संसदीय स्थायी समिति (Parliamentary Standing Committee)
संसद की विभाग-संबंधी स्थायी समितियों को अंतिम रूप देने के प्रयास चल रहे हैं।
संसदीय समितियाँ
संसदीय समिति संसद सदस्यों की एक समिति होती है, जो सदन के सदस्यों में से निर्वाचित या नियुक्त किये जाते हैं या अध्यक्ष अथवा सभापति द्वारा नामित किए जाते हैं।
ब्रिटिश संसदीय परंपरा से प्रेरित, भारत की संसदीय समितियाँ भारतीय संविधान के अनुच्छेद-105 (शक्तियाँ और विशेषाधिकार) तथा अनुच्छेद-118 (कार्य का विनियमन) के तहत अपना अधिकार प्राप्त करती हैं।
इन समितियों को दो प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है:-
स्थायी समितियाँ
तदर्थ समितियाँ
स्थायी समितियाँ स्थायी निकाय हैं, जिन्हें सार्वजनिक नीति या प्रशासन के विशिष्ट क्षेत्रों को सँभालने का कार्य सौंपा गया है, जबकि तदर्थ समितियाँ अस्थायी होती हैं, जो विशेष उद्देश्यों या विशिष्ट विधेयकों की समीक्षा के लिए गठित की जाती हैं, तथा अपने उद्देश्यों की पूर्ति हो जाने पर उन्हें समाप्त कर दिया जाता है।
सरकारी व्यय की देखरेख के लिए उत्तरदायी लोक-लेखा समिति।
प्राक्कलन समिति को दक्षता सुनिश्चित करने के लिए सरकारी व्यय की समीक्षा करने का कार्य सौंपा गया है।
सार्वजनिक उपक्रम समिति, जो सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के प्रदर्शन का मूल्यांकन करती है।
इसके अतिरिक्त, अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कल्याण पर केंद्रित विशेष समितियाँ भी हैं।
संसदीय समितियों की कुछ शक्तियाँ और कार्य
सरकार के कार्य की समीक्षा और जाँच करना
मंत्रियों और अधिकारियों को बुलाने की शक्ति
सरकारी बिलों की जाँच
सिफारिशें करने का अधिकार
क्वाड शिखर सम्मेलन
भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका ने Quad शिखर सम्मेलन के लिए मेजबानी की जिम्मेदारियों को परिवर्तित करने पर पारस्परिक रूप से सहमति व्यक्त की है।
संबंधित तथ्य
Quad शिखर सम्मेलन, जिसकी पहले भारत के द्वारा मेजबानी की जानी थी, अब अमेरिका द्वारा आयोजित किया जाएगा तथा भारत वर्ष 2025 में इस कार्यक्रम की मेजबानी करेगा।
क्वाड (QUAD)
QUAD एक रणनीतिक मंच है, जिसमें भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं, जिसका उद्देश्य एक स्वतंत्र, खुले और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र को बढ़ावा देना है।
वर्ष 2007 में स्थापित और वर्ष 2017 में पुनर्गठन किया गया ।
QUAD क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक सहयोग, बुनियादी ढाँचे के विकास, समुद्री सुरक्षा और आपदा राहत पर ध्यान केंद्रित करता है।
क्वाड का उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करना भी है।
स्वैप (Swap) का महत्त्व
क्वाड गठबंधन को मजबूत करना: शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने वाले अमेरिका ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्वाड सहयोग के बढ़ते महत्त्व पर जोर दिया है।
कूटनीतिक लचीलापन: भारत और अमेरिका के मध्य मेजबानी की अदला-बदली वैश्विक कूटनीति की अनुकूलनशीलता को प्रदर्शित करती है।
राजनीतिक परिवर्तन: वर्ष 2024 का शिखर सम्मेलन, जो बाइडेन और किशिदा के लिए विदाई समारोह के रूप में कार्य करेगा, जो महत्त्वपूर्ण नेतृत्व परिवर्तनों के कारण ऐतिहासिक महत्त्व का समारोह रहेगा।
आर्थिक और रणनीतिक फोकस: शिखर सम्मेलन क्षेत्रीय सुरक्षा, प्रौद्योगिकी और आर्थिक रणनीतियों पर चर्चा करने का एक मंच बना हुआ है।
भारत की कूटनीतिक भूमिका: वर्ष 2025 में भारत की मेजबानी से उसकी वैश्विक कूटनीतिक स्थिति मजबूत होगी और अंतरराष्ट्रीय मामलों में उसकी नेतृत्व क्षमता प्रदर्शित होगी।
WHO ने रोगजनक उत्पत्ति जाँच के लिए वैश्विक रूपरेखा का अनावरण किया
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने रोगजनकों की उत्पत्ति की जाँच के लिए एक व्यापक वैश्विक फ्रेमवर्क प्रारंभ किया है।
संबंधित तथ्य
इस फ्रेमवर्क को नए रोगजनकों की उत्पत्ति के लिए वैज्ञानिक सलाहकार समूह (Scientific Advisory Group for the Origins of Novel Pathogens- SAGO) द्वारा विकसित किया गया है, ताकि रोगजनकों की उत्पत्ति की जाँच को कारगर बनाया जा सके।
WHO का फ्रेमवर्क
यह फ्रेमवर्क रोगजनक उत्पत्ति संबंधी अध्ययन करने के लिए विस्तृत मार्गदर्शन प्रदान करता है, विशेष रूप से निम्नलिखित प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करता है:-
प्रकोप की प्रारंभिक जाँच: पहले मामलों और समूहों की पहचान करने, नमूने एकत्र करने और नैदानिक प्रयोजनों में शामिल नए रोगाणु की विशेषताओं को परिभाषित करने पर ध्यान केंद्रित करना।
उन्नत प्रौद्योगिकियों का उपयोग: यह रोगजनकों के विकास का पता लगाने और संक्रमण के पर्यावरणीय और वेक्टर स्रोतों की जाँच करने के लिए जीनोमिक तथा फाइलोजेनेटिक अध्ययनों पर जोर देता है।
महत्त्व
वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा को मजबूत करना।
वैज्ञानिक सहयोग को बढ़ावा देना।
जाँच में पारदर्शिता बढ़ाना।
प्रारंभिक पहचान प्रणाली को बढ़ाना।
वैश्विक स्वास्थ्य नेतृत्व में भारत की भूमिका को बढ़ावा देना।
स्विस शांति प्रक्रिया
यूक्रेन और रूस के मध्य स्विस-मध्यस्थता वाली शांति प्रक्रिया ने भारत की कूटनीतिक स्थिति को सुर्खियों में ला दिया है।
यूक्रेन के लिए स्विस शांति प्रक्रिया
यह स्विट्जरलैंड की तटस्थ स्थिति को वार्ता और समझौता मंच के रूप में उपयोग करके रूस तथा यूक्रेन के मध्य चल रहे संघर्ष को हल करने के उद्देश्य से किए गए राजनयिक प्रयासों को संदर्भित करता है।
यह शिखर सम्मेलन शांति पहल पर चर्चा करने और उसे बढ़ावा देने के लिए विभिन्न देशों तथा संगठनों के प्रतिनिधियों को आमंत्रित करता है।
उद्देश्य: स्विस शांति शिखर सम्मेलन का प्राथमिक लक्ष्य रूस और यूक्रेन के मध्य युद्ध को समाप्त करने के उद्देश्य से संवाद और वार्ता को सुविधाजनक बनाना है, जो फरवरी 2022 से चल रहा है।
प्रमुख शिखर सम्मेलन और घोषणाएँ: एक महत्वपूर्ण घटना बर्गेनस्टॉक शिखर सम्मेलन (जून, 2024) थी, जो पहले चार अंतर्राष्ट्रीय बैठकों की श्रृंखला के बाद हुई थी।
फोकस क्षेत्र: स्विस शांति प्रक्रिया ने कई महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों जैसे परमाणु सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा, मानवीय मुद्दों आदि पर ध्यान केंद्रित किया है।
प्रतिभागी: शिखर सम्मेलन में लगभग 80 देशों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और शांति स्थापना समूहों के प्रतिनिधियों ने एक साथ भाग लिया।
भारत का रुख: जून में स्विस शांति शिखर सम्मेलन के बाद भारत ने इसके परिणाम से स्वयं को अलग कर लिया था, क्योंकि इसमें रूस को शामिल नहीं किया गया था।
वेनेजुएला
(Venezuela)
हाल ही में वेनेजुएला में राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न हो गई है।
वेनेजुएला
अवस्थिति एवं सीमा: वेनेजुएला दक्षिण अमेरिका के उत्तरी तट में, 916,445 वर्ग किमी. (353,841 वर्ग मील) क्षेत्र में विस्तृत है।
यह देश उत्तर में कैरेबियन सागर और अटलांटिक महासागर, पूर्व में गुयाना, दक्षिण में ब्राजील और पश्चिम में कोलंबिया से घिरा है।
राजधानी: कराकास (Caracas)
भूगोल: भौगोलिक विशेषताओं में उत्तरी एंडियन पर्वत शृंखलाएँ, विस्तृत लानोस मैदानों के साथ ओरिनोको नदी बेसिन, माराकाइबो झील (दक्षिण अमेरिका की सबसे बड़ी झील) और एन्जेल फॉल्स (विश्व का सबसे ऊँचा झरना) शामिल हैं।
प्रमुख नदियाँ
रियो नीग्रो (2,250 किमी.): अमेजन की एक सहायक नदी, जो कोलंबिया और ब्राजील के साथ साझा होती है।
ओरिनोको (2,101 किमी.): दक्षिण अमेरिका की तीसरी सबसे लंबी नदी, जो कोलंबिया के साथ सीमा साझा करती है।
संसाधन: यहाँ विश्व के सबसे बड़े तेल भंडार के साथ-साथ कोयला, लौह अयस्क, बॉक्साइट और सोने के महत्त्वपूर्ण भंडार भी मौजूद हैं।
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