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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal July 17, 2025 04:03 41 0

वैश्विक क्षमता केंद्र (GCC)

हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्री ने भारतीय उद्योग परिसंघ (Confederation of Indian Industry-CII) के एक कार्यक्रम में कहा कि वैश्विक क्षमता केंद्र (Global Capability Center- GCC) भारत में एक विशाल अवसर प्रस्तुत करता है।

वैश्विक क्षमता केंद्र (GCC) के बारे में

  • यह एक रणनीतिक इकाई है, जो प्रौद्योगिकी, प्रतिभा एवं नवाचार के माध्यम से किसी संगठन के वैश्विक संचालन का समर्थन करती है।
  • स्वामित्व वाली अपतटीय इकाई: किसी अन्य देश में पूर्ण स्वामित्व वाली, एकीकृत विस्तार वाली बहुराष्ट्रीय निगम (MNC)।
  • कार्य: IT, इंजीनियरिंग, अनुसंधान एवं विकास, वित्त, मानव संसाधन, डेटा विश्लेषण, उत्पाद विकास।
  • विकास: लागत-बचत (बैक-ऑफिस) से रणनीतिक (नवाचार, अनुसंधान एवं विकास) तक।

वैश्विक GCC केंद्र के रूप में भारत का उदय

  • फॉर्च्यून 500 कंपनियों में से लगभग 50% ने भारत में अपने GCC केंद्र स्थापित किए हैं।
  • भारत के GCC कार्यबल में वर्तमान में लगभग 21.6 लाख पेशेवर कार्यरत हैं।
  • वर्ष 2030 तक GCC में रोजगार बढ़कर 28 लाख होने की उम्मीद है।
  • भारत में GCC क्षेत्र पिछले पाँच वर्षों में 11% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ा है।
  • भारत में दुनिया के GCC प्रतिभा पूल का 32% हिस्सा मौजूद है।
    • भारत में 42.7% STEM स्नातक महिलाएँ हैं, जो विश्व स्तर पर सबसे अधिक है।
    • भारत के GCC कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी लगभग 35% है।
  • GCC सकल मूल्य वर्द्धन (GVA) में 68 अरब डॉलर का योगदान करते हैं, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1.6% है।
  • वर्ष 2030 तक, भारत में GCC अर्थव्यवस्था में 150-200 अरब डॉलर का योगदान दे सकते हैं।

भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त

  • लागत दक्षता: भारत में GCC का संचालन अमेरिका, ब्रिटेन या ऑस्ट्रेलिया की तुलना में 30-50% कम खर्चीला है।
  • डिजिटल एवं नीतिगत तत्परता: भारत सरकार स्मार्ट सिटीज एवं डिजिटल इंडिया जैसी पहलों के साथ GCC की उपस्थिति का विस्तार करने के लिए नीतिगत तथा बुनियादी ढाँचागत सहायता प्रदान कर रही है।
  • प्रचुर मात्रा में कुशल एवं अंग्रेजी-कुशल कार्यबल: भारत वैश्विक STEM कार्यबल में 28% का योगदान देता है।
    • वैश्विक सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग प्रतिभा का 23% भारत में स्थित है।
    • विशाल उपभोक्ता बाजार तक पहुँच है।
  • वैश्विक नेतृत्व की भूमिकाएँ: वर्ष 2030 तक GCC की संख्या 6,500 से बढ़कर 30,000 से अधिक हो जाएगी।
    • वर्ष 2024 में औसतन प्रति सप्ताह 1 नया GCC स्थापित किया जाएगा।

प्रमुख लाभ

  • प्रतिभा तक पहुँच: कुशल, स्केलेबल वैश्विक प्रतिभा पूल का उपयोग।
  • लागत दक्षता: कम परिचालन एवं श्रम लागत।
  • नवाचार केंद्र: नए उत्पादों, सेवाओं एवं डिजिटल परिवर्तन को बढ़ावा देता है।
  • नियंत्रण: पूर्ण स्वामित्व बौद्धिक संपदा (IP) एवं रणनीतिक संरेखण सुनिश्चित करता है।
  • मापनीयता: परिचालन का तेजी से विस्तार/संकुचन करता है।
  • जोखिम न्यूनीकरण: परिचालन में विविधता लाता है, व्यावसायिक निरंतरता को बढ़ाता है।

प्रधानमंत्री प्रोफेसरशिप योजना

अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान प्रतिष्ठान (Anusandhan National Research Foundation- ANRF) ने सेवानिवृत्त वैज्ञानिकों एवं पेशेवरों की विशेषज्ञता का लाभ उठाकर, विशेष रूप से सीमित अनुसंधान एवं विकास क्षमता वाले राज्य विश्वविद्यालयों में, अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ बनाने हेतु प्रधानमंत्री प्रोफेसरशिप योजना शुरू की है।

प्रधानमंत्री प्रोफेसरशिप योजना के बारे में

  • उद्देश्य: उभरते संस्थानों में अनुसंधान को मार्गदर्शन एवं सुदृढ़ करने के लिए सेवानिवृत्त वैज्ञानिकों, उद्योग विशेषज्ञों तथा अनुभवी प्रोफेसरों के अनुभव का लाभ उठाना।
  • प्रशासक निकाय: ANRF, अनुसंधान निधि के लिए भारत का नया शीर्ष निकाय, जो विज्ञान एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (Science and Engineering Research Board- SERB) का स्थान लेगा।
  • मुख्य विशेषताएँ
    • फेलोशिप: ₹30 लाख प्रति वर्ष।
    • अनुसंधान अनुदान: ₹24 लाख प्रति वर्ष (उपकरण, उपभोग्य सामग्रियों, यात्रा आदि के लिए)।
    • संस्थागत ओवरहेड: ₹1 लाख प्रति वर्ष।
    • कार्यकाल: 5 वर्ष तक (प्रदर्शन-आधारित)।
    • पात्रता:
      • प्रतिष्ठित राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से सेवानिवृत्त वैज्ञानिक।
      • उद्योग जगत के पेशेवर एवं प्रैक्टिशनर जिनका शोध रिकॉर्ड मजबूत हो।
      • NRIs, PIOs एवं OCIs भी पात्र हैं।
    • आवश्यकता: मेजबान राज्य विश्वविद्यालय में पूर्णकालिक स्थानांतरण (कोई दोहरा मानदेय नहीं)।
  • पिछली योजना से तुलना: यह SERB विशिष्ट फेलोशिप की जगह लेती है, जो कम फेलोशिप (₹60,000/माह) एवं ₹20 लाख वार्षिक अनुसंधान अनुदान प्रदान करती थी।
  • PAIR कार्यक्रम के माध्यम से कार्यान्वयन: यह योजना, ANRF संबंधी उन्नत एवं समावेशी अनुसंधान को बढ़ावा देने (Promoting Advanced and Inclusive Research- PAIR) पहल के अंतर्गत लाई गयी है, जो विशिष्ट संस्थानों को उभरते संस्थानों से जोड़ने के लिए हब-एंड-स्पोक मॉडल का उपयोग करती है।
  • मॉडल संरचना
    • हब संस्थान: NIRF के शीर्ष 25 में स्थान प्राप्त या राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थानों के रूप में वर्गीकृत।
      • अधिकतम सात स्पोक संस्थानों का मार्गदर्शन करना।
    • स्पोक संस्थान (श्रेणी A): राज्य विश्वविद्यालय, चुनिंदा केंद्रीय विश्वविद्यालय, NIT एवं IIT
      • बहु-विभागीय संकाय दल का निर्माण होगा एवं क्षेत्रीय विविधता सुनिश्चित करनी होगी।
    • स्पोक संस्थानों में प्रोफेसर की भूमिका
      • शोध डिजाइन एवं नवाचार में संकाय तथा छात्रों का मार्गदर्शन करना।
      • उद्योग एवं संस्थागत सहयोग को सुगम बनाना।
      • अंतर्विषयक एवं वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्द्धी अनुसंधान को बढ़ावा देना।
      • बुनियादी ढाँचे के विकास एवं अनुसंधान सुविधा स्थापना का मार्गदर्शन करना।
      • अग्रणी संस्थानों में इंटर्नशिप को सक्षम बनाना।

महत्त्व एवं प्रभाव

  • संसाधनों की कमी वाले विश्वविद्यालयों में अनुसंधान अंतराल को पाटना।
  • उत्कृष्टता का विकेंद्रीकरण करके भारत के अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करना।
  • प्रवासी समावेशन के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
  • राज्य संस्थानों में मार्गदर्शन, सहयोग एवं नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देना।

AI एप्रीसिएशन डे

16 जुलाई, 2025 को AI एप्रीसिएशन डे (AI Appreciation Day) मनाया गया, जो भारत की बढ़ती वैश्विक AI उपस्थिति को संदर्भित करता है। शहरों से लेकर गाँवों तक, AI स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, कृषि, शासन एवं उद्योग में क्रांति ला रहा है।

  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता के सकारात्मक प्रभाव का सम्मान करने के लिए AI हार्ट LLC द्वारा मई 2021 में AI एप्रीसिएशन डे की स्थापना की गई थी।

भारत की AI यात्रा: एक रणनीतिक विकास

  • दृष्टिकोण एवं रणनीति: भारत का ‘सभी के लिए AI’ दृष्टिकोण एवं AI के लिए राष्ट्रीय रणनीति न केवल आर्थिक समृद्धि के लिए, बल्कि जीवन को बेहतर बनाने, समावेशिता को बढ़ावा देने एवं समानता को बढ़ावा देने के लिए भी AI का लाभ उठाने पर जोर देती है।
  • ऐतिहासिक मील के पत्थर
    • 1960 का दशक: प्रारंभिक कंप्यूटर विज्ञान अनुसंधान की शुरुआत।
    • वर्ष 1986: ज्ञान-आधारित कंप्यूटर सिस्टम परियोजना का शुभारंभ।
    • 1990 का दशक: C-DAC जैसे संगठनों ने सुपरकंप्यूटिंग एवं प्रारंभिक AI कार्य को आगे बढ़ाया।
    • 2000 का दशक: प्रमुख IT कंपनियाँ (TCS, इंफोसिस, विप्रो) AI में निवेश करती हैं, विश्वविद्यालय प्रतिभाओं का निर्माण करते हैं।
    • वर्ष 2015: डिजिटल इंडिया पहल ने महत्त्वपूर्ण गति प्रदान की।
    • वर्ष 2018: नीति आयोग की AI रणनीति ने विकास को गति दी।
  • भारत का बढ़ता वैश्विक AI नेतृत्व – प्रमुख शक्तियाँ
    • असाधारण सॉफ्टवेयर प्रतिभा पूल।
    • प्रभावी AI समाधान विकास के लिए विशाल, विविध डेटासेट तक पहुँच।
    • विविध राष्ट्रीय आवश्यकताएँ वास्तविक दुनिया में परीक्षण के अवसर प्रदान करती हैं (जैसे- कृषि, स्वास्थ्य सेवा, यातायात नियंत्रण, सार्वजनिक सेवाएँ)।

AI विकास हेतु सरकारी पहल

  • कौशल विकास
    • स्किल इंडिया AI पोर्टल।
    • राष्ट्रीय AI कौशल कार्यक्रम।
    • AI युवा बूटकैंप (AI Youth Bootcamp)
      • ये पहल छात्रों एवं श्रमिकों के लिए प्रशिक्षण, प्रमाणन तथा व्यावहारिक परियोजनाएँ प्रदान करती हैं, जहाँ व्यावसायिक केंद्र पारंपरिक उद्योगों के लिए AI उपकरणों को अपनाते हैं।
  • अनुसंधान एवं सहयोग
    • वित्त पोषण कार्यक्रमों एवं नए केंद्रों के माध्यम से AI अनुसंधान में निवेश, जो शिक्षा जगत तथा उद्योग के बीच सेतु का कार्य करते हैं।
    • अंतरराष्ट्रीय विकास से अवगत रहने के लिए वैश्विक तकनीकी दिग्गजों (गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, IBM) के साथ साझेदारी।

रिस्पॉन्सिबल AI: एक प्रमुख सिद्धांत

  • भारत AI एप्रीसिएशन डे मना रहा है एवं AI के जिम्मेदारीपूर्ण तथा नैतिक उपयोग पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है। AI के प्रति भारत का दृष्टिकोण केवल तकनीकी प्रगति से आगे बढ़कर, लोगों के जीवन में एक ठोस बदलाव लाने के उद्देश्य से है।

सेवा निर्यात से पहली तिमाही में भारत का व्यापार घाटा 9.4% कम हुआ

चालू वित्त वर्ष (अप्रैल-जून 2025) की पहली तिमाही (Q1) में भारत का कुल व्यापार घाटा 9.4% घटकर 20.3 अरब डॉलर रह गया। यह सकारात्मक विकास मुख्य रूप से सेवा निर्यात में लगभग 11% की मजबूत वृद्धि के कारण हुआ।

समग्र व्यापार प्रदर्शन (वित्त वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही)

  • कुल निर्यात: लगभग 6% बढ़कर 210.3 अरब डॉलर हो गया (वित्त वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही के 198.5 अरब डॉलर से ऊपर)।
    • वस्तु एवं सेवा निर्यात दोनों ही सकारात्मक स्थिति में हैं, जो विश्व व्यापार संगठन की विश्व व्यापार अपेक्षाओं से अधिक है।
    • विश्व व्यापार संगठन ने वर्ष 2025 में वस्तु व्यापार में -0.2% संकुचन की उम्मीद की थी, जो वर्ष 2024 में +2.9% से कम है एवं इसके बाद वर्ष 2026 में 2.5% की वृद्धि होगी, जो कमजोर वैश्विक माँग को दर्शाती है।
  • कुल आयात: 4.4% बढ़कर 230.6 अरब डॉलर हो गया।
  • व्यापार घाटा: 9.4% घटकर 20.3 अरब डॉलर रह गया।
  • सेवा निर्यात: लगभग 11% बढ़कर 98.1 अरब डॉलर हो गया (वित्त वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही में 88.5 अरब डॉलर से)।
  • व्यापारिक वस्तुओं का निर्यात: 2% की मामूली वृद्धि के साथ 112.2 अरब डॉलर हो गया।
    • मंदी का कारण: मुख्य रूप से पेट्रोलियम की कीमतों में गिरावट को जिम्मेदार ठहराया गया।
    • गैर-पेट्रोलियम निर्यात: इस अवधि के दौरान 6% की अच्छी वृद्धि हुई।
  • पिछला वित्तीय वर्ष (वित्त वर्ष 2024-25): भारत का कुल निर्यात 825 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुँच गया।
  • व्यापारिक वस्तुओं का आयात: 4.2% बढ़ा।
  • सेवाओं का आयात: 4.9% बढ़ा।

क्षेत्रीय वृद्धि

  • निर्यात
    • इलेक्ट्रॉनिक्स: सर्वाधिक वृद्धि, 47.1% बढ़कर 12.4 अरब डॉलर।
    • समुद्री उत्पाद: 19% से अधिक बढ़कर 1.9 अरब डॉलर।
    • तंबाकू: लगभग 19% दोहरे अंकों की वृद्धि।
    • चाय: लगभग 16% दोहरे अंकों की वृद्धि।
  • आयात
    • सल्फर एवं शुद्ध आयरन पाइराइट: सर्वाधिक वृद्धि, 284%।
    • चाँदी: 216% की वृद्धि।
    • रासायनिक सामग्री एवं उत्पाद: 142% की वृद्धि।
    • कच्चा एवं बेकार कपास: 73% की वृद्धि।

शीर्ष व्यापारिक साझेदार (वित्त वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही)

शीर्ष निर्यात गंतव्य

  1. संयुक्त राज्य अमेरिका: 25.5 बिलियन डॉलर (22.1% की वृद्धि)
  2. संयुक्त अरब अमीरात: 9.04 बिलियन डॉलर
  3. नीदरलैंड: 5.65 बिलियन डॉलर
  4. चीन: 4.4 बिलियन डॉलर
  5. यूनाइटेड किंगडम: 3.3 बिलियन डॉलर।

शीर्ष आयात स्रोत

  1. चीन: 29.7 बिलियन डॉलर (16% की वृद्धि)
  2. UAE: 16.8 बिलियन डॉलर
  3. रूस: 16.77 बिलियन डॉलर
  4. अमेरिका: 12.86 बिलियन डॉलर
  5. इराक: 7.26 बिलियन डॉलर।

फर्लो एवं पैरोल

हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि किसी दोषी की अपील सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है, तब भी फर्लो एवं पैरोल पर विचार किया जा सकता है, जिससे पिछली कानूनी अस्पष्टताएँ समाप्त हो गईं।

फर्लो क्या हैं?

  • फर्लो, किसी कैदी की सजा को निलंबित किए बिना अस्थायी रिहाई है, जिसका मुख्य उद्देश्य लंबी अवधि के कारावास के प्रतिकूल मनोवैज्ञानिक प्रभावों को कम करना एवं सामाजिक एवं पारिवारिक संबंधों को बनाए रखना है।
  • कानूनी प्रावधान: फर्लो, कारागार अधिनियम, 1894 द्वारा शासित होता है एवं राज्य-विशिष्ट कारागार नियमों के माध्यम से विस्तृत होता है। यह जेल अधिकारियों के विवेक पर, आमतौर पर कारागार उप महानिरीक्षक द्वारा, प्रदान किया जाता है।
  • अनुदान की शर्तें: अच्छे आचरण वाले लंबी अवधि के दोषियों को, आमतौर पर उनकी सजा की न्यूनतम अवधि पूरी करने के बाद, फर्लो प्रदान किया जा सकता है। इसके लिए किसी विशेष कारण की आवश्यकता नहीं है, लेकिन जनहित के विरुद्ध पाए जाने पर इसे अस्वीकार किया जा सकता है।

फर्लो, पैरोल से कैसे भिन्न है?

  • रिहाई का उद्देश्य एवं प्रकृति: फर्लो का उद्देश्य जेल जीवन की नीरसता को तोड़ना है एवं इसे सजा में छूट के रूप में माना जाता है।
    • दूसरी ओर, पैरोल बीमारी, परिवार में मृत्यु या अदालत में पेशी जैसी विशिष्ट आपात स्थितियों में दी जाती है, एवं इसमें सजा का निलंबन शामिल होता है।
  • अधिकार बनाम विवेकाधिकार: फर्लो को आचरण के आधार पर पात्र कैदियों के लिए एक विशेषाधिकार माना जाता है एवं इसे अधिकार के रूप में दावा नहीं किया जा सकता।
    • पैरोल भी एक अधिकार नहीं है, लेकिन वास्तविक आपात स्थितियों में इसे आसानी से प्रदान किया जा सकता है एवं अस्वीकार किए जाने पर उच्च न्यायालयों में चुनौती दी जा सकती है।

यह निर्णय जेल प्रशासन में फर्लो एवं पैरोल की विवेकाधीन लेकिन मानवीय भूमिका को पुष्ट करता है, साथ ही यह सुनिश्चित करता है कि वे न्यायिक निगरानी तथा तथ्यात्मक जाँच के अधीन रहें।

E10 शिंकानसेन

हाल ही में जापान ने मुंबई-अहमदाबाद कॉरिडोर पर E10 शिंकानसेन ट्रेनें उपलब्ध कराने पर सहमति जताई है।

  • मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए घनसोली एवं शिलफाटा के बीच 21 किलोमीटर लंबी समुद्र के नीचे सुरंग का पहला खंड पूरा हो गया है, जो भारत के पहले हाई-स्पीड रेल कॉरिडोर में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

E10 शिंकानसेन के बारे में

  • जापान की अगली पीढ़ी की बुलेट ट्रेन मॉडल, E10 शिंकानसेन, भारत एवं जापान में एक साथ शुरू होगी, जो दोनों देशों के बीच बढ़ते तकनीकी सहयोग का प्रतीक है।
  • E10, E5 शिंकानसेन का उत्तराधिकारी है एवं इसमें उन्नत वायुगतिकी, ऊर्जा दक्षता तथा बेहतर यात्री आराम की विशेषताएँ हैं।
  • विकसितकर्ता: ईस्ट जापान रेलवे कंपनी (JR ईस्ट)
  • अद्वितीय विशेषताएँ: यह गति, सुरक्षा एवं विश्वसनीयता में जापान के नवीनतम नवाचारों को दर्शाता है, जो हाई-स्पीड रेल कॉरिडोर के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया है।
    • ब्लोअरलेस इंडक्शन मोटर: इसमें कूलिंग मोटर का उपयोग नहीं होता है, जिससे यह अधिक शांत एवं ऊर्जा-कुशल हो जाती है।
    • L-आकार के वाहन गाइड: भूकंप के दौरान वाहन के पटरी से उतरने से रोकने के लिए डिजाइन किए गए हैं, जिससे भूकंपीय लचीलापन बढ़ता है।

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