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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal May 07, 2025 03:47 14 0

पुरातत्त्वविदों ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में प्रागैतिहासिक औजार खोजे

पुरातत्त्वविदों को मंगर बानी में पूर्व पुरापाषाण युग (2,00,000 से 5,00,000 वर्ष पूर्व) के लगभग 200 प्रागैतिहासिक उपकरण एवं कलाकृतियाँ मिली हैं।

संबंधित तथ्य

  • खोज: खोजे गए औजारों में कुल्हाड़ी एवं क्लीवर (विदारिणी) शामिल हैं, जो एच्यूलियन संस्कृति (उन्नत पत्थर के औजार संस्कृति) के विशिष्ट हैं, जो शुरुआती शिकारी-संग्रहकर्ता आबादी की उपस्थिति का संकेत देते हैं।
  • कलाकृतियों की तिथि निर्धारित करने की विधि: थर्मोल्यूमिनेसेंस डेटिंग (Thermoluminescence Dating)।
    • थर्मोल्यूमिनेसेंस डेटिंग, क्रिस्टलीय खनिजों से युक्त सामग्री के गर्म होने या सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आने के बाद बीते समय के संचित विकिरण को मापती है।

मंगर बानी के बारे में

  • स्थान: मंगर बानी दिल्ली-हरियाणा सीमा पर अरावली पर्वतमाला क्षेत्र के अंतर्गत एक पवित्र उपवन पहाड़ी जंगल है।
  • यह NCR में एकमात्र ज्ञात प्राथमिक वन है।
  • भू-वैज्ञानिक महत्त्व: यह प्लीस्टोसीन युग का हिस्सा है।
  • प्लेइस्टोसिन युग को हिमयुग, मेगाफौना एवं प्रारंभिक मनुष्यों के विकास द्वारा चिह्नित किया गया था।
  • भेद्यता: हरियाणा के रिकॉर्ड के तहत इसे आधिकारिक तौर पर वन के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है।
  • वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023 ‘गैर-दस्तावेजित माने गए वनों’ को छूट देता है, जिससे मंगर बानी अचल संपत्ति हितों के लिए असुरक्षित हो जाता है।

मोरन समुदाय

केंद्रीय बंदरगाह, जहाजरानी एवं जलमार्ग मंत्री (MoPSW) ने डूमडूमा में ‘ऑल मोरन स्टूडेंट्स यूनियन’ के 57वें स्थापना दिवस समारोह में मोरन समुदाय के साहस, अनुशासन तथा सांस्कृतिक समृद्धि की प्रशंसा की।

मोरन समुदाय के बारे में

  • मोरन समुदाय असम का एक नृजातीय समूह है।
  • वे तिब्बती-बर्मन समूह से संबंधित हैं एवं कचारी परिवार का हिस्सा हैं।
  • मोरन को हबुंगिया या हासा भी कहा जाता था, जहाँ ‘हा’ का अर्थ मिट्टी एवं ‘सा’ का अर्थ पुत्र होता है, जो उनकी भाषा में ‘मिट्टी का पुत्र’ दर्शाता है।
  • वे मुख्य रूप से असम के तिनसुकिया जिले में रहते हैं।
  • मोरन समुदाय दो प्रमुख पारंपरिक त्योहार मनाता है- गोस टोलोर बिहू (एक पारंपरिक त्योहार, जो प्रकृति एवं सामुदायिक बंधन का जश्न मनाता है) तथा खेरी (मोरन समुदाय के भीतर एकता, परंपरा एवं ताकत का प्रतिनिधित्व करता है)।
  • अरुणाचल प्रदेश के लोहित एवं तिरप जिलों में कम आबादी पाई जाती है।
  • इससे पहले, उनका बेंगमारा में एक स्वतंत्र क्षेत्र था, जिसे अब तिनसुकिया के नाम से जाना जाता है।
  • धार्मिक मान्यताएँ
    • मोरन वैष्णव धर्म, विशेष रूप से मोआमोरिया संप्रदाय का पालन करते हैं।
    • श्री शंकर देव के शिष्य श्री अनिरुद्ध देव (1553-1624 ईसवी) ने उन्हें नव-वैष्णव धर्म से परिचित कराया।

भारतीय रचनात्मक प्रौद्योगिकी संस्थान (IICT)

केंद्र सरकार ने मुंबई में भारतीय रचनात्मक प्रौद्योगिकी संस्थान (Indian Institute of Creative Technology- IICT) की घोषणा की है।

भारतीय रचनात्मक प्रौद्योगिकी संस्थान (IICT) के बारे में

  • यह IIT एवं IIM के समान स्थिति तथा संरचना में होगा।
  • यह संस्थान AVGC-XR क्षेत्र (एनीमेशन, विजुअल इफेक्ट्स, गेमिंग, कॉमिक्स एवं संवर्द्धित वास्तविकता) को समर्पित है।
  • विशेषताएँ: वर्चुअल प्रोडक्शन सेटअप, इमर्सिव स्टूडियो, गेमिंग एवं एनीमेशन लैब, एडिटिंग तथा साउंड सूट एवं स्मार्ट क्लासरूम।
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य रचनात्मक प्रौद्योगिकियों के लिए राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्र बनना है।
  • यह IIT एवं IIM के शैक्षणिक ढाँचे का पालन करेगा।
  • फोकस क्षेत्रों में शामिल होंगे: प्रशिक्षण एवं शिक्षा, उद्यमिता तथा इंक्यूबेसन, नवाचार एवं अनुसंधान, तथा नीति-निर्माण।
  • स्थायी परिसर दादासाहेब फाल्के चित्रनगरी (फिल्म सिटी), गोरेगाँव, मुंबई में दस एकड़ में विकसित किया जाएगा, हालाँकि प्रारंभिक संचालन बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स (BKC) में शुरू होगा।
  • वित्तपोषण एवं संरचना
    • इक्विटी भागीदारी
      • 48% सरकारी इक्विटी: भारत सरकार से 34% एवं महाराष्ट्र सरकार से 14%।
      • 52% उद्योग इक्विटी: फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (FICCI) एवं भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) के पास 26% हिस्सेदारी है।
      • सरकार ने बुनियादी ढाँचे एवं शुरुआती परिचालन के लिए ₹391.15 करोड़ का एकमुश्त बजट अनुदान आवंटित किया है।

वैश्विक प्रौद्योगिकी कंपनियों के साथ साझेदारी

  • NVIDIA, गूगल, एप्पल, माइक्रोसॉफ्ट, स्टार इंडिया, मेटा एवं एडोब (Adobe), IICT के साथ सहयोग करेंगे।

नागरिक सुरक्षा अभ्यास

हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) ने पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तान के साथ बढ़ते तनाव के मद्देनजर सभी राज्यों के 244 जिलों में मॉक ड्रिल करने का निर्देश दिया है।

मॉक ड्रिल क्या है?

  • यह आग, भूकंप, चिकित्सा आपात स्थिति आदि जैसी आपातकालीन स्थितियों की तैयारी के लिए एक सामान्य अभ्यास है।
  • इसका उपयोग संगठनों द्वारा आपातकालीन योजनाओं की प्रभावशीलता की जाँच करने एवं आपातकालीन स्थितियों में कमजोर क्षेत्रों का पता लगाने के लिए किया जाता है।

नागरिक सुरक्षा तैयारियों के मुख्य बिंदु: मॉक ड्रिल

  • निर्णय पश्चिमी सीमा पर स्थित राज्य भी भाग लेंगे।
  • मॉक ड्रिल में मुख्य गतिविधियाँ
    • एयर-रेड चेतावनी प्रणाली का परीक्षण किया जाएगा।
    • क्रैश ब्लैकआउट (महत्त्वपूर्ण स्थानों पर पूर्ण विद्युत अवरोध) किया जाएगा।
    • महत्त्वपूर्ण प्रतिष्ठानों के पास की लाइटें बंद करके उन्हें छिपाया जाएगा।
    • भारतीय वायु सेना के साथ निकासी योजनाएँ एवं हॉटलाइन सक्रिय की जाएँगी।
    • बंकरों एवं खाइयों की सफाई, विशेष रूप से जम्मू तथा कश्मीर जैसे सीमावर्ती क्षेत्रों में।
    • नियंत्रण कक्ष, अग्निशमन इकाइयों एवं वार्डन सेवाओं को सक्रिय करना।
    • नागरिक सुरक्षा प्रतिक्रियाओं पर नागरिकों का प्रशिक्षण।

नागरिक सुरक्षा मॉक ड्रिल का महत्त्व 

  • भारत की निष्क्रिय रक्षा को बढ़ावा देता है: भारत की निष्क्रिय रक्षा प्रणाली को मजबूत करने में मदद करता है, जिसे पहली बार चीन के साथ वर्ष 1962 के युद्ध के दौरान प्रस्तुत किया गया था।
  • आपात स्थितियों के लिए नागरिकों को तैयार करता है: लोगों के बीच जागरूकता प्रसारित करता है एवं उन्हें सिखाता है कि राष्ट्रीय आपात स्थितियों या विदेशी हमले के मामले में कैसे सुरक्षित रहें।
  • स्थानीय स्तर की तत्परता में सुधार करता है: यह सुनिश्चित करता है कि गाँव एवं दूरदराज के इलाके भी तैयार हैं तथा सीमा पार तनाव की मौजूदा स्थिति में तुरंत प्रतिक्रिया दे सकते हैं।

स्ट्रेटोस्फेरिक एयरशिप प्लेटफॉर्म

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने मध्य प्रदेश के श्योपुर परीक्षण स्थल से ‘स्ट्रेटोस्फेरिक एयरशिप प्लेटफॉर्म ’ का पहला उड़ान परीक्षण सफलतापूर्वक किया। 

‘स्ट्रेटोस्फेरिक एयरशिप प्लेटफॉर्म’ के बारे में

  • स्ट्रेटोस्फेरिक एयरशिप प्लेटफार्म एक उच्च ऊँचाई वाली, हवा से हल्की मानवरहित हवाई प्रणाली है।
  • विकसित: रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) द्वारा अपने एरियल डिलीवरी रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट (ADRDE), आगरा के माध्यम से विकसित किया गया है। 
  • स्ट्रेटोस्फेरिक ऑपरेशन: 17 किमी. की ऊँचाई (वाणिज्यिक हवाई यातायात से ऊपर) तक पहुँचने में सक्षम है। 
  • अनुप्रयोग 
    • खुफिया, निगरानी एवं टोही (ISR)। 
    • पृथ्वी एवं वायुमंडलीय अवलोकन। 
    • आपदा प्रबंधन एवं निगरानी। 
  • ऑनबोर्ड पेलोड: डेटा संग्रह एवं अवलोकन के लिए सेंसर तथा उपकरणों से लैस है। 
  • उन्नत सिस्टम: इसमें उड़ान के दौरान परीक्षण किए गए ‘इनवेलप प्रेशर कंट्रोल’ और आपातकालीन अपस्फीति प्रणालियाँ शामिल हैं।
  • यह एक हाई-एल्टीट्यूड स्यूडो-सैटलाइट (High-Altitude Pseudo-Satellite- HAPS) के रूप में कार्य करता है, जो लंबे समय तक हवा में रह सकता है।
  • यह रात के समय संचालन के लिए ऑनबोर्ड बैटरी के साथ सौर ऊर्जा द्वारा संचालित होता है।

हॉकआई 360 तकनीक

संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारत को हॉकआई 360 तकनीक बेचने के लिए 131 मिलियन डॉलर के समझौते को मंजूरी दे दी है, जिससे भारत की समुद्री निगरानी एवं इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सुरक्षा क्षमताओं को अत्यधिक मजबूती मिलेगी।

हॉकआई 360 तकनीक के बारे में

  • हॉकआई 360 एक अमेरिकी-विकसित अंतरिक्ष-आधारित निगरानी प्रणाली है, जो रेडियो फ्रीक्वेंसी (RF) उत्सर्जन का पता लगाने एवं उसका विश्लेषण करने के लिए डिजाइन किए गए लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) उपग्रहों के एक समूह के माध्यम से संचालित होती है।
  • प्रमुख घटक
    • इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल (EO) सेंसर: दिन के उजाले के दौरान उच्च-रिजॉल्यूशन इमेजिंग प्रदान करते हैं।
    • इन्फ्रारेड (IR) सेंसर: रात में चौबीसों घंटे निगरानी के लिए थर्मल सिग्नेचर का पता लगाते हैं।
    • सिंथेटिक एपर्चर रडार (SAR): मौसम या प्रकाश की स्थिति की परवाह किए बिना विस्तृत चित्र कैप्चर करता है।
    • सिग्नल कोरिलेशन टूल्स: अज्ञात RF संकेतों का मिलान उन जहाजों से करना जिन्होंने पता लगाने से बचने के लिए अपने AIS (स्वचालित पहचान प्रणाली) को निष्क्रिय कर दिया है।
  • अनुप्रयोग
    • यह प्रणाली RF गतिविधि की निगरानी करके जहाजों, विमानों एवं वाहनों को ट्रैक करती है।
      • यह अवैध मत्स्याखेट तस्करी एवं समुद्री डकैती जैसी गतिविधियों में शामिल ‘डार्क सिप्स’ की पहचान करता है।
    • यह भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) पर निगरानी रखने एवं समुद्री व्यापार मार्गों को सुरक्षित करने में भी सहायता करता है।

भारत के लिए रणनीतिक महत्त्व 

  • समुद्री डोमेन जागरूकता (MDA) में वृद्धि: यह प्रणाली भारत को हिंद महासागर क्षेत्र में नौसेना की गतिविधियों एवं अवैध गतिविधियों पर बारीकी से नजर रखने की अनुमति देती है, जिससे समुद्री सुरक्षा में सुधार होता है।
  • नौसेना एवं निगरानी संचालन को सहायता: यह भारत की मौजूदा समुद्री परिसंपत्तियों जैसे P-8I  गश्ती विमान एवं सी गार्जियन ड्रोन का पूरक है, जो समुद्री निगरानी के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण प्रदान करता है।
  • रणनीतिक स्थिति को बढ़ावा: सूचना संलयन केंद्र-हिंद महासागर क्षेत्र (IFC-IOR) को मजबूत करके, यह क्षेत्रीय खतरों का प्रभावी ढंग से पता लगाने, उनका विश्लेषण करने एवं जवाब देने की भारत की क्षमता में सुधार करता है।

बायो-AI  हब

बायोटेक्नोलॉजी विभाग (DBT) एवं BIRAC ने BioE3 नीति के तहत बायो-AI (मूलांकुर) हब स्थापित करने के लिए संयुक्त प्रस्ताव जारी किए हैं।

बायो-AI हब के बारे में

  • बायो-AI हब विशेष शोध एवं नवाचार केंद्र हैं, जिन्हें भारत की BioE3 नीति के तहत जीव विज्ञान में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की क्षमता का दोहन करने के लिए स्थापित किया जा रहा है।
  • उद्देश्य: स्वास्थ्य, कृषि एवं पर्यावरण में जटिल समस्याओं को हल करने के लिए AI/ML को जैविक विज्ञान के साथ एकीकृत करना।
    • डेटा-संचालित नवाचार के माध्यम से उच्च-प्रदर्शन जैव विनिर्माण को बढ़ावा देना।
  • रणनीतिक महत्त्व: जीव विज्ञान, AI/ML, सिंथेटिक जीव विज्ञान एवं कम्प्यूटेशनल विज्ञान को मिलाकर अंतःविषय अनुसंधान प्लेटफॉर्म के रूप में कार्य करना।
  • मुख्य शोध क्षेत्र
    • बायोमॉलिक्यूलर डिजाइन।
    • सिंथेटिक बायोलॉजी।
    • सतत कृषि।
    • जीनोम डायग्नोस्टिक्स।
    • आयुर्वेद-आधारित नवाचार।
  • सहयोग मॉडल: अनुवाद संबंधी शोध को आगे बढ़ाने के लिए शिक्षा-उद्योग साझेदारी को शामिल करना।
    • प्रॉब्लम स्टेटमेंट एवं शोध समाधानों का प्रस्ताव करने के लिए बहु-विषयक टीमों को प्रोत्साहित करना।
  • समर्थन एवं कार्यान्वयन: जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) तथा BIRAC द्वारा शुरू किया गया।
    • बड़ी बायो-राइड योजना का हिस्सा एवं राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी लक्ष्यों के साथ संरेखित है।

BioE3 नीति

  • BioE3 नीति (अर्थव्यवस्था, पर्यावरण एवं रोजगार के लिए जैव प्रौद्योगिकी) को अगस्त 2024 में मंजूरी दी गई थी।
  • यह पूरे भारत में उच्च प्रदर्शन वाले बायोमैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देती है।
  • संयुग्मित योजनाएँ: DBT की दो प्रमुख योजनाओं को मिलाकर एक योजना बना दी गई है, जिसका नाम बायो-राइड (Bio-RIDE) (Biotechnology Research Innovation and Entrepreneurship Development) है, जिसमें बायोमैन्युफैक्चरिंग और बायोफाउंड्री को एक नया घटक शामिल किया गया है।

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