तेलंगाना के नारायणपेट जिले में मुदुमल मेनहिर वर्ष 2025 में संभावित सूची में शामिल होने के बाद राज्य का दूसरा यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल बनने के लिए तैयार है।
मेनहिर क्या हैं?
मेनहिर बड़े, सीधे, मानव निर्मित पत्थर होते हैं, जो अक्सर शीर्ष पर पतले होते हैं।
शब्द की उत्पत्ति: यह शब्द “मेन” (पत्थर) एवं “हिर” (लंबा) से व्युत्पन्न है।
ये पत्थर आम तौर पर बिना किसी नक्काशी के विभिन्न आकार के होते हैं, जिनमें से कुछ पत्थर कीऊँचाई कई मीटर तक होती हैं।
मेनहिर यूरोप, एशिया एवं अफ्रीका के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं।
मुदुमल मेगालिथिक मेनहिर
मुदुमल मेगालिथिक मेनहिर भारत के तेलंगाना के नारायणपेट जिले में स्थित एक अद्वितीय पुरातात्त्विक स्थल है।
ये लगभग 3,500 से 4,000 साल पुराने खड़े पत्थर हैं, जो भारत में ज्ञात सबसे पुराने मेनहिर हैं।
प्रयोजन
स्वतंत्र रूप से या मेगालिथिक परिसरों में पाए जाते हैं।
इसका उपयोग समारोह, खगोलीय आदि उद्देश्यों के लिए किया जाता है।
माना जाता है कि मुदुमल मेनहिर एक “खगोलीय वेधशाला” है, जो संक्रांति के साथ संरेखित है।
एक मेनहिर की पूजा देवी येल्लम्मा के रूप में की जाती है।
UNESCO की मान्यता क्यों?
सरलता: ये भारी पत्थर भौतिकी एवं खगोल विज्ञान के बारे में प्रारंभिक मनुष्यों के ज्ञान को दर्शाते हैं।
सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि: इनके निर्माण से उन प्राचीन समाजों के मूल्यों और विश्वदृष्टि का पता चलता है जिनका कोई लिखित रिकॉर्ड नहीं है।
द्विअपवर्तन: दोहरा अपवर्तन
द्विअपवर्तन के बारे में
द्विअपवर्तन कुछ सामग्रियों द्वारा प्रदर्शित की जाने वाली घटना है, जिसमें प्रकाश की एक घटना किरण दो किरणों में विभाजित होती है, जिन्हें एक साधारण किरण एवं एक असाधारण किरण कहा जाता है:
ये किरणें परस्पर लंबवत् तल में समतल-(रैखिक) ध्रुवीकृत होती हैं या विपरीत दिशाओं (बाएँ एवं दाएँ) में वृत्ताकार-ध्रुवीकृत होती हैं।
कारण: यह घटना इसलिए होती है क्योंकि सामग्री में कई अपवर्तक सूचकांक होते हैं, जिससे प्रकाश अलग-अलग दिशाओं में भिन्न-भिन्न तरीके से मुड़ता है।
अनिसोट्रोपिक प्रकृति: द्विअपवर्तक पदार्थ अनिसोट्रोपिक होते हैं, जिसका अर्थ है कि वे विभिन्न अक्षों के साथ अलग-अलग ऑप्टिकल गुण प्रदर्शित करते हैं।
अपवर्तक सूचकांक प्रकाश को कैसे प्रभावित करता है?
अपवर्तक सूचकांक को निर्वात में प्रकाश की गति एवं किसी दिए गए पदार्थ में इसकी गति के अनुपात के रूप में परिभाषित किया जाता है।
विभिन्न माध्यमों के लिए अपवर्तक सूचकांक: निर्वात = 1, वायु = 1.0003, काँच ≈ 1.5, हीरा ≈ 2.4।
द्विअपवर्तन प्रभाव: कुछ पदार्थ प्रकाश की गति को विभिन्न दिशाओं में अलग-अलग तरीके से बदलते हैं, जिसके परिणामस्वरूप दोहरा अपवर्तन होता है।
द्विअपवर्तन पदार्थों के उदाहरण
प्राकृतिक पदार्थ: अभ्रक, क्वार्ट्ज एवं कैल्साइट प्राकृतिक द्विअपवर्तन प्रदर्शित करते हैं।
सिंथेटिक पदार्थ: बेरियम बोरेट एवं लीथियम नियोबेट भी द्विअपवर्तन गुण प्रदर्शित करते हैं।
संशोधित द्विअपवर्तन: यांत्रिक तनाव, विद्युत क्षेत्र या चुंबकीय क्षेत्र लागू करके प्रेरित किया जा सकता है।
द्विअपवर्तन के प्रकार
आंतरिक द्विअपवर्तन: गैर-घन क्रिस्टल संरचनाओं वाले पदार्थों में पाया जाता है, जैसे कि कैल्साइट और क्वार्ट्ज।
प्रतिबल-प्रेरित द्विअपवर्तन: यांत्रिक प्रतिबल के अधीन होने पर काँच/प्लास्टिक जैसी समदैशिक पदार्थों में होता है।
विद्युत क्षेत्र-प्रेरित: जब कोई बाहरी विद्युत क्षेत्र किसी पदार्थ के ऑप्टिकल गुणों को बदल देता है, तो देखा जाता है।
द्विअपवर्तन के अनुप्रयोग
प्रकाशिकी और फोटोनिक्स: ध्रुवीकृत फिल्टर, तरंग प्लेट और ऑप्टिकल फाइबर में उपयोग किया जाता है।
मैटेरियल साइंस: पारदर्शी सामग्रियों के प्रतिबल विश्लेषण में मदद करता है।
जीव विज्ञान: ध्रुवीकृत प्रकाश माइक्रोस्कोपी के तहत जैविक नमूनों के संरचनात्मक गुणों का अध्ययन करने में सहायता करता है।
अन्य उपयोग: LCD स्क्रीन, ऑप्टिकल स्विच, वेवप्लेट, फ्रीक्वेंसी कन्वर्टर्स और हाई-पॉवर लेजर।
सौर ऊर्जा उत्पादन पर वायु प्रदूषण का प्रभाव
पर्यावरण अनुसंधान पत्र में प्रकाशित IIT दिल्ली के एक अध्ययन से पता चलता है कि वायु प्रदूषण एवं जलवायु परिवर्तन भारत में सौर पैनल की दक्षता को काफी कम कर देगा।
विश्व के पाँचवें सबसे बड़े सौर ऊर्जा उत्पादक के रूप में, भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक अपनी विद्युत का 50% गैर-जीवाश्म स्रोतों से उत्पन्न करना है। हालाँकि, प्रदूषण के कारण सौर विकिरण में गिरावट इस लक्ष्य को खतरे में डालती है।
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष
वायु प्रदूषण एवं जलवायु परिवर्तन सौर पैनल के प्रदर्शन को खराब कर देंगे।
मध्य शताब्दी (2041-2050) तक सौर दक्षता में कम-से-कम 2.3% की गिरावट आने का अनुमान है।
यह कमी 840 गीगावाट-घंटे की वार्षिक विद्युत ह्रास में परिवर्तित होती है।
वायु प्रदूषण एवं जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
वायुजनित प्रदूषक (कण पदार्थ, एरोसोल एवं बादल) सूर्य के प्रकाश को बाधित करते हैं, जिससे सौर पैनलों द्वारा प्राप्त ऊर्जा कम हो जाती है।
ग्लोबल डिमिंग और ब्राइटनिंग घटनाएँ दीर्घकालिक सौर विकिरण प्रवृत्तियों को प्रभावित करती हैं।
बढ़ता तापमान फोटोवोल्टिक (Photovoltaic- PV) सेल को इष्टतम परिचालन स्थितियों से अधिक गर्म कर उनकी दक्षता कम कर देता है।
सौर ऊर्जा उत्पादन को प्रभावित करने वाले कारक
सौर विकिरण उपलब्धता: सौर पैनल दक्षता का सबसे महत्त्वपूर्ण निर्धारक।
तापमान वृद्धि: उच्च परिवेश तापमान PV प्रदर्शन को और कम कर देता है।
वायु की गति: शीतलन दक्षता को प्रभावित करने वाला एक द्वितीयक कारक।
सौर ऊर्जा क्षमता में क्षेत्रीय विविधताएँ
पूर्वोत्तर भारत एवं केरल में बादलों के कम होने के कारण सौर ऊर्जा क्षमता में वृद्धि होने की संभावना है।
लगातार वायु प्रदूषण के कारण अन्य क्षेत्रों में सौर दक्षता में गिरावट का सामना करना पड़ सकता है।
राष्ट्रीय युवा संसद योजना (NYPS) 2.0
हाल ही में केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय युवा संसद योजना (NYPS) वेब पोर्टल का उन्नत संस्करण, जिसे NYPS 2.0 के नाम से जाना जाता है, का अनावरण किया गया।
राष्ट्रीय युवा संसद योजना (NYPS) के बारे में
लॉन्च: केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्रालय
राष्ट्रीय युवा संसद योजना (NYPS) का वेब पोर्टल 26 नवंबर, 2019 को लॉन्च किया गया।
उद्देश्य: मंत्रालय के युवा संसद कार्यक्रम की पहुँच देश के सभी मान्यता प्राप्त शैक्षणिक संस्थानों तक बढ़ाना।
राष्ट्रीय युवा संसद योजना (NYPS) 2.0 के बारे में
पात्रता: NYPS 2.0 देश भर के सभी नागरिकों के लिए खुला है, चाहे उनकी आर्थिक स्थिति, लिंग, जाति, पंथ, धर्म, नस्ल, क्षेत्र एवं स्थान कुछ भी हों।
भागीदारी की इकाई: NYPS पोर्टल पर भागीदारी की इकाई एक पंजीकरण है, न कि कोई संस्था।
निम्नलिखित तरीकों से भागीदारी को सुगम बनाया जा सकता है:
संस्था की भागीदारी: सभी शैक्षणिक संस्थान युवा संसद की बैठकों का आयोजन करके इस श्रेणी में भाग ले सकते हैं।
किशोर सभा: कक्षा VI से XII तक के छात्रों का चयन किया जा सकता है।
तरुण सभा: स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर के छात्रों का चयन किया जा सकता है।
सामूहिक भागीदारी: नागरिकों का एक समूह पोर्टल पर उपलब्ध दिशा-निर्देशों के अनुसार युवा संसद की बैठकों का आयोजन करके इस श्रेणी में भाग ले सकता है।
व्यक्तिगत भागीदारी: एक भारतीय नागरिक ‘भारतीय लोकतंत्र की क्रियाशीलता’ विषय पर प्रश्नोत्तरी का प्रयास करके इस श्रेणी में भाग ले सकता है।
रायसीना डायलॉग
भारत 17-19 मार्च, 2025 तक वार्षिक रायसीना वार्ता के 10वें संस्करण की मेजबानी कर रहा है, जिसकी थीम “कालचक्र” (समय का पहिया) है।
रायसीना वार्ता के बारे में
नाम की उत्पत्ति: “रायसीना वार्ता” रायसीना हिल, जहाँ राष्ट्रपति भवन अवस्थित है, वहाँ से नाम लिया गया है।
यह भू-राजनीति एवं भू-अर्थशास्त्र पर भारत का प्रमुख सम्मेलन है:
आयोजक: ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) एवं केंद्रीय विदेश मंत्रालय, भारत सरकार।
यह प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है, इसका पहला सत्र वर्ष 2016 में आयोजित किया गया था।
उद्देश्य: महत्त्वपूर्ण मार्गों को तैयार करने, आम सहमति बनाने एवं हमारे साझा भविष्य के लिए समुदायों को मजबूत करने के लिए आवश्यक अद्वितीय दृष्टिकोण, चिंताएँ तथा अनुभव साझा करना।
निम्नलिखित की तर्ज पर आयोजित
शांगरी ला वार्ता (सिंगापुर में प्रतिवर्ष आयोजित की जाती है)।
म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन (जिसका 60वाँ संस्करण हाल ही में फरवरी 2024 में आयोजित किया गया)।
सम्मेलन संरचना
यह एक बहु-हितधारक, अंतर-क्षेत्रीय वार्ता है, जिसमें राष्ट्राध्यक्ष, कैबिनेट मंत्री एवं स्थानीय सरकारी अधिकारी जैसे वैश्विक नीति निर्माता शामिल होते हैं।
इसमें प्रमुख निजी क्षेत्र के अधिकारी, मीडिया सदस्य एवं शिक्षाविद भी शामिल होते हैं।
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