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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal August 30, 2024 04:32 129 0

गुरु पद्मसंभव 

(Guru Padmasambhava)

हाल ही में अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ ने बिहार के नालंदा में ‘गुरु पद्मसंभव के जीवन और विरासत’ पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया।

गुरु पद्मसंभव [गुरु रिनपोचे (Guru Rinpoche)] 

  • गुरु पद्मसंभव: वे प्राचीन भारत में आठवीं शताब्दी के एक पूजनीय व्यक्ति थे, जिन्हें प्रायः ‘द्वितीय बुद्ध’ माना जाता है। 
  • महत्त्व: उन्हें हिमालयी क्षेत्र में बुद्ध धम्म के प्रसार का श्रेय दिया जाता है और वे तिब्बती बौद्ध धर्म, विशेषकर निंग्मा संप्रदाय में एक महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हैं। 
  • नाम का अर्थ: उनके नाम का अर्थ है ‘कमल-जनित’, जो ओडिआना की एक झील में कमल के फूल से उनके पौराणिक जन्म को दर्शाता है।
  • वज्रयान बौद्ध धर्म: उन्होंने वज्रयान बौद्ध धर्म की शिक्षा दी, जिसमें ज्ञान प्राप्ति के मार्ग के रूप में मंत्र, मुद्राएँ और कल्पना जैसी गूढ़ प्रथाओं पर जोर दिया गया। 

लेप्टोस्पाइरोसिस

(Leptospirosis)

निपाह वायरस का खतरा कम होने के बाद, केरल में लेप्टोस्पाइरोसिस प्रकोप के एक नए खतरे का सामना करना पड़ रहा है। 

लेप्टोस्पाइरोसिस (Leptospirosis) 

  • लेप्टोस्पाइरोसिस, जिसे ‘रैट फीवर’ (Rat Fever) के नाम से भी जाना जाता है, पशुओं, विशेष रूप से चूहों के मूत्र में मौजूद एक प्रकार के बैक्टीरिया के कारण होता है। 
  • कारक: यह रोग लेप्टोस्पाइरा (Leptospira) बैक्टीरिया के कारण होता है, जो मुख्य रूप से संक्रमित पशुओं के मूत्र में पाया जाता है। 
    • इस रोग के वाहक जंगली या पालतू जानवर हो सकते हैं, जिनमें कृंतक, मवेशी, सूअर और कुत्ते शामिल हैं। 
  • लक्षण: बुखार, ठंड लगना, सिरदर्द से लेकर यकृत, गुर्दे, फेफड़े और मस्तिष्क को प्रभावित करने वाली गंभीर स्थिति तक शामिल है। 
    • कुछ मामलों में कोई लक्षण भी नहीं दिखाई देते। 
  • संचरण: यह रोग संक्रमित पशुओं के मूत्र या दूषित मिट्टी और पानी के संपर्क से फैलता है। 
    • जिन व्यक्तियों की त्वचा पर कट या खरोंच है, उनमें जोखिम अधिक है। 
  • उपचार: इसका उपचार एंटीबायोटिक दवाओं से किया जा सकता है। 

कृषि अवसंरचना निधि

(Agriculture Infrastructure Fund)

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘कृषि अवसंरचना कोष’ के अंतर्गत वित्तपोषण सुविधाओं की केंद्रीय क्षेत्रक  योजना के विस्तार को मंजूरी दी। 

कृषि अवसंरचना कोष (AIF) 

  • कृषि अवसंरचना कोष जुलाई 2020 में प्रारंभ की गई एक वित्तपोषण सुविधा है। 
  • इसका उद्देश्य किसानों, कृषि-उद्यमियों, किसान समूहों जैसे FPO, SHG आदि को फसल-उपरांत प्रबंधन अवसंरचना सृजित करने के लिए संपूर्ण वित्तीय सहायता प्रदान करना है। 
  • यह 3% ब्याज अनुदान का समर्थन प्रदान करता है, 
  • सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों के लिए क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट (CGTMSE) योजना के माध्यम से 2 करोड़ रुपये तक के ऋण के लिए क्रेडिट गारंटी सहायता। 
  • AIF की अवधि: कृषि अवसंरचना कोष की अवधि 7 वर्ष, जिसमें 2 वर्ष तक की ऋण स्थगन अवधि भी शामिल है। 

AIF का दायरा बढ़ाने की पहल

  • व्यवहार्य कृषि परिसंपत्तियाँ: सामुदायिक कृषि परिसंपत्तियों के निर्माण के उद्देश्य से परियोजनाओं के लिए पात्रता का विस्तार किया गया है। 
  • एकीकृत प्रसंस्करण परियोजनाएँँ: इसमें AIF के अंतर्गत एकीकृत प्राथमिक एवं द्वितीयक प्रसंस्करण परियोजनाएँ शामिल हैं। 
    • स्टैंडअलोन माध्यमिक परियोजनाएँ MOFPI योजनाओं द्वारा कवर की जाती हैं।
  • PM कुसुम घटक-A: किसानों और स्थानीय निकायों के लिए सतत् स्वच्छ ऊर्जा और कृषि बुनियादी ढाँचे का समर्थन करने के लिए AIF के साथ अभिसरण किया गया है। 
  • NAB संरक्षण: वित्तीय सुरक्षा और निवेश को बढ़ावा देने के लिए NAB, संरक्षण ट्रस्टी कंपनी प्राइवेट लिमिटेड के माध्यम से FPO के लिए AIF क्रेडिट गारंटी कवरेज का विस्तार किया गया। 

होलोंगापार गिब्बन वन्यजीव अभयारण्य

असम वन्यजीव विभाग ने होलोंगापार गिब्बन (Hollongapar Gibbon) वन्यजीव अभयारण्य के पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र में ‘केयर्न ऑयल एंड गैस’ के लिए फारेस्ट क्लियरेंस  देने की सिफारिश की है। 

होलोंगापार गिब्बन वन्यजीव अभयारण्य

  • अवस्थिति: असम, भारत
  • स्थापना: इस अभयारण्य की आधिकारिक तौर पर वर्ष 1997 में स्थापना की गई थी।
  • वनस्पति: ऊपरी क्षेत्र में होलोंग वृक्ष, मध्य में नाहर वृक्ष तथा निचले क्षेत्र में सदाबहार झाड़ियाँ और जड़ी-बूटियाँ पाई जाती हैं। 
  • जीव-जंतु: भारत की एकमात्र वानर प्रजाति, हूलॉक गिब्बन, तथा बंगाल स्लो लोरिस का निवास स्थल है। 

गिबन्स

  • गिब्बन दक्षिण-पूर्व एशिया के उष्णकटिबंधीय वनों में पाए जाने वाले छोटे वानरों की प्रजाति है। 
  • भारत में प्रजातियाँ: भारत में दो प्रजातियाँ हैं: पूर्वी हूलॉक गिब्बन (हूलॉक ल्यूकोनेडिस-Hoolock leuconedys) और पश्चिमी हूलॉक गिब्बन ( हूलॉक-Hoolock)। 
  • खतरे: हूलॉक गिब्बन सहित सभी गिब्बन प्रजातियाँ, बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के कारण वनों की कटाई और आवास के ह्रास के कारण विलुप्त होने की कगार पर हैं। 
  • संरक्षण की स्थिति
    • दोनों प्रजातियाँ भारतीय (वन्यजीव) संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची 1 में सूचीबद्ध हैं। 
    • IUCN की रेड लिस्ट  
      • पश्चिमी हूलॉक गिब्बन: लुप्तप्राय
      • पूर्वी हूलॉक गिब्बन: असुरक्षित 

आईएनएस अरिघात (INS Arighat)

भारत की दूसरी परमाणु ऊर्जा चालित बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी SSBN (जहाज, पनडुब्बी, बैलिस्टिक, परमाणु) को विशाखापत्तनम में कमीशन किया जाना है। 

आईएनएस अरिघात (Arighat) 

  • यह भारत की दूसरी स्वदेश निर्मित परमाणु ऊर्जा चालित बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी (SSBN) है। 
    • भारत की पहली परमाणु पनडुब्बी, INS अरिहंत, वर्ष 2018 में कमीशन की गई। 
  • इसका निर्माण विशाखापत्तनम स्थित भारतीय नौसेना के जहाज निर्माण केंद्र (Ship Building Centre-SBC) में किया गया है।
  • यह भारत की परमाणु त्रय का एक महत्त्वपूर्ण घटक है, जो देश को भूमि, वायु और समुद्र से परमाणु मिसाइलों को लॉन्च करने में सक्षम बनाता है।
  • प्रमुख विशेषताएँ
    • यह 6,000 टन की पनडुब्बी है, जो दाबयुक्त जल रिएक्टर द्वारा संचालित होती है।
    • यह सतह पर 12-15 नॉट्स (22-28 किमी/घंटा) तथा जल के अंदर 24 नॉट्स (44 किमी/घंटा) की अधिकतम गति प्राप्त कर सकता है। 
    • यह 3,500 किलोमीटर से अधिक रेंज वाली चार परमाणु-सक्षम K-4 SLBM (पनडुब्बी से प्रक्षेपित बैलिस्टिक मिसाइल) या लगभग 750 किलोमीटर रेंज वाली बारह पारंपरिक वारहेड K-15 SLBM ले जा सकता है। 
    • अतिरिक्त सुरक्षा उपायों में दो स्टैंडबाय सहायक इंजन और आपातकालीन शक्ति एवं गतिशीलता के लिए एक वापस लेने योग्य थ्रस्टर शामिल हैं।

मुल्लापेरियार बाँध

मेट्रोमैन ई. श्रीधरन ने सुझाव दिया कि 100 फीट की ऊँचाई पर सुरंग का निर्माण मुल्लापेरियार जलाशय को मजबूत कर सकता है। 

मुल्लापेरियार बाँध 

  • अवस्थिति: यह एक चिनाई वाला गुरुत्वाकर्षण बाँध (masonry gravity) है, जो केरल के इडुक्की जिले के थेक्कडी में मुल्लायार नदी के संगम पर पेरियार नदी पर अवस्थित है। 
    • यह पश्चिमी घाट की कार्डमम पहाड़ियों पर समुद्र तल से 881 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। 
  • निर्माण: वर्ष 1895 में निर्माण किया गया था।
    • यह बाँध चूना पत्थर और ‘सुरखी’ (जली हुई ईंट का पाउडर, चीनी और कैल्शियम ऑक्साइड) से बना है। 
  • उद्देश्य: इस बाँध का निर्माण पश्चिम की ओर बहने वाली पेरियार नदी के जल को पूर्व की ओर मोड़कर तमिलनाडु के थेनी, मदुरै, शिवगंगा और रामनाथपुरम् जिलों के शुष्क क्षेत्रों की ओर मोड़ने के लिए किया गया था। 
  • पेरियार राष्ट्रीय उद्यान: बाँध के आसपास का जलाशय पेरियार राष्ट्रीय उद्यान का आवास है, जो एक संरक्षित वन्यजीव क्षेत्र है। 
  • परिचालन नियंत्रण: यद्यपि बाँध केरल में अवस्थित है, लेकिन इसका संचालन और रखरखाव तमिलनाडु द्वारा किया जाता है। 

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