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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal July 03, 2025 06:18 79 0

दलाई लामा

14वें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो के 6 जुलाई, 2025 को 90 वर्ष की आयु के समीप पहुँचने के साथ ही, दलाई लामा संस्था का भविष्य विचार और दिशा निर्धारण के एक महत्वपूर्ण संक्रमणकाल में प्रवेश कर चुका है।

14वें दलाई लामा के बारे में

  •  तेनजिन ग्यात्सो को वर्ष 1939 में 13वें दलाई लामा के पुनर्जन्म के रूप में पहचाना गया; वे वर्ष 1940 में दलाई लामा के रूप में स्थापित हुए।
  • तिब्बती विद्रोह के चीन द्वारा दमन के बाद वर्ष 1959 में वे तिब्बत से पलायन कर गए; और भारत के धर्मशाला में बस गए।
  • वर्ष 2011 में औपचारिक रूप से राजनीतिक सत्ता त्याग दी गई तथा निर्वासित तिब्बती नेतृत्व को सत्ता हस्तांतरित कर दी गई।

दलाई लामा संस्था के बारे में

  • दलाई लामा संस्था तिब्बती बौद्ध धर्म में तुल्कु अवधारणा (Tulku Concept) का हिस्सा है, जिसमें आध्यात्मिक गुरुओं की मृत्यु के बाद उनका पुनर्जन्म होता है, ताकि उनकी शिक्षाओं को संरक्षित किया जा सके और आगे बढ़ाया जा सके।
  • दलाई लामा को करुणा के बोधिसत्व अवलोकितेश्वर (चेनरेजिग) का अवतार माना जाता है।
  • महायान बौद्ध धर्म में, बोधिसत्व प्रबुद्ध प्राणी हैं, जो सभी संवेदनशील प्राणियों की सहायता के लिए निर्वाण को स्थगित कर देते हैं।
  • “दलाई लामा” (दलाई = महासागर) की उपाधि सबसे पहले वर्ष 1578 में मंगोलिया के अल्तान खान द्वारा सोनम ग्यात्सो (तीसरे दलाई लामा) को दी गई थी।
    • पहले दो पूर्ववर्तियों को बाद में मरणोपरांत यह उपाधि दी गई थी।
    • पहले दलाई लामा, गेदुन द्रुपा का जन्म वर्ष 1391 में हुआ था।
  • दलाई लामा तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग शाखा से संबंधित हैं, जो 1640 ईसवी से अग्रणी परंपरा है।
  • पाँचवें दलाई लामा के पद ने तिब्बत के धर्मनिरपेक्ष शासन के साथ धार्मिक अधिकार को जोड़ दिया।
  • नेतृत्व की निरंतरता बनाए रखने के लिए 5वें दलाई लामा द्वारा पुनर्जन्म को संस्थागत बनाया गया था।
  • 14वें दलाई लामा, तेनजिन ग्यात्सो को 2 वर्ष की आयु में मान्यता दी गई थी एवं वे वर्ष 1959 में भारत आ गए तथा धर्मशाला में निर्वासन में रहे।

दलाई लामा एवं चीन

  • चीन 14वें दलाई लामा को ‘विभाजनकारी’ एवं ‘देशद्रोही’ के रूप में घोषित करता है, तिब्बती लोगों का प्रतिनिधित्व करने के उनके अधिकार को नकारता है तथा अपनी सीमाओं के भीतर उनके लिए समर्थन के सार्वजनिक प्रदर्शन को प्रतिबंधित करता है।
  • वर्ष 2011 में, दलाई लामा ने कहा कि उनके पुनर्जन्म की पहचान एक स्वतंत्र देश में की जानी चाहिए, न कि चीनी नियंत्रण में।
  • चीन ने अपनी स्वयं की चयन प्रक्रिया को संस्थागत बना दिया है।
    • वर्ष 2007 में, इसने एक आदेश जारी किया था, जिसके तहत तिब्बती लामाओं के पुनर्जन्म की पहचान के लिए राज्य की स्वीकृति की आवश्यकता थी।

INS तमाल

हाल ही में भारतीय नौसेना का अंतिम विदेशी निर्मित युद्धपोत INS तमाल रूस के कलिनिनग्राद स्थित यंतर शिपयार्ड में कमीशन किया गया।

INS तमाल के बारे में

INS तमाल (F71) एक बहु-भूमिका वाला स्टील्थ गाइडेड मिसाइल फ्रिगेट है एवं प्रोजेक्ट 1135.6 (तलवार श्रेणी) शृंखला का आठवाँ जहाज है तथा तुशील श्रेणी के अनुवर्ती फ्रिगेटों में से दूसरा भी है।

INS तमाल की मुख्य विशेषताएँ

  • बहु-आयामी युद्ध क्षमता: तमाल को ‘ब्लू-वाटर ऑपरेशन’ के लिए डिजाइन किया गया है एवं यह वायु, सतह तथा इलेक्ट्रॉनिक युद्ध क्षेत्रों में खतरों से निपट सकता है।
  • उन्नत हथियार प्रणाली: यह जहाज ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों, वर्टिकल लॉन्च की गई सतह-से-हवा में मार करने वाली मिसाइलों, क्लोज-इन वेपन सिस्टम (Close-In Weapon Systems- CIWS), एंटी-सबमरीन रॉकेट लॉन्चर एवं हैवीवेट टॉरपीडो से संबद्ध है।
  • स्वदेशी प्रणाली एकीकरण: जहाज की लगभग 26% प्रणालियाँ स्वदेशी रूप से विकसित की गई हैं, जिसमें ब्रह्मोस मिसाइलें एवं HUMSA-NG सोनार प्रणाली शामिल हैं, जो भारत की बढ़ती तकनीकी क्षमताओं को प्रदर्शित करती हैं। 
  • आधुनिक रक्षा तंत्र: जहाज उन्नत परमाणु, जैविक एवं रासायनिक (Nuclear, Biological, and Chemical- NBC) रक्षा प्रणालियों, केंद्रीकृत क्षति नियंत्रण तथा बेहतर उत्तरजीविता के लिए स्वचालित अग्निशमन प्रणालियों से सुसज्जित है। 

INS तमाल का महत्त्व 

  • पश्चिमी बेड़े को मजबूत करना: यह जहाज नौसेना के पश्चिमी बेड़े में शामिल हो गया है, जिससे अरब सागर एवं हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री क्षमता तथा परिचालन तत्परता बढ़ेगी। 
  • भारत-रूस रक्षा सहयोग: INS तमाल, भारत-रूस नौसेना सहयोग के 65 वर्षों का प्रतीक है, यह इस साझेदारी के तहत निर्मित 51वाँ जहाज है, जो रक्षा संबंधों को मजबूत करता है।

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