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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal September 12, 2025 03:13 92 0

एस्परजिलस प्रजाति की खोज

पुणे स्थित MACS-आघारकर अनुसंधान संस्थान के भारतीय वैज्ञानिकों ने उन्नत बहु-चरणीय वर्गीकरण का उपयोग करते हुए पश्चिमी घाट में दो नई एस्परजिलस प्रजातियों की खोज की।

नई पहचानी गई प्रजातियाँ

  • एस्परजिलस ढाकेफाल्करी (Aspergillus dhakephalkarii): इसमें तीव्र  वृद्धि, ब्राउन  कोनिडिया, यलो स्केलेरोटिया, दीर्घवृत्ताकार कोनिडिया पाए जाते हैं।
  • एस्परजिलस पेट्रीसियाविल्टशायरी (Aspergillus patriciawiltshireae): इसमें प्रचुर मात्रा में स्केलेरोटिया, इचिनुलेट कोनिडिया, ब्रांचड कोनिडियोफोर पाए जाते हैं।
  • यह ए. एक्यूलेटिनस (A. aculeatinus) एवं ए. ब्रुनेओवियोलेसस (A. Brunneoviolaceus) का पहला भारतीय रिकॉर्ड है।

‘एस्परजिलस सेक्शन निगरी’ के बारे में

  • यह एस्परजिलस का एक उप-समूह है, जिन्हें कोनिडिया के कारण ‘ब्लैक एस्परजिलाई’ कहा जाता है।
  • ये मृदा, सड़े हुए पौधों और विविध पारिस्थितिकी तंत्रों में पाए जाते हैं।

प्रयोग और महत्त्व

  • औद्योगिक उपयोग: साइट्रिक एसिड उत्पादन, किण्वन प्रौद्योगिकी और एंजाइम निर्माण।
  • खाद्य उद्योग: फूड मायकोलॉजी और बायोटेक्नोलॉजी में योगदान।
  • कृषि: फॉस्फेट घुलनशीलता और मृदा के स्वास्थ्य सुधार में भूमिका।
  • पारिस्थितिकी महत्त्व: पोषक तत्त्व चक्र में योगदान।
  • खतरा: कुछ प्रजातियाँ मनुष्यों में ‘ऑपर्च्युनिस्टिक पैथोजन्स’  (Opportunistic pathogens) उत्पन्न करती हैं।
  • उदाहरण के लिए, यह एस्परजिलोसिस का कारण बन सकता है।

पहला विदेशी अटल नवाचार केंद्र

हाल ही में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने IIT दिल्ली-अबू धाबी परिसर में भारत के पहले विदेशी अटल नवाचार केंद्र का उद्घाटन किया।

अटल नवाचार केंद्र (AIC) के बारे में

  • अटल नवाचार मिशन (AIM) के तहत पहला विदेशी अटल नवाचार केंद्र (AIC) स्थापित किया गया है।
  • यह IIT दिल्ली-अबू धाबी परिसर में अवस्थित है, जो उच्च शिक्षा एवं अनुसंधान सहयोग में भारत की बढ़ती वैश्विक उपस्थिति का प्रतीक है।
  • अटल इनोवेशन मिशन (AIC), भारत में अटल टिंकरिंग लैब्स की सफलता से प्रेरणा लेते हुए, संयुक्त अरब अमीरात में भारतीय पाठ्यक्रम आधारित विद्यालयों के लिए अटल नवाचार प्रयोगशालाओं की स्थापना एवं समर्थन करेगा।

अटल नवाचार मिशन (AIM) के बारे में

  • नीति आयोग द्वारा वर्ष 2016 में शुरू किया गया, अटल नवाचार मिशन भारत में नवाचार एवं उद्यमिता की संस्कृति के निर्माण की एक प्रमुख पहल है।
  • यह स्कूलों, विश्वविद्यालयों, अनुसंधान संस्थानों, उद्योगों एवं MSME में कार्य करता है।
  • मुख्य कार्य
    • उद्यमिता को बढ़ावा देना: वित्तपोषण एवं मार्गदर्शन के साथ नवप्रवर्तकों का समर्थन करना।
    • नवाचार को बढ़ावा देना: विचार सृजन के लिए सहयोगी मंच स्थापित करना।
  • प्रमुख कार्यक्रम
    • अटल टिंकरिंग लैब्स (ATLs): स्कूल-स्तरीय नवाचार प्रयोगशालाएँ।
    • अटल इनक्यूबेशन सेंटर (AICs): स्टार्ट-अप्स को बढ़ावा देना।
    • अटल न्यू इंडिया चैलेंजेज एवं अटल ग्रैंड चैलेंजेज: समाधान-संचालित नवाचार।
    • मेंटर इंडिया: राष्ट्रव्यापी मेंटर नेटवर्क।
  • पारिस्थितिकी तंत्र निर्माण के लिए शिक्षा जगत, उद्योगों, गैर-सरकारी संगठनों एवं व्यक्तियों के साथ सहयोग करता है।
  • व्यवस्थित निगरानी के लिए रियल-टाइम MIS डैशबोर्ड का उपयोग करता है।

महादेई वन्यजीव अभयारण्य

सर्वोच्च न्यायालय ने गोवा सरकार को बाघ अभयारण्य के रूप में प्रस्तावित महादेई वन्यजीव अभयारण्य पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है।

महादेई वन्यजीव अभयारण्य के बारे में

  • इसे वर्ष 1999 में अभयारण्य घोषित किया गया था, इसका नाम महादेई नदी पर रखा गया है, जिसका उद्गम इसी अभयारण्य से होता है।
  • वनस्पतियाँ
    • आर्द्र पर्णपाती, अर्द्ध-सदाबहार तथा सदाबहार वनों सहित पवित्र उपवनों में अनेक दुर्लभ एवं स्थानीय प्रजातियाँ संरक्षित हैं।
    • केसरिया रंग के फूलों की विशेषता से युक्त अनोखा सदाबहार अशोक वृक्ष।
  • जीव-जंतु
    • सामान्य प्रजातियाँ: भारतीय गौर, बार्किंग डिअर, साँभर, सिवेट, जंगली सूअर, खरगोश, नेवला, लंगूर, मकॉक।
    • दुर्लभ प्रजातियाँ: बाघ, तेंदुआ, ब्लैक पैंथर, स्लॉथ बियर, ढोल, जंगली बिल्ली, माउस डिअर, फ्लाइंग स्क्विरल, पैंगोलिन, सिलेंडर लोरिस।
    • पक्षी जीवन: 255 से अधिक पक्षी प्रजातियाँ (53 प्रजनन); अंतरराष्ट्रीय पक्षी क्षेत्र के रूप में मान्यता प्राप्त। 
      • प्रमुख पक्षियों में नीलगिरि वुड-पिजन, मालाबार पैराकीट, मालाबार ग्रे हॉर्नबिल, ग्रे-हेडेड बुलबुल, रूफस बैबलर, व्हाइट-बेलिड ब्लू फ्लाईकैचर एवं क्रिमसन-बैक्ड सनबर्ड शामिल हैं।
    • सरीसृप: भारत के “बिग फोर” विषैले साँप (कोबरा, क्रेट, रसेल वाइपर, सॉ-स्केल्ड वाइपर) के साथ-साथ किंग कोबरा, मालाबार पिट वाइपर, अजगर एवं कई दुर्लभ प्रजातियाँ यहाँ पाई जाती हैं।
    • उभयचर: इसमें लुप्तप्राय एवं स्थानिक प्रजातियाँ शामिल हैं, जैसे मार्बल्ड रमनेला, मालाबार ग्लाइडिंग फ्रॉग, तथा यूनिक सीसिलियन (नादकर्णी, महादेई एवं गोवा सीसिलियन)
    • तितलियाँ: 257 प्रजातियाँ अवलोकित की गईं, जिनमें साउथर्न बर्डविंग (दक्षिण भारत की सबसे बड़ी तितली), स्ट्रिपड टाइगर,ब्लू मॉरमॉन और ब्लू टाइगर शामिल हैं।

विशेषताएँ

  • गोवा का एकमात्र अभयारण्य जहाँ बाघों की उपस्थिति दर्ज की गई है।
  • गोवा की तीन सर्वोच्च चोटियाँ: सोनसोगोड (1,027 मीटर), तलवचे सदा (812 मीटर), एवं वाघेरी (725 मीटर) यहाँ स्थित हैं।

विश्व का पहला डिजिटल जनजातीय विश्वविद्यालय ‘आदि संस्कृति’

केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय ने नई दिल्ली के भारत मंडपम में विश्व के पहले डिजिटल जनजातीय विश्वविद्यालय, आदि संस्कृति का शुभारंभ किया।

आदि संस्कृति के बारे में

  • प्लेटफॉर्म की प्रकृति: एक डिजिटल अकादमी एवं ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म, जो जनजातीय कला, शिल्प, संस्कृति तथा ज्ञान प्रणालियों के लिए एक ऑनलाइन बाजार को एकीकृत करता है।
  • मंत्रालय: केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय।
  • उद्देश्य
    • भारत की जनजातीय विरासत का संरक्षण एवं संवर्द्धन करना।
    • जनजातीय समुदायों के लिए स्थायी आजीविका के अवसर सृजित करना।
    • जनजातीय संस्कृति को आधुनिक डिजिटल शिक्षा एवं वाणिज्य के साथ एकीकृत करना।
  • कार्यान्वयन: राज्य जनजातीय अनुसंधान संस्थानों (TRI) के सहयोग से निर्मित।
  • पहले चरण में आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना एवं उत्तर प्रदेश सहित 15 राज्यों के TRI शामिल थे।

आदि संस्कृति की मुख्य विशेषताएँ

  • आदि विश्वविद्यालय (डिजिटल जनजातीय कला अकादमी): जनजातीय नृत्य, चित्रकला, शिल्प, संगीत एवं लोककथाओं पर 45 नवीन पाठ्यक्रम प्रदान करता है।
  • आदि संपदा (सामाजिक-सांस्कृतिक भंडार): पाँच विषयों- चित्रकला, नृत्य, परिधान एवं वस्त्र, कलाकृतियाँ एवं आजीविका पर आधारित 5,000 से अधिक दस्तावेजों का संग्रह।
  • आदि हाट (ऑनलाइन बाजार): वर्तमान में TRIFED से संबद्ध यह पहल, आदिवासी कारीगरों के लिए प्रत्यक्ष उपभोक्ता पहुँच के साथ एक समर्पित बाजार के रूप में विकसित होने का लक्ष्य रखती है।

कोलेस्ट्रॉल आधारित नैनोमटेरियल

नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (INST), मोहाली के भारतीय वैज्ञानिकों ने अगली पीढ़ी के स्पिनट्रॉनिक उपकरणों के लिए इलेक्ट्रॉन स्पिन को नियंत्रित करने हेतु कोलेस्ट्रॉल-आधारित नैनोमटेरियल विकसित किए हैं।

  • उनके निष्कर्ष हाल ही में केमिस्ट्री ऑफ मैटेरियल्स में प्रकाशित हुए हैं।

कोलेस्ट्रॉल-आधारित नैनोमटेरियल

  • ये नैनोसंरचनाएँ हैं, जिन्हें कोलेस्ट्रॉल अणुओं का उपयोग करके डिजाइन किया गया है, जो नैनोस्केल पर कार्यात्मक सामग्रियों को डिजाइन करने के लिए उनकी असममितिता (Chirality), लचीलेपन एवं जैव-संगतता का लाभ उठाते हैं।
  • उत्पादन विधि: कोलेस्ट्रॉल को विभिन्न धातु आयनों के साथ मिलाकर शोधकर्ताओं ने ऐसे नैनोमटेरियल निर्मित किए, जो चुनिंदा रूप से इलेक्ट्रॉन स्पिन को फिल्टर करते हैं।
  • उद्देश्य: इसे इलेक्ट्रॉन स्पिन, आणविक अंतःक्रियाओं एवं जैव-इलेक्ट्रॉनिक कार्यों के नियंत्रण हेतु प्रयोग किया जाता है, जिससे स्पिनट्रॉनिक्स, क्वांटम उपकरणों तथा जैव-चिकित्सा प्रौद्योगिकियों में विविध अनुप्रयोग संभव हो पाते हैं।
    • स्पिनट्रॉनिक्स (स्पिन-आधारित इलेक्ट्रॉनिक्स) एक ऐसी तकनीक है, जो इलेक्ट्रॉनों के आंतरिक स्पिन को उनके आवेश के साथ संयोजित कर सूचना के अधिक कुशल भंडारण एवं संसाधन को संभव बनाती है।

संभावित अनुप्रयोग

  • ऊर्जा-कुशल इलेक्ट्रॉनिक्स: कोलेस्ट्रॉल-आधारित स्पिनट्रॉनिक्स विद्युत की खपत को कम कर सकते हैं, जिससे हरित एवं अधिक सतत् तकनीकें संभव हो सकती हैं।
  • मेमोरी डिवाइस: स्पिन-नियंत्रित नैनोमटेरियल का उपयोग ऊर्जा-कुशल मेमोरी चिप्स डिजाइन करने के लिए किया जा सकता है, जिससे डेटा भंडारण तकनीकों में प्रगति होगी।
  • क्वांटम तकनीकें: इन सामग्रियों की केमिकल ट्यूनेबिलिटी ‘क्वांटम सूचना प्रसंस्करण’ तथा उच्च-सटीक स्पिन हस्तक्षेप के लिए नए अवसर एवं संभावनाएँ प्रस्तुत करती है।
  • बायोइलेक्ट्रॉनिक्स: कोलेस्ट्रॉल की जैविक प्रणालियों के साथ अनुकूलता को देखते हुए, इसके अनुप्रयोग जैव-चिकित्सा उपकरणों तक विस्तारित हो सकते हैं।
  • आणविक पृथक्करण: यह तकनीक अत्यधिक सटीकता के साथ अणुओं को पृथक कर सकती है, जो फार्मास्यूटिकल्स एवं उन्नत सामग्री अनुसंधान में उपयोगी है।

ज्ञान भारतम्

हाल ही में संस्कृति मंत्रालय ने नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित अंतरराष्ट्रीय पांडुलिपि विरासत सम्मेलन में ‘ज्ञान भारतम्’ का शुभारंभ किया।

  • पांडुलिपि विरासत पर प्रथम अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (11-13 सितंबर) में विद्वानों, सांस्कृतिक विशेषज्ञों तथा वैश्विक संस्थानों सहित 1,100 से अधिक प्रतिभागियों ने प्रतिनिधित्व किया।

ज्ञान भारतम् के बारे में

  • राष्ट्रीय पहल: ज्ञान भारतम् एक ऐतिहासिक पहल है, जिसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर भारत की पांडुलिपि विरासत का संरक्षण, डिजिटलीकरण एवं प्रसार करना है।
  • दूरदर्शी दृष्टिकोण: यह पहल संरक्षण, विद्वता एवं सुगम्यता को एकीकृत करती है तथा वर्ष 2047 तक विकसित भारत के दृष्टिकोण एवं भारत की ‘विश्व गुरु’ बनने की आकांक्षा के साथ सामंजस्य स्थापित करती है।

पहल के उद्देश्य

  • दस्तावेजीकरण: पांडुलिपियों के एक राष्ट्रव्यापी रजिस्टर की पहचान एवं निर्माण।
  • संरक्षण: पेशेवर संरक्षण उपायों के साथ दुर्लभ ग्रंथों का पुनरुद्धार।
  • डिजिटलीकरण: केंद्रीकृत पहुँच के लिए एक राष्ट्रीय डिजिटल भंडार के निर्माण हेतु AI-संचालित उपकरणों का उपयोग करके बड़े पैमाने पर डिजिटलीकरण।
  • छात्रवृत्ति एवं अनुसंधान: दुर्लभ पांडुलिपियों के अनुसंधान, अनुवाद एवं प्रकाशन को बढ़ावा देना।
  • क्षमता निर्माण: पांडुलिपि अध्ययन में विशेषज्ञता का विस्तार करने के लिए विद्वानों एवं संरक्षकों को प्रशिक्षित करना।
  • जन भागीदारी: विरासत संरक्षण में समुदायों को शामिल करने के लिए सहयोगी कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करना।

व्यापक दायरा एवं महत्त्व

  • प्रौद्योगिकी एकीकरण: ज्ञान-सेतु नवाचार चुनौती जैसी AI-संचालित पहल डिजिटलीकरण एवं पांडुलिपि पहुँच को बढ़ाती हैं।
  • वैश्विक साझेदारी: संपूर्ण विश्व के पुस्तकालयों, संस्थानों एवं निजी संरक्षकों के साथ सहयोग को मजबूत करती है।
  • शिक्षा संबंध: पांडुलिपि ज्ञान को आधुनिक शिक्षा एवं नीति ढाँचों में एकीकृत करने का प्रयास।

कतर

भारतीय प्रधानमंत्री ने कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल-थानी से वार्ता करते हुए दोहा पर हाल ही में हुए इजरायली हमलों पर गहरी चिंता व्यक्त की तथा शांति, स्थिरता एवं संवाद को प्रोत्साहित करने के प्रति भारत के समर्थन की पुनः पुष्टि की।

कतर के बारे में

  • कतर अरब प्रायद्वीप के उत्तर-पूर्वी तट पर स्थित एक लघु प्रायद्वीपीय देश है।
  • सीमावर्ती देश: इसकी स्थलीय सीमा दक्षिण में सऊदी अरब के लगती है एवं फारस की खाड़ी से विस्तृत है।
    • इसकी समुद्री सीमा बहरीन, ईरान एवं संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के साथ लगती है।
  • भूगोल: देश का अधिकांश भूभाग समतल एवं शुष्क मरुस्थलीय है, जहाँ दक्षिणी क्षेत्र, विशेषकर खोर अल अदाद (अंतर्देशीय सागर) के समीप, रेत के विशाल टीले प्रमुख रूप से पाए जाते हैं।
  • कतर का सर्वोच्च बिंदु: कुरैन अबू अल-बावल (103 मीटर/338 फीट), पश्चिम में अवस्थित है।
  • स्थलाकृति: उच्च वाष्पीकरण दर के कारण बने लवणीय मैदान (सबखास), तट के पास आम हैं।
  • वनस्पतियाँ: मरुस्थलीय वातावरण के बावजूद, दोहा में मानव निर्मित हरित क्षेत्र मौजूद हैं, जबकि उत्तरी क्षेत्रों में सिदरा वृक्ष जैसी प्राकृतिक वनस्पतियाँ उगती हैं।
  • जल निकाय: कतर में स्थायी नदियाँ नहीं हैं, लेकिन यहाँ वाडी (Wadis) पाई जाती हैं, जो वर्षा के दौरान अस्थायी रूप से प्रवाहित होती हैं।
    • जल की कमी के कारण देश विलवणीकरण संयंत्रों एवं जलाशयों पर निर्भर है।
  • द्वीप: हलुल द्वीप (तेल भंडारण केंद्र), श्राओ द्वीप एवं अल सफलिया द्वीप।
  • दोहा के बारे में: यह देश के पूर्वी तट पर स्थित राजधानी एवं सर्वाधिक जनसंख्या वाला प्रमुख नगर है।
    • यह कतर का राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक केंद्र है, जहाँ अधिकांश आबादी निवास करती है।

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