हाल ही में भारत-स्विस संयुक्त अनुसंधान प्रोजेक्ट आइस क्रंच (उत्तर-पश्चिमी हिमालय में हिम नाभिकीय कण और मेघ संघनन नाभिक गुण- Ice Nucleating Particles and Cloud Condensation Nuclei Properties in the North-Western Himalayas) का शुभारंभ किया गया है।
इससे पहले ‘हिमालयी उच्च ऊँचाई वायुमंडलीय एवं जलवायु अनुसंधान केंद्र’ (Himalayan High Altitude Atmospheric and Climate Research Centre) का भी उद्घाटन किया गया है।
आइस क्रंच (ICE-CRUNCH) के बारे में
यह भारतीय वैज्ञानिकों एवं ETH ज्यूरिख, स्विट्जरलैंड के शोधकर्ताओं के बीच एक सहयोगात्मक अध्ययन है।
उद्देश्य: इस परियोजना का उद्देश्य क्षेत्र में हिम नाभिकीय कणों और मेघ संघनन नाभिकीय गुणों की खोज करना है।
महत्त्व: बादलों के सूक्ष्मभौतिकी में एरोसोल की भूमिका तथा हिमालयी क्षेत्र में जलवायु प्रणालियों और वर्षा पर उनके व्यापक प्रभाव को समझना।
हिमालयी उच्च वायुमंडलीय एवं जलवायु अनुसंधान केंद्र के बारे में
यह केंद्र उत्तर-पश्चिमी हिमालय में अत्याधुनिक जलवायु अनुसंधान के लिए एक महत्त्वपूर्ण प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करेगा।
स्थान: यह केंद्र जम्मू और कश्मीर के नत्थाटॉप के ऊँचे पहाड़ी इलाकों में स्थापित है।
सहयोग: यह केंद्र विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, जम्मू और कश्मीर सरकार, जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय और स्विस राष्ट्रीय विज्ञान फाउंडेशन की साझेदारी में स्थापित किया गया है।
उद्देश्य: मुक्त क्षोभमंडलीय स्थितियों में वायुमंडलीय प्रक्रियाओं का अध्ययन करना, जो बादल निर्माण, मौसम पैटर्न और एरोसोल अंतःक्रियाओं को समझने के लिए एक प्रमुख आवश्यकता है।
संबद्धता: यह केंद्र विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के वैश्विक वायुमंडलीय निगरानी (GAW) कार्यक्रम से संबद्ध होगा।
पीएम-पोषण योजना
केंद्र सरकार ने पीएम-पोषण (PM-POSHAN) योजना के तहत मध्याह्न भोजन के लिए सामग्री लागत में 9.5% की वृद्धि की है।
इससे वित्तीय वर्ष 2025-26 में केंद्र पर ₹954 करोड़ का अतिरिक्त खर्च आएगा।
पीएम-पोषण योजना के बारे में
पीएम पोषण योजना (जिसे पहले मध्याह्न भोजन योजना कहा जाता था) को वर्ष 2021-22 से वर्ष 2025-26 तक के लिए मंजूरी दी गई थी।
इसे केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
इसके तहत छात्र-छात्राओं को एक पका हुआ भोजन प्रदान किया जाता है:-
बाल वाटिका (प्री-प्राइमरी)
कक्षा 1 से 8 तक।
11.20 लाख सरकारी एवं सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में लगभग 11.80 करोड़ बच्चों को शामिल करता है।
लैंगिक या सामाजिक वर्ग के आधार पर भेदभाव किए बिना सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में लागू किया गया।
मुख्य उद्देश्य
भुखमरी से निपटना एवं स्कूली बच्चों की शिक्षा में सुधार करना।
सरकारी एवं सहायता प्राप्त स्कूलों में छात्रों की पोषण स्थिति में सुधार करना।
बच्चों को, विशेषतौर पर गरीब एवं वंचित परिवारों से संबंधित बच्चों को प्रेरित करना:
नियमित रूप से स्कूल आने को प्रोत्साहित करना।
उनकी पढ़ाई पर बेहतर ध्यान देना।
गर्भावस्थाजन्य मधुमेह
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 7 अप्रैल, 2025 को विश्व स्वास्थ्य दिवस के लिए थीम [स्वस्थ शुरुआत, आशापूर्ण भविष्य (Healthy Beginnings, Hopeful Futures)] का चुनाव किया है।
यह थीम गर्भ में शुरू होने वाली मधुमेह जैसी बीमारियों को रोकने, माताओं एवं बच्चों के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चित करने पर जोर देती है।
गर्भावस्थाजन्य मधुमेह (GDM) के बारे में
यह गर्भावधि मधुमेह मेलिटस (Gestational Diabetes Mellitus- GSM) को संदर्भित करता है।
GDM एक प्रकार का मधुमेह है, जो गर्भावस्था के दौरान होता है एवं इससे निम्नलिखित का जोखिम बढ़ जाता है:-
माताओं में टाइप 2 मधुमेह।
बच्चों में चयापचय संबंधी विकार।
कारण: हार्मोनल परिवर्तन एवं इंसुलिन प्रतिरोध में वृद्धि के कारण होता है।
यह रक्त शर्करा को प्रभावी ढंग से विनियमित करने की शरीर की क्षमता को बाधित करता है।
नैदानिक अवधि: GDM की पहचान आमतौर पर गर्भावस्था के 24 से 28 सप्ताह के बीच की जाती है।
प्रारंभिक जाँच क्यों महत्त्वपूर्ण है?
वर्तमान समस्या: GDM का आमतौर पर देर से (दूसरी तिमाही में) पता चलता है, तब तक बच्चा पहले से ही प्रभावित हो चुका होता है।
प्रारंभिक कार्रवाई की आवश्यकता: विशेषज्ञ अब गर्भावस्था के 8वें सप्ताह तक ग्लूकोज परीक्षण की सलाह देते हैं।
कारण: पहली तिमाही में उच्च रक्त शर्करा बच्चे के चयापचय को प्रभावित कर सकती है एवं भविष्य में बीमारियों का खतरा बढ़ा सकती है।
मधुमेह के बारे में
यह एक खतरनाक बीमारी है।
इस बीमारी में, शरीर पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं करता है।
इंडिया स्किल्स एक्सेलरेटर
केंद्रीय कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय (MSDE), विश्व आर्थिक मंच (WEF) के सहयोग से ‘इंडिया स्किल्स एक्सेलरेटर’ शुरू करने पर विचार कर रहा है।
इंडिया स्किल्स एक्सेलरेटर के बारे में
‘इंडिया स्किल्स एक्सेलरेटर’ एक राष्ट्रीय सार्वजनिक-निजी सहयोग मंच के रूप में कार्य करेगा।
इसे बहु-हितधारक दृष्टिकोण की माँग करने वाली जटिल चुनौतियों पर अभिनव विचारों को सामने लाने एवं प्रणालीगत प्रगति को आगे बढ़ाने में ‘क्रॉस-सेक्टरल’ प्रयासों को सक्षम करने के लिए डिजाइन किया गया है।
उद्देश्य: एक्सेलरेटरका उद्देश्य तीन महत्त्वपूर्ण स्तरों पर परिवर्तन को उत्प्रेरित करना है।
भविष्य की कौशल आवश्यकताओं के बारे में जागरूकता में सुधार एवं मानसिकता में बदलाव करके।
हितधारकों के बीच सहयोग एवं ज्ञान साझाकरण को बढ़ाकर।
अधिक अनुकूली एवं उत्तरदायी कौशल पारिस्थितिकी तंत्र का समर्थन करने के लिए संस्थागत संरचनाओं और नीतिगत ढाँचे को उन्नत करने हेतु प्रतिबद्ध होना।
प्रगति का मापन: WEF के ग्लोबल लर्निंग नेटवर्क (सहकर्मी सीखने एवं वैश्विक बेंचमार्किंग को सक्षम करने) के माध्यम से प्रगति को ट्रैक किया जाएगा।
एक्सेलरेटरको विश्व आर्थिक मंच की भविष्य रोजगार रिपोर्ट, 2025 से भी जानकारी मिलेगी।
नीलगिरि तहर
केरल और तमिलनाडु 24 से 27 अप्रैल, 2025 तक नीलगिरि तहर की एक साथ गणना करेंगे।
गणना कवरेज एवं विधियाँ
केरल: तिरुवनंतपुरम से वायनाड तक 20 वन प्रभागों में 89 गणना ब्लॉक।
तमिलनाडु: नीलगिरि तहर आवासों में 176 गणना ब्लॉक।
गणना पश्चिमी घाट में संरक्षित एवं गैर-संरक्षित दोनों क्षेत्रों को शामिल करेगी।
वैज्ञानिक तकनीक: जानवरों की तस्वीरें खींचने के लिए कैमरा ट्रैप का प्रयोग किया जाएगा।
आनुवंशिक अध्ययन एवं संख्या वितरण के विश्लेषण के लिए पैलेट के नमूने (मल) एकत्र किए जाएँगे।
यह पहल एराविकुलम राष्ट्रीय उद्यान की 50वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में आयोजित की गई है, जो इस लुप्तप्राय प्रजाति की सबसे बड़ी आबादी का आवास है।
नीलगिरि तहर के बारे में
नीलगिरि तहर एक लुप्तप्राय प्रजाति है एवं दक्षिणी भारत के उष्णकटिबंधीय पहाड़ों में पाई जाने वाली एकमात्र कैप्रीनी प्रजाति है।
यह तमिलनाडु का राजकीय पशु भी है।
नीलगिरि तहर प्रजाति के वयस्क नरों की पीठ पर एक हल्का भूरा क्षेत्र या “सैडल” विकसित होता है एवं उन्हें “सैडलबैक” कहा जाता है।
यह खड़ी और चट्टानी इलाकों पर चढ़ने की अपनी क्षमता के लिए जाना जाता है।
संरक्षण स्थिति: नीलगिरि तहर IUCN रेड लिस्ट में सूचीबद्ध एक सुभेद्य प्रजाति है।
नीलगिरि तहर को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची 1 के तहत सूचीबद्ध किया गया है।
आवास स्थान: पश्चिमी घाटों के लिए स्थानिक, मुख्य रूप से दक्षिणी भारत के उच्च घास के मैदानों में।
प्रोजेक्ट नीलगिरि तहर
प्रोजेक्ट नीलगिरि तहर तमिलनाडु सरकार द्वारा शुरू की गई एक संरक्षण पहल है।
इसका उद्देश्य सर्वेक्षण, पुन: परिचय प्रयासों और इसके आवास के लिए खतरों को संबोधित करके लुप्तप्राय नीलगिरि तहर की रक्षा करना है।
यह परियोजना वर्ष 2022 में शुरू की गई थी एवं इसे वर्ष 2022 से वर्ष 2027 तक लागू किया जाना है।
भारत में विटामिन D का संकट: ICRIER रिपोर्ट
‘भारत में विटामिन D की कमी को दूर करने के लिए रोडमैप’ शीर्षक वाली ICRIER रिपोर्ट के अनुसार, पाँच में से एक भारतीय विटामिन D की कमी से पीड़ित है।
विटामिन D के बारे में
विटामिन D एक वसा में घुलनशील विटामिन है, जो कैल्शियम अवशोषण, हड्डियों के स्वास्थ्य, मांसपेशियों की ताकत, प्रतिरक्षा एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए महत्त्वपूर्ण है।
इसे “सनशाइन विटामिन” के रूप में जाना जाता है क्योंकि शरीर सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आने पर इसका उत्पादन करता है।
इसकी कमी से थकान, मांसपेशियों की कमजोरी, अवसाद, हृदय संबंधी रोग, टाइप 2 मधुमेह एवं कैंसर होने का खतरा है।
ICRIER रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष
सभी आयु समूहों में विटामिन D की कमी
बच्चे (0-10 वर्ष): 46% रिकेट्स से पीड़ित हैं।
बुजुर्ग (60+ वर्ष): 80-90% ऑस्टियोपोरोसिस, फ्रैक्चर एवं दीर्घकालिक दिव्यांगता के जोखिम में हैं।
पूर्वी भारत में सबसे अधिक कमी: लगभग 39% आबादी प्रभावित है।
लैंगिक असमानता: सभी आयु वर्गों की भारतीय महिलाएँ पुरुषों की तुलना में विटामिन D की कमी के प्रति अधिक संवेदनशील हैं।
कमी के लिए जिम्मेदार कारक
भारत में व्यापकता: अस्वस्थ जीवनशैली, प्रदूषण एवं त्वचा की रंजकता के कारण सीमित धूप में निकलना, UVB अवशोषण में कमी, कपड़ों की प्राथमिकता।
आहार संबंधी अंतराल: विशेष रूप से शाकाहारियों तथा लैक्टोज इनटोलरेंट लोगों में मछली, अंडे एवं डेयरी जैसे विटामिन-D युक्त खाद्य पदार्थों का कम सेवन।
लागत एवं पहुँच संबंधी बाधाएँ: महँगे परीक्षण एवं पूरक (10 गोलियों के लिए ₹48-₹130) किफायती निदान और उपचार में बाधा उत्पन्न करते हैं।
नियामक अंतराल: केवल पशु-आधारित D3 विटामिन युक्त खाद्य का मूल्य राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA) के तहत विनियमित है। वनस्पति आधारित D2 युक्त विटामिन खाद्य अनियमित और महंगा बना हुआ है।
भारतीय अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंध अनुसंधान परिषद (ICRIER) के बारे में:
यह एक नीति-उन्मुख थिंक टैंक है, जो भारत के विकास में तेजी लाने के लिए विभिन्न मुद्दों पर अनुसंधान और अनुशंसाएँ प्रस्तुत करता है।
एक सींग वाले गैंडों के लिए नए आवास
भारत कई राज्यों में नए संरक्षण केंद्र स्थापित करके लुप्तप्राय एक सींग वाले गैंडों के भविष्य को सुरक्षित करने के अपने प्रयासों को आगे बढ़ा रहा है।
संबंधित तथ्य
इस कदम का उद्देश्य मौजूदा आवासों पर बोझ को कम करना एवं स्थानांतरण कार्यक्रमों के माध्यम से प्रजातियों के आनुवंशिक स्वास्थ्य में सुधार करना है।
नई कार्य योजना भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा राइनो विशेषज्ञों एवं वन विभागों के सहयोग से तैयार की गई है।
प्रमुख स्थल
काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान: असम में काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान को स्थानांतरण के लिए प्राथमिक स्थल के रूप में पहचाना गया है।
काजीरंगा विश्व में एक सींग वाले गैंडों की सबसे बड़ी आबादी (वर्ष 2022 की जनगणना के अनुसार 2,613) का आवास स्थल है।
पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य, असम: पोबितोरा, केवल 16 वर्ग किमी. में 107 गैंडों के साथ, विश्व में सबसे अधिक गैंडे के घनत्व वाला क्षेत्र है।
इस अभयारण्य से गैंडों का स्थानांतरण क्षेत्रीय आक्रमण, अंतःप्रजनन, रोग प्रकोप एवं मानव-वन्यजीव संघर्ष जैसे जोखिमों को कम करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
जलदापारा एवं गोरुमारा, पश्चिम बंगाल: इन राष्ट्रीय उद्यानमें असम से गैंडे लाए जाएँगे।
नए संरक्षण केंद्र
डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान (असम): 13 वर्षों में पाँच गैंडों को फिर से लाने का लक्ष्य।
डी’रिंग मेमोरियल वन्यजीव अभयारण्य (अरुणाचल प्रदेश): पाँच गैंडों के स्थानांतरण के लिए प्रस्तावित।
वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (बिहार): स्थानांतरित गैंडों को लाने के लिए तैयार।
उत्तर प्रदेश स्थल: दुधवा राष्ट्रीय उद्यान, पीलीभीत टाइगर रिजर्व एवं कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य को गैंडों के पुनःस्थानांतरण के लिए सूचीबद्ध किया गया है।
सुरई रेंज (उत्तराखंड): भविष्य के गैंडों के आवास के रूप में सूचीबद्ध किया गया।
एक सींग वाले गैंडे के बारे में
एक सींग वाला गैंडा, जिसे भारतीय गैंडा (राइनोसेरोस यूनिकॉर्निस) के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप का एक बड़ा शाकाहारी स्तनपायी है।
एक समय में ये भारत-गंगा के मैदानों में व्यापक रूप से विस्तृत थे, लेकिन अवैध शिकार, आवास की कमी एवं मानव अतिक्रमण के कारण इनकी संख्या में भारी गिरावट आई।
आज लगभग 4,000 एक सींग वाले गैंडे जंगल में जीवित हैं, जो केवल भारत एवं नेपाल में पाए जाते हैं।
प्राथमिक आवास: बाढ़ के मैदान, दलदल एवं तराई क्षेत्र के जंगल में पाए जाते है।
संरक्षण स्थिति: IUCN रेड लिस्ट द्वारा सुभेद्य के रूप में सूचीबद्ध।
Latest Comments