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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal May 30, 2025 03:31 34 0

भारत में पहली बार पोटाश खनन

भारत ने ट्रांच V में 15 महत्त्वपूर्ण खनिज ब्लॉकों में से 10 की सफलतापूर्वक नीलामी की, जिसमें ग्रेफाइट, फॉस्फोराइट, रेयर अर्थ एलिमेंट्स (REE), वैनेडियम एवं पोटाश तथा हैलाइट शामिल हैं। 

  • राजस्थान में झंडावली-सतीपुरा एवं जोर्कियन-सतीपुरा-खुंजा मिश्रित पोटाश तथा हैलाइट ब्लॉक में उचित प्रक्रिया के बाद खनन शुरू होगा। 

पोटाश के बारे में 

  • पोटाश विभिन्न खनन एवं निर्मित लवणों को संदर्भित करता है, जिसमें जल में घुलनशील रूप में पोटेशियम होता है, मुख्य रूप से पोटेशियम क्लोराइड (KCl)।
    • पोटाश पोटेशियम (K) का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है, जो पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक है।
  • पोटाश के अयस्क: मुख्य अयस्क सिल्विनाइट है। 
  • उपयोग
    • कृषि: इसका उपयोग फसल की पैदावार में सुधार, सूखा प्रतिरोध को बढ़ाने एवं पौधों की वृद्धि को मजबूत करने के लिए उर्वरक के रूप में किया जाता है। 
    • औद्योगिक: काँच, साबुन एवं रसायनों के निर्माण में उपयोग किया जाता है। 
  • उपयोग का स्वरूप: सीधे म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP) के रूप में किया जा सकता है।
    • NPK उर्वरकों में नाइट्रोजन (N) एवं फॉस्फोरस (P) के साथ संयोजन में किया जाता है।
      • पौधों की इष्टतम वृद्धि के लिए आदर्श पोषक तत्त्व अनुपात 4:2:1 (N:P: K) है।
  • भारत में पोटाश भंडार: राजस्थान (कुल संसाधनों में 89% योगदान देता है), पंजाब मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश।
  • विश्व में पोटाश भंडार: कनाडा, बेलारूस, रूस, चीन, अमेरिका, जर्मनी एवं चिली।
  • आयात निर्भरता: भारत अपनी पोटाश की 100% जरूरतों को आयात करता है, जो सालाना लगभग 40 लाख मीट्रिक टन (LMT) म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP) है।
  • अन्य सरकारी पहल: उर्वरक विभाग ने पोटाश के स्वदेशी स्रोतों का समर्थन करने के लिए पोषक तत्त्व आधारित सब्सिडी योजना (NBS) में शीरे से प्राप्त पोटाश (Potash derived from Molasses-PDM) को शामिल किया है।

हैलाइट के बारे में

  • हैलाइट सोडियम क्लोराइड (NaCl) का प्राकृतिक रूप है, जिसे आमतौर पर रॉक साल्ट के नाम से जाना जाता है।
  • उपयोग: टेबल सॉल्ट उत्पादन, जल मृदुकरण (Water Softening), डी-आइसिंग (De-icing) एवं रासायनिक निर्माण, मांस एवं खाद्य संरक्षण आदि।

औद्योगिक विकास दर 8 महीने के निचले स्तर पर पहुँची

केंद्रीय सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा जारी अप्रैल 2025 के लिए औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (Index of Industrial Production- IIP) के अनुसार, अप्रैल 2025 में औद्योगिक गतिविधियों में वृद्धि आठ महीने के निचले स्तर 2.7% पर आ गई। 

मुख्य बिंदु 

  • कारण: खनन एवं उत्खनन, विद्युत, प्राथमिक सामान, बुनियादी ढाँचे तथा निर्माण एवं उपभोक्ता वस्तुओं में कमजोर प्रदर्शन के कारण मंदी आई। 
  • वे क्षेत्र जिनमें वृद्धि देखी गई है: विनिर्माण क्षेत्र, उपभोक्ता टिकाऊ सामान एवं पूँजीगत वस्तु क्षेत्र में वृद्धि हुई है। 

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) के बारे में 

  • औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में उत्पादन की मात्रा को मापता है। 
  • वर्तमान आधार वर्ष: 2011-12
  • विभिन्न क्षेत्रों का भारांक
    • विनिर्माण (809 वस्तुएँ): 77.63% भारांक
    • खनन (29 वस्तुएँ): 14.37% भारांक
    • विद्युत (1 वस्तु): 7.99% भारांक

आठ मुख्य क्षेत्रों के बारे में

  • आठ मुख्य क्षेत्र के उद्योग अपने भार के घटते क्रम में: रिफाइनरी उत्पाद > विद्युत > इस्पात > कोयला > कच्चा तेल > प्राकृतिक गैस > सीमेंट > उर्वरक।

IIP का महत्त्व

  • आर्थिक बैरोमीटर: औद्योगिक गतिविधियों एवं समग्र आर्थिक स्थिति में अल्पकालिक परिवर्तनों को दर्शाता है।
  • नीतिगत उपकरण: राजकोषीय एवं मौद्रिक नीतियों को तैयार करने में सरकार तथा भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की सहायता करता है।
  • क्षेत्रीय प्रदर्शन: उद्योग क्षेत्रों में विकास पैटर्न पर प्रकाश डालता है।

नर्डल्स (Nurdles)

कंटेनर पोत MSC ELSA3 के डूबने के बाद केरल के तिरुवनंतपुरम् में समुद्र तटों पर नर्डल्स (छोटे प्लास्टिक के छर्रे) पाए गए।

नर्डल्स (Nurdles) के बारे में 

  • नर्डल्स प्लास्टिक के छोटे छर्रे (1-5 मिमी.) होते हैं, जिनका उपयोग प्लास्टिक उत्पाद बनाने के लिए कच्चे माल के रूप में किया जाता है। ये प्राथमिक माइक्रोप्लास्टिक होते हैं, जो आमतौर पर आकार में गोल या अंडाकार होते हैं। 
  • संरचना: ‘लो-डेंसिटी पॉलीएथीलीन’ (Low-Density Polyethylene- LDPE), ‘हाई-डेंसिटी पॉलीएथीलीन’ (High-Density Polyethylene- HDPE), पॉलीप्रोपाइलीन (Polypropylene- PP), एवं पॉलीस्टाइनिन (Polystyrene- PS) जैसे प्लास्टिक से बने होते हैं। 
  • औद्योगिक उपयोग: प्लास्टिक बैग, फिल्म, कंटेनर, पाइप, घरेलू सामान, ऑटोमोटिव पार्ट्स, इलेक्ट्रॉनिक्स, चिकित्सा उपकरण आदि बनाने में उपयोग किया जाता है। 
  • परिवहन जोखिम: थोक में वैश्विक स्तर पर परिवहित किया जाता है। 
  • पर्यावरणीय खतरे: बायोडिग्रेडेबल नहीं होते हैं, माइक्रो/नैनोप्लास्टिक में टूट जाते हैं, समुद्री जीव इसे भोजन समझ लेते हैं, विषाक्त पदार्थों को अवशोषित करते हैं, खाद्य शृंखला में प्रवेश करते हैं, समुद्र तटों एवं समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को प्रदूषित करते हैं। 
  • स्वच्छता संबंधी चुनौतियाँ: तटीय किनारे पर प्रवाहित होने के बाद इसे पृथक करना मुश्किल होता है, इसके लिए मैनुअल संग्रह, जाल, बूम एवं फिल्टर करने के उपकरण की आवश्यकता होती है। 
    • मौजूदा कानूनों के तहत अक्सर इसे खतरनाक के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जाता है।

संप्रतीक और नाम (अनुचित प्रयोग निवारण) अधिनियम, 1950

संप्रतीक और नाम (अनुचित प्रयोग निवारण) अधिनियम, 1950 के तहत विचारक वी.डी. सावरकर के नाम के पंजीकरण के लिए एक याचिका दायर की गई थी।

  • याचिका का उद्देश्य सावरकर की विरासत के बारे में गलतफहमियों को रोकना था। 

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय 

  • बेंच ने याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें कहा गया कि हस्तक्षेप करने के लिए कोई कानूनी आधार नहीं मिला। 

संप्रतीक और नाम (अनुचित प्रयोग निवारण) अधिनियम, 1950 क्या है? 

  • यह भारत की संसद द्वारा अधिनियमित एक कानून है। 
  • उद्देश्य: वाणिज्यिक एवं व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए कुछ प्रतीकों तथा नामों के दुरुपयोग को रोकना। 
  • यह भारत के बाहर रहने वाले भारतीय नागरिकों पर लागू होता है। 
  • प्रतिबंधित प्रतीक: भारत का राष्ट्रीय ध्वज, सरकारी मुहरें, राष्ट्रपति भवन जैसी इमारतें, महात्मा गांधी जैसे राष्ट्रीय हस्तियों के नाम, अंतरराष्ट्रीय संगठन जैसे:- संयुक्त राष्ट्र (UN) एवं विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)। 
  • दुरुपयोग के लिए जुर्माना: यदि कोई व्यक्ति किसी संरक्षित प्रतीक या नाम का दुरुपयोग करता है, तो उस पर ₹500 तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
  • सरकार की भूमिका
    • केंद्र सरकार के पास संरक्षित सूची में नाम/प्रतीक जोड़ने या हटाने का अधिकार है।
    • आधिकारिक अधिसूचना: अधिनियम के तहत कोई भी परिवर्तन या नियम आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित किए जाते हैं।
      • सभी व्यक्तियों एवं व्यवसायों को इन नियमों का पालन करना चाहिए।
    • इस अधिनियम के तहत दंडनीय किसी भी अपराध के लिए कोई भी कानूनी कार्रवाई केंद्र सरकार या सामान्य या विशिष्ट आदेश के माध्यम से केंद्र सरकार द्वारा नामित किसी अधिकृत अधिकारी की पूर्व स्वीकृति के बिना शुरू नहीं की जा सकती है।

जांगेजुर कॉरिडोर

आर्मेनिया एवं अजरबैजान वर्तमान में एक शांति संधि पर बातचीत कर रहे हैं, जिसमें दोनों पड़ोसियों के बीच जांगेजुर कॉरिडोर की स्थापना भी शामिल है।

जांगेजुर कॉरिडोर के बारे में

  • जांगेजुर कॉरिडोर एक प्रस्तावित परिवहन मार्ग को संदर्भित करता है, जो अजरबैजान को दक्षिणी आर्मेनिया के माध्यम से उसके बाह्य क्षेत्र ‘नखचिवन’ से जोड़ेगा।
  • यह आर्मेनिया के जांगेजुर क्षेत्र में स्थित है, जो दक्षिण में ईरान एवं पूर्व में अजरबैजान की सीमा पर है।
  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: वर्ष 2020 के नागोर्नो-काराबाख युद्ध के बाद कॉरिडोर के विचार ने गति पकड़ी एवं त्रिपक्षीय युद्धविराम समझौते (आर्मेनिया, अजरबैजान, रूस) में इसका उल्लेख किया गया।
  • रणनीतिक महत्त्व: कॉरिडोर ईरान से गुजरे बिना अजरबैजान से नखचिवन तक सीधे स्थल क्षेत्र तक पहुँच की अनुमति देगा।
    • गलियारा दक्षिण काकेशस में तुर्किए एवं अजरबैजान के प्रभाव को बढ़ा सकता है।
  • भारत की चिंताएँ: जांगेजुर कॉरिडोर आर्मेनिया की संप्रभुता को कमजोर कर सकता है, जो भारत के लिए एक महत्त्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार है।
    • भारत इस गलियारे को उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) के लिए भी खतरा मानता है, जिसमें भारत, ईरान, रूस एवं आर्मेनिया शामिल हैं। 
  • ईरान का रुख: ईरान इस गलियारे का विरोध करता है क्योंकि इससे आर्मेनिया के साथ उसकी सीमा कट जाएगी, जिससे काकेशस एवं यूरोप में उसका प्रभाव तथा व्यापार मार्ग कमजोर हो जाएगा।

धनुष प्रतिध्वनि

हाल ही में दिल्ली में एक शक्तिशाली तूफान आया, जिसने भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के रडार पर एक अर्द्धचंद्राकार या धनुषाकार आकृति दर्शाई।

  • इस आकृति को तकनीकी रूप से ‘धनुष प्रतिध्वनि’ कहा जाता है, जो तीरंदाज के धनुष की तरह दिखती है।

धनुष प्रतिध्वनि क्या है?

  • धनुष प्रतिध्वनि गरज के साथ घटित होने वाली एक मौसमी घटना है, जिसे स्क्वॉल लाइन के रूप में भी जाना जाता है, जो मौसम रडार पर धनुष या मेहराब की तरह दिखती है।
  • यह एक बड़े तूफान प्रणाली का हिस्सा हो सकता है।
  • यह प्रायः तीव्र पवनें उत्पन्न करता है, जिन्हें डेरेचोस के रूप में जाना जाता है।
  • ‘धनुष प्रतिध्वनि’ शब्द की खोज 1970 के दशक में जापानी-अमेरिकी मौसम विज्ञानी टेड फुजिता ने की थी।
    • उन्होंने तूफान की शक्ति को मापने के लिए फुजिता स्केल भी विकसित किया।

विशेषताएँ

  • धनुष प्रतिध्वनि 20 से 100 किमी. लंबी हो सकती है।
  • वे आमतौर पर 3 से 6 घंटे तक चलती हैं।
  • तीव्र संवहनीय गतिविधि द्वारा चिह्नित।
  • धनुष प्रतिध्वनि से जुड़ी पवनें 100 किमी. प्रति घंटे या उससे अधिक की गति तक प्रवाहित हो सकती हैं, जो संरचनाओं एवं पेड़ों को नुकसान पहुँचा सकती हैं।

धनुष प्रतिध्वनि कैसे बनती है?

  • वर्षा से ठंडी वायु भूमि आरोहित होती है एवं प्रसारित होती है।
  • इससे एक वायु राशि का निर्माण होता है, जो ठंडी वायु को गर्म-आर्द्र वायु से अलग करती है।
  • गर्म-आर्द्र वायु का आरोहण होता है, जिससे नए तूफान आते हैं।
    • ये तूफान वर्षा का कारण बनते हैं।
  • जैसे-जैसे यह प्रक्रिया दोहराई जाती है, तूफानी पवनें इसे धनुष के आकार में मोड़ देती हैं।

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