमेंट का कुल मूल्य वर्ष 2018 में ₹5.86 लाख करोड़ से बढ़कर वर्ष 2024 में ₹246.83 लाख करोड़ हो गया है।
CAGR: डिजिटल भुगतान में पाँच वर्ष की CAGR के साथ क्रमशः मात्रा और मूल्य के संदर्भ में 89.3 प्रतिशत और 86.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI): UPI ने भारत के डिजिटल भुगतान विकास में सर्वाधिक योगदान दिया, देश के डिजिटल भुगतान में इसकी हिस्सेदारी वर्ष 2019 में 34 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2024 में 83 प्रतिशत हो गई।
पिछले पाँच वर्षों में यह 74 प्रतिशत की उल्लेखनीय CAGR (संचयी औसत विकास दर) के साथ बढ़ी।
मात्रा: UPI लेन-देन की मात्रा वर्ष 2018 में 375 करोड़ से बढ़कर वर्ष 2024 में 17,221 करोड़ हो गई।
अन्य भुगतान प्रणालियों की हिस्सेदारी: RTGS, NEFT, IMPS, क्रेडिट कार्ड एवं डेबिट कार्ड की हिस्सेदारी 66 प्रतिशत से गिरकर 17 प्रतिशत हो गई।
वृद्धि का कारण: RBI-DPI सूचकांक में वृद्धि इस अवधि के दौरान संपूर्ण देश में भुगतान संबंधी बुनियादी ढाँचे एवं भुगतान में वृद्धि से प्रेरित थी।
डिजिटल पेमेंट इंडेक्स (RBI-DPI)
यह देश भर में भुगतान के डिजिटलीकरण की सीमा का आकलन करने वाला एक सूचकांक है।
सूचकांक अर्द्ध-वार्षिक आधार पर जारी किया जाता है।
लॉन्च: RBI 1 जनवरी, 2021 से समग्र RBI-DPI प्रकाशित कर रहा है।
आधार वर्ष: मार्च 2018 को आधार वर्ष के रूप में प्रयोग किया जाता है एवं DPI स्कोर 100 निर्धारित किया गया है।
पैरामीटर्स: यह विभिन्न अवधियों में डिजिटल भुगतान की स्वीकार्यता और गहनता का मापन करता है। ये है-
भुगतान सक्षमकर्ता (भार 25 प्रतिशत): इसमें इंटरनेट, मोबाइल, आधार, बैंक खाते, प्रतिभागी एवं व्यापारी शामिल हैं।
भुगतान अवसंरचना (माँग पक्ष कारक (10 प्रतिशत): डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, PPI, फास्टैग, मोबाइल एवं इंटरनेट बैंकिंग।
भुगतान अवसंरचना (आपूर्ति-पक्ष कारक (15 प्रतिशत): बैंक शाखाएँ, व्यवसाय करेंसपोंडेंट, ATM, PoS टर्मिनल, QR कोड एवं मध्यस्थ।
भुगतान प्रदर्शन (45 प्रतिशत): डिजिटल भुगतान प्रणाली- मूल्य, अद्वितीय उपयोगकर्ता, पेपर क्लियरिंग, प्रचलन में मुद्रा एवं नकद निकासी।
उपभोक्ता केंद्रितता (5 प्रतिशत): जागरूकता एवं शिक्षा, शिकायतें, धोखाधड़ी एवं प्रणालीगत असफलता।
कर्नाटक द्वारा असाध्य रोगियों के लिए इच्छामृत्यु की अनुमति
कर्नाटक स्वास्थ्य विभाग ने असाध्य रूप से बीमार मरीजों को सम्मानपूर्वक इच्छामृत्यु की अनुमति देने वाले उच्चतम न्यायालय के निर्णय को लागू करने के लिए एक आदेश जारी किया है।
केरल के बाद कर्नाटक यह निर्देश लागू करने वाला दूसरा राज्य है।
असाध्य रोगी: निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति उन असाध्य रूप से बीमार रोगियों को दी जाती है, जिनके ठीक होने की कोई संभावना नहीं होती है या जो लगातार निष्क्रिय अवस्था में होते हैं और जिन्हें जीवन रक्षक उपचार से कोई लाभ नहीं मिल पाता।
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय
कॉमन कॉज बनाम भारत संघ 2018: सर्वोच्च न्यायालय की पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने माना है कि गरिमा के साथ मृत्यु का अधिकार अनुच्छेद-21 के तहत एक मौलिक अधिकार है।
लिविंग विल्स (Living Wills): किसी व्यक्ति का अग्रिम चिकित्सा निर्देशों को निष्पादित करने का अधिकार शारीरिक समग्रता एवं आत्मनिर्णय के अधिकार का दावा है तथा यह किसी राज्य द्वारा प्रदत्त मान्यता या कानून पर निर्भर नहीं करता है।
निर्णय ने सख्त दिशा-निर्देशों के तहत निष्क्रिय इच्छामृत्यु एवं ‘लिविंग विल्स’ के निष्पादन को वैध बना दिया।
लिविंग विल्स (Living Wills) संबंधी दिशा-निर्देश
यह डॉक्टरों और मरीजों दोनों के अधिकारों और कर्तव्यों को मान्यता देता है तथा व्यापक स्वतंत्र विशेषज्ञ राय और निकटतम रिश्तेदारों/प्रतिनिधि निर्णयकर्ताओं की सूचित सहमति की अनुमति देता है।
पात्रता: लिविंग विल, 18 वर्ष या उससे अधिक आयु के स्वस्थ मस्तिष्क वाले तथा बिना किसी दबाव के बनाए गए लिखित दस्तावेज होते हैं।
अभिभावकों की नियुक्ति: दस्तावेज में कम-से-कम दो प्रतिनिधि निर्णयकर्ताओं का विवरण होना चाहिए, जो व्यक्ति की ओर से निर्णय ले सकें, यदि वह व्यक्ति निर्णय लेने की क्षमता खो देता है।
वैधता: दस्तावेज पर एक निष्पादक एवं दो गवाहों की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए जाने चाहिए तथा नोटरी या राजपत्रित अधिकारी के समक्ष सत्यापित किया जाना चाहिए।
राज्य सरकारों एवं अस्पतालों के लिए दिशा-निर्देश
मूल्यांकन: उपचार करने वाले अस्पताल को रोगी की स्थिति का आकलन करने के लिए एक प्राथमिक चिकित्सा बोर्ड का गठन करना चाहिए एवं यह सिफारिश करनी चाहिए कि क्या जीवन रक्षक उपचार वापस लेना चाहिए।
बोर्ड में उपचार करने वाले डॉक्टर एवं कम-से-कम पाँच वर्ष के अनुभव वाले दो विषय विशेषज्ञ व्यक्ति शामिल होने चाहिए।
समीक्षा: एक माध्यमिक मेडिकल बोर्ड, (अस्पताल द्वारा स्थापित) प्राथमिक मेडिकल बोर्ड के निर्णय की समीक्षा करता है।
इसमें जिला मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा नामित एक पंजीकृत चिकित्सक के साथ-साथ कम-से-कम पाँच वर्ष के अनुभव वाले दो विषय विशेषज्ञ शामिल होते हैं।
सूचित सहमति: लिविंग विल में रोगी द्वारा नामित व्यक्ति या सरोगेट निर्णयकर्ता (जहाँ कोई निर्देश नहीं है) को उपचार रोकने या वापस लेने के लिए सहमति देनी होगी।
अस्पताल को जीवन रक्षक उपचार रोकने/वापस लेने के निर्णय की सूचना स्थानीय न्यायिक मजिस्ट्रेट को देनी चाहिए।
Latest Comments