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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal July 23, 2025 03:35 12 0

मंगल ग्रह के उल्कापिंड

हाल ही में ‘NWA 16788’ नामक, मंगल ग्रह से आए एक उल्कापिंड को सोथबी की नीलामी में रिकॉर्ड 5.3 मिलियन डॉलर में बेचा गया।।

NWA 16788 के बारे में

  • 54 पाउंड (24.5 किलोग्राम) वजन वाला NWA 16788 उल्कापिंड, पृथ्वी पर पाई गई सबसे बड़ी ज्ञात मंगल ग्रह की चट्टान है।
    • यह नवंबर 2023 में सहारा रेगिस्तान के एक हिस्से, नाइजर के अगाडेज क्षेत्र में एक उल्कापिंड खोजकर्ता द्वारा खोजा गया था।
  • प्रयोगशाला परीक्षणों के माध्यम से इसकी मंगल ग्रह पर उत्पत्ति की पुष्टि हुई, जिसमें इसके रासायनिक लक्षण ज्ञात मंगल ग्रह की संरचनाओं से संरेखित थे।

मंगल ग्रह के उल्कापिंड क्या हैं?

  • मंगल ग्रह के उल्कापिंड दुर्लभ अंतरिक्षीय पिंड होते हैं, जो क्षुद्रग्रह या धूमकेतु के प्रभाव से मंगल की सतह से अंतरिक्ष में चले जाते हैं और लंबी अंतरिक्षीय यात्रा के पश्चात् पृथ्वी पर आ गिरते हैं।

वैज्ञानिक महत्त्व

  • मंगल ग्रह के भू-विज्ञान की दुर्लभ झलक: मंगल ग्रह के उल्कापिंड मंगल ग्रह की भूपर्पटी के प्रत्यक्ष नमूने प्रदान करते हैं, जिससे वैज्ञानिकों को बिना कोई मिशन शुरू किए ग्रह की संरचना, भू-वैज्ञानिक गतिविधियों एवं ज्वालामुखी इतिहास का अध्ययन करने में मदद मिलती है।
  • मंगल ग्रह के प्रभाव इतिहास का पता लगाना: माना जाता है कि NWA 16788 उल्कापिंड लगभग 50 लाख वर्ष पूर्व एक विशाल क्षुद्रग्रह या धूमकेतु के निकलने के बाद मंगल ग्रह से बाहर निकला था।
  • ग्रहीय यात्रा एवं अस्तित्व: इस उल्कापिंड ने अंतरिक्ष में लगभग 14 करोड़ मील की लंबी यात्रा पूरी की और पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते समय भी सुरक्षित रहा, जिससे यह वैज्ञानिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण और सांख्यिकीय रूप से असाधारण बन गया।
    • समुद्र की अपेक्षा रेगिस्तानी वातावरण में इस उल्कापिंड का संरक्षित रहना और पुनर्प्राप्त किया जाना इसकी अक्षुण्ण स्थिति में खोज तथा वैज्ञानिक विश्लेषण को संभव बना सका।

SASCI योजना

हाल ही में भारत सरकार ने चुनिंदा पर्यटन स्थलों के विकास हेतु SASCI योजना शुरू की है।

SASCI योजना के बारे में

  • वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित पर्यटन केंद्रों के विकास हेतु पूँजी निवेश हेतु राज्यों को विशेष सहायता (SASCI) जुलाई 2025 में शुरू की गई थी।
  • नोडल मंत्रालय: पर्यटन मंत्रालय

SASCI योजना की मुख्य विशेषताएँ

  • शुरू से अंत तक पर्यटक अनुभव: SASCI संपूर्ण पर्यटन मूल्य शृंखला जैसे बुनियादी ढाँचा, ब्रांडिंग, स्थिरता, सेवा वितरण एवं संचालन को मजबूत करने पर केंद्रित है।
  • स्थायित्व एवं विशेषज्ञता: यह योजना दीर्घकालिक प्रभाव के लिए डिजाइन की गुणवत्ता, सतत् संचालन एवं स्थानीय हितधारकों की भागीदारी पर जोर देती है।
  • परियोजना चयन मानदंड: राज्य सरकारों के परियोजना प्रस्तावों का मूल्यांकन निम्नलिखित के आधार पर किया गया:
    • स्थल से संपर्क
    • पर्यटन पारिस्थितिकी तंत्र एवं बुनियादी ढाँचा
    • पारिस्थितिकी स्थिरता एवं वहन क्षमता
    • संभावित सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
    • परियोजना विपणन एवं प्रबंधन मॉडल।
  • वित्त पोषण एवं समय सीमा: केंद्र 31 मार्च, 2026 तक परियोजनाओं का वित्त पोषण करेगा, जबकि राज्य सरकारें परियोजनाओं का क्रियान्वयन एवं प्रबंधन करेंगी।
    • परियोजनाओं को अधिकतम 2 वर्षों की अवधि के भीतर विकसित एवं पूरा किया जाना है।
  • उपलब्धि: जुलाई 2025 तक, राज्यों से प्राप्त प्रस्तावों के आधार पर 40 परियोजनाओं को पहले ही स्वीकृति दी जा चुकी है, जो भारत को एक वैश्विक पर्यटन केंद्र के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
    • उदाहरण के लिए, उत्तराखंड के ऋषिकेश में राफ्टिंग बेस स्टेशन विकसित करने के लिए प्रतिष्ठित शहर ऋषिकेश के लिए 100 करोड़ रुपये मंजूर किए गए हैं।

अंतरराष्ट्रीय चंद्र दिवस

20 जुलाई, 2025 को, विश्व में  “वन मून, वन विजन, वन फ्यूचरथीम के तहत अंतरराष्ट्रीय चंद्र दिवस (International Moon Day) मनाया गया, जिसका उद्देश्य चंद्र अन्वेषण क्षेत्र में वैश्विक एकता को बढ़ावा देना था।

अंतरराष्ट्रीय चंद्र दिवस के बारे में

  • उद्देश्य: वर्ष 1969 में चंद्रमा की सतह पर पहले मानव मिशन अपोलो 11′ की लैंडिंग की वर्षगाँठ को चिह्नित किया गया।
  • संयुक्त राष्ट्र मान्यता: संयुक्त राष्ट्र महासभा ने बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोगों पर समिति (Committee on the Peaceful Uses of Outer Space – COPUOS) की सिफारिशों के आधार पर, वर्ष 2021 में प्रस्ताव संख्या 76/76 के माध्यम से इस दिवस को नामित किया।
  • महत्त्व: यह दिन चंद्र अन्वेषण में मानवीय उपलब्धियों का जश्न मनाता है, चंद्रमा के शांतिपूर्ण एवं सतत् उपयोग के बारे में जागरूकता बढ़ाता है तथा अंतरिक्ष गतिविधियों में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देता है।

चंद्र अन्वेषण में वैश्विक उपलब्धियाँ

  • अपोलो 11 (वर्ष 1969): पहला सफल मानवयुक्त मिशन, जिसमें नील आर्मस्ट्रांग चंद्रमा पर कदम रखने वाले पहले व्यक्ति बने।
  • अन्य देशों के चंद्र मिशन: अमेरिका, रूस, चीन एवं यूरोपीय संघ ने रोबोटिक तथा मानवयुक्त मिशन संचालित किए हैं, जिससे चंद्र विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का विस्तार हुआ है।
  • हालिया मिशन
    • चीन के चांग मिशनों ने चंद्र नमूने प्राप्त किए हैं।
    • NASA के आर्टेमिस कार्यक्रम का उद्देश्य चंद्रमा पर मानव की उपस्थिति दर्ज कराना है, जिसमें पहली महिला एवं अश्वेत व्यक्ति भी शामिल हैं, तथा चंद्रमा पर एक स्थायी मानव उपस्थिति स्थापित करना है।

चंद्र अन्वेषण में भारत का योगदान

  • चंद्रयान-1 (वर्ष 2008): चंद्रमा की सतह पर जल के अणुओं की खोज की।
  • चंद्रयान-2 (वर्ष 2019): एक ऑर्बिटर तैनात किया, जो अभी भी कार्यरत है एवं डेटा एकत्र कर रहा है।
  • चंद्रयान-3 (वर्ष 2023): चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास एक ऐतिहासिक सॉफ्ट लैंडिंग की, जिससे भारत अंतरिक्ष यात्रा करने वाले शीर्ष देशों में शामिल हो गया।

अंतरराष्ट्रीय चंद्र दिवस अतीत की उपलब्धियों की याद दिलाता है एवं शांतिपूर्ण एवं स्थायी चंद्र अन्वेषण के लिए भविष्य के वैश्विक सहयोग को प्रेरित करता है।

COPUOS के बारे में

  • यह वर्ष 1959 में स्थापित एक संयुक्त राष्ट्र समिति है, जिसका उद्देश्य बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण अन्वेषण एवं उपयोग में अंतरराष्ट्रीय सहयोग की देख-रेख तथा उसे बढ़ावा देना है।
  • यह अंतरिक्ष गतिविधियों से उत्पन्न होने वाले कानूनी एवं तकनीकी मुद्दों पर चर्चा के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि अंतरिक्ष शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए एक क्षेत्र बना रहे।

IUCN विश्व संरक्षण कांग्रेस

वर्ष 2025 में अबू धाबी में आयोजित होने वाले IUCN विश्व संरक्षण सम्मेलन में इस विषय पर मतदान किया जाएगा कि संरक्षण प्रक्रियाओं में सिंथेटिक जीव विज्ञान उपकरणों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया जाए या नहीं।

IUCN के बारे में

  • अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की स्थापना वर्ष 1948 में हुई थी एवं यह विश्व का सबसे प्राचीन तथा सबसे बड़ा वैश्विक पर्यावरण नेटवर्क है।
  • सदस्य: IUCN, या अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ, के 170 से अधिक देशों के 1,400 से अधिक सदस्य संगठन हैं।
    • इन सदस्यों में सरकारी एजेंसियाँ, गैर-सरकारी एवं स्वदेशी संगठन शामिल हैं।
    • भारत वर्ष 1969 से IUCN का एक सदस्य राष्ट्र रहा है।
  • योगदान: IUCN संकटग्रस्त प्रजातियों की रेड लिस्ट , वैज्ञानिक अनुसंधान एवं सरकारों एवं संस्थानों को नीतिगत मार्गदर्शन जैसे उपकरणों के माध्यम से वैश्विक जैव विविधता संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

IUCN विश्व संरक्षण कांग्रेस के बारे में

  • परिचय: विश्व संरक्षण कांग्रेस, IUCN का प्रमुख आयोजन समारोह है, जो प्रत्येक चार वर्ष में आयोजित होता है एवं वैश्विक संरक्षण नीति को आकार देने के लिए सरकारों, वैज्ञानिकों, गैर-सरकारी संगठनों तथा समुदायों को एक साथ लाता है।
  • वर्ष 2025 कांग्रेस: वर्ष 2025 संस्करण, अक्टूबर में अबू धाबी में आयोजित किया जाएगा, जिसका विषय परिवर्तनकारी संरक्षण को सशक्त बनाना है।
  • कांग्रेस के घटक
    • प्लेटफार्म: विज्ञान, नवाचार एवं संरक्षण नीति पर चर्चा के लिए वैश्विक प्लेटफॉर्म।
    • प्रदर्शनी: अनुसंधान, नवाचारों एवं साझेदारियों को प्रदर्शित करने के लिए एक इंटरैक्टिव स्थान।
    • महासभा: सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय, जहाँ सदस्य संगठन प्रस्तावों पर मतदान करते हैं।
      • कांग्रेस से पहले सभी प्रस्तावों पर दो महीने तक ऑनलाइन चर्चा की जाती है।
      • एक बार स्वीकृत होने के बाद, प्रस्ताव संकल्प एवं अनुशंसाएँ बन जाते हैं, जो IUCN की नीति तथा कार्यक्रम का मार्गदर्शन करते हैं।
  • वर्ष 2025 कांग्रेस के मुख्य क्षेत्र
    • प्रस्ताव 133 में पारिस्थितिकी एवं नैतिक चिंताओं के कारण संरक्षण में सिंथेटिक जीव विज्ञान अनुसंधान पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव है।
    • प्रस्ताव 087 में एक मामला-दर-मामला, नीति-संचालित दृष्टिकोण अपनाने का सुझाव दिया गया है, जो नवाचार और सावधानी के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है।

सिंथेटिक बायोलॉजी के बारे में

  • सिंथेटिक बायोलॉजी में जीवों के DNA को नए कार्यों के लिए इंजीनियर करके उन्हें नया स्वरूप दिया जाता है। इसमें जीव विज्ञान, इंजीनियरिंग एवं कंप्यूटर विज्ञान का संयोजन होता है।
  • संरक्षण में अनुप्रयोग
    • बढ़ते तापमान से प्रवाल भित्तियों की रक्षा के लिए जीन-संपादित शैवाल।
    • आनुवंशिक रूप से संशोधित मच्छर, जो मलेरिया नहीं फैला सकते।
    • इंजीनियर्ड माइस,  जो द्वीपों पर आक्रामक प्रजातियों के प्रजनन को रोकते हैं।

निसार (NISAR) उपग्रह प्रक्षेपण के लिए तैयार

ISRO जल्द ही नासा के सहयोग से श्रीहरिकोटा, आंध्र प्रदेश से निसार पृथ्वी उपग्रह प्रक्षेपण करेगा।

प्रक्षेपण यान एवं कक्षा के बारे में

  • इस उपग्रह को ISRO के एक भारी-भरकम प्रक्षेपण यान, भू-समकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (GSLV-F16) का उपयोग करके 743 किलोमीटर की सूर्य-समकालिक कक्षा (SSO) में स्थापित किया जाएगा।
  • संयुक्त विकास एवं प्रौद्योगिकी: NISAR को ISRO एवं NASA द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया है, जिसमें NASA के L-बैंड रडार को इसरो के S-बैंड रडार के साथ एकीकृत किया गया है तथा इसे NASA के 12-मीटर अनफरलेबल मेश रिफ्लेक्टर एंटीना पर लगाया गया है।

NISAR उपग्रह के बारे में

  • NISAR (NASA-ISRO सिंथेटिक अपर्चर रडार) विश्व का पहला ड्यूल फ्रीक्वेंसी वाला SAR मिशन है, जो पृथ्वी की उच्च-रिजॉल्यूशन, सभी मौसमों में, दिन-रात की इमेज प्रदान करने के लिए L-बैंड एवं S-बैंड दोनों रडार का उपयोग करता है।

मुख्य विशेषताएँ

  • ड्यूल -बैंड रडार क्षमता
    • L-बैंड रडार (1-2 गीगाहर्ट्ज): NASA द्वारा विकसित, सघन वनों एवं वनस्पतियों हेतु उपयोगी है।
    • S-बैंड रडार (2-4 गीगाहर्ट्ज): ISRO द्वारा विकसित, विस्तृत सतही इमेज प्रदान करता है।
  • वृहद तैनाती योग्य एंटीना: 18 मीटर की रडार पट्टी (Radar Swath) के साथ 12 मीटर के तैनात करने योग्य एंटीना से सुसज्जित, जो व्यापक क्षेत्र कवरेज को सक्षम बनाता है।
  • SweepSAR तकनीक: NISAR, SweepSAR का उपयोग करता है, जिससे बड़े क्षेत्रों में पृथ्वी की सतह का कुशल एवं विस्तृत मानचित्रण संभव होता है।
    • यह NISAR को पहली बार 242 किमी. की पट्टी (Swath) एवं उच्च स्थानिक रिजॉल्यूशन के साथ पृथ्वी का निरीक्षण करने में सक्षम बनाएगा।

अनुप्रयोग

  • पर्यावरण एवं संसाधन निगरानी: NISAR टेक्टॉनिक गतिविधियों, ग्लेशियरों, पर्माफ्रॉस्ट, मृदा की नमी एवं सतही जल की निगरानी के लिए प्रत्येक 12 दिनों में वैश्विक स्कैनिंग को सक्षम बनाता है, जिससे जलवायु अनुसंधान, कृषि योजना तथा संसाधन प्रबंधन में सहायता मिलती है।
  • आपदा एवं पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन: यह उपग्रह प्राकृतिक आपदा ट्रैकिंग, वन निगरानी एवं जैव विविधता संरक्षण, आपदा तैयारी में सुधार, तटीय लचीलापन तथा सतत् भूमि उपयोग रणनीतियों में सहायता करता है।

वेस्ट बैंक (West Bank)

हाल ही में इजराइल के अधिकार वाले वेस्ट बैंक पर स्थित ऐन सामियाह झरने (Ein Samiyah spring) पर हमला किया, जिससे 1,10,000 फिलिस्तीनियों की जल आपूर्ति पर संकट उत्पन्न हो गया है।

वेस्ट बैंक (West Bank) के बारे में

  • अवस्थिति: वेस्ट बैंक (West Bank) जॉर्डन नदी के पश्चिम में अवस्थित एक स्थलरुद्ध क्षेत्र है, जिसकी सीमा पश्चिम में इजरायल एवं पूर्व में जॉर्डन से लगती है।
    • इसमें रामल्लाह, हेब्रोन, नब्लस एवं बेथलहम जैसे प्रमुख फिलिस्तीनी शहर शामिल हैं।
  • भौगोलिक विशेषताएँ: यह क्षेत्र मुख्यतः उत्तर-दक्षिण दिशा में फैली चूना पत्थर की पहाड़ियों से निर्मित है, जिनमें येरूशलम के उत्तर में स्थित समारियाई पहाड़ियाँ और दक्षिण में जुडियन पहाड़ियाँ शामिल हैं।
    • ये पहाड़ियाँ पूर्व की ओर जॉर्डन नदी एवं मृत सागर की निचली ग्रेट रिफ्ट घाटी तक विस्तृत हैं।
  • जल स्रोत: ऐन सामियाह झरना, मध्य पश्चिमी तट का एक प्रमुख जल स्रोत।
  • राजनीतिक स्थिति एवं विवाद: छह-दिवसीय युद्ध के बाद, वर्ष 1967 से वेस्ट बैंक (West Bank)  इजरायली सैन्य अधिकार में है।
    • इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिकृत फिलिस्तीनी क्षेत्र माना जाता है, हालाँकि इजरायल इस स्थिति पर विवाद करता है एवं उसने वहाँ कई बस्तियाँ स्थापित की हैं।
  • फिलिस्तीनी पश्चिमी तट को भविष्य के एक स्वतंत्र राज्य के केंद्रीय भाग के रूप में चाहते हैं, जिसकी राजधानी पूर्वी येरूशलम हो।

नशा मुक्त भारत के लिए काशी घोषणा-पत्र

हाल ही में वाराणसी मेंविकसित भारत के लिए नशा मुक्त युवा विषय पर आयोजित युवा आध्यात्मिक शिखर सम्मेलन काशी घोषणा-पत्र के साथ संपन्न हुआ।

काशी घोषणा-पत्र के बारे में

  • आयोजक: केंद्रीय युवा मामले एवं खेल मंत्रालय
  • समय-सीमा: नशामुक्ति आंदोलन के लिए 5 वर्षीय रोडमैप निर्धारित करता है।
  • बहु-मंत्रालयी सहयोग: इसमें युवा मामले, सामाजिक न्याय, संस्कृति, श्रम एवं गृह मंत्रालय शामिल हैं।
    • जिसमें एक संयुक्त राष्ट्रीय समिति का गठन, वार्षिक प्रगति रिपोर्ट एवं प्रभावित व्यक्तियों को सहायता सेवाओं से जोड़ने के लिए एक राष्ट्रीय मंच शामिल है।
  • मुख्य उद्देश्य
    • मादक द्रव्यों के सेवन को एक बहुआयामी सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं सामाजिक चुनौती के रूप में देखना।
    • नशे की लत को रोकना एवं उससे उबरने में सहायता करना।
    • संयम की राष्ट्रीय संस्कृति को बढ़ावा देना।
    • वर्ष 2047 तक विकसित भारतकी नींव के रूप मेंनशा मुक्त युवा का निर्माण करना।
    • चिकित्सा एवं परिवर्तन के उत्प्रेरक के रूप में भारत की आध्यात्मिक राजधानी के रूप में लाभ उठाना।
  • डिजिटल प्लेटफॉर्म निगरानी: स्कूली बच्चों में ऑनलाइन नशीली दवाओं की बिक्री एवं डिजिटल लत को लक्षित करता है।
  • सामुदायिक आउटरीच: युवा नेटवर्क के माध्यम से प्रतिज्ञा अभियान, रविवार को साइकिल फिटनेस अभियान एवं जमीनी स्तर पर जागरूकता को बढ़ावा देता है।
  • वार्षिक समीक्षा तंत्र: प्रगति का मूल्यांकन विकसित भारत युवा नेता संवाद (Viksit Bharat Young Leaders Dialogue) 2026 के माध्यम से किया जाएगा।
  • सहायता सेवा एकीकरण: जोखिमग्रस्त व्यक्तियों को परामर्श, पुनर्वास एवं आपातकालीन सहायता से जोड़ने के लिए एक प्रस्तावित राष्ट्रीय डिजिटल प्लेटफॉर्म।

डे जीरो

एक नई रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि काबुल गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है, जिससे यह वर्ष 2030 तक सूखने वाला पहला आधुनिक राजधानी शहर बन सकता है।

डे जीरो क्या है?

  • “डे जीरो” उस बिंदु को संदर्भित करता है, जब किसी शहर या क्षेत्र की जल आपूर्ति सूख जाती है, जिससे निवासियों को नल के जल की सुविधा नहीं मिल पाती।
  • यह अत्यधिक जल संकट का संकेत देता है, जो प्रायः सूखे, जलवायु परिवर्तन एवं अनियमित जल प्रबंधन के कारण होता है।

काबुल के जल संकट के पीछे प्रमुख कारक

  • बढ़ती माँग: जनसंख्या 10 लाख (वर्ष 2001) से बढ़कर लगभग 60 लाख (वर्ष 2025) हो गई, जिससे जल संसाधन अत्यधिक हो गए।
  • जलवायु प्रभाव: गंभीर सूखे (वर्ष 2021-24) एवं बर्फ पिघलने में कमी के कारण भूजल में कमी आई है।
  • जल प्रदूषण: 80% भूजल प्रदूषित है, जिससे स्वास्थ्य संकट सामने आ रहा है।
  • कमजोर बुनियादी ढाँचा एवं वित्तीय घाटा: दशकों से कम निवेश, परियोजनाओं में देरी एवं वर्ष 2021 से रुकी हुई अंतरराष्ट्रीय सहायता ने जल प्रणालियों को पंगु बना दिया है।

उल्लेखनीय उदाहरण

  • केप टाउन (वर्ष 2018): अधिकारियों ने चेतावनी दी थी कि शहर में जल समाप्त होने में तीन महीने लगेंगे। बाँध का जल स्तर 13.5% तक गिर गया।
  • चेन्नई (वर्ष 2019): भीषण सूखे का सामना करना पड़ा एवं लगभग डे जीरो की स्थिति में पहुँच गया।

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