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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal April 16, 2025 04:18 33 0

विधिक माप विज्ञान (सामान्य) नियम, 2011 के अंतर्गत गैस मीटरों के लिए मसौदा नियम

उपभोक्ता मामलों के विभाग ने ‘विधिक माप विज्ञान (सामान्य) नियम’, 2011 के तहत गैस मीटरों के लिए मसौदा नियम तैयार किए हैं। 

  • विधिक माप विज्ञान (सामान्य) नियम, 2011 वजन एवं माप उपकरणों के लिए विनिर्देश निर्धारित करता है। 

मुख्य बिंदु

  • उद्देश्य: उपभोक्ता संरक्षण, निष्पक्ष व्यापार प्रथाओं एवं सटीक गैस मापन को बढ़ावा देना। 
  • उपयोग से पहले अनिवार्य परीक्षण: सभी गैस मीटर (घरेलू, वाणिज्यिक एवं औद्योगिक) का उपयोग करने से पहले परीक्षण, सत्यापन तथा मुहर लगाना आवश्यक है। 
  • नियमित सत्यापन आवश्यक: उपयोग के दौरान निरंतर सटीकता सुनिश्चित करने के लिए गैस मीटर को समय-समय पर पुन: सत्यापित किया जाना चाहिए। 
  • वैश्विक मानक संरेखण: नियम अंतरराष्ट्रीय कानूनी माप विज्ञान संगठन (OIML) मानकों के साथ संरेखित हैं। 

अंतरराष्ट्रीय विधिक माप विज्ञान संगठन (OIML)

  • अंतरराष्ट्रीय विधिक माप विज्ञान संगठन (OIML) एक अंतर-सरकारी संगठन है, जो व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए कानूनी माप विज्ञान, यानी माप के विनियमन एवं सटीकता के लिए वैश्विक मानक विकसित करता है। 
  • मुख्यालय: पेरिस, फ्राँस। 
  • 70वीं वर्षगाँठ: OIML वर्ष 2025 में अपनी 70वीं वर्षगाँठ मनाएगा, क्योंकि इस कन्वेंशन पर 12 अक्टूबर 1955 को हस्ताक्षर किए गए थे।
  • भारत एवं OIML: भारत वर्ष 1956 से OIML का सदस्य रहा है।
    • यह विश्व भर में OIML अनुमोदन प्रमाण-पत्र जारी करने के लिए अधिकृत 13वाँ देश है।
  • सहयोग: यह प्रत्येक संगठन के काम के बीच अनुकूलता सुनिश्चित करने के लिए इंटरनेशनल ब्यूरो ऑफ वेट एंड मेजर्स (BIPM) एवं अंतरराष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (ISO) जैसे अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ मिलकर काम करता है।

कालीघाट मंदिर

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री द्वारा पोइला बैसाख (बंगाली नव वर्ष) से पूर्व कालीघाट स्काईवॉक का उद्घाटन किया गगा।

कालीघाट स्काईवॉक 

  • स्काईवॉक 440 मीटर लंबा, 16 मीटर ऊँचा है एवं यह कोलकाता का सबसे लंबा स्काईवॉक होगा।
    • कोलकाता के दक्षिणेश्वर काली मंदिर में इसी तरह का स्काईवॉक 340 मीटर लंबा एवं 10 मीटर चौड़ा है।
  • इसका निर्माण कोलकाता नगर निगम द्वारा किया गया है।

कालीघाट काली मंदिर 

  • शक्तिपीठ: कोलकाता का कालीघाट काली मंदिर एक शक्ति पीठ है, जहाँ मान्यता के अनुसार शक्ति या सती के दाहिने पैर की उंगलियाँ  गिरी थी।
    • शक्तिपीठ वे स्थान हैं, जहाँ शिव के रुद्र तांडव के दौरान सती के शरीर के विभिन्न अंग गिरे थे।
  • मुख्य देवता: कालीघाट काली मंदिर देवी काली को समर्पित है, जिनकी मूर्ति स्वर्ण से निर्मित एक लंबी उभरी हुई जीभ वाली है।
  • निर्माणकर्ता: मूल मंदिर का निर्माण राजा बसंत रॉय ने करवाया था, जो प्रतापदित्य के चाचा एवं जेसोर राज्य (बांग्लादेश) के राजा थे। 
  • नदी: मंदिर आदि गंगा के तट पर अवस्थित है। 
  • वास्तुकला
    • मंदिर में देवी काली को समर्पित एक गर्भगृह है। 
    • नकुलेश्वर महादेव मंदिर: यह शिव मंदिर माँ काली समर्पित है एवं गर्भगृह के उत्तर-पूर्व में स्थित है। 
    • सोष्ठी ताला: यह एक 3 फीट ऊँची आयताकार वेदी है, जिस पर एक छोटा ‘कैक्टस’ का पौधा है, जिसके साथ तीन पत्थर एक साथ रखे गए हैं जो देवी “सोष्ठी”, “सिटोला” एवं “मंगोल चंडी” का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिन्हें माँ काली का हिस्सा माना जाता है। 
  • स्नान यात्रा: ‘स्नान यात्रा’ (स्नान समारोह) के दिन, पुजारी देवी को औपचारिक स्नान देते समय अपनी आँखों को कपड़े की पट्टियों से ढकते हैं।

पिस्टोल झींगा (Pistol Shrimp)

पिस्टोल झींगा (Pistol Shrimp) (अल्फीडे परिवार से संबंधित) समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में सबसे आकर्षक जीवों में से एक है, जो अपने उल्लेखनीय शक्तिशाली स्नैपिंग पंजों के लिए प्रसिद्ध है, जो समुद्र में सबसे तेज आवाजों  में से एक उत्पन्न करते हैं।

पिस्टोल झींगा (Pistol Shrimp) के बारे में अधिक जानकारी

  • पिस्टोल झींगा, जिसे स्नैपिंग झींगा के रूप में भी जाना जाता है, एक छोटा लेकिन शक्तिशाली महासागरीय जीव है, जिसकी लंबाई केवल 3-5 सेमी. होती है।
  • शक्तिशाली पंजा: उनकी विशेषता एक विशेष बड़ा पंजा है, यह बहुत तेज एवं बल के साथ बंद हो सकता है।
    • यह 218 डेसिबल तक की आवाज उत्पन्न करता है, जो बंदूक की गोली से भी अधिक तेज होती है।
    • पिस्टोल झींगा मुख्य रूप से शिकार को पकड़ने के लिए इस शक्तिशाली हथियार का उपयोग करता है।
  • विस्तृत प्रजाति विविधता: विश्व भर में मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय जल में पाए जाने वाले पिस्टोल झींगा की 600 से अधिक प्रजातियाँ हैं।
  • अत्यधिक गर्मी एवं प्रकाश उत्पादन: यह कुछ समय के लिए सूर्य की सतह (लगभग 4,700 डिग्री सेल्सियस) जितना गर्म तापमान भी उत्पन्न करता है एवं सोनोल्यूमिनेसेंस के माध्यम से प्रकाश की एक छोटी-सी चमक उत्पन्न करता है।
  • गोबी मछली के साथ सहजीवी साझेदारी: कई प्रजातियाँ गोबी मछली के साथ सहजीवी संबंध बनाती हैं।

दरिपल्ली रामैया

तेलंगाना के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् दरिपल्ली रामैया का 12 अप्रैल, 2025 को 87 वर्ष की आयु में निधन हो गया। 

दरिपल्ली रामैया के बारे में 

  • वे तेलंगाना के खम्मम जिले के रेड्डीपल्ली गाँव के मूल निवासी थे। 
  • पर्यावरण में योगदान
    • “तेलंगाना के वृक्ष पुरुष” के रूप में जाने जाते थे।  
      • रामैया को ‘चेतला रामैया’ एवं ‘वनजीवी’ (वनवासी) भी कहा जाता था। 
    • समाज को संदेश 
      • वे एक हरे रंग का बोर्ड पहनते थे, जिस पर एक संदेश लिखा होता था: “वृक्षो रक्षति रक्षिता” जिसका अर्थ है “पेड़ को बचाओ, यह तुम्हें बचाएगा।” 
  • पुरस्कार एवं सम्मान 
    • सामाजिक वानिकी एवं पर्यावरण संरक्षण में उनके योगदान के लिए वर्ष 2017 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया। 
    • अन्य पुरस्कारों में शामिल हैं: 
      • वर्ष 1995 में सेवा पुरस्कार। 
      • वर्ष 2005 में वनमित्र पुरस्कार। 
      • वर्ष 2015 में राष्ट्रीय नवाचार एवं उत्कृष्ट पारंपरिक ज्ञान पुरस्कार।

इंडिया इन्फ्लुएंसर गवर्निंग काउंसिल (IIGC)

प्रभावशाली मार्केटिंग उद्योग नेत्रत्त्वकर्त्ताओं ने इस क्षेत्र में संरचना एवं जवाबदेही लाने के लिए इंडिया इन्फ्लुएंसर गवर्निंग काउंसिल (IIGC) का गठन किया है।

इंडिया इन्फ्लुएंसर गवर्निंग काउंसिल (IIGC) क्या है?

  • IIGC एक स्व-नियामक निकाय है, जिसमें निम्नलिखित के प्रतिनिधि शामिल हैं:
    • हिंदुस्तान यूनिलीवर
    • पब्लिसिर्स
    • गूगल
    • मेटा
    • अग्रणी प्रभावशाली व्यक्ति।
  • लक्ष्य: प्रभावशाली लोगों, ब्रांडों, प्लेटफॉर्मों, एजेंसियों एवं उपभोक्ताओं के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
  • मुख्य विशेषताएँ
    • नैतिक सामग्री निर्माण को कवर करने वाले 79 पृष्ठ के मानकों का कोड जारी किया।
    • प्रभावशाली लोगों के प्रदर्शन को ट्रैक करने के लिए एक साप्ताहिक रैंकिंग प्रणाली, इंडिया इन्फ्लुएंसर रेटिंग्स लॉन्च की।
    • AI प्रभावित करने वालों, भुगतान अनुपालन एवं भ्रामक समर्थन जैसी चुनौतियों का समाधान करता है।

पिंक मून 2025

12 अप्रैल को ‘पिंक मून’ ने आकाश में चमक उत्पन्न की, जो अप्रैल के पहले पूर्णिमा और वसंत ऋतु के मौसमी आरंभ का प्रतीक था।

  • अपने नाम के बावजूद, पिंक मून गुलाबी नहीं दिखता, यह एक सफेद या सुनहरे रंग का होता है।

पिंक मून के बारे में

  • पिंक मून अप्रैल की पूर्णिमा का नाम है, यह एक मौसमी नाम है, जो वर्ष में फ्लॉक्स जैसे पिंक वाइल्ड फ्लावर्स के खिलने के समय आता है।
  • घटना: यह प्रत्येक वर्ष अप्रैल में होता है, जो वसंत की पहली पूर्णिमा को चिह्नित करता है, जो एक माइक्रोमून भी है।

माइक्रोमून बनाम सुपरमून

  • माइक्रोमून: एक माइक्रोमून तब होता है, जब पूर्णिमा पृथ्वी से अपने सबसे दूर बिंदु (Apogee) पर होती है, जो थोड़ा छोटा एवं धुँधला दिखाई देता है।
  • उदाहरण के लिए
    • पिंक मून: अप्रैल की पूर्णिमा, जिसका नाम ‘मॉस पिंक’ फूलों के खिलने के कारण रखा गया है।
    • कोल्ड मून: दिसंबर की पूर्णिमा, जो सर्दियों की ठंड का प्रतीक है।
    • फ्लावर मून: मई की पूर्णिमा, जो रंगीन वसंत फूलों से जुड़ी है।
  • सुपरमून: सुपरमून तब होता है, जब चंद्रमा अपने निकटतम बिंदु (Perigee) के पास होती है, जिससे यह अधिक चमकीला एवं बड़ा दिखाई देता है।
    • ब्लड मून: पूर्ण चंद्रग्रहण, जब चंद्रमा लाल रंग का हो जाता है।
    • ब्लू मून: कैलेंडर महीने में दूसरी पूर्णिमा को कहते “नीला” रंग नहीं, बल्कि दुर्लभता को दर्शाता है।

द्वारका में अभियान

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) अवसाद, पुरातात्त्विक एवं समुद्री निक्षेप के वैज्ञानिक विश्लेषण के माध्यम से द्वारका में संचालित अभियानों से प्राप्त वस्तुओं की प्राचीनता निर्धारित करने के लिए एक परियोजना शुरू करने जा रहा है।

परियोजना के बारे में

  • संचालन: अध्ययन ASI के अंडरवाटर आर्कियोलॉजिकल विंग (UAW) की नौ सदस्यीय टीम द्वारा किया जाएगा।
  • अभियान: टीम ने गुजरात में द्वारका एवं बेत द्वारका में तटवर्ती तथा अपतटीय अभियान चलाए हैं एवं ओखामंडल शहर में एक विस्तारित क्षेत्र को कवर किया है।

द्वारका के बारे में

  • अर्थ: द्वारका का शाब्दिक अर्थ संस्कृत में “स्वर्ग का प्रवेश द्वार” है, जो प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर से लिया गया है।
  • अवस्थिति: द्वारका शहर भारतीय राज्य गुजरात में ओखामंडल प्रायद्वीप के पश्चिमी तट पर स्थित है।
  • नदी: यह शहर अरब सागर के सामने कच्छ की खाड़ी के मुहाने पर गोमती नदी के दाहिने किनारे पर स्थित है।
  • प्राचीनता: इस शहर का उल्लेख महाभारत महाकाव्य में मिलता है। 
    • यह भारत के सात सबसे प्राचीन धार्मिक शहरों (सप्त पुरी) में से एक है। 
  • किंवदंती: हिंदू भगवान श्री कृष्ण मथुरा में अपने मामा कंस को हराने एवं मारने के बाद द्वारका में बस गए थे। 
  • तीर्थस्थल: द्वारका हिंदुओं के लिए एक महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थल है, जहाँ द्वारकाधीश मंदिर, रुक्मिणी देवी मंदिर, गोमती घाट एवं बेट द्वारका सहित उल्लेखनीय मंदिर हैं।
  • द्वारकाधीश मंदिर
    • चारधाम: यह आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चारधाम नामक चार पवित्र हिंदू तीर्थ स्थलों में से एक है एवं भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है।
    • द्वारका मठ: जिसे शारदा मठ/पीठ भी कहा जाता है, आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों में से एक है।
  • विरासत पर्यटन
    • कृष्ण तीर्थ सर्किट: द्वारका, वृंदावन, मथुरा, बरसाना, गोकुल, गोवर्धन, कुरुक्षेत्र एवं पुरी जैसे अन्य स्थलों के साथ सर्किट का हिस्सा है।
    • विरासत शहर विकास एवं संवर्द्धन योजना (HRIDAY) योजना: यह नागरिक बुनियादी ढाँचे को विकसित करने के लिए हृदय योजना के तहत चुने गए देश भर के 12 विरासत शहरों में से एक है।

टाइफ्लोपेरिपेटस विलियम्सोनी : वेलवेट वार्म 

अशोका ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकोलॉजी एंड द एनवायरनमेंट (ATREE) के शोधकर्ताओं ने अरुणाचल प्रदेश की सियांग घाटी में 111 वर्ष बाद वेलवेट वार्म की एक लंबे समय से लुप्त प्रजाति टाइफ्लोपेरिपेटस विलियम्सोनी को फिर से खोजा।

  • इस खोज को जर्नल ऑफ नेचुरल हिस्ट्री में प्रकाशित किया गया एवं यह प्रजाति के लिए पहला आणविक डेटा प्रदान करता है।

टाइफ्लोपेरिपेटस विलियम्सोनी (वेलवेट वार्म) के बारे में

  • टी. विलियम्सोनी ओनिकोफोरा संघ से संबंधित है, जो “जीवित जीवाश्मों” का एक समूह है, जो 350 मिलियन वर्ष पूर्व विकसित हुआ था।
  • दुर्लभता: ये कृमि स्वाभाविक रूप से दुर्लभ हैं एवं इनमें विविधता कम है, इनके विश्व भर में केवल दो ज्ञात परिवार हैं।
  • खोज: प्री-मानसून के दौरान पत्थरों के नीचे नमूने पाए गए, जबकि शोधकर्ता चींटियों की खोज कर रहे थे।
    • इस प्रजाति को पहली बार वर्ष 1911 में स्टेनली केम्प द्वारा एबोर अभियान के दौरान प्रलेखित किया गया था, लेकिन वर्ष 2021 एवं वर्ष 2023 के बीच इसकी पुनः खोज होने तक इसे रिकॉर्ड नहीं किया गया।

विकासवादी एवं जैव-भौगोलिक महत्त्व

  • आणविक डेटा से पता चलता है कि दक्षिण एशियाई ओनिकोफोरा लगभग 237 मिलियन वर्ष पूर्व अफ्रीकी एवं नियोट्रॉपिकल जीवों से अलग हो गया था।
  • इस प्रजाति में ऑस्ट्रेलियाई जीवों से संबंध नहीं हैं, जो क्षेत्रीय अकशेरुकी में देखे जाने वाले सामान्य पैटर्न को चुनौती देते हैं।
  • पुनः खोज से लंबे समय से चली आ रही जैव-भौगोलिक पहेलियों को सुलझाने में सहायता मिल सकती है।

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