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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal March 31, 2025 04:21 37 0

मानव शरीर में पहली बार सूअर के लिवर को ट्रांसप्लांट किया गया

चीनी डॉक्टरों द्वारा हासिल की गई एक चिकित्सा सफलता में, एक सूअर के लिवर को एक इंसान में ट्रांसप्लांट किया गया है।

ट्रांसप्लांट ऑपरेशन के बारे में 

  • चीनी शहर शीआन में चौथे सैन्य चिकित्सा विश्वविद्यालय में एक मस्तिष्क-मृत वयस्क व्यक्ति में लिवर प्रत्यारोपित किया गया।
  • प्रकाशित: जीन-मॉडिफाइड पिग-टू-ह्यूमन लिवर जेनोट्रांसप्लांटेशन’ (Gene-modified pig-to-human liver xenotransplantation) नामक अध्ययन नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।
  • यह लिवर एक छोटे सूअर से प्राप्त किया गया था, जिसके छह जीन संपादित किये गए थे।
  • महत्त्व
    • ब्रिज ऑर्गन: यह प्रत्यारोपण एक ‘ब्रिज ऑर्गन’ के रूप में कार्य कर सकता है, जो उन लोगों की सहायता कर सकता है, जो मानव दाता की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
      • सूअर के लिवर ने रोगी के मूल लिवर को पूरी तरह से प्रतिस्थापित नहीं किया।
    • ब्रिज ग्राफ्ट या स्थायी प्लेसमेंट के रूप में जेनोट्रांसप्लांटेशन की भविष्य की क्षमता का अधिक व्यापक रूप से अध्ययन किया जाएगा।

जेनोट्रांसप्लांटेशन के बारे में

  • जेनोट्रांसप्लांटेशन (क्रॉस-स्पीशीज ट्रांसप्लांटेशन) जीवित कोशिकाओं, ऊतकों या अंगों को एक प्रजाति से दूसरी प्रजाति में, मुख्य रूप से जानवरों से मनुष्यों में ट्रांसप्लांट करने की प्रक्रिया है।
  • उद्देश्य: जेनोट्रांसप्लांटेशन का प्राथमिक उद्देश्य प्रत्यारोपण के लिए उपलब्ध मानव अंगों की कमी को दूर करना एवं जीवन बचाना है।
  • उदाहरण
    • सूअर से मानव में किडनी प्रत्यारोपण: मैसाचुसेट्स जनरल अस्पताल एवं न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय द्वारा एक सफल प्रत्यारोपण किया गया है।
    • सूअर से मानव में हृदय प्रत्यारोपण: मैरीलैंड स्कूल ऑफ मेडिसिन विश्वविद्यालय के अनुसंधान दलों ने सूअर से मानव में हृदय प्रत्यारोपण किया है।

“ग्रीन ग्रैबिंग”

एशियाई विकास बैंक (ADB) द्वारा वित्तपोषित असम सोलर पार्क को स्थानीय समुदायों द्वारा स्वदेशी भूमि के ‘ग्रीन ग्रैबिंग’ में कथित रूप से शामिल होने के लिए विरोध का सामना करना पड़ रहा है।

ग्रीन ग्रैबिंग के बारे में

  • परिभाषा: ग्रीन ग्रैबिंग तब होती है, जब भूमि को कार्बन ऑफसेटिंग, जैव विविधता भंडार, वनरोपण या स्वच्छ ऊर्जा जैसी पर्यावरणीय परियोजनाओं के लिए पुनः इस्तेमाल किया जाता है।
    • ग्रीन ग्रैबिंग शब्द का इस्तेमाल पहली बार गार्जियन के पत्रकार जॉन विडाल ने पर्यावरणीय उद्देश्यों के लिए भूमि एवं संसाधनों के विनियोग को संदर्भित करने के लिए किया था।
  • प्रभाव: यह समुदायों को विस्थापित करता है, आजीविका को खतरे में डालता है, खाद्य सुरक्षा को कमजोर करता है एवं स्थानीय ज्ञान को नष्ट करता है, जो कृषि जैव विविधता को बनाए रखता है।
  • रणनीति: पर्यावरण संरक्षण या सतत् विकास के बहाने अक्सर भूमि का अधिग्रहण जबरन किया जाता है।

असम के कार्बी आंगलोंग का मामला

  • उपजाऊ भूमि की कमी: पहाड़ी इलाके कृषि योग्य भूमि को सीमित करते हैं, जिससे उपजाऊ क्षेत्र स्वदेशी समुदायों के लिए महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं।
  • सरकारी पहल: असम की सोलर पार्क स्थापित करने की योजना ने भूमि अधिग्रहण को बढ़ावा दिया है, जिससे कृषि क्षेत्र कम हो गया है।
  • स्वदेशी समुदायों पर प्रभाव: कार्बी एवं नागा लोगों को विस्थापन, आजीविका की हानि एवं उनकी पारंपरिक जीवन शैली पर खतरे का सामना करना पड़ रहा है।

केंद्रीय विद्यालयों (KV) में एस्बेस्टस प्रतिबंधित

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने भारत में सभी केंद्रीय विद्यालयों (KV) एवं जवाहर नवोदय विद्यालयों (JNV) के निर्माण या नवीनीकरण में एस्बेस्टस पर प्रतिबंध लगाने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। 

एस्बेस्टस के बारे में

  • एस्बेस्टस 6 प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले रेशेदार खनिजों का एक समूह है, जो ऊष्मा एवं संक्षारण (Corrosion) के प्रतिरोधी होते हैं। 
  • प्रकार: वाणिज्यिक एस्बेस्टस के 6 प्रकार हैं:- क्राइसोटाइल, क्रोकिडोलाइट, ट्रेमोलाइट, एमोसाइट, एक्टिनोलाइट एवं एस्बेस्टिफॉर्म खनिज। 
  • श्रेणी: एस्बेस्टस के 6 मुख्य प्रकार 2 श्रेणियों में आते हैं:- 
    • एंफीबोल: एंफीबोल एस्बेस्टस फाइबर भंगुर, सुई की तरह होते हैं एवं इनका रंग हरे से नीले से भूरे रंग तक होता है। 
    • सर्पेंटाइन: फाइबर लंबे एवं घुँघराले होते हैं तथा क्राइसोटाइल (सफेद रंग का) इस श्रेणी का एकमात्र प्रकार है। 
  • अनुप्रयोग
    • निर्माण: एस्बेस्टस का व्यापक रूप से इन्सुलेशन, छत, साइडिंग, फ्लोरिंग, सीलिंग टाइल्स एवं टेक्सचर्ड पेंट के लिए निर्माण सामग्री में उपयोग किया जाता था।
    • इन्सुलेशन: कठोर एस्बेस्टस फाइबर गर्मी, बिजली एवं संक्षारण को प्रबंधित कर सकते हैं, इसलिए अग्निरोधक सामग्रियों में उपयोग किया जाता है।
    • घर्षण उत्पाद: एस्बेस्टस का व्यापक रूप से ब्रेक पैड, क्लच एवं अन्य ऑटोमोटिव तथा इलेक्ट्रॉनिक भागों में इसकी क्षमता, ऊष्मा प्रतिरोध के कारण उपयोग किया जाता है।
    • कपड़े, कागज, सीमेंट, प्लास्टिक एवं अन्य सामग्रियों में एस्बेस्टस ने उन्हें ऊष्मा प्रतिरोधी एवं मजबूत बना दिया।
    • उपकरण, टैल्क आधारित सौंदर्य प्रसाधन, वस्त्र एवं बच्चों के खिलौने जैसे उपभोक्ता उत्पादों में भी एस्बेस्टस होता है।
  • स्वास्थ्य जोखिम: विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, सभी प्रकार के एस्बेस्टस के कारण निम्नलिखित बीमारियाँ हो सकती हैं:- 
    • एस्बेस्टोसिस: एक फेफड़ों की बीमारी, जिसमें निशान एवं सूजन होती है।
    • कार्सिनोजेनिक: एस्बेस्टस के संपर्क में आने से मेसोथेलियोमास (छाती एवं पेट की पतली झिल्लियों का एक अपेक्षाकृत दुर्लभ कैंसर) हो सकता है।
      • यह फेफड़े, स्वरयंत्र एवं अंडाशय के कैंसर का भी कारण बन सकता है।
  • भारत की स्थिति: भारत में वर्ष 2011 से जहाजों में इस्तेमाल होने वाले एस्बेस्टस खनन एवं एस्बेस्टस अपशिष्ट पर प्रतिबंध है।
    • आयात: भारत ने वर्ष 2019 एवं वर्ष 2020 के बीच 361,164 टन क्राइसोटाइल एस्बेस्टस का आयात किया, जिसे संसाधित किया गया तथा विशेष रूप से एस्बेस्टस-सीमेंट छत के लिए निर्माण उद्योग में उपयोग किया गया।

‘सहकार’ टैक्सी सेवा

हाल ही में भारत के केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने ओला तथा उबर की तरह ही ‘सहकार’ नामक ऐप-आधारित टैक्सी सेवा शुरू करने की घोषणा की।

‘सहकार’ टैक्सी सेवा के बारे में

  • यह एक नई सहकारिता-आधारित राइड-हेलिंग पहल है।
  • इसमें ड्राइवर न केवल सेवा प्रदाता होंगे, बल्कि हितधारक भी होंगे, जिससे उन्हें सीधे अधिक लाभ कमाने में मदद मिलेगी।
  • उद्देश्य: इस पहल का उद्देश्य ड्राइवरों की वित्तीय स्थिति को मजबूत करना है।
  • इस सेवा में दोपहिया टैक्सी, ऑटो-रिक्शा एवं चार पहिया कैब शामिल होंगे।
  • ‘सहकार से समृद्धि’ मिशन का हिस्सा: यह परियोजना “सहकार से समृद्धि” (सहकारिता के माध्यम से समृद्धि) के दृष्टिकोण के अनुरूप है एवं आने वाले महीनों में पूरे देश में शुरू होने की उम्मीद है।
  • विशेषताएँ
    • सहकारी मॉडल: सहकार टैक्सी का प्रबंधन निजी प्लेटफॉर्म के विपरीत सहकारी समितियों द्वारा किया जाएगा।
    • ड्राइवरों के लिए सीधी कमाई: सारा लाभ सीधे ड्राइवरों को जाएगा।

नाग मिसाइल प्रणाली (NAMIS)

भारत के रक्षा मंत्रालय ने नाग मिसाइल सिस्टम (Nag Missile System-NAMIS) एवं लगभग 5,000 हल्के वाहनों की खरीद के लिए महत्त्वपूर्ण अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए हैं।

नाग मिसाइल सिस्टम (NAMIS- ट्रैक्ड वर्जन) के बारे में

  • NAMIS, BMP-2 चेसिस पर लगाए गए नाग एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल (ATGM) का ट्रैक्ड वर्जन है।
  • DRDO की रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला (DRDL) द्वारा विकसित किया गया है।
  • निर्माता: भारत डायनेमिक्स लिमिटेड (BDL)
  • इसके संस्करणों में शामिल हैं:-
    • हेलिना (हवाई जहाज से लॉन्च)
    • ध्रुवास्त्र (उन्नत हेलिना)
    • NAMICA (नाग मिसाइल कैरियर)
    • MPATGM (मैन-पोर्टेबल ATGM)
    • उद्देश्य: भारतीय सेना की मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री की एंटी-टैंक क्षमता को आधुनिक बनाना।
  • NAMIS (Tr) की विशेषताएँ
    • दुश्मन के कवच को निशाना बनाने के लिए डिजाइन की गई उन्नत एंटी-टैंक हथियार प्रणाली।
    • फायर-एंड-फॉरगेट तकनीक: एक बार लॉन्च होने के बाद, मिसाइल अपने लक्ष्य को स्वचालित रूप से ट्रैक करती है एवं नष्ट कर देती है।
    • लक्ष्य क्षमता: प्रतिक्रियाशील कवच वाले टैंकों सहित भारी बख्तरबंद टैंकों को नष्ट कर सकती है।
    • नाइट स्ट्राइक: दिन एवं रात की परिस्थितियों में प्रभावी ढंग से कार्य करती है।
    • भारतीय सेना की मारक क्षमता तथा परिचालन सक्रियता को बढ़ाती है।

DX-EDGE पहल

नीति आयोग ने भारत के मध्यम, लघु एवं सूक्ष्म उद्यम (MSMEs) के प्रदर्शन को समर्थन देने एवं बढ़ाने के लिए ‘डिजिटल परिवर्तन के माध्यम से उत्कृष्टता तथा विकास को सशक्त बनाना’ (Empowering Excellence and Growth through Digital Transformation-DX-EDGE) नामक एक नई पहल शुरू की। 

DX-EDGE पहल के बारे में 

  • DX-EDGE एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य MSMEs के लिए डिजिटल परिवर्तन को बढ़ावा देना है:- 
    • MSMEs, प्रौद्योगिकी प्रदाताओं एवं शैक्षणिक संस्थानों को जोड़ने वाला एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना। 
    • दक्षता में सुधार, राजस्व में वृद्धि एवं उनकी वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाने के लिए कम लागत पर प्रौद्योगिकी तक MSMEs की पहुँच बढ़ाना। 
  • मुख्य विशेषताएँ
    • 6 करोड़ MSMEs के लिए समर्थन: यह पहल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) एवं डिजिटल समाधानों जैसी उन्नत तकनीकों के उपयोग के माध्यम से पूरे भारत में MSMEs की मदद करेगी। 
    • कुशल कार्यबल विकास: DX-EDGE तकनीकी विशेषज्ञों का एक बड़ा समूह तैयार करेगा।
  • DX-EDGE का महत्त्व
    • सहयोग को बढ़ावा देता है: कार्यक्रम नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिए सार्वजनिक, निजी एवं शैक्षणिक क्षेत्रों को एक साथ लाएगा। 
    • डिजिटल प्रौद्योगिकियों को अपनाना: आधुनिक अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्द्धी बने रहने के लिए MSMEs को डिजिटलीकरण एवं अग्रणी प्रौद्योगिकियों को अपनाने की आवश्यकता है।

WHO वैश्विक पारंपरिक चिकित्सा केंद्र (GTMC)

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का वैश्विक पारंपरिक चिकित्सा केंद्र (Global Traditional Medicine Centre- GTMC) जामनगर, गुजरात, भारत में स्थापित किया गया है।

WHO वैश्विक पारंपरिक चिकित्सा केंद्र (GTMC) के बारे में

  • यह वैश्विक स्तर पर पारंपरिक, पूरक एवं एकीकृत चिकित्सा (Traditional, Complementary, and Integrative Medicine- TCIM) में साक्ष्य-आधारित अनुसंधान, प्रशिक्षण तथा जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए पारंपरिक चिकित्सा के लिए एक विशेष केंद्र/ज्ञान केंद्र है।

GTMC की मुख्य विशेषताएँ

  • पारंपरिक चिकित्सा के लिए पहला वैश्विक केंद्र: GTMC दुनिया भर में पारंपरिक चिकित्सा के लिए समर्पित पहला एवं एकमात्र आउटपोस्टेड WHO केंद्र है।
  • मुख्य उद्देश्य
    • पारंपरिक चिकित्सा के लिए ज्ञान केंद्र के रूप में कार्य करना।
    • आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध एवं होम्योपैथी (AYUSH) में वैज्ञानिक अनुसंधान तथा नवाचार का समर्थन करना।
    • विश्व स्तर पर साक्ष्य-आधारित पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को बढ़ावा देना।
    • TCIM में प्रशिक्षण एवं कौशल विकास की सुविधा प्रदान करना।
  • रणनीतिक सहयोग
    • केंद्र पारंपरिक चिकित्सा को मुख्यधारा की स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों में एकीकृत करने के लिए वैश्विक संस्थानों, शोधकर्ताओं एवं नीति निर्माताओं के साथ कार्य करता है।
    • सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज में अपनी भूमिका को मजबूत करने के लिए पारंपरिक चिकित्सा पर WHO की वैश्विक रणनीति के साथ संरेखित करता है।
  • भारत में मेजबान संस्थान
    • GTMC जामनगर में आयुर्वेद शिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान (Institute of Teaching and Research in Ayurveda- ITRA) में स्थित है, जिसे आयुष मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान के रूप में मान्यता प्राप्त है।

कासमपट्टी पवित्र उपवन

तमिलनाडु सरकार ने कासमपट्टी (वीरा कोविल) पवित्र उपवन को जैव विविधता विरासत स्थल के रूप में अधिसूचित किया है।

  • वन विभाग ने वर्ष 2002 के जैविक विविधता अधिनियम के तहत सरकारी राजपत्र में आधिकारिक रूप से अधिसूचना प्रकाशित की है।
  • कासमपट्टी पवित्र उपवन तमिलनाडु में दूसरा आधिकारिक रूप से नामित जैव विविधता विरासत स्थल बन गया है।
    • तमिलनाडु में पहला जैव विविधता विरासत स्थल मदुरै में अरिट्टापट्टी है।

कासमपट्टी पवित्र उपवन के बारे में

  • स्थान: यह पवित्र उपवन डिंडीगुल जिले में अलागरमलाई रिजर्व फॉरेस्ट के पास स्थित रेडियापट्टी पंचायत के कासमपट्टी गाँव के मध्य में स्थित है।
  • धार्मिक मान्यता: स्थानीय लोग वीरा कोविल मंदिर में देवता ‘वीरनन’ की पूजा करते हैं।
  • जैव विविधता हॉटस्पॉट: इस साइट पर 48 पौधों की प्रजातियाँ, 22 झाड़ियाँ एवं 29 जड़ी-बूटियाँ हैं, जो इसकी आनुवंशिक समृद्धि में योगदान करती हैं।
    • यह उपवन पक्षियों, छोटे स्तनधारियों, सरीसृपों एवं कीटों की 12 से अधिक प्रजातियों को आश्रय भी प्रदान करता है।
  • महत्त्व: यह उपवन जैव विविधता को संरक्षित करने एवं स्थानीय जलवायु को विनियमित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

जैव विविधता विरासत स्थलों (BHS) के बारे में

  • ये पारिस्थितिकी महत्त्व के क्षेत्र हैं, जो जंगली एवं पालतू दोनों प्रजातियों, दुर्लभ तथा संकटग्रस्त प्रजातियों एवं उच्च स्थानिकता या विकासवादी महत्त्व वाले क्षेत्रों में समृद्ध हैं।
  • अधिसूचना: इन्हें राज्य सरकारों द्वारा जैव विविधता अधिनियम, 2002 की धारा 37 के तहत संरक्षित एवं संरक्षित करने के लिए घोषित किया जाता है। 
    • उदाहरण: बेंगलुरु, कर्नाटक में नल्लुरु हेरिटेज तमरिंद ग्रोव (नल्लुरु कोटे) भारत का पहला नामित जैव विविधता विरासत स्थल है।

कवक प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा: IUCN रिपोर्ट

अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) के अनुसार, 1,000 से अधिक कवक प्रजातियाँ अब विलुप्त होने के खतरे में हैं।

कवक प्रजातियों की सूची के बारे में

  • IUCN रेड लिस्ट (27 मार्च, 2025 तक) में अब 1,69,420 प्रजातियाँ शामिल हैं, जिनमें से 47,187 विलुप्त होने के खतरे में हैं।
  • हाल ही में किए गए आकलन में 482 कवक प्रजातियाँ जोड़ी गईं, जिससे कुल संख्या 1,300 हो गई, जिनमें से कम-से-कम 411 लुप्तप्राय हैं।
  • रेशेदार वैक्सकैप (हाइग्रोसाइब इंटरमीडिया), एक प्रसिद्ध यूरोपीय ग्रामीण क्षेत्र की प्रजाति है, जिसे अब सुभेद्य के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

खतरे

  • वनों की कटाई, कृषि विस्तार एवं शहरीकरण कवक के आवासों को नष्ट कर रहे हैं।
    • उदाहरण के लिए, कृषि एवं शहरी विस्तार से आवास के नुकसान के कारण 279 प्रजातियाँ खतरे में हैं।
    • वनों की कटाई, जिसमें अवैध कटाई एवं कृषि के लिए भूमि की सफाई शामिल है, के कारण 198 प्रजातियाँ विलुप्त होने का खतरा है।
  • उर्वरकों एवं वाहनों से निकलने वाले उत्सर्जन से कवक की वृद्धि प्रभावित हो रही है। 
    • उर्वरकों एवं इंजन उत्सर्जन से नाइट्रोजन तथा अमोनिया प्रदूषण के कारण 91 प्रजातियाँ खतरे में हैं। 
  • वनाग्नि के पैटर्न में बदलाव प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित कर रहे हैं। 
    • वन पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव के कारण वनाग्नि के पैटर्न में बदलाव के कारण अमेरिका में 50 से अधिक प्रजातियाँ खतरे में हैं। 

कवक का महत्त्व 

  • जीवों के बाद कवक दूसरा सबसे बड़ा जगत है, जिसमें अनुमानित 2.5 मिलियन प्रजातियाँ (केवल 155,000 नामित) हैं। 
  • वे पारिस्थितिकी तंत्र, पौधों के पोषण, अपघटन, दवा एवं खाद्य उत्पादन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 
  • IUCN ने कवकों को ‘पृथ्वी पर जीवन की गुमनाम प्रजातियाँ’ (Unsung heroes of life on Earth) बताते हुए, उनके संरक्षण के लिए तत्काल प्रयास करने का आग्रह किया है।

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