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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal June 06, 2025 05:55 105 0

कुलसी नदी

असम एवं मेघालय सरकारों ने गंगा नदी डॉल्फिन के प्रमुख आवास स्थल ‘कुलसी नदी’ पर संयुक्त रूप से एक जल विद्युत परियोजना स्थापित करने का निर्णय लिया है। 

कुलसी नदी के बारे में 

  • कुलसी नदी ब्रह्मपुत्र नदी की एक छोटी लेकिन महत्त्वपूर्ण दक्षिणी तट सहायक नदी है। 
  • यह तीन नदियों, अर्थात् ख्री, कृष्णिया एवं उमसिरी से मिलकर बनी है। 
  • उद्गम एवं मार्ग: तीनों नदियाँ, ख्री, कृष्णिया एवं उमसिरी मेघालय पठार में पश्चिम खासी हिल्स जिले से असम के कामरूप जिले तक प्रवाहित होती हैं।
    • कुलसी नदी ब्रह्मपुत्र में मिलने से पहले चंदूबी झील एवं कुलसी आरक्षित वन से प्रवाहित होती है। 
  • पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र: इसके किनारों के साथ कुलसी आरक्षित वन विविध वनस्पतियों एवं जीवों का आवास है, जिसमें दुर्लभ ऑर्किड तथा पक्षी शामिल हैं। 
  • जैव विविधता हॉटस्पॉट: नदी अपनी समृद्ध जलीय जैव विविधता के लिए जानी जाती है, विशेष रूप से गंगा नदी डॉल्फिन के आवास के रूप में। 
  • गंगा नदी की डॉल्फिन जीवित रहने के लिए नदी की गहराई (≥2 मीटर) पर निर्भर करती है, लेकिन अवैध रेत खनन एवं बुनियादी ढाँचे ने कुछ हिस्सों में जल स्तर को 70% तक कम कर दिया है।
  • यह परियोजना बहुउद्देश्यीय लाभ (बिजली, सिंचाई, पर्यटन) प्रदान करने पर केंद्रित है, परंतु पर्यावरणविद् नदी पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ने वाले जोखिम पर बात कर रहे हैं।
  • इस परियोजना के कारण जल प्रवाह में परिवर्तन एवं निर्माण से होने वाले ध्वनि प्रदूषण के कारण डॉल्फिन के आवास नष्ट हो जाएँगे।

कच्छ में हड़प्पा-पूर्व मानव बस्ती

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गांधीनगर के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक नवीन अध्ययन में हड़प्पा से 5,000 वर्ष पूर्व यानी वर्तमान से लगभग 9,000 वर्ष पूर्व कच्छ में शिकारी-संग्रहकर्ता समुदायों के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।

संबंधित तथ्य

  • नए ज्ञात स्थल इस क्षेत्र में परिभाषित सांस्कृतिक एवं कालानुक्रमिक संदर्भ के साथ प्रलेखित किया जाने वाला अपनी तरह का प्रथम स्थल है।
  • यह अध्ययन उस सामान्य धारणा को चुनौती देता है कि कच्छ में शहरीकरण मुख्य रूप से सिंध क्षेत्र के प्रभाव में विकसित हुआ।
  • इस अध्ययन से प्राप्त निष्कर्ष पाकिस्तान एवं ओमान प्रायद्वीप के लास बेला तथा मकरान क्षेत्रों में तटीय पुरातात्त्विक स्थलों के साथ समानताएँ भी प्रदर्शित करते हैं।

कच्छ शिकारी-संग्रहकर्ता अध्ययन में उपयोग की जाने वाली प्रमुख तकनीकें

  • एक्सेलेरेटर मास स्पेक्ट्रोमेट्री (Accelerator Mass Spectrometry- AMS) डेटिंग: प्राचीन नमूनों में कार्बन-14 (C-14) समस्थानिकों के मापन की अति-सटीक विधि है।
  • छोटे नमूनों के साथ भी, उच्च सटीकता के लिए व्यक्तिगत C-14 परमाणुओं की गणना करता है।
  • कार्बन-14 (रेडियोकार्बन) डेटिंग: कार्बनिक अवशेषों में C-14 (अर्द्ध आयु = 5,730 वर्ष) के क्षय को मापता है।
    • यह निर्धारित करता है कि जीवों की मृत्यु कब हुई, जिससे मानव बस्तियों की आयु का पता चलता है।
  • शैल मिडडेन विश्लेषण: प्राचीन मानव उपभोग के प्रमाण के रूप में शैल मिडडेन का अध्ययन किया गया।
    • आहार, पर्यावरण एवं तटीय अनुकूलन रणनीतियों के पुनर्निर्माण में मदद की।
  • पैलियोक्लाइमेट पुनर्निर्माण: कच्छ में पिछली जलवायु स्थितियों का अध्ययन करने के लिए शैल रसायन विज्ञान का उपयोग किया गया।
    • इससे पता चला है कि शिकारी-संग्राहक किस तरह से मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के अनुकूल हो गए।

खोज का महत्त्व

  • कच्छ में मानव बस्ती के सबसे प्राचीन साक्ष्य: खोजों से ज्ञात होता है कि कच्छ में मानव की उपस्थिति हड़प्पा सभ्यता से न्यूनतम 5,000 वर्ष पूर्व की है।
  • कच्छ में पहली बार प्रलेखित शैल-मिडडेन साइटें: इस अध्ययन में पूर्व में हुए ब्रिटिश सर्वेक्षण रिकॉर्ड के विपरीत, स्पष्ट सांस्कृतिक एवं कालानुक्रमिक संदर्भ के साथ शैल मिडडेन की पहचान एवं पुष्टि की गई है।
  • पैलियोक्लाइमेट एवं मानव अनुकूलन में अंतर्दृष्टि: शैल मिडडेन अतीत की जलवायु स्थितियों पुनः विकसित करने में मदद कर सकते हैं, जिससे इस बात का अध्ययन करने में  सहायता मिलती है कि प्रारंभिक मानव ने पर्यावरणीय परिवर्तनों के साथ स्वयं को किस प्रकार अनुकूलन किया।
  • सिंध-केंद्रित शहरीकरण सिद्धांत को चुनौती देता है: यह दर्शाता है कि कच्छ क्षेत्र में हुआ शहरी विकास सिंध क्षेत्र से अचानक बाहरी प्रभाव के बजाय एक क्रमिक, स्वदेशी प्रक्रिया थी।

राजस्थान में दो नए रामसर स्थल

हाल ही में राजस्थान के फलोदी में खीचन एवं उदयपुर में मेनार नामक दो और आर्द्रभूमि को रामसर स्थलों की प्रतिष्ठित सूची में शामिल किया गया है।

रामसर स्थल क्या हैं?

  • रामसर स्थल एक आर्द्रभूमि होती है, जिसे अंतरराष्ट्रीय महत्त्व का माना जाता है, जिसे रामसर कन्वेंशन के तहत मान्यता प्राप्त है, जिसे “आर्द्रभूमि पर कन्वेंशन” भी कहा जाता है।
  • इस संधि पर वर्ष 1971 में ईरान के रामसर में हस्ताक्षर किए गए थे एवं इसे UNESCO द्वारा लॉन्च किया गया था।
  • उद्देश्य: महत्त्वपूर्ण आर्द्रभूमि की पहचान करना एवं उनको संरक्षण प्रदान करना, विशेष रूप से वे जो जलपक्षियों (लगभग 180 प्रजातियाँ) के महत्त्व से संबंधित हैं तथा जैव विविधता के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
  • पश्चिम बंगाल में सुंदरबन भारत का सबसे बड़ा रामसर स्थल है।
  • भारत में पहले रामसर स्थल चिल्का झील (ओडिशा) एवं केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (राजस्थान) थे, जिन्हें वर्ष 1988 में नामित किया गया था।
  • भारत में अब कुल 91 रामसर स्थल हैं।
  • फलोदी में खीचन: फलोदी में खीचन आर्द्रभूमि थार रेगिस्तान में अवस्थित है एवं इसमें रात्रि नदी तथा विजयसागर तालाब शामिल हैं। 
  • उदयपुर में मेनार: यह ब्रह्म तालाब, ढांड तालाब एवं खेरोदा तालाब द्वारा निर्मित एक मीठे जल की आर्द्रभूमि है।
    • पक्षियों की सुरक्षा के लिए इसके मजबूत सामुदायिक प्रयासों के कारण इसे “पक्षी गाँव” के रूप में भी जाना जाता है। 
    • ये आर्द्रभूमि कई प्रजातियों के लिए महत्त्वपूर्ण आवास हैं, जिनमें गंभीर रूप से लुप्तप्राय वाइट रुम्पेड (White-rumped) एवं  लॉन्ग बिलड वल्चर (long-billed vultures) शामिल हैं।

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