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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal March 08, 2025 03:34 33 0

नौसेना का INSV तारिणी

INSV तारिणी दो महिला भारतीय नौसेना अधिकारियों द्वारा चल रही वैश्विक जलयात्रा के चौथे चरण पर है।

  • यह 4 मार्च को पोर्ट स्टेनली, फॉकलैंड द्वीप से केप टाउन, दक्षिण अफ्रीका के लिए रवाना हुई।

INSV तारिणी के बारे में

  • INSV तारिणी नाविका सागर परिक्रमा-II अभियान के तहत एक वैश्विक जलयात्रा मिशन पर है।
  • निर्मित: एक्वेरियस शिपयार्ड लिमिटेड द्वारा।
  • अभियान को 2 अक्टूबर, 2024 को गोवा से रवाना किया गया था।
    • पूरे अभियान में पाँच चरण शामिल हैं, जो रखरखाव एवं पुनःभंडारण के लिए चार निम्नलिखित बंदरगाहों पर रुकेंगे।
      • गोवा से फ्रेमेंटल, ऑस्ट्रेलिया
      • फ्रेमेंटल से लिटलटन, न्यूजीलैंड
      • लिटलटन से पोर्ट स्टेनली, फ़ॉकलैंड द्वीप
      • पोर्ट स्टेनली से केप टाउन, दक्षिण अफ्रीका

रुएलिया एलिगेंस (Ruellia Elegans)

जर्नल ऑफ थ्रेटेंड टैक्सा में प्रकाशित एक नए अध्ययन ने असम के डिगबोई में देशज जैव विविधता के लिए रुएलिया एलिगेंस (Ruellia Elegans) द्वारा उत्पन्न खतरे को उजागर किया है।

रुएलिया एलिगेंस के बारे में

  • सामान्य नाम: ब्राजीलियन पेटुनिया (Brazilian Petunia), क्रिसमस प्राइड (Christmas Pride), वाइल्ड पेटुनिया (Wild Petunia)।
  • मूल आवास स्थान: ब्राजील के आर्द्र उष्णकटिबंधीय बायोम।
  • विशिष्ट विशेषताएँ: चमकीले लाल, तुरही के आकार के फूल।
  • भारत में आक्रामक उपस्थिति: रुएलिया सिलियाटिफ्लोरा (Ruellia Ciliatiflora), रुएलिया सिम्प्लेक्स (Ruellia Simplex) एवं रुएलिया ट्यूबरोसा (Ruellia Tuberosa) के साथ चार आक्रामक रुएलिया प्रजातियों में से एक।
  • दर्ज किए गए आँकड़े
    • लगभग एक दशक पहले ओडिशा में पहली बार प्रलेखित।
    • अंडमान द्वीपसमूह, जमैका एवं प्यूर्टो रिको में पेश किया गया।
    • हाल ही में असम के डिगबोई में देखा गया।

जैव विविधता पर आक्रामक प्रजातियों का प्रभाव

  • संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्द्धा: तेजी से फैलता है, सूरज की रोशनी, जल एवं पोषक तत्त्वों के लिए देशज पौधों को पनपने नही देता है। 
  • पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान: जैव विविधता में परिवर्तन, वन्यजीवों के आवासों पर प्रभाव। 
  • देशज प्रजातियों के लिए खतरा: आबादी में कमी या देशज वनस्पतियों के विलुप्त होने की ओर ले जाता है। 
  • आर्थिक एवं पर्यावरणीय क्षति: दीर्घकालिक पारिस्थितिकी असंतुलन का कारण बनता है, जिसके लिए अधिक लागत वाले प्रबंधन प्रयासों की आवश्यकता होती है।

चक्रवात अल्फ्रेड (Cyclone Alfred)

हाल ही में उष्णकटिबंधीय चक्रवात अल्फ्रेड (Alfred) के ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट से टकराया। 

  • इस चक्रवात को 50 से अधिक वर्षों में इस क्षेत्र को खतरे में डालने वाला सबसे शक्तिशाली उष्णकटिबंधीय चक्रवात माना जा रहा है। 
    • ब्रिस्बेन: वर्ष 1967 में दीना एवं वर्ष 1974 में वांडा ब्रिस्बेन के पास आने वाले अंतिम गंभीर चक्रवात थे। 
    • इसकी तुलना वर्ष 1954 के चक्रवात, जिससे उत्तरी NSW एवं दक्षिण-पूर्व क्वींसलैंड में ‘ग्रेट फ्लड’ आई थी, से की जा रही है। 

अल्फ्रेड चक्रवात के बारे में

  • इस चक्रवात के ब्रिस्बेन के उत्तर में नूसा एवं कूलंगट्टा के बीच टकराने की उम्मीद जताई गई है। 
  • श्रेणी: स्थलीय क्षेत्र से टकराव के समय इसे श्रेणी 2 में वर्गीकृत किया गया है किंतु मौसम विज्ञान ब्यूरो के अनुसार, संभवतः श्रेणी 3 की स्थिति तक पहुँच सकता है। 
  • हवा की गति: क्वींसलैंड एवं NSW के क्षेत्रों में यह संभवतः 150 किमी. प्रति घंटे तक पहुँच सकती है, तथा कुल वर्षा 600 मिमी. तक होने की उम्मीद है। 
  • गठन: कोरल सागर में अल्फ्रेड चक्रवात दो और प्रणालियों के साथ विकसित हुआ है। 
    • दक्षिण प्रशांत में एक ही गर्त से उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का बनना काफी दुर्लभ है।
  • विशिष्ट गति: अल्फ्रेड शुरू में समुद्र में दक्षिण की ओर बढ़ा, ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट के समानांतर यात्रा की एवं फिर ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट की ओर पश्चिम की ओर एक तीव्र मोड़ लिया।
    • सामान्य पैटर्न: कोरल सागर में बनने वाले अधिकांश चक्रवात आमतौर पर ऑस्ट्रेलियाई तटरेखा से दूर दक्षिण-पूर्व (मध्य अक्षांशीय पश्चिमी हवाओं के कारण) की ओर बढ़ते हैं।
  • कारण
    • संक्रमण जोन: अल्फ्रेड ने एक मध्य-अक्षांश गर्त (उत्तर की ओर विस्तारित कम दबाव की एक प्रणाली) के साथ अभिसरण के कारण एक्स्ट्रा ट्रॉपिकल ट्रांजीशन की प्रक्रिया से गुजरा, जिससे इसकी गति बदल गई।
      • इस प्रक्रिया के दौरान, वे एक संकर प्रणाली में फिर से तीव्र हो सकते हैं, कभी-कभी मूल उष्णकटिबंधीय चक्रवात से भी अधिक शक्तिशाली।
    • गति: जैसे-जैसे मध्य अक्षांशीय गर्त पूर्व की ओर बढ़ता है, अल्फ्रेड उपोष्णकटिबंधीय रिज के प्रभाव में आ जाता है, जो इसे पश्चिम की ओर (सीधे ऑस्ट्रेलिया के दक्षिण-पूर्वी तट की ओर) धकेलता है।
    • जलवायु परिवर्तन: 25 डिग्री समानांतर से दक्षिण में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों को बनाए रखने के लिए गर्म महासागर (26.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर) और कम ऊर्ध्वाधर पवन अपरूपण चक्रवात के विकास के लिए आवश्यक हैं।
      • ऐतिहासिक रूप से दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र में ठंडे जल एवं पवन अपरूपण के कारण, उष्णकटिबंधीय चक्रवात कमजोर हो जाते थे।
    • धीमी गति: चक्रवात वर्तमान में 14 किमी. प्रति घंटे की गति से यात्रा कर रहा है, जो औसत उष्णकटिबंधीय चक्रवात की गति से कम है, यानी 15-20 किमी. प्रति घंटे के बीच। 
      • धीमी गति से चलने से चक्रवात को महासागरों में तीव्र होने एवं शहरों में अधिक वर्षा लाने के लिए अधिक समय मिलता है।

ताराबाई शिंदे

वर्ष 1882 में, सामाजिक दोहरे मानदंडों से व्यथित होकर ताराबाई शिंदे ने ‘स्त्री-पुरुष तुलना’ नामक भारत की पहली नारीवादी पुस्तक लिखी, जिसमें पितृसत्तात्मक मानदंडों और महिलाओं पर लगाए जाने वाले अन्यायपूर्ण दोष को चुनौती दी गई।

ताराबाई शिंदे के बारे में

  • प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा: महाराष्ट्र के बुलढाणा में एक सुशिक्षित मराठा परिवार में जन्मी ताराबाई को उनके पिता बापूजी हरि शिंदे ने प्रोत्साहित किया, जो समाज सुधारक ज्योतिराव फुले के सहयोगी थे।
    • उन्होंने अपने समय की महिलाओं के लिए असामान्य शिक्षा प्राप्त की।
  • चुनौतियाँ एवं व्यक्तिगत संघर्ष: विवाहित लेकिन अपने पिता के घर में रहती थीं, जो उस समय दुर्लभ था, वह निःसंतान रहीं।
  • विरासत: उनके एकमात्र प्रकाशन ने भारत में नारीवादी विमर्श पर एक अमिट छाप छोड़ी।

ताराबाई शिंदे का योगदान

  • साहित्यिक योगदान: वर्ष 1882 में छपी उनकी पुस्तक ‘स्त्री-पुरुष तुलना’ ने लैंगिक असमानताओं पर सीधे सवाल उठाए एवं महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह के लिए हिंदू धर्मग्रंथों की आलोचना की।
    • ऐतिहासिक एवं पौराणिक उदाहरणों के माध्यम से, उन्होंने धार्मिक ग्रंथों में विरोधाभासों को उजागर किया, जो महिलाओं के उत्पीड़न को उचित ठहराते थे।
  • सामाजिक सुधार एवं वकालत: सत्यशोधक समाज की समर्थक, उन्होंने लैंगिक समानता तथा विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया।
    • उनके काम ने महिलाओं की पीड़ा के बारे में चिंता व्यक्त की, सामाजिक एवं कानूनी सुधारों की आवश्यकता पर जोर दिया।
  • मान्यता एवं प्रभाव: शुरुआत में नजरअंदाज किए जाने के बाद उनका साहित्यिक कार्य वर्ष 1975 में मराठी विद्वान एस. जी. मालशे के माध्यम से पुनः चर्चा आया।
    • यद्यपि शुरुआत में उनके इस साहित्यिक कार्य को दरकिनार कर दिया गया, फिर भी ‘स्त्री-पुरुष तुलना’ एक आधारभूत नारीवादी ग्रन्थ है, जो समकालीन लैंगिक बहसों के साथ प्रतिध्वनित होता है।

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