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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal August 25, 2025 04:01 14 0

सर्वोच्च न्यायालय का आवारा कुत्तों से संबंधित संशोधित आदेश

सर्वोच्च न्यायालय ने पशु जन्म नियंत्रण (Animal Birth Control- ABC) नियम, 2023 के तहत नसबंदी, कृमिनाशक एवं टीकाकरण किए गए आवारा कुत्तों को उनके मूल क्षेत्रों में वापस छोड़ने की अनुमति देने वाले अपने पूर्व निर्देश में संशोधन किया है।

सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख निर्देश

  • नसबंदी किए गए कुत्तों को छोड़ना: नसबंदी, टीकाकरण एवं कृमिनाशक के बाद, आवारा कुत्तों को उसी क्षेत्र में वापस छोड़ा जाना चाहिए, जहाँ से उन्हें उठाया गया था।
  • पागल/आक्रामक कुत्तों के लिए अपवाद: रेबीज से संक्रमित या आक्रामक व्यवहार वाले कुत्तों को वापस नहीं छोड़ा जाना चाहिए।
    • नसबंदी के बाद उन्हें आश्रय स्थल  में रखा जाएगा।
  • भोजन पर प्रतिबंध: आवारा कुत्तों को केवल निर्धारित क्षेत्रों में ही भोजन दिया जा सकता है। सड़कों या सार्वजनिक स्थानों पर भोजन देना वर्जित है, उल्लंघन करने वालों के लिए दंड का प्रावधान है।
  • राष्ट्रीय नीति निर्माण: इसे सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में लागू कर दिया गया है, तथा आवारा कुत्तों से संबंधित लंबित प्रकरणों को एक समान राष्ट्रीय ढाँचा स्थापित करने के लिए उच्च न्यायालयों से सर्वोच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया है।
  • नगरपालिका की जिम्मेदारी एवं प्रवर्तन
    • समर्पित आहार क्षेत्र स्थापित करना।
    • उल्लंघनों की रिपोर्ट करने के लिए हेल्पलाइन बनाना।
    • डॉग पाउंड, पशु चिकित्सकों, कुत्तों को पकड़ने वाले कर्मचारियों एवं वाहनों का डेटा रखना।
    • सरकारी अधिकारियों के काम में बाधा डालने पर मुकदमा चलाया जाएगा।
  • गोद लेने का प्रावधान: व्यक्ति/गैर-सरकारी संगठन टैग लगाने के बाद आवारा कुत्तों को गोद ले सकते हैं, यह सुनिश्चित करना गोद लेने वालों की जिम्मेदारी है कि कुत्ते सड़कों पर वापस न आएँ।

पशु जन्म नियंत्रण (ABC) नियम, 2023 के बारे में

  • वैज्ञानिक आधार: नसबंदी एवं टीकाकरण किए गए कुत्तों को उनके मूल क्षेत्रों में वापस छोड़ना अनिवार्य है, जिससे आवारा कुत्तों की जनसंख्या पर मानवीय तथा स्थायी नियंत्रण सुनिश्चित होता है।
  • उद्देश्य: आश्रयों में भीड़भाड़ को रोकना, रेबीज के जोखिम को कम करना एवं आवारा कुत्तों के प्राकृतिक आवास का सम्मान करना।
    • देहरादून एवं लखनऊ जैसे शहरों में ABC कार्यान्वयन के तहत आक्रामक नसबंदी अभियानों के माध्यम से जनसंख्या में कमी दर्ज की गई है।

SIR के लिए आधार

ADR बनाम भारत निर्वाचन आयोग (बिहार SIR मामला) मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने बिहार के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision- SIR) अभियान में मतदाता सूची में नाम शामिल करने के दावों के लिए आधार या सूचीबद्ध 11 दस्तावेजों में से किसी एक को शामिल करने का निर्देश दिया था।

  • चुनाव आयोग ने इससे पहले SIR अभियान के तहत प्रकाशित मसौदा मतदाता सूची से हटाए गए 65 लाख लोगों के नाम जारी किए थे।

SIR क्या है?

  • विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव से पहले मतदाता सूची को अद्यतन एवं सत्यापित करने के लिए किया जाने वाला एक व्यापक अभियान है।
  • संवैधानिक प्रावधान
    • अनुच्छेद-324: चुनावों का अधीक्षण, निर्देशन एवं नियंत्रण भारत निर्वाचन आयोग (ECI) को सौंपता है।
    • अनुच्छेद-326: यह सुनिश्चित करता है, कि लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं के चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर हों।
  • कानूनी प्रावधान
    • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950: मतदाता सूची की तैयारी एवं संशोधन को नियंत्रित करता है।
    • निर्वाचक पंजीकरण नियम, 1960: दावों, आपत्तियों एवं सत्यापन के लिए प्रक्रिया निर्धारित करता है।

SIR पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश (बिहार, 2025)

  • दस्तावेज की आवश्यकता: ड्राफ्ट सूची से बाहर किए गए मतदाता आधार या चुनाव आयोग द्वारा फॉर्म 6 के तहत मान्यता प्राप्त 11 दस्तावेजों में से किसी एक के साथ दावा प्रस्तुत कर सकते हैं।
  • प्रस्तुत करने का तरीका: शहरी एवं ग्रामीण बिहार दोनों में सुगमता सुनिश्चित करते हुए, 1 सितंबर, 2025 तक ऑनलाइन या भौतिक रूप से शामिल करने के दावे दायर किए जा सकते हैं।
  • बूथ स्तरीय एजेंटों (Booth Level Agents- BLAs) की भूमिका: न्यायालय ने बिहार के 12 मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को निर्देश दिया कि वे यह सुनिश्चित करें कि BLA बहिष्कृत मतदाताओं को दावा फॉर्म भरने एवं जमा करने में सहायता करें।
  • बूथ स्तरीय अधिकारियों (Booth Level Officers- BLOs) की जवाबदेही: BLOs को भौतिक फॉर्म प्राप्त होने की सूचना देनी होगी, हालाँकि ऐसी सूचना फॉर्म की पूर्णता की गारंटी नहीं देगी।
  • मतदाता सूची बहिष्करण में पारदर्शिता: चुनाव आयोग ने बिहार के 38 जिलों में 65 लाख बहिष्कृत मतदाताओं की बूथवार सूचियाँ प्रकाशित की हैं, जिसमें बहिष्करण के कारण (मृत्यु, स्थानांतरण, दोहराव) भी शामिल हैं।
  • अब और विस्तार नहीं : सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि आपत्तियाँ 1 सितंबर तक दर्ज की जानी चाहिए, तथा मामले की अगली सुनवाई 8 सितंबर को होगी। उसने समय सीमा बढ़ाने से इनकार कर दिया।

SIR के लिए स्वीकार्य 11 दस्तावेज

  • पहचान पत्र/पेंशन भुगतान आदेश
  • भारत में सरकार/स्थानीय प्राधिकरण/बैंक/डाकघर/LIC/सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा 01.07.1987 से पहले जारी किया गया पहचान-पत्र/प्रमाण-पत्र/दस्तावेज
  • जन्म प्रमाण-पत्र
  • पासपोर्ट
  • मैट्रिकुलेशन/शैक्षणिक प्रमाण-पत्र
  • स्थायी निवास प्रमाण-पत्र
  • वन अधिकार प्रमाण-पत्र
  • OBC/SC/ST या कोई भी जाति प्रमाण-पत्र
  • राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (जहाँ भी मौजूद हो)
  • राज्य/स्थानीय प्राधिकरणों द्वारा तैयार किया गया परिवार रजिस्टर
  • सरकार द्वारा भूमि/मकान आवंटन प्रमाण-पत्र।

संयुक्त राष्ट्र ने गाजा में अकाल की घोषणा की

संयुक्त राष्ट्र ने गाजा में आधिकारिक तौर पर अकाल की घोषणा की, जो पश्चिम एशिया में इस तरह की पहली घोषणा है।

प्रमुख तथ्य 

  • एकीकृत खाद्य सुरक्षा चरण वर्गीकरण (Integrated Food Security Phase Classification- IPC) ने 15 अगस्त, 2025 तक गाजा प्रांत (गाजा शहर) में अकाल की पुष्टि की है।
  • IPC ने पहले सोमालिया (2011), दक्षिण सूडान (वर्ष 2017 एवं वर्ष 2020) तथा सूडान के दारफुर क्षेत्र के कुछ हिस्सों (वर्ष 2023) में अकाल की घोषणा की है।

संकट के कारण

  • इजरायल एवं हमास के बीच 22 महीने का युद्ध, जिसके कारण बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ।
  • मानवीय एवं वाणिज्यिक खाद्य आपूर्ति पर कड़े प्रतिबंध।
  • इजरायल ने मार्च 2025 में सहायता पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया, बाद में मई में बहुत सीमित आपूर्ति की अनुमति दी।
  • स्थानीय खाद्य प्रणालियों का पतन, 98% कृषि भूमि क्षतिग्रस्त या दुर्गम, पशुधन नष्ट एवं मत्स्यपालन पर प्रतिबंध।
  • स्वास्थ्य प्रणाली का पतन एवं सुरक्षित पेयजल की पहुँच का नुकसान।

एकीकृत खाद्य सुरक्षा चरण वर्गीकरण (IPC) पहल के बारे में

IPC एक संयुक्त राष्ट्र समर्थित गठबंधन है, जो अकालों की चेतावनी देने के लिए वैश्विक खाद्य संकटों की निगरानी एवं वर्गीकरण करता है।

अकाल की परिभाषा (IPC  मानदंड)

  • कम-से-कम 20% परिवारों को भोजन की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है।
  • पाँच वर्ष से कम आयु के कम-से-कम 30% बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं।
  • प्रतिदिन 10,000 लोगों में से कम-से-कम 2 लोग भुखमरी, कुपोषण या संबंधित बीमारी से मरते हैं।

एशिया-प्रशांत प्रसारण विकास संस्थान (AIBD)

हाल ही में थाईलैंड में आयोजित एशिया-प्रशांत प्रसारण विकास संस्थान (Asia-Pacific Institute for Broadcasting Development- AIBD) के 23वें आम सम्मेलन में भारत को इसके कार्यकारी बोर्ड का अध्यक्ष चुना गया।

एशिया-प्रशांत प्रसारण विकास संस्थान (AIBD) के बारे में

  • AIBD एक अनूठा अंतर-सरकारी संगठन है, जो एशिया-प्रशांत एवं उसके बाहर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सहयोग को बढ़ावा देता है।
  • स्थापना: AIBD की स्थापना वर्ष 1977 में यूनेस्को के तत्त्वावधान में हुई थी।
  • उद्देश्य: सदस्य देशों के बीच मीडिया विकास, क्षमता निर्माण एवं सहयोग को बढ़ावा देना।
  • मुख्यालय: कुआलालंपुर, मलेशिया।
  • सदस्यता: AIBD में वर्तमान में 44 देशों के 92 सदस्य संगठन हैं, जिनमें 26 सरकारी सदस्य (देश) शामिल हैं, जिनका प्रतिनिधित्व 48 प्रसारण प्राधिकरण और प्रसारक करते हैं तथा 44 संबद्ध संगठन हैं, जिनका प्रतिनिधित्व एशिया, प्रशांत, यूरोप, अफ्रीका, अरब राज्यों एवं उत्तरी अमेरिका के 28 देशों व क्षेत्रों द्वारा किया जाता है।
  • भारत की भूमिका
    • भारत AIBD का संस्थापक सदस्य है।
    • प्रसार भारती, भारत का सार्वजनिक सेवा प्रसारक, AIBD में केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का प्रतिनिधित्व करता है।

23वें AIBD महासम्मेलन (GC 2025) के बारे में

  • 23वाँ महासम्मेलन एवं संबद्ध बैठकें 19-21 अगस्त, 2025 तक थाईलैंड के फुकेट में आयोजित की गईं, जिसकी अध्यक्षता प्रसार भारती के CEO श्री गौरव द्विवेदी ने की।
  • थीम: “जनता, शांति एवं समृद्धि के लिए मीडिया”।
  • मुख्य फोकस क्षेत्र
    • एशिया-प्रशांत क्षेत्र में एक जीवंत एवं सहयोगात्मक मीडिया वातावरण को बढ़ावा देना।
    • सदस्य देशों के बीच नीतिगत आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करना।
    • प्रसारण को मजबूत करने के लिए संसाधन साझाकरण एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बढ़ावा देना।
  • भारत का नेतृत्व: कार्यकारी बोर्ड अध्यक्ष के चुनाव में भारत को सर्वाधिक मत प्राप्त हुए।
    • भारत ने इससे पहले वर्ष 2016 में AIBD कार्यकारी परिषद की अध्यक्षता की थी।
    • AIBD महासम्मेलन के अध्यक्ष गौरव द्विवेदी ने निरंतर सहयोग एवं द्विपक्षीय साझेदारी का आश्वासन दिया।

सहकारी बैंकों के लिए आधार-आधारित प्रमाणीकरण ढाँचा

हाल ही में UIDAI ने पूरे भारत में अंतिम छोर तक बैंकिंग एवं डिजिटल वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिए सहकारी बैंकों के लिए एक नया आधार-आधारित प्रमाणीकरण ढाँचा शुरू किया है।

ढाँचे के बारे में

  • केंद्रीय सहकारिता मंत्रालय, NABARD, NPCI एवं सहकारी बैंकों के साथ व्यापक परामर्श के बाद यह ढाँचा विकसित किया गया है।
  • कवरेज: यह ढाँचा 34 राज्य सहकारी बैंकों (State Cooperative Banks- SCBs) एवं 352 जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों (District Central Cooperative Banks- DCCBs) पर लागू होता है।
  • पूरे भारत के सभी सहकारी बैंकों को अब ग्राहक प्रमाणीकरण एवं डिजिटल बैंकिंग के लिए आधार-सक्षम सेवाओं तक पहुँच प्राप्त होगी।
  • परिचालन संरचना: केवल राज्य सहकारी बैंक ही UIDAI के साथ प्रमाणीकरण उपयोगकर्ता एजेंसियों (Authentication User Agencies- AUAs) एवं ई-केवाईसी उपयोगकर्ता एजेंसियों (eKYC User Agencies- KUAs) के रूप में पंजीकृत होंगे।
    • DCCBs अपने-अपने SCBs के आधार एप्लिकेशन एवं IT सिस्टम का उपयोग कर सकते हैं।
    • यह मॉडल DCCBs के लिए स्वतंत्र IT अवसंरचना निर्माण की आवश्यकता को समाप्त करता है, लागत कम करता है एवं अपनाने को सरल बनाता है।

सहकारी बैंकों के लिए लाभ

  • सहकारी बैंक बायोमेट्रिक eKYC एवं चेहरे से प्रमाणीकरण की सुविधा प्रदान कर सकते हैं, जिससे विशेषतः ग्रामीण एवं अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में खाता खोलना आसान हो जाएगा।
  • आधार से जुड़े कल्याणकारी हस्तांतरण सीधे ग्राहकों के खातों में पहुँचेंगे, जिससे प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) की दक्षता बढ़ेगी।
  • बैंक डिजिटल लेनदेन को बेहतर बनाने के लिए आधार सक्षम भुगतान प्रणाली (Aadhaar Enabled Payment System) एवं आधार भुगतान ब्रिज पेमेंट सेवाएँ भी प्रदान कर सकते हैं।

वित्तीय समावेशन के लिए महत्त्व 

  • यह संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 के अनुरूप है, जो समावेशी विकास में सहकारी समितियों की भूमिका पर प्रकाश डालता है।
  • यह ढाँचा सहकारी बैंकों को भारत के वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र में डिजिटल प्रवर्तक के रूप में कार्य करने के लिए सशक्त बनाता है।
  • यह वंचित आबादी के लिए सुरक्षित, तीव्र एवं कागज रहित बैंकिंग सेवाओं को बढ़ाता है।
  • परिचालन लागत को कम करके एवं सेवा वितरण में सुधार करके, यह ढाँचा समावेशी तथा सतत् वित्तीय विकास में सहकारी समितियों की भूमिका को मजबूत करता है।

भारत में सहकारी बैंक

  • बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के अनुसार, सहकारी बैंक सहकारी सिद्धांतों पर स्थापित वित्तीय संस्थाएँ हैं, जो सहकारी समिति अधिनियम के तहत पंजीकृत हैं एवं आंशिक रूप से बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 द्वारा शासित हैं।
  • भारतीय रिजर्व बैंक सहकारी बैंकों के लिए प्रमुख नियामक निकाय है, जो उनकी गतिविधियों की निगरानी करता है एवं बैंकिंग मानदंडों का पालन सुनिश्चित करता है।
  • भूमिका: वे कृषि, ग्रामीण क्षेत्रों, लघु उद्योगों एवं स्व-नियोजित श्रमिकों को ऋण तथा बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करते हैं, जिससे जमीनी स्तर पर वित्तीय समावेशन सुनिश्चित होता है।

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