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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal August 09, 2025 03:10 7 0

वित्तीय समावेशन सूचकांक

RBI का वित्तीय समावेशन सूचकांक (FI-Index) मार्च 2025 में बढ़कर 67 हो गया, जो वर्ष 2024 में 64.2 था, वर्ष 2021 में इसके शुभारंभ के बाद से 24.3% की वृद्धि है, जो भारत में वित्तीय सेवाओं तक पहुँच के विस्तार में उल्लेखनीय प्रगति को दर्शाता है।

FI सूचकांक क्या है?

  • RBI द्वारा वर्ष 2021 में आरंभ किया गया, FI-सूचकांक बैंकिंग, निवेश, बीमा, डाक, पेंशन क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन को मापता है।
  • 0 से 100 के बीच अंक, जिसमें 100 पूर्ण समावेशन को दर्शाता है।
  • तीन उप-सूचकांकों पर आधारित
    • पहुँच (35%): बचत खाते, डाकघर, PoS टर्मिनल जैसे भौतिक/डिजिटल बुनियादी ढाँचे की उपलब्धता।
    • उपयोग (45%): बचत, ऋण ग्रहण एवं डिजिटल लेन-देन (जैसे- UPI) सहित माँग-पक्ष संकेतक।
    • गुणवत्ता (20%): वित्तीय साक्षरता, उपभोक्ता संरक्षण एवं शिकायत निवारण पर केंद्रित।
  • बिना किसी आधार वर्ष के तैयार किया गया FI-सूचकांक, समय के साथ वित्तीय समावेशन को आगे बढ़ाने में सभी हितधारकों द्वारा की गई संचयी प्रगति को दर्शाता है।

मुख्य विशेषताएँ

  • उपयोग एवं गुणवत्ता में सुधार से वर्ष 2025 में वृद्धि को बढ़ावा मिलेगा।
  • बढ़ावा दिया गया:-
    • डिजिटल अवसंरचना विस्तार
    • वित्तीय साक्षरता पहल
  • ग्लोबल फाइंडेक्स 2025 के अनुसार, अब 89% भारतीय वयस्कों के पास बैंक खाते हैं, जबकि वर्ष 2011 में यह संख्या 35% थी।

स्थलरुद्ध राष्ट्रों ने जलवायु ब्लॉक की शुरुआत की

तुर्कमेनिस्तान में तीसरे संयुक्त राष्ट्र भू-आबद्ध विकासशील देशों (Landlocked Developing Countries- LLDCs) के सम्मेलन में, 32 LLDCs ने जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (United Nations Framework Convention on Climate Change- UNFCCC) के अंतर्गत एक औपचारिक वार्ता समूह का गठन किया।

भू-आबद्ध विकासशील देश (LLDCs)

  • LLDCs वे राष्ट्र हैं, जिनकी समुद्र तक सीधी पहुँच नहीं है एवं इस भौगोलिक सीमा के कारण उन्हें विकास संबंधी गंभीर चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है।
  • वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्यता प्राप्त 32 LLDCs हैं।
  • इनमें से 16 को अल्प-विकसित देशों (Least Developed Countries- LDCs) के रूप में भी वर्गीकृत किया गया है।

LLDCs के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ

  • तटीय बंदरगाहों तक पहुँच नहीं, जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुँचने के लिए पड़ोसी पारगमन देशों पर निर्भरता बनी रहती है।
  • उच्च परिवहन एवं व्यापार लागत, जो अक्सर तटीय देशों की तुलना में दोगुनी से भी अधिक होती है।
  • लंबी आपूर्ति शृंखलाओं एवं पारगमन देशों के बुनियादी ढाँचे तथा स्थिरता पर निर्भरता के कारण माल की आवाजाही में बार-बार देरी होती है।
  • कम विदेशी निवेश एवं कम निर्यात अवसर, आर्थिक विकास को धीमा कर रहे हैं।
  • सीमित क्षेत्रीय व्यापार, क्योंकि पड़ोसी पारगमन देश, अक्सर समान बाधाओं के साथ स्वयं विकासशील अर्थव्यवस्थाएँ होती हैं।

उदाहरण

  • अफ्रीका में: नाइजर, चाड, इथियोपिया, युगांडा।
  • एशिया में: अफगानिस्तान, नेपाल, भूटान, लाओ PDR। 
  • यूरोप में: उत्तरी मैसेडोनिया, सर्बिया।
  • अमेरिका में: बोलीविया, पराग्वे।

शीलीड्स II (SheLeads II)

केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री ने संयुक्त राष्ट्र महिला के शीलीड्स II (SheLeads II) के दूसरे संस्करण का उद्घाटन किया। यह कार्यक्रम महिला नेताओं को सशक्त बनाने के उद्देश्य से एक प्रमुख क्षमता निर्माण कार्यक्रम है।

  • यह संस्करण महिला आरक्षण अधिनियम, 2023 के आलोक में विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है, जो लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं दोनों में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण अनिवार्य करता है।
  • यह कानून भारत के राजनीतिक परिदृश्य में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बेहतर बनाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

शीलीड्स II (SheLeads II) के बारे में

  • शीलीड्स II (SheLeads II), यू.एन. वुमेन इंडिया कंट्री ऑफिस की एक प्रमुख पहल है, जो सार्वजनिक एवं राजनीतिक नेतृत्व में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
  • यह कार्यक्रम महिला नेताओं का समर्थन करने एवं उन्हें आगामी लोकसभा तथा राज्य विधानसभा चुनावों में भाग लेने के लिए आवश्यक कौशल एवं नेटवर्क से संबद्ध करने के लिए डिजाइन किया गया है।
  • महत्त्व
    • यह पहल भारत के एक अधिक समावेशी एवं लैंगिक समानता वाले समाज के निर्माण के व्यापक लक्ष्य के अनुरूप है।
    • महिलाओं को नेतृत्वकारी भूमिकाएँ निभाने के लिए सशक्त बनाकर, शीलीड्स II राष्ट्र के भविष्य को आकार देने एवं सतत् विकास को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • महिला नेताओं को ऐसी नीतियों को आकार देने में महत्त्वपूर्ण माना जाता है, जो सभी नागरिकों की आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करती हैं एवं यह सुनिश्चित करती हैं कि विकास वास्तव में प्रत्येक मुद्दे का प्रतिनिधित्व करता है।

UN वुमेन के बारे में

  • UN वुमेन संयुक्त राष्ट्र की एक अग्रणी संस्था है, जो महिलाओं के अधिकारों, लैंगिक समानता तथा महिलाओं एवं लड़कियों के सशक्तिकरण को आगे बढ़ाने के लिए समर्पित है।
  • यह कानूनों, संस्थानों एवं सामाजिक व्यवहारों में परिवर्तन लाकर लैंगिक अंतर को कम करने तथा सभी महिलाओं के लिए एक समान दुनिया का निर्माण करने का कार्य करती है।

एड वलोरेम ड्यूटी 

(Ad Valorem Duty)

अपनी व्यापक व्यापार रणनीति के तहत, संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारत द्वारा रूसी तेल के आयात से संबंधित राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए, भारत पर 25% एड वलोरेम ड्यूटी (Ad Valorem Duty) लगाया है।

  • शुल्कों में यह वृद्धि पूर्व में की गई शुल्क वृद्धि के बाद की गई है, जिससे भारत पर कुल शुल्क दर 50% हो गई है।
  • यह अतिरिक्त शुल्क 27 अगस्त, 2025 से लागू होगा, जिसमें बातचीत के लिए 21 दिन का समय होगा, जिससे भारत अमेरिका के साथ बातचीत कर सकेगा।

एड वलोरेम ड्यूटी क्या है?

  • एड वलोरेम ड्यूटी आयात पर लगाया जाने वाला एक सीमा शुल्क है, जिसकी गणना आयातित वस्तुओं के मूल्य के प्रतिशत के रूप में की जाती है।
  • एड वलोरेम’ शब्द लैटिन भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है:- ‘मूल्य के अनुसार’।
  • यह प्रणाली विशिष्ट शुल्कों के विपरीत है, जो वस्तुओं के मौद्रिक मूल्य के बजाय उनकी मात्रा या वजन पर आधारित होते हैं।
  • उदाहरण के लिए: यदि एड वलोरेम ड्यूटी 25% है एवं 1,000 डॉलर मूल्य का कोई भारतीय उत्पाद अमेरिका में आयात किया जाता है, तो देय शुल्क 250 डॉलर (1,000 डॉलर का 25%) होगा।
    • यह शुल्क वस्तुओं के मूल्य पर लागू होता है, न कि उनके भौतिक गुणों जैसे भार या आयतन पर।

एड वलोरेम ड्यूटी की मुख्य विशेषताएँ

  1. मूल्य के अनुपात में: इसकी गणना आयातित वस्तुओं के मूल्य के आधार पर की जाती है, अर्थात् वस्तु जितनी महँगी होगी, भुगतान किया जाने वाला शुल्क उतना ही अधिक होगा।
  2. लचीलापन: जैसे ही मुद्रास्फीति या बाजार की स्थितियों जैसे कारकों के कारण वस्तुओं का मूल्य परिवर्तित होता है, शुल्क राशि स्वचालित रूप से समायोजित हो जाती है, यह सुनिश्चित करते हुए कि यह वस्तुओं के वर्तमान मूल्य के समानुपाती रहे।
  3. वैश्विक उपयोग: इसका वैश्विक स्तर पर व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है क्योंकि यह शुल्कों की गणना करने का एक सरल एवं पारदर्शी तरीका प्रदान करता है।

नेपाल में चावल संवर्द्धन और आपूर्ति शृंखला प्रबंधन के लिए भारत-संयुक्त राष्ट्र सहयोगात्मक पहल

हाल ही में भारत ने संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (UN  WFP) के सहयोग से नेपाल में चावल संवर्द्धन और आपूर्ति शृंखला प्रबंधन को मजबूत करने के लिए एक परियोजना शुरू की।

पहल के बारे में

  • यह व्यापक भारत-संयुक्त राष्ट्र वैश्विक क्षमता निर्माण पहल का हिस्सा है।
  • उद्देश्य: नेपाल के चावल संवर्द्धन और आपूर्ति शृंखला को सुदृढ़ बनाना, खरीद, डेटा संग्रह और कार्यबल कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करना।
    • भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के अनुभव से ज्ञान का आदान-प्रदान।
  • कार्यान्वयन चरण
    • चरण 1: आवश्यकताओं का आकलन और हितधारक सहभागिता (प्रारंभिक चरण)।
    • चरण 2: व्यावहारिक अनुभव और प्रशिक्षण के लिए नेपाली अधिकारियों का भारत का अध्ययन दौरा।
    • चरण 3: प्रभावी चावल संवर्द्धन हेतु कार्य योजना का विकास।
  • ITEC के माध्यम से प्रशिक्षण: प्रशिक्षण घटक भारत के भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC) कार्यक्रम के अंतर्गत कार्यान्वित किया जाता है, जिसके तहत वर्ष 2001 से अब तक 3,000 से अधिक नेपाली अधिकारियों को प्रशिक्षित किया गया है।

वैश्विक क्षमता निर्माण पहल

  • सितंबर 2023 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के 78वें सत्र में घोषित।
  • सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने के लिए दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ावा देने पर केंद्रित।

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