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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal June 11, 2025 04:13 28 0

DRUM ऐप

IIT खड़गपुर की एक टीम ने हाल ही में “डायनेमिक रूट प्लानिंग फॉर अर्बन ग्रीन मोबिलिटी (DRUM)” नाम से एक ऐप लॉन्च किया है, जो यात्रियों को वायु गुणवत्ता एवं ऊर्जा दक्षता के आधार पर मार्ग चुनने की अनुमति देता है। 

DRUM ऐप के बारे में

  • DRUM ऐप को Google मैप की तरह नेविगेशन ऐप के रूप में डिजाइन किया गया है, लेकिन इसमें उपयोगकर्ताओं को वायु गुणवत्ता एवं ऊर्जा दक्षता डेटा के आधार पर हरित मार्ग चुनने की अतिरिक्त सुविधा है। 
  • उद्देश्य: उपयोगकर्ताओं को वैकल्पिक मार्गों का विकल्प प्रदान करना जो वायु प्रदूषकों की समग्र खपत को कम कर सकते हैं। 
    • उदाहरण: परिवेशी वायु प्रदूषण प्रत्येक वर्ष प्रमुख भारतीय शहरों में 7.2% मौतों के लिए उत्तरदाई है। 
  • मार्ग विकल्प: DRUM उपयोगकर्ताओं को पाँच मार्ग विकल्प प्रदान करता है, 
    • जैसे कि सबसे छोटा, सबसे तीव्र, वायु प्रदूषण के लिए सबसे कम जोखिम (Least Exposure To Air Pollution), सबसे कम ऊर्जा खपत वाला मार्ग (LECR), एवं सुझाए गए मार्ग नामक सभी चार कारकों का संयोजन। 
  • डेटा संग्रह: CPCB एवं विश्व वायु गुणवत्ता सूचकांक से वास्तविक समय आधारित वायु तथा यातायात डेटा एकत्र किया जाता है। 
    • मैपबॉक्स से वास्तविक समय पर यातायात अपडेट प्राप्त करते हुए, ग्राफहॉपर (जावा-आधारित रूटिंग लाइब्रेरी) का उपयोग करके मार्गों का निर्धारण किया जाता है।

भारत में नई ततैया प्रजाति की खोज

चंडीगढ़ में परजीवी ततैया की एक नई प्रजाति, लॉसग्ना ऑक्सीडेंटलिस की खोज की गई है, जो लगभग छह दशकों के बाद भारत में लॉसग्ना जीनस की पुनः खोज को चिह्नित करती है।

मुख्य बिंदु

  • नई खोजी गई प्रजाति ‘लॉस्ग्ना ऑक्सीडेंटलिस’ वर्ष 2023-24 की सर्दियों में चंडीगढ़ के एक शहरी शुष्क झाड़ीदार वन में पाई गई।
    • यह चंडीगढ़ में पाई गयी औपचारिक रूप से वर्णित पहली कीट प्रजाति है।
    • यह इचनेमोनिडे (परजीवी ततैया) परिवार से संबंधित है, जो जैविक कीट नियंत्रण में अपनी भूमिका के लिए जाना जाता है।
  • भारत में लॉसग्ना जीनस को आखिरी बार वर्ष 1965 में दर्ज किया गया था एवं तब से इसकी कोई प्रलेखित उपस्थिति दर्ज नहीं है।
  • ऑक्सिडेंटलिस जीनस की सबसे पश्चिमी घटना के रूप में अपनी स्थिति को दर्शाता है, जिसे पहले केवल पूर्वी भारत एवं दक्षिण-पूर्व एशिया से ही जाना जाता था।

परजीवी ततैया के बारे में

  • परजीवी ततैया, जिन्हें पैरासिटोइड्स के रूप में भी जाना जाता है, एक अलग समूह है जो आमतौर पर कॉलोनियों में नहीं रहते हैं या मधुमक्खियों की तरह छत्ते नहीं बनाते हैं।
  • वयस्क परजीवी आम तौर पर पराग एवं रस का भोजन करते हैं।
  • परजीवी ततैया अपने मेजबान कीटों पर या उनके अंदर अपने अंडे देते हैं, और लार्वा मेजबान के भीतर विकसित होते हैं तथा इसके ऊतकों के माध्यम से भोजन करते हैं।
  • ततैया के लार्वा अपने अस्तित्व और विकास को सुनिश्चित करने के लिए मेजबान के शरीर विज्ञान और व्यवहार में हस्तक्षेप कर सकते हैं। इसमें पक्षाघात, विकासात्मक रुकावट या प्रतिरक्षा दमन शामिल हो सकता है।
  • परजीवी लार्वा अंततः मेजबान को खाकर नष्ट कर देता है, जिससे उसका विकास पूरा हो जाता है।

भारत में हींग की खेती 

हाल ही में, CSIR-IHBT ने पालमपुर में हींग के पहले सफल फूल उत्पादन की सूचना दी, जिससे यह सिद्ध हुआ कि हींग भारतीय परिस्थितियों में भी उग सकती है एवं फल-फूल सकती है।

हींग के बारे में

  • वैज्ञानिक नाम: फेरूला अस्सा-फोएटिडा।
  • कच्ची हींग फेरूला अस्सा-फोएटिडा की मांसल जड़ों से ‘ओलियो-गम’ राल के रूप में निकाली जाती है।
  • लाभ: पाचन, पेट दर्द से राहत एवं स्वाद को बढ़ाना।
  • प्राकृतिक आवास एवं विकास की स्थितियाँ
    • हींग ठंडी, शुष्क जलवायु में पनपती है, मुख्य रूप से ईरान, अफगानिस्तान एवं मध्य एशिया में।
    • यह कम नमी वाली रेतीली, अच्छी जल निकासी वाली मृदा में उगाई जाती है।
    • आदर्श वर्षा: 200 मिमी या उससे कम 
    • तापमान सीमा: 10-20 डिग्री सेल्सियस, -4 डिग्री सेल्सियस से 40 डिग्री सेल्सियस तक चरम सीमा को सहन कर सकता है।

भारत में हींग

  • हींग भारतीय खाद्यान्नों में व्यापक रूप से प्रयोग किया जाने वाला मसाला है
  • भारत में, फेरूला अस्सा-फोएटिडा नहीं होती है, लेकिन पश्चिमी हिमालय (चंबा, हिमाचल प्रदेश) में फेरूला जैशकेना नामक अन्य प्रजाति पाई जाती है, एवं कश्मीर तथा लद्दाख में फेरूला नार्थेक्स  पाई जाती है।
  • चूँकि, हींग का पौधा अपनी वृद्धि के लिए ठंडी एवं शुष्क परिस्थितियों के अनुकूल है, इसलिए भारतीय हिमालयी क्षेत्र के ठंडे रेगिस्तानी इलाके हींग की कृषि के लिए उपयुक्त हैं।
  • भारत में हींग का उत्पादन करने वाला हिमाचल प्रदेश पहला राज्य है।
  • आयात आँकड़े: भारत अफगानिस्तान, ईरान एवं उज्बेकिस्तान से प्रतिवर्ष लगभग 1200 टन कच्ची हींग आयात करता है तथा प्रति वर्ष लगभग 100 मिलियन अमरीकी डॉलर खर्च करता है।
  • हाथरस हींग को वर्ष 2023 में GI टैग मिला था।

विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) नियमों में सुधार

केंद्रीय वाणिज्य विभाग ने सेमीकंडक्टर एवं इलेक्ट्रॉनिक्स घटक विनिर्माण क्षेत्रों की विशेष आवश्यकताओं को संबोधित करने के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) नियमों में सुधारों को अधिसूचित किया है। 

संशोधित नियमों के बारे में

  • SEZ नियम, 2006 का नियम 5: इस क्षेत्र के लिए विशेष रूप से स्थापित SEZ के लिए न्यूनतम 10 हेक्टेयर भूमि क्षेत्र की आवश्यकता होगी, जिसे 50 हेक्टेयर से घटा दिया गया है। 
  • SEZ नियम, 2006 का नियम 7: SEZ के लिए अनुमोदन बोर्ड को SEZ भूमि को केंद्र या राज्य सरकार या उनकी अधिकृत एजेंसियों को गिरवी या पट्टे पर दिए जाने के मामलों में भार-मुक्त होने की शर्त में ढील देने की अनुमति है। 
  • नियम 53: यह नि:शुल्क आधार पर प्राप्त एवं आपूर्ति की गई वस्तुओं के मूल्य को नेट फोरेन एक्सचेंज (NFE) गणना में शामिल करने तथा लागू सीमा शुल्क मूल्यांकन नियमों का उपयोग करके मूल्यांकन करने की अनुमति देगा। 
  • SEZ नियमों का नियम 18: यह दोनों क्षेत्रों में SEZ इकाइयों को लागू शुल्कों के भुगतान के बाद घरेलू टैरिफ क्षेत्र में भी घरेलू आपूर्ति करने की अनुमति देता है।

संशोधनों का महत्त्व 

  • इससे देश में उच्च तकनीक विनिर्माण को बढ़ावा मिलेगा एवं सेमीकंडक्टर विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र के विकास को बढ़ावा मिलेगा।
  • संशोधन के परिणामस्वरूप देश में उच्च कौशलयुक्त नौकरियों का सृजन भी होगा।

विशेष आर्थिक क्षेत्रों के बारे में

  • SEZ देश के भीतर निर्दिष्ट क्षेत्र हैं, जिनके देश के बाकी हिस्सों की तुलना में अलग-अलग व्यवसाय एवं व्यापार नियम हैं।
  • अधिनियम: वर्ष 2005 का विशेष आर्थिक क्षेत्र अधिनियम, 2006 के SEZ नियमों द्वारा समर्थित, 2006 में लागू हुआ, जिसमें सिंगल विंडो क्लीयरेंस एवं सरलीकृत प्रक्रियाएँ प्रदान की गईं।
  • उद्देश्य: SEZ का उद्देश्य आर्थिक विकास को बढ़ावा देना, निर्यात बढ़ाना, विदेशी निवेश आकर्षित करना एवं रोजगार के अवसर उत्पन्न करना है।
  • परिचालन SEZ: भारत में वर्तमान में 276 परिचालित SEZs हैं, जिनमें 6275 इकाइयाँ संचालित हैं, जो लगभग 3.19 मिलियन लोगों को रोजगार देती हैं।

इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान

हाल ही में, सुरक्षा बलों ने छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में संचालित नक्सल विरोधी अभियान के दौरान पाँच और माओवादी कैडरों के शव बरामद किए हैं।

इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान के बारे में

  • स्थान: छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में स्थित, वर्ष 1981 में एक राष्ट्रीय उद्यान एवं वर्ष 1983 में प्रोजेक्ट टाइगर पहल के तहत एक बाघ अभयारण्य के रूप में नामित किया गया।
    • इसका नाम इंद्रावती नदी के नाम पर रखा गया है, जो इसकी उत्तरी सीमा के साथ बहती है एवं इसे महाराष्ट्र से अलग करती है।
  • स्थलाकृति: पहाड़ी क्षेत्र, जिसकी ऊँचाई समुद्र तल से 177 से 599 मीटर तक है।
  • यह एक महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक गलियारे के रूप में कार्य करता है, जो इसे कवाल (तेलंगाना), ताडोबा (महाराष्ट्र) एवं कान्हा (मध्य प्रदेश) जैसे अन्य बाघ अभयारण्यों से जोड़ता है।
  • वनस्पति: मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय नम एवं शुष्क पर्णपाती प्रकार की।
  • वनस्पति: आम पौधों की प्रजातियों में सागौन, अचार, कर्रा, कुल्लू, शीशम, सेमल, हल्दू, अर्जुन, बेल एवं जामुन शामिल हैं। 
  • जीव: यह रिजर्व दुर्लभ जंगली भैंसों का आवास है। 
    • अन्य वन्यजीवों में बाघ, तेंदुए, गौर, सांभर हिरण, चीतल, भालू, नीलगाय एवं काले हिरण शामिल हैं।

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